Friday, December 29, 2017

महाभारत में गौमाता का माहात्म्य ( गवोपनिषद्), तथा गौमाता के दैनिक जाप, प्रार्थना तथा प्रणाम के मन्त्र

महाभारत में गौमाता का माहात्म्यतथा गौमाता के दैनिक  जापप्रार्थना  तथा प्रणाम के मन्त्र -

भगवान् श्री राम के गुरुदेव महर्षि वसिष्ठ जी इक्ष्वाकुवंशी महाराजा सौदास से गवोपनिषद् (गौओं की महिमा के गूढ रहस्य को प्रकट करने वाली विद्याका निरूपण करते हुए महाभारत में कहते हैं –

हे राजन्मनुष्य को चाहिये कि सदा सबेरे और सायंकाल आचमन करके इस प्रकार जप करे – “घी और दूध देने वालीघी की उत्पत्ति का स्थानघी को प्रकट करने वालीघी की नदी तथा घी की भंवर रूप गौएं मेरे घर में सदा निवास करें। गौ का घी मेरे हृदय में सदा स्थित रहे। घी मेरी नाभि में प्रतिष्ठित हो। घी मेरे सम्पूर्ण अंगों में व्याप्त रहे और घी मेरे मन में स्थित हो। गौएं मेरे आगे रहें। गौएं मेरे पीछे भी रहें। गौएं मेरे चारों ओर रहें और मैं गौओं के बीच में निवास करूं इस प्रकार प्रतिदिन जप करने वाला मनुष्य दिन भर में जो पाप करता हैउससे छुटकारा पा जाता है। 

गौ सबसे अधिक पवित्रजगत् का आधार और देवताओं की माता है। उसकी महिमा अप्रमेय है। उसका सादर स्पर्श करे और उसे दाहिने रख कर ही चले। प्रतिदिन यह प्रार्थना करनी चाहिये कि सुन्दर एवं अनेक प्रकार के रूप-रंग वाली विश्वरूपिणी गोमाताएं सदा मेरे निकट आयें। संसार में गौ से बढ़ कर दूसरा कोई उत्कृष्ट प्राणी नहीं है। त्वचारोमसींगपूंछ के बालदूध और मेदा आदि के साथ मिल कर गौ दूध दही घी आदि के द्वारा सभी यज्ञों  पूजाओं का निर्वाह करती हैअतः उससे श्रेष्ठ दूसरी कौन-सी वस्तु है। 

अन्त में वे गौमाता को परमात्मा का स्वरूप मान कर प्रणाम करते हैं - जिसने समस्त चराचर जगत् को व्याप्त कर रखा हैउस भूत और भविष्य की जननी गौ माता को मैं मस्तक झुका कर प्रणाम करता हूं॥
महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय ८० श्लोक ,,,,१०,१३,१४,१५

उपर्युक्त “गवोपनिषद्” में से दैनिक जप के संस्कृत मन्त्र (महर्षि वसिष्ठ द्वारा उपदिष्ट) -
घृतक्षीरप्रदा गावो घृतयोन्यो घृतोद्भवाः।
घृतनद्यो घृतावर्तास्ता मे सन्तु सदा गृहे॥
घृतं मे हृदये नित्यं घृतं नाभ्यां  प्रतिष्ठितम्।
घृतं सर्वेषु गात्रेषु घृतं मे मनसि स्थितम्॥
गावो ममाग्रतो नित्यं गावः पृष्ठत एव च।
गावो मे सर्वतश्चैव गवां मध्ये वसाम्यहम्॥
++अनुवाद = घी और दूध देने वालीघी की उत्पत्ति का स्थानघी को प्रकट करने वालीघी की नदी तथा घी की भंवर रूप गौएं मेरे घर में सदा निवास करें। गौ का घी मेरे हृदय में सदा स्थित रहे। घी मेरी नाभि में प्रतिष्ठित हो। घी मेरे सम्पूर्ण अंगों में व्याप्त रहे और घी मेरे मन में स्थित हो। गौएं मेरे आगे रहें। गौएं मेरे पीछे भी रहें। गौएं मेरे चारों ओर रहें और मैं गौओं के बीच में निवास करूं
--गौमाता की दैनिक प्रार्थना का मन्त्र  (महर्षि वसिष्ठ द्वारा उपदिष्ट) –

सुरूपा बहुरूपाश्च विश्वरूपाश्च मातरः।
गावो मामुपतिष्ठन्तामिति नित्यं  प्रकीर्तयेत्॥

++अनुवाद = प्रतिदिन यह प्रार्थना करनी  चाहिये कि सुन्दर एवं अनेक प्रकार के रूप-रंग वाली विश्वरूपिणी गोमाताएं सदा मेरे निकट आयें

---गोमाता को परमात्मा का साक्षात् विग्रह  जान कर उनको प्रणाम करने का मन्त्र (महर्षि वसिष्ठ द्वारा उपदिष्ट) –

यया सर्वमिदं व्याप्तं जगत् स्थावरजङ्गमम्।
तां धेनुं शिरसा वन्दे भूतभव्यस्य मातरम्॥

++अनुवाद = जिसने समस्त चराचर जगत् को व्याप्त कर रखा हैउस भूत और भविष्य की जननी गौ माता को मैं मस्तक झुका कर प्रणाम करता हूं॥
क्रिपा जरुर पढें और गौ माता की सेवा करें ऐवं अपने बच्चों या छोटों से करवायें...
 जय गौ राम 


वसिष् का सौदास को गोदान की विधि एवं महिमा बताना
भीष्मजी कहते हैं- राजन। एक समय की बात है, वक्ताओं में श्रेष्ठ इक्ष्वाकुवंशी राजा सौदान ने सम्पूर्ण लोकों में विचरने वाले, वैदिक ज्ञान के भण्डार, सिद्व सनातन ऋषि श्रेष्ठ वषिष्ठजी से, जो उन्हीं के पुरोहित थे, प्रणाम करके इस प्रकार पूछना आरंभ किया। सौदास बोले- भगवन। निष्पाप महर्षे। तीनों लोकों में ऐसी पवित्र वस्तु कौन कही जाती है जिसका नाम लेने मात्र से मनुष्य को सदा उत्तम पुण्य की प्राप्ति हो सके? भीष्मजी कहते हैं- राजन। अपने चरणों में पड़े हुए राजा सौदास से गवोपनिषद् (गौओं की महिमा के गूढ रहस्य को प्रकट करने वाली विद्या) के विद्वान पवित्र महर्षि वषिष्ठ ने गौओं को नमस्कार करके इस प्रकार कहना आरंभ किया- ‘राजन। गौओं के शरीर से अनेक प्रकार की मनोरम सुगंध निकलती हरती है तथा बहुतेरी गौऐं गुग्गल के समान गंध वाली होती हैं। गौऐं समस्त प्राणियों की प्रतिष्ठा (आधार) हैं और गौऐं ही उनके लिये महान मंगल की निधि हैं। गौऐं ही भूत और भविष्य हैं। गौऐं ही सदा रहने वाली पुष्टि का कारण तथा लक्ष्मी की जड़ हैं। गौओं को जो कुछ दिया जाता है, उसका पुण्य कभी नष्ट नहीं होता।गौऐं ही सर्वोत्तम अन्न की प्राप्ति में कारण हैं। वे ही देवताओं को उत्तम हविष्य प्रदान करती हैं। स्वाहाकार (देवयज्ञ) और वश ट्कार (इन्द्रयाग)- ये दोनो कर्म सदा गौओं पर अबलम्बित हैं।गौऐं ही यज्ञ का फल देने वाली हैं। उन्हीं में यज्ञों की प्रतिष्ठा है। गौऐं ही भूत और भविष्य हैं। उन्हीं में यज्ञ प्रतिष्ठित हैं, अर्थात यज्ञ गौओं पर ही निर्भर हैं महातेजस्वी पुरूष प्रवर। प्रातःकाल और सायंकाल सदा होम के समय ऋषियों का गौऐं ही हवनीय पदार्थ (घृत आदि) देती हैं।प्रभो। जो लोग (नव प्रसूति का दूध देने वाली) गौ का दान करते हैं वे जो कोई भी दुर्गम संकट आने वाले हैं, उन सबसे अपने किये हुए दुष्कर्मों से तथा समस्त पाप समूह से भी तर जाते हैं।जिसके पास दा गौऐं हों, वह एक गौ का दान करे। जो सौ गाय रखता हो, वह दस गौओं का दान करे और जिसके पास एक हजार गौऐं मौजूद हों वह सौ गौऐं दान में दे तो इन सबको बरावर ही फल मिलता है जो सौ गौओं का स्वामी होकर भी अग्निहोत्र नहीं करता, जो हजार गौऐं रखकर भी यज्ञ नहीं करता तथा जो धनी होकर भी कृपणता नहीं छोड़ता- ये तीनों मनुष्य अर्ध् (सम्मान) पाने के अधिकारी नहीं हैं जो उत्तम लक्षणों से युक्त कपिला गौ को वस्त्र ओढ़ाकर बछड़े सहित उसका दान करते हैं और उसके साथ दूध दोहने के लिये कांस्य का एक पात्र भी देते हैं वे इहलोक और परलोक दोनों पर विजय पाते हैं शत्रुओं को संताप देने वाले नरेश। जो लोग जवान, सभी इन्द्रियों से सम्पन्न, सौ गायों यूथपति, बड़ी-बड़ी सींगों वाले गवेन्द्र वृषभ (सांड़) को सुसज्जित करके सौ गायों सहित उसे श्रोत्रिय ब्राह्माण को दान करते हैं, वे जब-जब इस संसार में जन्म लेते हैं तब-तब महान ऐश्वर्य के भागी होते हैं।गौओं का नाम- कीर्तन किये बिना सोयें, उनका स्मरण करके ही उठें और सबेरे-शाम उन्हें नमस्कार करें। इससे मनुष्य को बल एवं पुष्टि प्राप्त होती है