वेद पुराणो में गाय

*वेद पुराणों में गाय*

 
यः पौरुषेण क्रविषा समंक्ते यो अश्वेन पशुना यातुधानः
 
ये अघ्न्याये भरति क्षीरमग्ने तेषां शीर्षाणि हरसापि वृश्चः

 
हे अग्निदेव ! अपनी लपटों से उन दानवों के सर जला दो, जो मनुष्यों और घोड़े 
 
और गाय जैसे प्राणियों का मांस भक्षण करते और गाय का दूध चूसते हैं  
 (
रिक संहिता ८७-१६१)

 *
प्रजापतिर्मह्यमेता रराणो विश्वैर्देवैः पितृभिः संविदानः
 
शिवाः सतीरुप नो गोष्ठमाकस्तासां वयं प्रजया संसदेम
 (
रिक संहिता १०१६९-)

 
हे परमेश्वर, अन्य सब देवताओं के साथ हमारी खुशी के लिये शुभ और विशाल गो 
 
स्थान बनाकर उन्हें गाय और बछड़ों से भर दें  
 
हम गो धन का आनंद लें और गायों की सेवा करें

 *
सा विश्वाय़ूः सा विश्वकर्मा सा विश्वधायाः।
 (
शुक्ल यजुर्वेद -)

 
गायें यज्ञों में रत सभी ऋषियों और यज्ञों के आयोजकों के आयुष्य को बढ़ायें  
 
गाय यज्ञ के सभी संस्कारों का समन्वय करती है  
 
अपने दूध के नैवेद्य से गाय यज्ञ के सभी देवताओं को संतुष्ट करती है

 *
गावो अग्मन्नुत भद्रकम्रन् सीदंतु गोष्मेरणयंत्वस्मे
 
प्रजावतीः पुरुरूपा इहस्स्युरिंद्राय पूर्वीरुष्सोदुहानाः
 
यूयं गावो मे दयथा कृशं चिदश्रीरं चित्कृणुथा सुप्रतीकम्
 
भद्र गृहं कृणुथ भद्रवाचो बृहद्वो वय उच्यते सभासु
 (
अथर्ववेद -२१-११ और )

 
गो माताओं ! तुम अपने दूध और घी से दुर्बलों को बलिष्ठ बनाती हो और रोगियों 
 
को स्वस्थ  
 
अपनी पवित्र वाणी से तुम हमारे घरों को शुद्ध करती हो  
 
सभाओं में तुम्हारा गुणगान होता है

 *
वशां देवा उपजीवंति वशां मनुष्या उप
 
वशेदं सर्वं भवतु यावतु सूर्यो विपश्यति
 (
अथर्ववेद १०-१०-३४)

 
देवता और मानव गो पदार्थों पर जीतें हैं  
 
जब तक सूर्य चमकेगा, विश्व में गायें रहेंगी  
 
सारा ब्रह्मांड गाय के संबल पर निर्भर है

 *
सा नो मंद्रेषमूर्जम् दुहाना
 
धेनुर्वा गस्मानुष सुष्टुतैतु

 
वह है कामधेनुहमारी आवश्यकताओं को पूर्ण करने वाली दिव्य गाय  
 
उसका मुख स्त्री और शरीर गाय का है  
 
जब सागर मंथन हुआ तो वह अमृत के पूर्व निकली  
 
उसके केशों से सुगंध फैलता है  
 
अपने थनों से वह धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की वृद्धि करती है  
 
वह आत्म ज्ञान का घर है और सूर्य, चंद्र और अग्निदेव को शरण देती है  
 
सब देवता और प्राणी उस पर निर्भर करते हैं  
 
तनिक सी प्रार्थना पर वह हमें भोजन और परम ज्ञान देती है
 
वह हमारे निकट ही रहे

 *
पीतोदका जग्धतृणा दुग्धदेहा निरिंद्रियाः
 
आनंदा नाम तेलोकस्तान् गच्चति ता ददत्
 (
कठोपनिषदविश्वजित यज्ञ के अवसर पर नचिकेता ऋषि ने वाजश्रवों से कहा)

 
इन गायों ने घास और जल का आहार लिया है  
 
इन्हें दूहा गया है वें अब प्रजनन आयु को पार कर चुकी हैं  
 
इन गायों का त्याग करने वाला आनंदविहीन अंधेरे स्थल को प्राप्त होगा  
 
इनके स्थान पर मुझे दान कर दो

 *
गोकुलस्य तृषार्तस्य जलार्थे वसुधाधिपः
 
उत्पादयति यो विघ्नं तं विद्याद्ब्रह्मघातिनम्
 (
महाभारत अनुशासन पर्व-२४-)

 
प्यासी गायों को पानी देने में बाधा डालने को ब्रह्महत्या के समान मानना चाहिए

 *
गवां मूत्रपुरीषस्य नोद्विजेत कथंचन
 
चासां मांसमश्नीयाद्गवां पुष्टिं तथाप्नुयात्
 (
महाभारत अनुशासन पर्व ७८-१७)

 
गोमूत्र और गोबर का सेवन करने में हिच-किचायिये  
 
ये पवित्र हैं
 
किंतु गोमांस का भक्षण कभी करें  
 
पंचगव्य सेवन से व्यक्ति बलिष्ठ बनता है

 *
गावो ममाग्रतो नित्यं गावः पृष्ठत एव
 
गावो मे सर्वतश्चैव गवां मध्ये वसाह्यहम्
 (
महाभारत, अनुशासन पर्व ८०-)

 
मेरे सामनें, मेरे पीछे और मेरे चारों तरफ गायें हों  
 
मैं गायों के साथ जीता हूँ

 *
दानानामपि सर्वेषां गवां दानं प्रशस्यते
 
गावः श्रेष्ठाः पवित्राश्च पावनं ह्येतदुत्तमम्
 (
महाभारत, अनुशासन पर्व ८३-)

 
गोदान अन्य दानों से श्रेष्ठ है  
 
गायें सर्वोच्च और पवित्र हैं

 *
सर्वोपनिषदो गावो दोग्धा गोपालनंदनः
 
पार्थो वत्सः सुधीर्भोक्तादुग्धं गीतामृतः महत्

 
भगवद्गीता उपनिषदों का सार है  
 
यह श्री कृष्ण द्वारा दूही जानेवाली गाय के समान है  
 
अर्जुन बछड़े जैसा है  
 
विद्वान भक्त भगवद्गीता का दुग्ध पान कर रहें हैं

 *
गौर्मे माता वृषभः पिता मे दिवं शर्म जगते मे प्रतिष्ठा

 
गाय मेरी माता और बैल पिता है  
 
यह युगल मुझे इस संसार और स्वर्ग दोनों में आनंद का आशीर्वाद दे  
 
मैं अपने जीवन के लिये गाय पर निर्भर हूँ,यह करते हुए गाय को समर्पित हों

 *
गावो बंधुर्मनुष्याणां मनुष्याबांधवा गवाम्
 
गौः यस्मिन् गृहेनास्ति तद्बंधुरहितं गृहम्
 (
पद्मपुराण)

 
गायों में लक्ष्मी का निवास है  
 
वे पापों से मुक्त हैं मानव और गाय का संबंध अति सुंदर है
 
गौविहीन घर प्रियजनविहीन के समान है

 *
वागिंद्रियस्वरूपायै नमः
 
वाचावृत्तिप्रद्दयिन्यै नमः
 
अकारादिक्षकारांतवैखरीवक्स्वरूपिण्य़ै नमः
 (
अत्रि संहिता ३१०)

 
गो पदार्थों के उपयोग के माध्यम से गो सेवा,चेतना और साहस दोनों को बढ़ाती है

 *
यन्न वेद्ध्वनिध्यांतं गोभिरलंकृतम्
 
यन्नबालैः परिवृतं श्मशानमिव तद्गृहम्
 (
विष्णु स्मृति)

 
वह घर श्मशान के समान है जहाँ वेदों का पाठ नहीं होता और जहाँ गायें और 
 
बालक नहीं दिखते

 *
गोमूत्रगोमयं सर्पि क्षीरं दधि रोचना
 
षदंगमेतत् परमं मांगल्यं सर्वदा गवाम्

 
गोमूत्र,गोबर,दूध,घी,दहीं और गोरोचनयह अत्यंत पवित्र पदार्थ हैं

 
शास्त्रों के अनुसार गौसेवा एवं गऊ पूजा के पुण्य का प्रभाव कई जन्मों तक 
 
बना रहता है !!

 
गऊ वंदे मातरम !!

 
नमो गोभ्य: श्रीमतीभ्य:सौरभेयीभ्य एव च। 
 
नमो ब्रह्मसुताभ्यश्च पवित्राभ्यो नमो नम:।। 
 
यया सर्वमिदं व्याप्तं जगत स्थावरजंगमम्। 
 
तांधेनुंशिरसा वंदे भूतभव्यस्य मातरम्।।

 
पञ्च गाव: समुत्पन्ना मथ्यमाने महोदधौ। 
 
तासां मथ्ये तु या नंदा तस्यै देव्यै नमो नम:।। 
 
सर्वकामदुधे देवि सर्वतीर्थाभिषेचिनि। 
 
पावनि सुरभिश्रेष्ठे देवि तुभ्यं नमो नम:।।

 
गऊ ग्रास नैवेद्य मन्त्र --

 
सुरभिस्त्वं जगान्मातेर्देवि विष्णुपदे स्थिता  
 
सर्वदेवमयी ग्रासं मया दत्तामिमं।।

 
गऊ प्रदक्षिणा मन्त्र --

 
गवां दृष्ट्वा नमस्कृत्य कुर्याच्वैव प्रदक्षिणम्। 
 
प्रदक्षिणीकृता तेन सप्तद्वीपा वसुंधरा।। 
 
मातर: सर्वभूतानां गाव: सर्वसुखप्रदा: 
 
वृद्धिमाकान्गाक्ष्ता पुंसा नित्यं कार्या प्रदक्षिणा।।

 
गऊ माता की पूजा करें,,गऊ माता की सेवा करें,,
 
गऊ माता का संरक्षण करें,,

 
गऊ माता की पूजा,नैवेद्य एवं प्रदक्षिणा अर्पण से समस्त देवी देवताओं 
 
की पूजा हो जाती है.

 
सनातन हिंदू धर्म का पालन करें,,
 
देश को समृद्ध बनायें,,

 
गऊ माता को किसी भांति भी कष्ट पहुंचाने वाले 
 
जन्म जन्मांतर के लिए पीढ़ियों तक शापित हो जाते हैं,,
 
सदा दुःख पाते हैं,,

 
जयति पुण्य सनातन संस्कृति,,जयति पुण्य भूमि भारत,,,
 
सदा सुमंगल,,,गऊ वंदे मातरम,,,,
 
जय श्री कृष्ण,,, जय श्री राम,,,,

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