Saturday, November 23, 2019

गाय के सींग से बनाई खाद

गाय के सींग की सहायता से खाद बनाने की विधि –
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सही मायनों में भारत में गाय ईश्वरीय कृपा और देवत्व की प्रतिनिधि है; जो ज़िंदा रहते अपने सेवक परिवार को भोजन, आय और कृषि से जीवन यापन का जरिया ही नही देती मरने के बाद भी अपने हर अंग से कृषक को लाभ प्रदाय करती है | मृत गाय के सींग की सहायता से अत्यधिक उचित काल और चन्द्र स्थिति पर प्रभावशाली जैविक खाद बनाया जाता है | यह चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण बल और नक्षत्रों के प्रभाव पर आधारित जैविक खाद बनाने की एक बहुत ही प्राचीन भारतीय विधि है |

१. इस विधि में भारतीय मूल की 28 नस्लों में से किसी भी गाय की ही सींग का ही उपयोग किया जाता है , बैल के सिंग का नही l

२. प्राकृतिक रूप से मृत गाय का ही सींग उपयोग में लायें |

३. ऐसी गाय जो एक बार से तीन बार बच्चे दे चुकी हो उस गाय का सींग सर्वोत्तम होता है |

४. गाय, बैल के सींगों के ढेर में से गाय के सींगों की पहचान इस लक्षण के आधार पर करनी चाहिए कि गाय के द्वारा दिए गए प्रत्येक बच्चे के जन्म पर उस गाय सींग के ऊपर एक गोल चक्र या रिंग (सर्कल) उभरता है | इस आधार पर ही बच्चों की संख्या या गाय की ब्यांत का पता लगाया जाता है |

५. खाद हेतु चयन किये हुए गाय के सींग में छेद या टूट-फुट नही होनी चाहिए

६. खाद हेतु चयन किये हुए गाय के सींग में रंग या पेन्ट हो तो इसे पुरी तरह साफ़ कर निकाल देवें |

७. खुले आकाश के नीचे की जगह जहाँ चन्द्रमा की चांदनी सीधे-सीधे पुरी रात या चन्द्रमा निकलने के अधिकतम समय पहुँचती या पड़ती हो | इस स्थल पर वर्षा कालीन पानी का बहाव या जमाव न हो |

८. पेड़ की छाया या पेड़ की जड़ न हों साथ ही केंचुओं की सक्रियता भी न हों |

९. ऐसी जगह पर २ फुट लम्बा, २ फुट गहरा और २ फुट चौड़ा गड्ढा खोद कर छोड़ दें l

१०. शरद पूर्णिमा का दिन सींग खाद कार्य सम्पादित किया जाना सर्वोत्तम होता है; अन्य स्थिति में किसी भी माह की पूर्णिमा के दिन सींग से खाद निर्माण किया जा सकता है |

११. खोदे गए गड्ढे में 2 इंच के लगभग गाय के गोबर से भर कर पाट दें l

१२. ध्यान रहे गोबर उस गाय का ही उपयोग करें जो पिछले 15 दिनों से गाय बीमार या जिसने पिछले 15 दिनों से अंग्रेजी दवा का उपयोग न किया हो |

१३. ध्यान रखें बच्चे को दूध पिलाने वाली गाय का गोबर इस काम के लिए उपयुक्त होता है |

१४. पूर्णिमा के दो तीन दिन पूर्व से ही इस भारतीय मूल की देशी गाय को तुलसी के पत्ते, नीम, बांस, बेल, पीपल, वट के पत्ते , दूब के घास साथ हरा चारा खिलाना सर्वोत्तम परिणाम दायी होता है |

१५. उपरोक्त उल्लेखित दुधारू गाय के गोबर से सींग को पूरा भर दीजिये फिर इस भरे हुए सींग के नुकीले सीरे को ऊपर आसमान की ओर कर रखें l इस तरह पहली परत में सींगों के आकर के अनुसार ५-६ सींगों को रोप सकते हैं l फिर एक भी सींग तिरछे न हों ऐसी सावधानी रखते हुए उस पर पहले जितना ही गाय का गोबर पाट दें और इस परत में भी दूसरे ५-६ गाय के सींगो को पहले की तरह रोप दें l

१६. इस गड्ढे के बाकी बचे हिस्से को भी गाय के गोबर और बरगद या वट वृक्ष के नीचे की मिट्टी मिला कर पाट दें और भूमि समतल कर दें l गड्ढे पर पहचान के लिए निशान लगा दें कर सुरक्षित रखें l

१७. कूल ६ माह बाद ही अमावस्या के दिन उन्हें बाहर निकालें अगर इस दिन यह कार्य संभव न हो पाए तो किसी अन्य तिथि को कृष्ण पक्ष में ही निकालें l सींग में से पाउडर बाहर निकालकर उसे मिटटी या कांच के बर्तन में डाल के बर्तन का मुंह बाँध दें और उसे ठंडी जगह पर रखें l

१८. सींग के आकर के अनुसार एक सींग में से करीब 40 से 60 ग्राम तक पाउडर निकलता है

१९. पैंतीस लीटर प्रति एकड़ के हिसाब से घोल बनायें l घोल बनाने के लिए किसी बड़े ड्रम में जितने लीटर पानी लें उतने ही ग्राम पाउडर उसमे मिलाकर एकाध घंटे तक घडी की सुइयों से विपरीत दिशा में मथनी से मथें या डंडे से घुमाएं l मथते समय ड्रुम में नीम की हरी पत्तियां कूटकर डालने से घोल में कीटाणु नाशक के गुण आ जाते हैं l

२०. यह सींग खाद से बने घोल को सूर्योदय के पूर्व या शाम को बुवाई के समय जब जमीन गीली हो तब ज़मीन पर छिडकें, पौधों पर नहीं थोड़ा भी ना डालें l

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