Sunday, February 26, 2017

श्री कृष्ण और गाय - Lord Krishna & Cow

​श्री कृष्ण और गाय
गाय बचाओ देश बचाओ
श्री कृष्ण और गाय में अंतर नहीं है -

-- गाय के रक्त की एक बूँद किसी तलाब , कुए में गिर जाय , उसको पी लेने से जहा हिन्दू धर्म नस्ट हो जाता है , ऐसा कहा जाता था , आज वे गोमास खा रहे है और कह रहे है की हम हिन्दू है।
-- आप सोचिये परम धर्मात्मा शूरवीर चक्रवर्ती सम्राट के शरीर की कितनी कीमत हो सकती है और वह भी धर्मधुरन्दर सम्राट दिलीप की। पर गोभक्त दिलीप नंदिनी गाय को बचाने लिए सिंह आगे अपना बलिदान करने को प्रस्तुत हो जाते है। वे कहते है सिंह तुम्हे खाना ही है तो तुम मुझे खाकर अपनी भूख मिटा लो , किन्तु मेरे गुरु महाराज की गाय को छोड़ दो।
-- सबके आराध्य उपास्य भगवान् है और भगवान की भी उपास्य - आराध्य गोमाता है , तो भगवान इष्ट है और इष्ट का इष्ट गोवंश है , गोमाता है इसलिए गाय अति इष्ट है।
-- भगवान कृष्णा के जन्म पर श्री वसुदेवजी ने 10000 ( दस हजार ) पयस्वनी गायो के दान का संकल्प लिया।
नंदोत्सव में बीस लाख गायो का दान किया गया। ब्रज शब्द का अर्थ ही है गोष्ठ और ऐसा गोष्ठ जिसमे एक करोड़ गोवंश निवास करता है।
-- पूतना की छाती जब ग्वाल बालो ने कृष्णजी को उतारा तो बोले राक्षसी ने स्पर्श है बालक को तो शुद्ध कैसे हो ? भगवान् को गोशाला में लाया गया और गोमूत्र से स्नान कराया , गोबर का लेप किया , गोमाता की चरण रज श्री अंग में लगाई और फिर पूछ से भगवान् को लगाया गया।
-- भगवान बाल कृष्ण को बड़े बड़े मणिमय प्रागण और सुन्दर सुन्दर खिलोनो के बीच में बैठकर भगवान् को अच्छा नहीं लगता , भगवान गो रज में खेलने चले जाते।
-- पद्म गंधा जाती की गाये बाबा के महल में ही निवास करती थी , जिनके श्रीअंग से जिनके दुग्ध से , दही से , घृत से , छाछ से खिले हुए कमल के मकरन्दकी सुगंध प्रकट होती , ऐसी एक लाख पद्मगंधा बाबा के गोष्ठ में थी। उनके गोमय और गोमूत्र से भी एक विशेष प्रकार की कमल की सुगंध आती , तो उनके गोमय और गोमूत्र के मिश्रण से जो राज मिलकर एक विशिष्ट , है ब्रजकारदं। इस गोष्ठ के कीचड़ में भगवान् बैठ जाते है और कीच में भगवान् स्नान करने लग जाते , अंजलि से कीच को अपने और डॉ दादा के ऊपर भी चढ़ाते है , इसको सन्तो ने "पनकाभिषेक - लीला " कहा है।
-- जब बछड़े खड़े हो जाते है तो बाल कृष्णजी धीरे धीरे उनके पैरो के निकट जाते है और उनकी लंबी लटकती हुई पुछ को पकड़ लेते है और पूछको पकड़ के खड़े हो जाते। बाल कृष्ण बछड़े के पीछे पूछपर लटक रहे है और बछड़े भाग रहे है , इसको आचार्यो ने कहा है - "लटकंत ब्रह्म " .
-- कृष्ण जी का गोप्रेम - गोरस प्रेम गो प्रेम है , गव्य पदार्थो से प्रीती ही गो प्रीती है। ठाकुरजी के घरमे दूध , दही , माखन मिश्री की कमी नहीं , पर इसके बाद भी गव्य पदार्थो से उनकी जो प्रीती है , उस प्रीती के कारण ठाकुरजी चोरी करके भी खाते है।
- बाल कृष्णा चार साल के हुए तो रूठ गए , क्यों रूठ गए , बोले , " बाबा ! अब मई बड़ो हो गयो , मैं गया चराउगो " . बाबा ने कहा "लाला अभी तू छोटो है , नेक बड़ो है जा , फेर गईया चराइयो " . तब ठाकुरजी रोना बंद नहीं कर रहे थे। यह निश्चित किया गया की साखा मंडली के साथ बाल कृष्ण को गोवत्स चारणके लिए नियुक्त किया जाय। चार साल के बाल कृष्ण गैया चराने के लिए।, गोसेवा के लिए रो रहे है। ये बल कृष्ण की गोप्रीति है।
-- बछड़ो की मालिश करते है , साथ खेलते कूदते है , हरी हरी घास उखाड़-उखाड़कर बछड़ो को अपने हाथ से खिलाते है , बछड़े खूब घास चर लेते है , प्रसन्न हो जाते है , जमुना जी का जल पी लेते है , बछड़े जब बैठ जाते है तब ठाकुरजी बैठते है , इतनी प्रीती करते है, कुछ कलेऊ लेकर आते है किन्तु , बछड़े जब खा ले , पी ले तब ठाकुरजी कलेऊ करते है।
-- अब ठाकुरजी पाँच वर्ष पूरे हो गए और छठे वर्ष प्रवेश किया। छह वर्ष के भगवान् रोने लगे और इतना रोये की भगवानका रोना बंद न हो , खिलोने सामने रखे , तो सब उठाकर फेक दिए , गोद में माता लेती है तो तो गोद से उतरकर भूमि में लेट जाते है। सब श्रृंगार बिगाड़ लिया। अब मैया बाबा सब पूछ रहे है , " लाला कुछ बताय तो सही अपने मन की तू क्यों रॉय रहो है " रोते रोते हिचकी बंध गयी ठाकुरजी की और बोले , " बाबा ! अब मई माखन खाय खाय मोटो है गयो हु , बड़ो है , सो मई गया चराउगो . अरे राम राम ! सवेरे से गया चराइबे कु रॉय रह्यो है , पहले ही बताय देतो। देख लाला , हम गोपालक है , हमरो धर्म गोसेवा है , हम गउन की सेवा करे है , पर हमारेहिन्दू धर्म में समस्त कार्य मुहूर्त सु किये जाय। पुरोहितजी को बुलावेंगे , वे पंचांग देखेगे , पत्रा देखेगे , मुहूर्त बतायेगे की गोसेवाका , गोचारण का अमुक मुहूर्त है , तब तुम्हारे हाथ गोपूजन पूर्वक गोचारण सम्पन्न कराया जाएगा। ठाकुरजी बोले बुलाओ पुरोहितजी को , अभी मुहूर्त दिखाओ। वे पुरोहितजी पुरोहितजी कहकर रोने लगे , तब तक शंडिल्यजी खुद ही आ गए। पुरोहितजी ने तुरंत खोल और बोले अरे बाबा , तुम्हरो लाला तो मुहूर्त देखके ह रोयो है। बोले आज कार्तिक शुक्ल अष्ट्मी है , गोपाष्टमी है , आज तो गोमाता का पूजन करके गोचारण करना चाहिए , आज से श्रेष्ठ दूसरी कोई तिथि गोचारण की नहीं है , तुम्हार लाल तो मुहूर्त देखकर ही रोयो है। अब तो ठाकुरजी ने प्रेमसे गोपूजन करके गोचारण प्रारम्भ किया। गोचारण कालमे ही भगवान् पद त्राण धारण नहीं करते , पेअर में जूता , चप्पल भगवान् धारण नहीं करते , इसलिए धारण नहीं करते की " हम गया चारा रहे है " - इस सामान्य बुद्धि से प्रभु क्रिया नहीं कर रहे। गाय हमारी उपास्य देवता , इष्ट देवता है , यह गया चराना गो उपासना है - यह मानकर भगवान् कर रहे है और उपासना जूता चप्पल पहनकर नहीं की जाती , इसलिए भगवान् बिना पडतरणके गोचारण करते है , गायो के झुण्ड के पीछे चलते है , क्यों चलते है गायो के झुण्ड के पीछे , इसलिए की गोमाता की चरण राज हमारे ऊपर पड़े और मई पवित्र हो जौ , तो क्या भगवान् में कोई अपवित्रता आ गयी है क्या ? नहीं नहीं परंतु वे परम पावन , पतित पावन श्री कृष्णा भी गोचरणरज से अभिषेक के पश्चात निरतिशय पावनता का अनुभव आपमें करते है , वनमाला , पोशाक , मुकुट मुरली सब गोरजमयी हो जाती है।
गाय खूब हरित हरित घास करके सायंटिस्ट हो करके जलपान करके जब बैठ जाती है तब ठाकुरजी बैठते है , तबतक ठाकुरजी खड़े ही रहते है, बैठते नहीं। जब गाय बैठ जाती तब ठाकुरजी छैक रोंगटे और गाय विश्राम करती तब तक ठाकुरजी खड़े हो जाते। ठाकुरजी पीछे पीछे और गायो के पीछे पीछे ही लौटते है , मुरली सुनाते है गायो को। कालिया नाग दमन करते है। कालीयहृददको शुद्ध करते है तो किसलिए ? गायो के लिए। कालीयहृद का जल मृत्यु को प्राप्त हुई गायो को जीवनदान देते है। कहा तक कहे , गायो के लिए दावानळपण करते है , गायोंकी रक्षा के लिए ही बड़े बड़े असुरो है , गिरिराज गोवर्धन को अपनी कनिष्टिका के आगरा भागपर धारण करते है। जब भगवान् से ब्रजवासियो ने पूछा की गोवर्धन उठाने का सामर्थ्य उनके अंदर कहा से आया तो ठाकुरजी ने कहा - " गोसेवा के पुण्य से हमने गोवर्धन उठा लिया ".
फिर भगवान् कृष्णा का यग्यो पवीत संस्कार हुआ। फिर सांदीपनि जी के आश्रम में पढ़ने गए , तब गोसेवा करते थे और द्वारका लीला में तो स्पस्ट वर्णन है की 13084 गायो का दान प्रतिदिन द्वारकाधीश कृष्णा करते है , सींग स्वर्णमंडित , खुर राजतमण्डित , पुछमे मोती और जवाहरात पिरोये हुए सुन्दर रेशमी झूल। इतना गोदान करते तो स्वयं भगवान् के पास कितना गोवंश होगा?
भगवान् की सम्पूर्ण ब्रजलीला में गाय ही प्रधान है। ब्रीहितपराशर स्मृति में लिखा है -
श्रृंगमूले स्थितो ब्रह्मा श्रिंमध्ये तू केशवः।
श्रृंनगाग्रे शंकरं विद्यात त्रयो देवाः प्रतिष्ठताः। .
गाय के सींग के मूल भाग में ब्रह्माजी रहते है , मध्य में भगवान् केशव और सींग के अग्रभाग में शंकरजी , देवता गोमाता में प्रतिसठित है। गायो से भिन्न त्रिदेव नहीं। .
धर्म का जन्म गाय से है क्योकि धर्म जी है वह वृषभ रूप है और गाय के पुत्र को ही वृषभ कहा जाता है। अन्नकी प्रसूति के लिए हिये धर्म ने धारण किया वृषभ रूप।
गाय का स्मरण करके , गायको नमस्कार करके जो गाय की प्रदक्षिणा करता है , उसने मानो सात द्वीप और सात समुद्र वाली पृथ्वी की प्रदक्षिणा कर ली है। जो गाय को केवल चारा दाल दे , जल पिला दे अथवा नित्य ग्रास अर्पित करे तो वह सो अश्वमेध के सामान पुण्य प्राप्त करता है।
महर्षि पाराशर कह रहे है अपने शिष्य सुव्रत से - हे वत्स सुव्रत ! उसको पाप कहा से स्पर्श कर सकता है , उसके घर में कहा से अमंगल हो सकताहै , जहां गाय प्रसान होकर निवास करती है , बछड़ो और बछियों के साथ उस घर में कभी अशुभ अमंगल नहीं , जहा गाय परिवार के सदस्य की तरह निवास करे।