Sunday, November 24, 2019

श्रीराधा की तुलसी पूजा

श्रीराधा की तुलसी पूजा

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*(((( श्रीराधा की तुलसी पूजा ))))*

*तो सोचिए हमे तो जरूर करनी चाहिए*
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*एक बार राधा जी सखी से बोली - सखी ! तुम श्री कृष्ण की प्रसन्नता के लिए किसी देवता की ऐसी पूजा बताओ जो परम सौभाग्यवर्द्धक हो.*
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*तब समस्त सखियों में श्रेष्ठ चन्द्रनना ने अपने हदय में एक क्षण तक कुछ विचार किया. फिर बोली..*.
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*चंद्रनना ने कहा- राधे ! परम सौभाग्यदायक और श्रीकृष्ण की भी प्राप्ति के लिए वरदायक व्रत है - "तुलसी की सेवा" तुम्हे तुलसी सेवन का ही नियम लेना चाहिये.*
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*क्योकि तुलसी का यदि स्पर्श अथवा ध्यान, नाम, संकीर्तन, आरोपण, सेचन, किया जाये. तो महान पुण्यप्रद होता है.*
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*हे राधे ! जो प्रतिदिन तुलसी की नौ प्रकार से भक्ति करते है. वे कोटि सहस्त्र युगों तक अपने उस सुकृत्य का उत्तम फल भोगते है.*
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*मनुष्यों की लगायी हुई तुलसी जब तक शाखा, प्रशाखा, बीज, पुष्प, और सुन्दर दलों, के साथ पृथ्वी पर बढ़ती रहती है तब तक उनके वंश मै जो-जो जन्म लेता है, वे सभी ही हजार कल्पों तक श्रीहरि के धाम में निवास करते है.*
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*जो तुलसी मंजरी सिर पर रखकर प्राण त्याग करता है. वह सैकड़ो पापों से युक्त क्यों न हो यमराज उनकी ओर देख भी नहीं सकते.*
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*इस प्रकार चन्द्रनना की कही बात सुनकर रासेश्वरी श्री राधा ने साक्षात् श्री हरि को संतुष्ट करने वाले तुलसी सेवन का व्रत आरंभ किया.*
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*केतकी वन में सौ हाथ गोलाकार भूमि पर बहुत ऊँचा और अत्यंत मनोहर श्री तुलसी का मंदिर बनवाया, जिसकी दीवार सोने से जड़ी थी.*
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*और किनारे-किनारे पद्मरागमणि लगी थी, वह सुन्दर-सुन्दर पन्ने हीरे और मोतियों के परकोटे से अत्यंत सुशोभित था, और उसके चारो ओर परिक्रमा के लिए गली बनायीं गई थी जिसकी भूमि चिंतामणि से मण्डित थी.*
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*ऐसे तुलसी मंदिर के मध्य भाग में हरे पल्लवो से सुशोभित तुलसी की स्थापना करके श्री राधा ने अभिजित मुहूर्त में उनकी सेवा प्रारम्भ की.*
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*श्री राधा जी ने आश्र्विन शुक्ला पूर्णिमा से लेकर चैत्र पूर्णिमा तक तुलसी सेवन व्रत का अनुष्ठान किया.*
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*व्रत आरंभ करने उन्होंने प्रतिमास पृथक-पृथक रस से तुलसी को सींचा .*
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*"कार्तिक में दूध से", "मार्गशीर्ष में ईख के रस से",  "पौष में द्राक्षा रस से", "माघ में बारहमासी आम के रस से", "फाल्गुन मास में अनेक वस्तुओ से मिश्रित मिश्री के रस से" और "चैत्र मास में पंचामृत से" उनका सेचन किया .*
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*और वैशाख कृष्ण प्रतिपदा के दिन उद्यापन का उत्सव किया.*
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*उन्होंने दो लाख ब्राह्मणों को छप्पन भोगो से तृप्त करके वस्त्र और आभूषणों के साथ दक्षिणा दी.*
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*मोटे-मोटे दिव्य मोतियों का एक लाख भार और सुवर्ण का एक कोटि भार श्री गर्गाचार्य को दिया .*
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*उस समय आकाश से देवता तुलसी मंदिर पर फूलो की वर्षा करने लगे.*
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*उसी समय सुवर्ण सिंहासन पर विराजमान हरिप्रिया तुलसी देवी प्रकट हुई . उनके चार भुजाएँ थी कमल दल के समान विशाल नेत्र थे.*
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*सोलह वर्ष की सी अवस्था और श्याम कांति थी . मस्तक पर हेममय किरीट प्रकाशित था और कानो में कंचनमय कुंडल झलमला रहे थे.*
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*गरुड़ से उतरकर तुलसी देवी ने रंग वल्ली जैसी श्री राधा जी को अपनी भुजाओ से अंक में भर लिया और उनके मुखचन्द्र का चुम्बन किया .*
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*तुलसी बोली -  कलावती राधे ! मै तुम्हारी भक्ति से प्रसन्न हूँ, यहाँ इंद्रिय, मन, बुद्धि, और चित् द्वारा जो जो मनोरथ तुमने किया है वह सब तुम्हारे सम्मुख सफल हो.*
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*इस प्रकार हरिप्रिया तुलसी को प्रणाम करके वृषभानु नंदिनी राधा ने उनसे कहा  -  देवी ! गोविंद के युगल चरणों में मेरी अहैतु की भक्ति बनी रहे. तब तथास्तु कहकर हरिप्रिया अंतर्धान हो गई.*
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*इस प्रकार पृथ्वी पर जो मनुष्य  श्री राधिका के इस विचित्र उपाख्यान को सुनता है वह भगवान को पाकर कृतकृत्य हो जाता है .*
*साभार :- सत्यजीत "तृषित"*
*Bhakti Kathayen भक्ति कथायें..*
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*तो आप जरूर सोचिए हमे तो जरूर ही करनी चाहिए*

*HARE KRISHNA*
❤❤❤❤❤❤❤❤

Comparison between two "Generations"


What a beautiful answer!
Comparison between two  "Generations" ....... Everyone must read 👌👌
A youngster asked his father: "How did you people live before with-
No access to technology
No aeroplanes
No internet
No computers
No dramas
No TVs
No air cons
No cars
No mobile phones?"
His Dad replied:
"Just like how your generation lives today with -
No prayers
No compassion
No honor
No respect
No character
No shame
No modesty
No time planning
No sports
No reading"
"We, the people that were born between 1940-1985 are the blessed ones. Our life is a living proof:
👉 While playing and riding bicycles, we never wore helmets.
👉 After school, we played until dusk. We never watched TV.
👉 We played with real friends, not internet friends.
👉 If we ever felt thirsty, we drank tap water not bottled water.
👉 We never got ill although we used to share the same glass of juice with four friends.
👉 We never gained weight although we used to eat a lot of rice everyday.
👉 Nothing happened to our feet despite roaming bare-feet.
👉 our mother and father never used any supplements to keep us healthy.
👉 We used to create our own toys and play with them.
👉 Our parents were not rich. They gave us love, not worldly materials.
👉 We never had cellphones, DVDs, play station, XBox, video games, personal computers, internet chat - but we had real friends.
👉 We visited our friends' homes uninvited and enjoyed food with them.
👉 unlike your world, we had relatives who lived close by so family time and ties were enjoyed together.
👉 We may have been in black and white photos but you will find colourful memories in those photos.
👉 We are a unique and, the most understanding generation, because *we are the last generation who listened to their parents*.
*Also , the first who have had to listen to their children.*
and we are the ones who are still smarter and helping you now to use the technology that never existed while we were your age!!!
We are a *LIMITED* edition!
So you better -
Enjoy us.
Learn from us.
Treasure us.
Before we disappear from Earth and your lives."

पपीते के पत्तो की चाय किसी भी स्टेज के कैंसर को सिर्फ 60 से 90 दिनों में कर देगी जड़ से खत्म

*पपीते के पत्तो की चाय किसी भी स्टेज के कैंसर को सिर्फ 60 से 90 दिनों में कर देगी जड़ से खत्म,*
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*पपीते के पत्ते 3rd और 4th स्टेज के कैंसर को सिर्फ 35 से 90 दिन में सही कर सकते हैं।*

*अभी तक हम लोगों ने सिर्फ पपीते के पत्तों को बहुत ही सीमित तरीके से उपयोग किया होगा, बहरहाल प्लेटलेट्स के कम हो जाने पर या त्वचा सम्बन्धी या कोई और छोटा मोटा प्रयोग, मगर आज जो हम आपको बताने जा रहें हैं, ये वाकई आपको चौंका देगा, आप सिर्फ 5 हफ्तों में कैंसर जैसी भयंकर रोग को जड़ से ख़त्म कर सकते हैं।*
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*ये प्रकृति की शक्ति है और बलबीर सिंह शेखावत जी की स्टडी है जो वर्तमान में as a Govt. Pharmacist अपनी सेवाएँ सीकर जिले में दे रहें हैं।*
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*कई प्रकार के वैज्ञानिक शोधों से पता लगा है कि पपीता के सभी भागों जैसे फल, तना, बीज, पत्तिया, जड़ सभी के अन्दर कैंसर की कोशिका को नष्ट करने और उसके वृद्धि को रोकने की क्षमता पाई जाती है।*

*विशेषकर पपीता की पत्तियों के अन्दर कैंसर की कोशिका को नष्ट करने और उसकी वृद्धि को रोकने का गुण अत्याधिक पाया जाता है। तो आइये जानते हैं उन्ही से।*
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*Nam Dang MD, Phd जो कि एक शोधकर्ता है, के अनुसार पपीता की पत्तियां डायरेक्ट कैंसर को खत्म कर सकती है, उनके अनुसार पपीता कि पत्तिया लगभग 10 प्रकार के कैंसर को खत्म कर सकती है जिनमे मुख्य है।*
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*breast cancer, lung cancer, liver cancer, pancreatic cancer, cervix cancer, इसमें जितनी ज्यादा मात्रा पपीता के पत्तियों की बढ़ाई गयी है, उतना ही अच्छा परिणाम मिला है, अगर पपीता की पत्तिया कैंसर को खत्म नहीं कर सकती है लेकिन कैंसर की प्रोग्रेस को जरुर रोक देती है।।*

*तो आइये जाने पपीता की पत्तिया कैंसर को कैसे खत्म करती है?*
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*1. पपीता कैंसर रोधी अणु Th1 cytokines की उत्पादन को ब़ढाता है जो की इम्यून system को शक्ति प्रदान करता है जिससे कैंसर कोशिका को खत्म किया जाता है।*🍐🍐🍐🍐🍐🍐
*2. पपीता की पत्तियों में papain नमक एक प्रोटीन को तोड़ने (proteolytic) वाला एंजाइम पाया जाता है जो कैंसर कोशिका पर मौजूद प्रोटीन के आवरण को तोड़ देता है जिससे कैंसर कोशिका शरीर में बचा रहना मुश्किल हो जाता है।*
*Papain blood में जाकर macrophages को उतेजित करता है जो immune system को उतेजित करके कैंसर कोशिका को नष्ट करना शुरू करती है,* *chemotheraphy / radiotheraphy और पपीता की पत्तियों के द्वारा ट्रीटमेंट में ये फर्क है कि chemotheraphy में immune system को दबाया जाता है जबकि पपीता immune system को उतेजित करता है,* *chemotheraphy और radiotheraphy में नार्मल कोशिका भी प्रभावित होती है पपीता सोर्फ़ कैंसर कोशिका को नष्ट करता है।*
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*सबसे बड़ी बात के कैंसर के इलाज में पपीता का कोई side effect भी नहीं है।।*

*कैंसर में पपीते के सेवन की विधि :--*
*कैंसर में सबसे बढ़िया है पपीते की चाय। दिन में 3 से 4 बार पपीते की चाय बनायें, ये आपके लिए बहुत फायदेमंद होने वाली है। अब आइये जाने लेते हैं पपीते की चाय बनाने की विधि।*
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*1. 5 से 7 पपीता के पत्तो को पहले धूप में अच्छी तरह सुखा ले फिर उसको छोटे छोटे टुकड़ों में तोड़ लो आप 500 ml पानी में कुछ पपीता के सूखे हुए पत्ते डाल कर अच्छी तरह उबालें।*
*इतना उबाले के ये आधा रह जाए। इसको आप 125 ml करके दिन में दो बार पिए। और अगर ज्यादा बनाया है तो इसको आप दिन में 3 से 4 बार पियें। बाकी बचे हुए लिक्विड को फ्रीज में स्टोर का दे जरुरत पड़ने पर इस्तेमाल कर ले। और ध्यान रहे के इसको दोबारा गर्म मत करें।*
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*2. पपीते के 7 ताज़े पत्ते लें इनको अच्छे से हाथ से मसल लें। अभी इसको 1 Liter पानी में डालकर उबालें, जब यह 250 ml। रह जाए तो इसको छान कर 125 ml. करके दो बार में अर्थात सुबह और शाम को पी लें। यही प्रयोग आप दिन में 3 से 4 बार भी कर सकते हैं।*
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*पपीते के पत्तों का जितना अधिक प्रयोग आप करेंगे उतना ही जल्दी आपको असर मिलेगा। और ये चाय पीने के आधे से एक घंटे तक आपको कुछ भी खाना पीना नहीं है।*
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*कब तक करें ये प्रयोग वैसे तो ये प्रयोग आपको 5 हफ़्तों में अपना रिजल्ट दिखा देगा, फिर भी हम आपको इसे 3 महीने तक इस्तेमाल करने का निर्देश देंगे। और ये जिन लोगों का अनुभूत किया है उन लोगों ने उन लोगों को भी सही किया है, जिनकी कैंसर में तीसरी और चौथी स्टेज थी।*
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*यह संदेश सभी को भेजने की नम्र विनंती है!!!🍐🍐🍐🍐🍐🍐🍐
*उत्तम स्वास्थ्य के लिए, आयुर्वेद एक रामबाण अचूक ,औषधीय गुण,युक्त ,व्यवहार में लाये।।*
🍐🍐🍐🍐🍐🍐
🙏🏻😊😊🙏🏻

Gods and men live on cow products

राधे राधे 😍

वशां देवा उपजीवंति वशां मनुष्या उप ।
वशेदं सर्वं भवतु यावतु सूर्यो विपश्यति ॥

The Demi Gods and men live on cow products. Till the Sun shines, the universe will have Cows. The whole universe depends on the support of cow.... ~ Atharvana Veda 10-10-34

देवता और मनुष्य गौ उत्पादों पर ही जीते है ।जब तक सूरज है, इस दुनिया मे गौ रहेगी । पूरा ब्रह्मांड गौ पर ही निर्भर है (अथर्ववेद 10-10-34 )

Only Gaushala in India with 33 Pure breeds of Desi Cows

Mahanandi Gouloka of Hosanagar, Shimoga dist. is the only Goushala in India where you can witness all the 33 pure breeds of Desi Cows. Around 9 acres of pasture is available for grazing freely & green grass is grown in about 2 acres of land.

 https://t.co/WDNtO3lvmu

नेत्रदान

मृत्यु के बाद आपका नेत्रदान करना क्यों जरूरी है इस वीडियो को अवश्य देखें।

बचपन से ही एक नेत्रहीन बच्ची को आँखे मिलने पर, पहली बार दुनिया और अपनी माँ को देखने के बाद की प्रतिक्रिया।।
@amritabhinder @rama_rajeswari @smritiirani @chitraaum @Bhart_09 @alok_ajay #B4Deo https://t.co/JSUnFwcW4F

महारानी देवी अहिल्यावाई होल्कर और गौमाता

🙏 गाय को यूँ ही माँ नहीं कहते🙏

*एक बार मध्यप्रदेश के इन्दौर नगर में एक रास्ते से ‘महारानी देवी अहिल्यावाई होल्कर के पुत्र मालोजीराव’ का रथ निकला तो उनके रास्ते में हाल ही की जनी गाय का एक बछड़ा सामने आ गया।* 

*गाय अपने बछड़े को बचाने दौड़ी तब तक मालोरावजी का ‘रथ गाय के बछड़े को कुचलता’ हुआ आगे बढ़ गया।*

*किसी ने उस बछड़े की परवाह नहीं की। गाय बछड़े के निधन से स्तब्ध व आहत होकर बछड़े के पास ही सड़क पर बैठ गई।*

*थोड़ी देर बाद अहिल्यावाई वहाँ से गुजरीं। अहिल्यावाई ने गाय को और उसके पास पड़े मृत बछड़े को देखकर घटनाक्रम के बारे में पता किया।*

 *सारा घटनाक्रम जानने पर अहिल्याबाई ने दरबार में मालोजी की पत्नी मेनावाई से पूछा-*

*यदि कोई व्यक्ति किसी माँ के सामने ही उसके बेटे की हत्या कर दे, तो उसे क्या दंड मिलना चाहिए?*

 *मालोजी की पत्नी ने जवाब दिया- उसे  प्राण दंड मिलना चाहिए।*

*देवी अहिल्यावाई ने मालोराव को हाथ-पैर बाँध कर मार्ग पर डालने के लिए कहा और फिर उन्होंने आदेश दिया मालोजी को मृत्यु दंड रथ से टकराकर दिया जाए। यह कार्य कोई भी सारथी करने को तैयार न था।*

*देवी अहिल्याबाई न्यायप्रिय थी। अत: वे स्वयं ही माँ होते हुए भी इस कार्य को करने के लिए भी रथ पर सवार हो गईं।*

*वे रथ को लेकर आगे बढ़ी ही थीं कि तभी एक अप्रत्याशित घटना घटी।*

*वही गाय फिर रथ के सामने आकर खड़ी हो गई, उसे जितनी बार हटाया जाता उतनी बार पुन: अहिल्याबाई के रथ के सामने आकर खड़ी हो जाती।*

*यह दृश्य देखकर मंत्री परिषद् ने देवी अहिल्यावाई से मालोजी को क्षमा करने की प्रार्थना की, जिसका आधार उस गाय का व्यवहार बना।*

 *उस तरह गाय ने स्वयं पीड़ित होते हुए भी मालोजी को द्रौपदी की तरह क्षमा करके उनके जीवन की रक्षा की।*

*इन्दौर में जिस जगह यह घटना घटी थी, वह स्थान आज भी गाय के आड़ा होने के कारण ‘आड़ा बाजार’ के नाम से जाना जाता है।*

*उसी स्थान पर गाय ने अड़कर दूसरे की रक्षा की थी। ‘अक्रोध से क्रोध को, प्रेम से घृणा का और क्षमा से प्रतिशोध की भावना का शमन होता है’।*

*भारतीय ऋषियों ने यूँ ही गाय को माँ नहीं कहा है, बल्कि इसके पीछे गाय का ममत्वपूर्ण व्यवहार, मानव जीवन में, कृषि में गाय की उपयोगिता बड़ा आधारभूत कारण है।*

*गौसंवर्धन करना हर भारतीय का संवैधानिक कर्तव्य भी है*

_लेख को पढ़ने के उपरांत आगे साझा अवश्य करें..!!

Siblings who play together

Siblings who play together, work together, they eat together too.
Cow eating together with men

 https://t.co/uaz0R8EmoD

मिट्टी के बर्तनों से स्टील तक और फिर दोबारा मिट्टी के बर्तनों तक

*मिट्टी के बर्तनों से स्टील और प्लास्टिक के बर्तनों तक*
        *और फिर कैंसर के खौफ से दोबारा मिट्टी के बर्तनों तक आ जाना,*

*अंगूठाछाप से दस्तखतों (Signatures) पर*
       *और फिर अंगूठाछाप (Thumb Scanning) पर आ जाना,*

*फटे हुए सादा कपड़ों से साफ सुथरे और प्रेस किए कपड़ों पर*
          *और फिर फैशन के नाम पर अपनी पैंटें फाड़ लेना,*

*सूती से टैरीलीन, टैरीकॉट और फिर वापस सूती पर आ जाना*

*ज़्यादा मशक़्क़त वाली ज़िंदगी से घबरा कर पढ़ना लिखना*
        *और फिर IIM MBA करके आर्गेनिक खेती पर पसीने बहाना,*

*क़ुदरती से प्रोसेसफ़ूड (Canned Food & packed juices) पर*
        *और फिर बीमारियों से बचने के लिए दोबारा क़ुदरती खानों पर आ जाना,*

*पुरानी और सादा चीज़ें इस्तेमाल ना करके ब्रांडेड (Branded) पर*
         *और फिर आखिरकार जी भर जाने पर पुरानी (Antiques) पर उतरना,*

*बच्चों को इंफेक्शन से डराकर मिट्टी में खेलने से रोकना*
        *और फिर घर में बंद करके फिसड्डी बनाना और होश आने पर दोबारा Immunity बढ़ाने के नाम पर मिट्टी में ही जाकर खेलवाना.....*

*गाँव, जंगल,  गौशाला से डिस्को पब और चकाचौंध की और भागती हुई दुनियाँ की और से*
      *फिर मन की शाँति एवं स्वास्थ के लिये शहर से जँगल गाँव व गौशालाओं की ओर आना*

*इससे ये निष्कर्ष निकलता है कि टेक्नॉलॉजी ने तुम्हे जो दिया उससे बेहतर तो भगवान ने तुम्हे पहले से दे रखा था ..!!*🙏💐🙏

गाय के घी को अमृत कहा गया

गाय के घी को अमृत कहा गया है। जो जवानी को कायम रखते हुए, बुढ़ापे को दूर रखता है। काली गाय का घी खाने से बूढ़ा व्यक्ति भी जवान जैसा हो जाता है। गाय के घी से बेहतर कोई दूसरी चीज नहीं है।

दो बूंद देसी गाय का घी नाक में सुबह शाम डालने से माइग्रेन दर्द ढीक होता है।

सिर दर्द होने पर शरीर में गर्मी लगती हो, तो गाय के घी की पैरों के तलवे पर मालिश करे, सर दर्द ठीक हो जायेगा।

नाक में घी डालने से नाक की खुश्की दूर होती है और दिमाग तारो ताजा हो जाता है।

गाय के घी को नाक में डालने से मानसिक शांति मिलती है, याददाश्त तेज होती है।

हाथ पाव मे जलन होने पर गाय के घी को तलवो में मालिश करें जलन ढीक होता है।

20-25 ग्राम घी व मिश्री खिलाने से शराब, भांग व गांझे का नशा कम हो जाता है।

फफोलो पर गाय का देसी घी लगाने से आराम मिलता है।

गाय के घी की झाती पर मालिश करने से बच्चो के बलगम को बहार निकालने मे सहायक होता है।

सांप के काटने पर 100 -150 ग्राम घी पिलायें उपर से जितना गुनगुना पानी पिला सके पिलायें जिससे उलटी और दस्त तो लगेंगे ही लेकिन सांप का विष कम हो जायेगा।

अगर अधिक कमजोरी लगे, तो एक गिलास दूध में एक चम्मच गाय का घी और मिश्री डालकर पी लें।

गाय के घी का नियमित सेवन करने से एसिडिटी व कब्ज की शिकायत कम हो जाती है।

जिस व्यक्ति को हार्ट अटैक की तकलीफ है और चिकनाइ खाने की मना ही है तो गाय का घी खाएं, हर्दय मज़बूत होता है।

यह स्मरण रहे कि गाय के घी के सेवन से कॉलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ताहै। वजन संतुलित होता है यानी के कमजोर व्यक्ति का वजन बढ़ता है, मोटे व्यक्ति का मोटापा (वजन) कम होता है।

गाय के घी से बल और वीर्य बढ़ता है और शारीरिक व मानसिक ताकत में भी इजाफा होता है।

देसी गाय के घी में कैंसर से लड़ने की अचूक क्षमता होती है। इसके सेवन से स्तन तथा आंत के खतरनाक कैंसर से बचा जा सकता है।

गाय का घी न सिर्फ कैंसर को पैदा होने से रोकता है और इस बीमारी के फैलने को भी आश्चर्यजनक ढंग से रोकता है।

गाय का घी नाक में डालने से पागलपन दूर होता है।

गाय का घी नाक में डालने से कोमा से बहार निकल कर चेतना वापस लोट आती है।

गाय का घी नाक में डालने से लकवा का रोग में भी उपचार होता है।

गाय का घी नाक में डालने से बाल झडना समाप्त होकर नए बाल भी आने लगते है।

गाय का घी नाक में डालने से कान का पर्दा बिना ओपरेशन के ठीक हो जाता है

गाय का घी नाक में डालने से एलर्जी खत्म हो जाती है।

विशेष :-स्वस्थ व्यक्ति भी हर रोज नियमित रूप से सोने से पहले दोनों नशिकाओं में हल्का गर्म (गुनगुना ) देसी गाय का घी डालिए,गहरी नींद आएगी, खराटे बंद होंगे और अनेको अनेक बीमारियों से छुटकारा भी मिलेगा।

चौदह प्रकार के मुर्दो का परिचय

*चौदह प्रकार के मुर्दो का परिचय*
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राम और रावण का युद्ध चल रहा था। तब अंगद ने रावण से कहा कि,

*"तू तो मुर्दा है। तुझे मारने से क्या फायदा?"*

रावण बोला,

*"मैं जिंदा हूँ...मुर्दा कैसे?"*

अंगद बोले,

*"सिर्फ सांस लेनेवालों को जिंदा नही कहते ।"*

तब अंगद ने 14 प्रकार के मुर्दों के लक्षण बताये। अंगद द्वारा रावण को बताई गई ये बातें आज के दौर में भी लागू होती हैं ।

यदि किसी व्यक्ति में इन 14 दुर्गुणों में से एक दुर्गुण भी आ जाता है तो वह मृतक समान हो जाता है। विचार करें कि कहीं यह दुर्गुण हमारे पास तो नहीं....कि हमें मृतक समान माना जाये ।

1. *कामवश*- जो व्यक्ति अत्यंत भोगी हो, कामवासना में लिप्त रहता हो, जो संसार के भोगों में उलझा हुआ हो, वह मृत समान है। जिसके मन की इच्छाएं कभी खत्म नहीं होती और जो प्राणी सिर्फ अपनी इच्छाओं के अधीन होकर ही जीता है, वह मृत समान होता है। वह अध्यात्म का सेवन नही करता। सदैव वासना में लीन रहता है

2. *वाम मार्गी*- जो व्यक्ति पूरी दुनिया से उल्टा चले। जो संसार की हर बात के पीछे नकारात्मकता खोजता हो। जो नियमों, परंपराओं और लोक व्यवहार के खिलाफ़ चलता हो, वह वाम मार्गी कहलाता है। ऐसे काम करने वाले लोग मृत समान माने गए हैं।

3. *कंजूस*- अति कंजूस व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जो व्यक्तिधर्म के कार्य करने में, आर्थिक रूप से किसी कल्याण कार्य में हिस्सा लेने में हिचकता हो। दान करने से बचता हो। ऐसा आदमी भी मृत समान ही है।

4. *अति दरिद्र*- गरीबी सबसे बड़ा श्राप है। जो व्यक्ति धन, आत्म-विश्वास, सम्मान और साहस से हीन हो, वह भी मृत ही है। अत्यंत दरिद्र भी मरा हुआ है। दरिद्र व्यक्ति को दुत्कारना नहीं चाहिए, क्योकि वह पहले ही मरा हुआ होता है। बल्कि गरीब लोगों की मदद करनी चाहिए।

5. *विमूढ़*- अत्यंत मूढ़ यानी मूर्ख व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जिसके पास विवेक, बुद्धि नहीं हो। जो खुद निर्णय ना ले सके। हर काम को समझने या निर्णय को लेने में किसी अन्य पर आश्रित हो, ऐसा व्यक्ति भी जीवित होते हुए भी मृत के समान ही है।

6. *अजसि*- जिस व्यक्ति को संसार में बदनामी मिली हुई है, वह भी मरा हुआ है। जो घर, परिवार, कुटुंब, समाज, नगर या राष्ट्र, किसी भी ईकाई में सम्मान नहीं पाता है, वह व्यक्ति मृत समान ही होता है।

7. *सदा रोगवश*- जो व्यक्ति निरंतर रोगी रहता है, वह भी मरा हुआ है। स्वस्थ शरीर के अभाव में मन विचलित रहता है। नकारात्मकता हावी हो जाती है। व्यक्ति मुक्ति की कामना में लग जाता है। जीवित होते हुए भी रोगी व्यक्ति स्वस्थ्य जीवन के आनंद से वंचित रह जाता है।

8. *अति बूढ़ा* - अत्यंत वृद्ध व्यक्ति भी मृत समान होता है, क्योंकि वह अन्य लोगों पर आश्रित हो जाता है। शरीर और बुद्धि, दोनों असक्षम हो जाते हैं। ऐसे में कई बार स्वयं वह और उसके परिजन ही उसकी मृत्यु की कामना करने लगते हैं, ताकि उसे इन कष्टों से मुक्ति मिल सके।

9. *सतत क्रोधी*- 24 घंटे क्रोध में रहने वाला भी मृत समान ही है। हर छोटी-बड़ी बात पर क्रोध करना ऐसे लोगों का काम होता है। क्रोध के कारण मन और बुद्धि, दोनों ही उसके नियंत्रण से बाहर होते हैं। जिस व्यक्ति का अपने मन और बुद्धि पर नियंत्रण न हो, वह जीवित होकर भी जीवित नहीं माना जाता है। पूर्व संस्कार लेकर यह जीव क्रोधी होता है। क्रोधी अनेक जीवों का घात करता है और नरक गामी होता है।

10. *अघ खानी*- जो व्यक्ति पाप कर्मों से अर्जित धन से अपना और परिवार का पालन-पोषण करता है, वह व्यक्ति भी मृत समान ही है। उसके साथ रहने वाले लोग भी उसी के समान हो जाते हैं। हमेशा मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके ही धन प्राप्त करना चाहिए। पाप की कमाई पाप में ही जाती है। और पाप की कमाई से नीच गोत्र निगोद की प्राप्ति होती है।

11. *तनु पोषक*- ऐसा व्यक्ति जो पूरी तरह से आत्म संतुष्टि और खुद के स्वार्थों के लिए ही जीता है, संसार के किसी अन्य प्राणी के लिए उसके मन में कोई संवेदना ना हो तो ऐसा व्यक्ति भी मृत समान ही है। जो लोग खाने-पीने में, वाहनों में स्थान के लिए, हर बात में सिर्फ यही सोचते हैं कि सारी चीजें पहले हमें ही मिल जाएं, बाकि किसी अन्य को मिले ना मिले, वे मृत समान होते हैं। ऐसे लोग समाज और राष्ट्र के लिए अनुपयोगी होते हैं। शरीर को अपना मानकर उसमें रत रहना मूर्खता है, क्यों कि यह शरीर विनाशी है । नष्ट होनेवाला है।

12. *निंदक*- अकारण निंदा करने वाला व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जिसे दूसरों में सिर्फ कमियां ही नजर आती हैं। जो व्यक्ति किसी के अच्छे काम की भी आलोचना करने से नहीं चूकता। ऐसा व्यक्ति जो किसी के पास भी बैठे हो तो सिर्फ़ किसी ना किसी की बुराई ही करे, वह इंसान मृत समान होता है। दूसरे की निंदा करने से नीच गोत्र का बन्ध होता है।

13. *परमात्म विमुख*- जो व्यक्ति परमात्मा का विरोधी है, वह भी मृत समान है। जो व्यक्ति ये सोच लेता है कि कोई परमतत्व है ही नहीं। हम जो करते हैं, वही होता है। संसार हम ही चला रहे हैं। जो परमशक्ति में आस्था नहीं रखता है, ऐसा व्यक्ति भी मृत माना जाता है।

14. *श्रुति , संत विरोधी*- जो संत, ग्रंथ, पुराण का विरोधी है, वह भी मृत समान होता है।

रमेश बाबा जी महाराज, बरसाना , माताजी गौशाला

जय जय श्री राधे!
       हमारे बृजमंडल की महानतम विभूति पूज्यश्री रमेश बाबा जी महाराज के बारे में कुछ भी कहना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है!बाबा बरसाना मान मंदिर में विराजते हैं!
      बाबा ने गत लगभग 63 वर्षों से बृज नहीं छोड़ा; वे कहीं बाहर नहीं जाते,पर पूरी दुनिया में भक्त उनसे असीम प्रेरणा पाते हैं...कोई उन्हें राधाजी,तो कोई ललिता सखी का अवतार बताता है।बृज की प्राचीन संस्कृति को पुनः स्थापित करने में उनका अद्वितीय योगदान रहा है! उन्होंने ब्रज के पर्वतों को माफिया दलों द्वारा खनन से बचाया है और अनेक कुंडों का जीर्णोद्धार कराया है! ब्रज सहित पूरे देश के लगभग 32 हज़ार गांवों में बाबा के द्वारा प्रेरित प्रभात-फेरियां चल रही हैं!बाबा बहुआयामी व्यक्तित्व के स्वामी हैं; जब बोलते हैं तो बड़े-बड़े पीठाधीश्वर सुनने को बाध्य होते हैं; जब खरज के स्वरों में गरज कर मधुर राग-रागनियों में गाते हैं,तो सबका हृदय झनझना जाता है! बाबा ने श्रीमद्भागवत के कई निष्काम कथावाचकों की सृष्टि की है!वे किसी को दीक्षा नहीं देते,पर अनेकानेक भक्त उन्हें अपना गुरु मानते हैं!(इस दास पर भी बाबा की अत्यधिक कृपा रही है!और मुझे संगीत भी सिखाया है!)बाबा इस समय सब सम्प्रदायों से ऊपर उठे हुए,परमहंस अवस्था में हैं!...हाल ही में बाबा के स्वास्थ्य में कुछ गिरावट आई थी!अब ठीक हैं,फिर भी आपमें से जिन्होंने इनके दर्शन अबतक ना किये हों,तो तुरंत कर लीजिए,क्योंकि ऐसी महान आत्माएं बार बार शरीर नहीं धरतीं!ऐसे महात्माओं के दर्शन मात्र से कल्याण हो जाता है!
      बाबा द्वारा संचालित बृज चौरासी कोस की 40-दिवसीय निःशुल्क यात्रा इस वर्ष 10 अक्टूबर से प्रारंभ होगी,जिसमें लगभग 12 से 15 हज़ार यात्री होते हैं;अखंड कीर्तन होता रहता है,हर लीला स्थली की महिमा बताई जाती है!उसमें भी सम्मिलित होकर चौरासी के चक्र से बचकर अपना जीवन सार्थक करें!

नंदी महाराज ट्रैफिक नियम पालन करते हुए

Nandi Maharaj following traffic rules
You gotta follow the traffic rules. There is nothing wrong about that.

Hum kar sakte to aap kyun nahi?
 https://t.co/u3k4KQQihK

Meaning of Ashvamedha Yagya

This is fraud. Ashwamedha is defined in Shatpath as Rajyam Vaa Ashwa - growth and prosperity of nation is Ashwamedha. Horse stories are later concoction, not from Vedas. Sad that our dharma today is defined by Max Mullers and British.

https://twitter.com/SanjeevSanskrit/status/1177634517818863616?s=19

अश्वमेध यज्ञ में घोड़ो की बाली नही दी जाती थी ।। राज्य की तरक्की और खुशहाली को ही अश्वमेध ही कहा जाता है ।।

नव दुर्गा की नौ शक्तियों

*नव रात्रि रहस्य -*

नवरात्रि कोई नव दुर्गा की नौ शक्तियों का रूप नहीं हैं। शरद ऋतु की हल्की दस्तक के कारण हमारे आयुर्वेद के ज्ञाता ऋषि मुनियों ने कुछ औषधियों को इस ऋतु में विशेष सेवन हेतु बताया था।जिससे प्रत्येक दिन हम सभी उसका सेवन कर शक्ति के रूप में शारीरिक व मानसिक क्षमता को बढ़ाकर हम शक्तिवान, ऊर्जावान बलवान व विद्वान बन सकें। नौ तरह की वह दिव्यगुणयुक्त महा औषधियां निस्संदेह बहुत ही प्रभावशाली व रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने वाली हुआ करती थीं जिससे हम ताउम्र हर मौसम की प्रतिकूल परिस्थितियों में भी स्वयं को ढालने में सक्षम हुआ करते थे और निरोगी बन दीर्घायु प्राप्त करते थे। लेकिन तथाकथित पुराणकारों ने इसका वास्तविक रूप विकृत कर अर्थ का अनर्थ ही कर दिया। हर दिव्यौषधि को एक शक्तिस्वरूपा कल्पित स्त्री का रूप दे दिया, कल्पना में ही नौ शक्तिवर्धक औषधियों को स्त्री नाम देकर, उनका वीभत्स आकार गढ़कर उन्हें मूर्त रूप में पूजना शुरू कर दिया। वस्तुतः यह सब समाज के धर्म के ठेकेदारों ने अपनी आजीवन व आगामी वर्षों पर्यंत तक अपनी भावी पीढ़ीयों की आजीविका चलाने के लिए यह अधर्म का एक सफल कुत्सित प्रयास किया है। आज यह पाखण्ड मानव बुद्धि को अंगूठा दिखाता, उपहास बनाता एक विकराल व विक्षिप्त रूप धारण कर चुका है जिसके बाहुपोश से छुटकारा मिलना सभी बुद्धिजीवीयों के लिए मुश्किल तो है लेकिन असंभव नहीं। मनुष्य अपनी सामान्य बुद्धि का प्रयोग किसी विषय को मानने से पहले जानने के लिए करे तो वह प्रत्येक स्थिति को बारीकी से समझने में सक्षम हो सकता है। वह स्थिति स्वत:ही उसके विवेक द्वारा अनुकूल बन सकती है। विवेकशील व स्वाध्यायशील बन इस प्रकार के सभी ढोंग, पाखंड और आडंबरों से बचा जा सकता है अन्यथा जिसे विषय का सत्य ज्ञान नहीं वा ज्ञानार्जित करने में आलस प्रमाद करता है वह तथाकथित मूढ़, अभिमानी, स्वार्थी पाखण्डी पंडे पुजारियों की तरह सभी सामाजिक कुरीतियों व धार्मिक मिथ्या कर्मकाण्डों में लिप्त रहता है।

*नवदुर्गा  के अमूर्त रूप के रूपक औषधि जिनका हमें शीतकाल में सेवन करना चाहिए-*
1  हरड़ 2 ब्राह्मी 3 चन्दसूर 4 कूष्मांडा 5 अलसी 6 मोईपा या माचिका 7 नागदान 8 तुलसी 9 शतावरी-

*1. प्रथम शैलपुत्री यानि हरड़ -* कई प्रकार की समस्याओं में काम आने वाली औषधि हरड़, हिमावती है यह आयुर्वेद की प्रधान औषधि है, जो सात प्रकार की होती है।

*2.द्वितीय ब्रह्मचारिणी यानि ब्राह्मी -*  यह आयु और स्मरण शक्ति को बढ़ाने वाली, रूधिर विकारों का नाश करने वाली और स्वर को मधुर करने वाली है। इसलिए ब्राह्मी को सरस्वती भी कहा जाता है।यह मन व मस्तिष्क में शक्ति प्रदान करती है और गैस व मूत्र संबंधी रोगों की प्रमुख दवा है। यह मूत्र द्वारा रक्त विकारों को बाहर निकालने में समर्थ औषधि है।

*3. तृतीय चंद्रघंटा यानि चन्दुसूर -*  चंद्रघंटा, इसे चन्दुसूर या चमसूर कहा गया है। यह एक ऐसा पौधा है जो धनिये के समान है। इस पौधे की पत्तियों की सब्जी बनाई जाती है, जो लाभदायक होती है। यह औषधि मोटापा दूर करने में लाभप्रद है, इसलिए इसे चर्महन्ती भी कहते हैं। शक्ति को बढ़ाने वाली, हृदय रोग को ठीक करने वाली चंद्रिका औषधि है।

*4. चतुर्थ कुष्माण्डा यानि पेठा -* इस औषधि से पेठा मिठाई बनती है, इसलिए इस रूप को पेठा कहते हैं। इसे कुम्हड़ा भी कहते हैं जो पुष्टिकारक, वीर्यवर्धक व रक्त के विकार को ठीक कर पेट को साफ करने में सहायक है। मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए यह अमृत समान है। यह शरीर के समस्त दोषों को दूर कर हृदय रोग को ठीक करता है। कुम्हड़ा रक्त पित्त एवं गैस को दूर करता है।

*5. पंचम स्कंदमाता यानि अलसी -* यह औषधि के रूप में अलसी में विद्यमान हैं। यह वात, पित्त, कफ, रोगों की नाशक औषधि है। अलसी नीलपुष्पी पावर्तती स्यादुमा क्षुमा।अलसी मधुरा तिक्ता स्त्रिग्धापाके कदुर्गरु:।।उष्णा दृष शुकवातन्धी कफ पित्त विनाशिनी।

*6.  षष्ठम कात्यायनी यानि मोइया -* इसे आयुर्वेद में कई नामों से जाना जाता है जैसे अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका। इसके अलावा इसे मोइया अर्थात माचिका भी कहते हैं। यह कफ, पित्त, अधिक विकार व कंठ के रोग का नाश करती है।

*7. सप्तम कालरात्रि यानि नागदौन -* यह नागदौन औषधि के रूप में जानी जाती है। सभी प्रकार के रोगों की नाशक सर्वत्र विजय दिलाने वाली मन एवं मस्तिष्क के समस्त विकारों को दूर करने वाली औषधि है। इस पौधे को व्यक्ति अपने घर में लगाने पर घर के सारे कष्ट दूर हो जाते हैं। यह सुख देने वाली और सभी विषों का नाश करने वाली औषधि है।

*8.  तुलसी -* तुलसी सात प्रकार की होती है- सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरुता, दवना, कुढेरक, अर्जक और षटपत्र। ये सभी प्रकार की तुलसी रक्त को साफ करती है व हृदय रोग का नाश करती है। तुलसी सुरसा ग्राम्या सुलभा बहुमंजरी।अपेतराक्षसी महागौरी शूलघ्नी देवदुन्दुभि: तुलसी कटुका तिक्ता हुध उष्णाहाहपित्तकृत् । मरुदनिप्रदो हध तीक्षणाष्ण: पित्तलो लघु:।

*9. नवम शतावरी -* जिसे नारायणी या शतावरी कहते हैं। शतावरी बुद्धि बल व वीर्य के लिए उत्तम औषधि है। यह रक्त विकार औरं वात पित्त शोध नाशक और हृदय को बल देने वाली महाऔषधि है। सिद्धिदात्री का जो मनुष्य नियमपूर्वक सेवन करता है। उसके सभी कष्ट स्वयं ही दूर हो जाते हैं।

*इस प्रकार आयुर्वेद की भाषा में नौ औषधि रूपी नौ देवियां  मनुष्य की प्रत्येक बीमारी को ठीक कर रक्त का संचालन उचित व साफ कर मनुष्य को स्वस्थ करतीं है। अत: मनुष्य को इन औषधियों का प्रयोग अवश्य ही करना चाहिये ।*

सत्य सनातन वैदिक धर्म की जय !
जय आर्यावर्त जय भारत !

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राजस्थान में गायों ने कर दिया किसानों को मालामाल, दूध से महंगा गौमूत्र, विदेशों में भी बढ़ी मांग


  • *राजस्थान में गायों ने कर दिया किसानों को मालामाल, दूध से महंगा गौमूत्र, विदेशों में भी बढ़ी मांग*


गाय को लेकर राजस्थान में हमेशा से ही राजनीति होती रही है। पिछले चार-पांच सालों में गौ-तस्करी और गौ-सरंक्षण का मुद्दा प्रदेश से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक उठा है। इसी बीच अब गौ उत्पादों की मांग में लगातार बढ़ोतरी हो रही है। गौ संरक्षण और गौ उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार ने अलग से गोपालन निदेशालय बनाने के बाद अब गौमूत्र के एक्सपोर्ट को बढ़ावा देने का निर्णय लिया है। राज्य की प्रमुख गौशालाओं के गौमूत्र के दाम में अचानक दो से तीन गुना तक तेजी आई है। हालात यह हो गए कि गौमूत्र दूध से अधिक महंगा बिक रहा है। गौमूत्र और इससे बनने वाली औषधियां बाजार में खूब बिक रही है। विदेशों में भी इनकी मांग बढ़ी है।

प्रदेश की प्रमुख गौशालाओं का गौमूत्र 135 से 140 रूपए प्रति लीटर बिक रहा है,जबकि दूध की कीमत 45 से 52 रूपए प्रति किलो है। गौमूत्र के सेवन में लोगों की दिलचस्पी इतनी बढ़ी है। राज्य के बड़े शहरों में गौ उत्पादों में दुकानें बड़े शौरूम की तरह खुल गई हैं। इनमें सबसे अधिक मांग गौमूत्र की है। ताजा गौमूत्र के सेवन के लिए सुबह गौशाला पहुंचते हैं लोग

पथमेड़ा गौशाला, जयपुर की दुर्गापुरा गौशाला और नागौर की श्रीकृष्ण गोपाल गौशाला से तो गौमूत्र विदेशों में भी भेजा जा रहा है। गौशाला प्रबंधन से जुड़े लोगों का कहना है कि पिछले कुछ समय से ग्राहकों की संख्या बढ़ी है। गौमूत्र के साथ ही दुकानों पर डायबीटीज, पेट और मोटापा कम करने की औषधियां भी गौ उत्पादों से बन रही है। गौशालाओं में सुबह-सुबह 5 से 6 बजे के बीच बड़ी संख्या में लोग हाथ में गिलास या कटोरी लेकर ताजा गौमूत्र पीने के लिए पहुंचते है।

पथमेड़ा गौशाला के सेवक रामकृष्ण का कहना है कि देशी गाय के गौमूत्र से कई रोगों का इलाज स्वत: ही हो जाता है। योगाचार्य ढाकाराम का कहना है कि गौमूत्र अमृत की तरह होता है। निरोगी काया के लिए इससे उत्तम अन्य कोई औषधी नहीं है।

जयपुर में दुर्गापुरा गौशाला में काम करने वाले लोगों ने बताया कि गौमूत्र का उपयोग अन्य कई कार्यो में किया जाता है। कुछ लोग खाना पकाने में पानी के स्थान पर गौमूत्र का उपयोग कर रहे हैं। इस गौशाला से प्रतिदिन करीब दो हजार लीटर गौमूत्र तैयार हो रहा है। इस गौमूत्र को गर्म करने के बाद अमोनिया निकालकर पैक करके बाजार में बेचा जा रहा है। यहां का गौमूत्र स्थानीय मार्केट के अलावा विदेशों में भी बिकने के लिए जा रहा है।

राज्य में कृषि विभाग के प्रमुख सचिव नरेश पाल गंगवार का कहना है कि गौमूत्र की बिक्री के साथ ही गाय पालने वालों की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई है। गाय के दूध के साथ ही गौमूत्र और इससे बनने वाली औषधियों की डिमांड भी बढ़ी है। नागौर की श्रीकृष्ण गौशाला और एशिया की सबसे बड़ी पथमेड़ा गौशाला ने आसपास के किसानों को गौमूत्र के माध्यम से रोजगार दे रखा है। किसान गौमूत्र इकठ्ठा करके इन गौशालाओं में बेचते है। इसके बाद गौशाला मार्केट में बेचती है ।

सरकार गौशालाओं का पंजीकरण बढ़ाने में जुटी

राज्य के गौपालन मंत्री प्रमोद जैन भाया ने बताया कि राज्य में करीब चार हजार गौशालाएं हैं। इनमें से 1363 गौशालाएं गोपालन विभाग में पंजीकृत हैं। पंजीकृत गौशालाओं को सरकार द्वारा अनुदान दिया जाता है। उन्होंने बताया कि गौसंरक्षण को बढ़ावा देने के लिए सरकार गौ उत्पादों की बिक्री बढ़ाने को लेकर भी जागरूकता अभियान चला रही है। उन्होंने बताया कि गौशालाओं का पंजीकण बढ़ाने को लेकर अधिकारियों से कहा गया है।

आरोग्य व सुख-समृद्धि प्रदायिनी गौमाता

*🌹आरोग्य व सुख-समृद्धि प्रदायिनी गौमाता :🌹*

*🌹( संत श्री आशारामजी बापू के सत्संग से )🌹*

*🌹सूर्यकिरण हजार प्रकार के हैं। उनमें तीन विभाग हैं – एक तापकर्ता (ज्योति), दूसरे पोषक (आयु) और तीसरे गो किरण। तापकर्ता और पोषक किरण तो हम झेलते हैं लेकिन गो किरण कोई प्राणी नहीं झेल सकता है। सूर्यकेतु नाड़ी जिस प्राणी में है, वही गो किरण पर्याप्त मात्रा में झेल सकता है और सूर्यकेतु नाड़ी देशी गाय में है। वह गो किरण पीती है इसलिए उसका नाम ‘गौ’ है। अभी विज्ञानी चकित हो गये कि देशी गाय के दूध में, घी में, मूत्र में और गोबर में सुवर्णक्षार पाये गये। मैं खुली चुनौती देता हैं कि दुनिया का ऐसा कोई देश हो या ऐसा कोई व्यक्ति हो जो मुझे सच्चाई से कह दे कि ‘फलाने व्यक्ति का, फलाने जीव का मल और मूत्र पवित्र माना जाता है।’ नहीं बोल सकता है। केवल हिन्दुस्तान की देशी गाय का मल और मूत्र पवित्र माना जाता है। मरते समय भी गौमूत्र व गोबर से लीपन करके मृतक व्यक्ति को सुलाया जाता है। और खास बात, कोई मर गया हो या मरने की तैयारी में हो तो वहाँ गोझरण छिड़क दो अथवा गोबर व गोमूत्र से लीपन कर दो, उसकी दुर्गति नहीं होगी।*
*गौ सेवा से बढ़ती है आभा व रोगप्रतिकारक शक्ति*
*देशी गाय के शरीर से जो आभा (ओरा) निकलती है, उसके प्रभाव से गाय की प्रदक्षिणा करने वाले की आभा में बहुत वृद्धि होती है। आम आदमी की आभा 3 फीट की होती है, जो ध्यान भजन करता है उसकी आभा और बढ़ती है। साथ ही गाय की प्रदक्षिणा करे तो आभा और सात्त्विक होगी। डॉक्टरों, वैद्यों, हकीमों ने कहा हो कि ‘यह आदमी बच नहीं सकता है, यह रोग असाध्य है।’ तो देशी गाय को पालो और अपने हाथ से उसको खिलाओ, थोड़ा प्रसन्न करो और उसकी पीठ पर हाथ घुमाओ। उसकी प्रसन्नता के स्पंदन आपकी उँगलियों के अग्रभाग से शरीर में आयेंगे और आपकी रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ेगी। 6 से 12 महीने लगेंगे लेकिन आप चंगे (स्वस्थ) हो जाओगे। गाय पालने के और भी बहुत सारे फायदे है। श्रीकृष्ण गाय चराने जाते थे, राजा दिलीप गाय चराने जाते थे, मेरे गुरुदेव गौशालाएँ चलवाते थे और अपने यहाँ कत्लखाने ले जायी जा रही गायों को रोक-रोक के निवाई (राज.) में 5 हजार गायें रखी गयीं थी। अभी वहाँ चारा बहुत महँगा मिलता है तो अलग-अलग जगह पर गौशालाएँ खोल दी हैं और वहाँ सेवा होती रहती है।*
*आप भी फायदे में, गाय भी बनेगी स्वनिर्भर*

*🌹भैंस का दूध मिले 25 रूपये लीटर और देशी गाय का दूघ मिले 27 रूपये का तो गाय का ही लेना चाहिए क्योंकि यह बहुत सात्त्विक एवं मेधाशक्तिवर्धक है। गाय के गोबर से धूपबत्तियाँ और कई चीजें बनती हैं, उसके साथ-साथ फिनाईल बनता है। रसायनों से बना फिनायल जीवाणुओं को तो नष्ट करता है लेकिन हवामान भी गंदा करता है। इससे ऋणात्मक आभा बनती है। लेकिन गोझरण से बने हुए फिनायल से घर में सात्त्विक आभा पैदा होगी और गायों की सेवा भी होगी, साथ ही यह गाय को स्वनिर्भर कर देगा। एक गाय से 6 से 7 लीटर गोमूत्र रोज मिलता है और गोमूत्र इकट्ठा करने वाले मजदूरों को रोजी मिलेगी। अतः सभी लोग गोझरण वाले फिनायल की माँग करो। तो यह सब दिखती है गाय की सेवा लेकिन इसके द्वारा आप अपनी ही सेवा कर रहे हैं।*

*🌹स्रोतः ऋषि प्रसाद, मार्च 2015, पृष्ठ संख्या 14 अंक 267*

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education dropped nearly 50% from Maharaja Ranjit Singh’s Sikh empire

According to historian G.W Leitner, the number of students attaining education dropped nearly 50% from Maharaja Ranjit Singh’s Sikh empire to British Rule.

Similar story in Bengal and South India, as shown by Dharampal.

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In Navasari, Gujarat, tribals are so poor that they marry daughters in exchange of ParleG biscuits

In Navasari, Gujarat, tribals are so poor that they marry daughters in exchange of ParleG biscuits. Agniveer is working hard to provide life of dignity to our daughters and fight the conversion cartel that exploits this poverty and neglect by rest of samaj. One family. No Jativad
https://t.co/0JsVZfnZRi

गौमूत्र और गोबर के ईंधन से उड़ान भरेगा भविष्य का रॉकेट, NIT की प्रो. दुलारी का दावा


गौमूत्र और गोबर के ईंधन से उड़ान भरेगा भविष्य का रॉकेट, NIT की प्रो. दुलारी का दावा

https://www.jagran.com/news/national-high-quality-hydrogen-gas-released-from-the-mixture-of-cow-urine-and-cow-dung-can-be-used-in-rocket-fuel-jagran-special-19635684.html

(3Oct2019)


विश्वजीत भट्ट, जमशेदपुर। गोबर के मिश्रण से उच्चकोटि की हाइड्रोजन गैस बनती है। आवश्यक परिष्करण कर इसका इस्तेमाल रॉकेट के प्रोपेलर में ईंधन के रूप में भी किया जा सकता है। राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआइटी) आदित्यपुर (झारखंड) में इस पर शोध चल रहा है। जमशेदपुर से सटे आदित्यपुर में एनआइटी की सहायक प्रोफेसर दुलारी हेंब्रम बीते कुछ वर्षों से इस विषय पर शोध में जुटी हुई हैं। शुरुआती रिसर्च पेपर प्रस्तुत कर उन्होंने दावा किया है कि यह संभव है। वह अभी दो और शोध पत्र जमा करने वाली हैं और अपने शोध के निष्कर्ष को लेकर उत्साहित हैं।

देश में बिजली की समस्या भी होगी दूर

प्रो. दुलारी के अनुसार, ईंधन के रूप में इस्तेमाल होने वाली हाइड्रोजन गैस के उत्पादन पर फिलहाल प्रति यूनिट सात रुपये खर्च आ रहा है। यदि सरकार इसके उत्पादन को प्रोत्साहित करती है तो इसका उत्पादन बड़े पैमाने पर हो सकता है। देश में बिजली की समस्या भी दूर हो सकती है। यही नहीं, इसे रॉकेट में प्रयुक्त होने वाले ईंधन के सस्ते विकल्प के रूप में भी विकसित किया जा सकता है।

प्रो. दुलारी हेंब्रम के शोध का विषय है- गोमूत्र और गोबर से वैकल्पिक ऊर्जा का उत्पादन। वह कहती हैं कि कॉलेज की प्रयोगशाला छोटी है। इस प्रोजेक्ट को किसी तरह की सरकारी मदद भी नहीं मिल रही है, सो अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही है। सरकारी मदद पाने के लिए प्रयास कर रही हैं।

गोबर और मूत्र से उत्पादित मीथेन का इस्तेमाल

दुलारी कहती हैं कि गाय के गोबर और मूत्र से उत्पादित वैकल्पिक ऊर्जा (मीथेन) का इस्तेमाल अभी चारपहिया वाहन चलाने, बल्ब जलाने के लिए हो रहा है, लेकिन इससे निकलने वाली हाइड्रोजन गैस को उच्चकोटि के ईंधन के रूप में विकसित किया जा सकता है। इसका इस्तेमाल रॉकेट के प्रोपेलर में ईंधन के रूप में हो सकता है।

फिलहाल जिस माध्यम से गोबर और गोमूत्र से वैकल्पिक ऊर्जा के रूप में हाइड्रोजन गैस निकालने का काम होता है, उसे और उन्नत बनाने पर शोध किया जा रहा है। इस समय छोटे स्तर पर इसके उत्पादन पर प्रति यूनिट सात रुपये खर्च आ रहा है। बिजली का खर्च भी लगभग ढाई से तीन रुपये तक है। यदि माध्यम और उन्नत हो जाए तो लागत और भी कम हो जाएगी। दुलारी ने बताया कि तमिलनाडु के कांचीपुरम जिले में स्थापित महर्षि वाग्भट्ट गोशाला व पंचगव्य विज्ञान केंद्र में भी गोमूत्र-गोबर से हाइड्रोजन गैस के उत्पादन पर काम हो रहा है। केंद्र सरकार इसपर ध्यान दे तो वैकल्पिक ऊर्जा के क्षेत्र में यह बड़ा कारगर सिद्ध हो सकता है। देश में गाय, गोबर और गोमूत्र की कमी नहीं है।

क्रायोजेनिक रॉकेट इंजन के लिए उपयुक्त

एनआइटी की सहायक प्रोफेसर दुलारी हेंब्रम का दावा है कि गोमूत्र-गोबर के मिश्रण से उच्चकोटि की हाइड्रोजन गैस प्राप्त की जा सकती है।

1981 की तस्वीर, जब इसरो द्वारा उपग्रह को बैलगाड़ी में रख ले जाया गया था। सौजन्य: इसरो

दरअसल, क्रायोजेनिक (निम्नतापी) रॉकेट इंजन में अत्यधिक ठंडी और द्रवीकृत गैसों को ईंधन और ऑक्सीकारक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसमें हाइड्रोजन गैस मुख्य घटक के रूप में प्रयुक्त होती है, जो ऑक्सीकारक के साथ मिल कर दहन करती है। ठोस ईंधन की अपेक्षा यह ईंधन कई गुना शक्तिशाली सिद्ध होता है और रॉकेट को अधिक बूस्ट देता है। विशेषकर लंबी दूरी और भारी रॉकेटों के लिए यह तकनीक (क्रायोजेनिक) आवश्यक होती है।

12वा गौशाला संचालक सम्मेलन व* *सम्मान समारोह

🙏 *सादरआमंत्रण* 🙏
 *12वा गौशाला संचालक सम्मेलन व* *सम्मान समारोह*
 दिनांक *12 अक्टूबर 2019, प्रातः* *10:00 बजे से स्थान:- माखन भोग* *उत्सव कुंज पूगल फाटा* *बीकानेर।*
 इस महती आयोजन के मुख्य
               *विशेषताएं :-*
👉राजस्थान की सभी गौशालाओं का आपस में परिचय,
👉 राजस्थान की सभी गौशालाओं की समस्याओं के समाधान का प्रयास,
👉 राज्य सरकार, केंद्र सरकार, जीव जंतु कल्याण बोर्ड, राष्ट्रीय कामधेनु आयोग, की योजनाओं की जानकारी,
👉 अनुदान से संबंधित समस्याओं पर चर्चा और समाधान परख सुझाव,
👉 सरकार के द्वारा जारी विभिन्न तरह के आदेशों की जानकारी,
👉 गोपालन विभाग द्वारा समय-समय पर जारी प्रवावदानों की जानकारी (गोपालन विभाग)
👉 गौशाला संचालन से संबंधित जानकारी,
👉 संवर्धन व नस्ल सुधार से संबंधित जानकारी,
👉 वेटरनरी विश्वविद्यालय द्वारा गौशालाओं को क्या लाभ दिया जा सकता है उस विषय में जानकारी,
👉 गोचर विकास में सरकार की भूमिका के संबंध में जानकारी,
👉 गोचर विकास के सरकारी फंड की जानकारी,
👉 गोपालन विभाग की गौशाला विकास योजना के विषय में जानकारी
👉 घास व घास के बीजों के विषय में जानकारी,
 👉गोबर गोमूत्र के उत्पाद बनाने के विषय में जानकारी,
👉 गोबर गोमूत्र और उत्पाद बनाने के यंत्रों के विषय में जानकारी व यंत्र उपलब्ध करवाना,
👉 गौ काष्ठ बनाने की विधि आदि की जानकारी,
👉 गौ काष्ठ बनाने की मशीन उपलब्ध करवाना,
👉 गौ से संबंधित साहित्य उपलब्ध करवाना,
👉 सभी तरह की जानकारियों का फोल्डर उपलब्ध करवाना,
👉 1960 के पंजीकरण गोपालन विभाग के फार्म उपलब्ध करवाना,
👉 जीव जंतु कल्याण बोर्ड के पंजीकरण फॉर्म उपलब्ध करवाना,
👉 सरकार की विभिन्न तरह की योजनाओं के फार्म उपलब्ध करवाना,
 *(जीव जंतु कल्याण बोर्ड व 1960 गोपालन विभाग जयपुर के पंजीकरण  से संबंधित पूर्ण जानकारी,  इन दोनों के पंजीकरण में क्या-क्या प्रपत्र डॉक्यूमेंट लगते हैं वह जानकारी, लिखित में उपलब्ध करवाई जाएगी)*
            **विशेषकर* *
➖अनुदान में कुछ विशेष व्यवस्थाएं जैसे वीडियोग्राफी, गौशाला की शाखाओं को अनुदान नहीं मिलना,
गौशाला के मुख्य गौशाला से अन्य शाखाओं की दूरी के विषय मे जानकारी, वह आदेश
➖सरकार द्वारा प्रति 3 माह में एक बैठक का आयोजन किया जाना है उसके विषय में जानकारी,
➖गौशालाओं की समस्याओं के समाधान के विषय में सरकार गौशालाओं के साथ बैठक करेगी उसके विषय में जानकारी,*
 ⭐ऐसी बहुत सी जानकारी आपको इस सम्मेलन में मिलेगी और आपके सुझाव के माध्यम से गौशालाओं के विभिन्न तरह की समस्याओं का समाधान करने की चेष्टा की जाएगी।
 ⭐हम और आप मिलकर इस आयोजन को गौशालाओं की जानकारी का आयोजन बनाएं, ऐसी व्यवस्था की जा रही है।
⭐ आप इस आयोजन में पधार कर इस में अपनी भूमिका तय करें, और गौशालाओं को आपके द्वारा कोई नवीन जानकारी मिले ऐसी व्यवस्था करें ।
             सादर अभिनंदन 
आप सभी इस पावन आयोजन में सादर आमंत्रित हैं।
 ✍ *इस अवसर पर राज्य सरकार  व गोपालन विभाग के विभिन्न तरह के आदेशों की कॉपी भी उपलब्ध रहेगी।,*
 ✍ *उपरोक्त सभी जानकारियां पावर पॉइंट प्रेजेंटेशन, एलईडी और फोल्डर के माध्यम से उपलब्ध रहेगी,*
✍बाहर से आ रहे सभी गोशाला संचालकों के लिए समारोह स्थल पर रहने, नहाने, वह भोजन, नाश्ते आदि की व्यवस्था रहेगी ।
✍जो व्यक्ति दूर के हैं वह 1 दिन पहले 11 तारीख शाम को भी पधार सकते हैं
                 सूरजमाल सिंह नीमराना
            समन्वयक आयोजन समिति,
     व प्रदेश महामंत्री गौ ग्राम सेवा संघ
                 राजस्थान,जयपुर
    9269058431,9636704415,
    व्हाट्सएप नंबर:-9414038704
    🙏आप सभी से निवेदन है कि🙏
         इस संदेश को आम गोपालक, गौशाला संचालकों में अवश्य भेजें ताकि इस महत्वपूर्ण सम्मेलन का लाभ सभी गौशाला संचालक या गौशाला खोलने के इच्छुक गोपालक लाभ ले सकें**

वेदों में राम जन्म स्थान का वर्णन

राम मंदिर केस पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई के आज के दो रोचक द्रश्य..

जज- मस्जिद के नीचे दीवारों के अवशेष मिले हैं।
मुस्लिम पक्ष की वकील मीनाक्षी अरोड़ा- वो दीवारें दरगाह की हो सकती हैं।
जज- लेकिन आपका मत तो यह है कि मस्जिद खाली जगह पर बनाई गई थी.. किसी ढ़ांचे को तोड़कर नहीं।
वकील- सन्नाटा

जज- एसआईटी की खुदाई में कुछ मूर्तियां मिली हैं।
वकील- वो बच्चों के खिलौने भी हो सकते हैं।
जज- उनमें वराह(सूअर) की मूर्ति भी मिली है जो हिंदू मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु के अवतार थे.. क्या मुसलमानो में सूअर की मूर्ति के साथ खेलने का प्रचलन था.?
वकील- घना सन्नाटा..!!

वेदों में श्रीराम तो हैं ही ...अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि का भी सटीक उल्लेख है !!
वह दृश्य था उच्चतम न्यायलय का ... श्रीराम जन्मभूमि के पक्ष में वादी के रूप में उपस्थित थे धर्मचक्रवर्ती, तुलसीपीठ के संस्थापक, पद्मविभूषण, जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी ... जो विवादित स्थल पर श्रीराम जन्मभूमि होने के पक्ष में शास्त्रों से प्रमाण पर प्रमाण दिये जा रहे थे ...
न्यायाधीश की कुर्सी पर बैठा व्यक्ति मुसलमान था ...
उसने छूटते ही चुभता सा सवाल किया, "आपलोग हर बात में वेदों से प्रमाण मांगते हैं ... तो क्या वेदों से ही प्रमाण दे सकते हैं कि श्रीराम का जन्म अयोध्या में उस स्थल पर ही हुआ था?"
जगद्गुरु रामभद्राचार्य जी (जो प्रज्ञाचक्षु हैं) ने बिना एक पल भी गँवाए कहा , " दे सकता हूँ महोदय", ... और उन्होंने ऋग्वेद की जैमिनीय संहिता से उद्धरण देना शुरू किया जिसमें सरयू नदी के स्थानविशेष से दिशा और दूरी का बिल्कुल सटीक ब्यौरा देते हुए श्रीराम जन्मभूमि की स्थिति बताई गई है ।
कोर्ट के आदेश से जैमिनीय संहिता मंगाई गई ... और उसमें जगद्गुरु जी द्वारा निर्दिष्ट संख्या को खोलकर देखा गया और समस्त विवरण सही पाए गए ... जिस स्थान पर श्रीराम जन्मभूमि की स्थिति बताई गई है ... विवादित स्थल ठीक उसी स्थान पर है ...
और जगद्गुरु जी के वक्तव्य ने फैसले का रुख हिन्दुओं की तरफ मोड़ दिया ...
मुसलमान जज ने स्वीकार किया , " आज मैंने भारतीय प्रज्ञा का चमत्कार देखा ... एक व्यक्ति जो भौतिक आँखों से रहित है, कैसे वेदों और शास्त्रों के विशाल वाङ्मय से उद्धरण दिये जा रहा था ? यह ईश्वरीय शक्ति नहीं तो और क्या है ?"
अब कोई ये मत कहना कि वेद तो श्रीराम के जन्म से पहले अस्तित्व में थे ... उनमें श्रीराम का उल्लेख कैसे हो सकता है?
वेदों के मंत्रद्रष्टा ऋषि त्रिकालज्ञ थे -- भूत, भविष्य और वर्तमान, तीनों का ज्ञान रखते थे ...
( श्रीराम की महिमा तीनों कालों में है -- कालाबाधित ... लोकविश्रुत ...)

llचहुँ जुग चहुँ श्रुति नाम प्रभाऊll
*llकलि विशेष नहिं आन उपाऊ l

साक्षात माँ दुर्गा रूपी कन्याओं के मुंह से माँ की सुंदर स्तुति

जय जय हे महिषासुर मर्दिनि
रम्य कपर्दिनि शैलसुते

साक्षात माँ दुर्गा रूपी कन्याओं के मुंह से माँ की सुंदर स्तुति

🙏🙏🙏
https://t.co/f0lXwM5ztM

22.5 lakh Indians living with cancer

At any point, there are 22.5 lakh Indians living with cancer. Every year there are 11.57 lakh new cancer patients in India. 7.84 lakh die from cancer every year, says a report in @IndianExpress

https://twitter.com/Devinder_Sharma/status/1180689981326540800?s=19

How American Indian Amit Vaidya cured his 4th stage cancer through Panchgavya Ayurved /Cowpathy

Life was a dream for Amit Vaidya, who soared high financially and professionally till he was diagnosed with cancer when he was 27.

Amit Vaidya lived the American dream. A Gujarati, born and brought up in the US, with a Ph.D. in economics, he worked in the entertainment industry’s business department. “It was an active but not a healthy lifestyle as I was an overachiever,” says Amit. His dreams “were shattered” when a few months after his father’s death he was diagnosed with first stage gastric cancer. “The fall was great as I had risen to great heights when I was 27.”

Opting not to do surgery, he went in for “aggressive chemo radiation” in New York. Two years later he went into remission.

Within two months of his recovery, his mother was diagnosed with grade three brain tumour. “Nothing worked and I lost her too. Away in a foreign land, being the only child, I felt lonely and a scan showed my cancer had returned after 18 months. This time it showed up in my liver. Nine months later, in 2011, reports showed I was not responding to treatment and the cancer had spread to my lungs too,” he says emotionally.

Doctors told Amit that his life too was just a matter of time. “Not wanting to burden my friends, I started planning my funeral.

Soon he planned a trip to India. An aunt also told me about an Ayurvedic hospital in Gujarat that claims to cure cancer in 11 days for just a rupee! Having nothing to lose I wanted to give it a shot.”

So off he went and explains that the treatment was disciplined with yoga, meditation and he was made to drink a mix of _“desi cow milk, curd, ghee and gobar, go-mutra. I was to drink it on an empty stomach. For years everything tasted like saw dust because of the chemo. It was easy to drink something that smelled and tasted as it should. Others there were traumatised by this. I kept faith and did it diligently. I saw no change but felt no worse either.”_

Scans showed that the cancer “had not spread”. Amit then went back to the hospital and lived there for another 40 days. Reports showed the cancer had decreased. “Wanting to continue the therapy,” Amit stayed with a farmer, who opened his house to Amit. _“He offered me a tiny shack on his farm, a cot, a goshala with desi cows, a well and a toilet. I continued the therapy and after months was able to walk. Over time, walks became jogs, jogs became runs and I started finding joy in my mind. The villagers had time for me, which was the best gift I got, especially when I needed time to heal.”_

After 18 months Amit claims he is cancer free and decided _“on planning to live his life instead of planning a funeral. I now talk to people about my journey and that healing is possible. I make time to spend with cancer patients. It is all free. I have started an NGO called Healing Vaidya.”_

He does not plan on going back to the US as _“this country has given me much. I have learnt that people here don’t value what it can offer.”_

Amit has written "Holy Cancer - How A Cow Saved My Life" (Aditya Prakashan, Rs. 495) which was launched in the city recently. The book is available in book stores. For more log on to healingvaidya.org

Also available with amazon and Flipkart.

http://www.thehindu.com/todays-paper/tp-features/tp-metroplus/a-journey-from-death-to-life/article7558731.ece

Vaidya is referring to *RM Dhariwal Cancer Hospital at Valsad* - *Gujarat* where Panchagavya is the treatment and charges are Re. 1- only

Milk ghi in kuran

Milk ghi in kuran


The milk, ghee (shifa) or butter of cow is nectar.Its flesh is main cause of all disease - Quran Sharif, para 14, Rukwa 7-15

https://t.co/2vx0byUROf

Andhra's famous desi Gau breeds "Ongole" and "Punganur".

Scenes from Sye Raa Narasimha Reddy movie showing Andhra's famous desi Gau breeds "Ongole" and "Punganur". 70% of New Zealand's cattle livestock is of this Ongole Indian breed. Australia too on it's way and already reached 50% breed conversion, whole world started farming Indian Gau breeds but it's our fate, in our country government gives financial support only for useless foreign breed animals.

https://www.facebook.com/100002587902785/posts/2387029594726614/

गाय-गाय में क्या अंतर


प्रश्न- गाय-गाय में क्या अंतर ?
हम क्यों बचाएं गाय को हमे क्या मतलब ?
उत्तर- गाय जैसे दिखने वाले अन्य जीव गाय नहीं विदेशी पशु COW है इसका दूध पीने लायक नहीं है यह गम्भीर बीमारियों का सीधा कारक व कारण है। जब पश्चिमी वैज्ञानिकों को पता लगा तो उन्होंने इसे सफेद जहर का नाम दिया और इसे वेस्ट के रूप में समुद्र में फेंका जाने लगा। मेरे देश का अज्ञानता,दुर्भाग्य,स्वार्थीपन की अब यह मिल्क बटर व पाऊडर के रूप में अपने ही देशवासियों के स्वास्थ्य का दुश्मन व हेल्थ इंडस्ट्री का दलाल कुछ स्वार्थी टट्टुओं के कारण बन गया है।
गाय पूरे भारत में भौगोलिक स्थितिअनुसार मिलने वाली लगभग 40 नस्लें जो वात्सल्य,करुणा प्रेम की मूर्ति सद्गुणों की सागर सलिला चारों युगों की साक्षी द्वापर में योगेश्वर भगवान श्रीकृष्ण के योग बुद्धि व बल की कारक बनी जिससे वे गोपाल और गोविंद कहलाये चित्र से देखकर बच्चा भी पहचान जाएगा वही है जिसे सदियों से भारतवर्ष के नर नारी प्रेम से गऊमाता कहते हैं।
आपने ने पूछा कि हम क्यों बचाएं गाय को तो ध्यान से सुनिये केवल और केवल गाय ही आप को बचा सकती है कोई और नहीं। अन्यथा हेल्थ इंडस्ट्रीज के लिये कमाते जाइये और केवल धन ही नहीं घर की सुख,शांति समृद्धि और अमूल्य समयधन भी गंवाते जाइये। आधुनिक और मॉडर्न कहलाते जाइये। कैसा महामूर्खता समय आगया है कि बड़े बड़े हॉस्पिटलों में मोटे बड़े महंगे ईलाज ऑपरेशन आदि आजकल स्टेटस सिंबल हो गया है। लोगबाग बड़ा बढ़ाचढ़ा कर बड़े गर्व से बताते हैं। इससे ज्यादा अल्पज्ञता व विवेकशून्यता क्या हो सकती है। हम भारतीयों का सनातनियों का गाय से सम्बंध सदा से रहा है और सदा-सदा रहेगा। अब जो वर्णशंकर हो गए हैं उनका वे जानें।
डॉ मनोज शर्मा गुरुजी,9215229687
अखिलभारतीय सनातन विद्वत परिषद,
सनातन विज्ञान भवन,ऋषिकेश
फोन 0135 2450687, 7900629687
www.sadmarg.com,Email sadmarg.asvp@gmail.com

विश्व का सबसे बड़ा भारतीय और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र

विश्व का सबसे बड़ा भारतीय और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र (ऋषि मुनियो का अनुसंधान )

■ क्रति = सैकन्ड का  34000 वाँ भाग
■ 1 त्रुति = सैकन्ड का 300 वाँ भाग
■ 2 त्रुति = 1 लव ,
■ 1 लव = 1 क्षण
■ 30 क्षण = 1 विपल ,
■ 60 विपल = 1 पल
■ 60 पल = 1 घड़ी (24 मिनट ) ,
■ 2.5 घड़ी = 1 होरा (घन्टा )
■ 24 होरा = 1 दिवस (दिन या वार) ,
■ 7 दिवस = 1 सप्ताह
■ 4 सप्ताह = 1 माह ,
■ 2 माह = 1 ऋतू
■ 6 ऋतू = 1 वर्ष ,
■ 100 वर्ष = 1 शताब्दी
■ 10 शताब्दी = 1 सहस्राब्दी ,
■ 432 सहस्राब्दी = 1 युग
■ 2 युग = 1 द्वापर युग ,
■ 3 युग = 1 त्रैता युग ,
■ 4 युग = सतयुग
■ सतयुग + त्रेतायुग + द्वापरयुग + कलियुग = 1 महायुग
■ 76 महायुग = मनवन्तर ,
■ 1000 महायुग = 1 कल्प
■ 1 नित्य प्रलय = 1 महायुग (धरती पर जीवन अन्त और फिर आरम्भ )
■ 1 नैमितिका प्रलय = 1 कल्प ।(देवों का अन्त और जन्म )
■ महाकाल = 730 कल्प ।(ब्राह्मा का अन्त और जन्म )

सम्पूर्ण विश्व का सबसे बड़ा और वैज्ञानिक समय गणना तन्त्र यही है। जो हमारे देश भारत में बना। ये हमारा भारत जिस पर हमको गर्व है l
दो लिंग : नर और नारी ।
दो पक्ष : शुक्ल पक्ष और कृष्ण पक्ष।
दो पूजा : वैदिकी और तांत्रिकी (पुराणोक्त)।
दो अयन : उत्तरायन और दक्षिणायन।

तीन देव : ब्रह्मा, विष्णु, शंकर।
तीन देवियाँ : महा सरस्वती, महा लक्ष्मी, महा गौरी।
तीन लोक : पृथ्वी, आकाश, पाताल।
तीन गुण : सत्वगुण, रजोगुण, तमोगुण।
तीन स्थिति : ठोस, द्रव, वायु।
तीन स्तर : प्रारंभ, मध्य, अंत।
तीन पड़ाव : बचपन, जवानी, बुढ़ापा।
तीन रचनाएँ : देव, दानव, मानव।
तीन अवस्था : जागृत, मृत, बेहोशी।
तीन काल : भूत, भविष्य, वर्तमान।
तीन नाड़ी : इडा, पिंगला, सुषुम्ना।
तीन संध्या : प्रात:, मध्याह्न, सायं।
तीन शक्ति : इच्छाशक्ति, ज्ञानशक्ति, क्रियाशक्ति।

चार धाम : बद्रीनाथ, जगन्नाथ पुरी, रामेश्वरम्, द्वारका।
चार मुनि : सनत, सनातन, सनंद, सनत कुमार।
चार वर्ण : ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र।
चार निति : साम, दाम, दंड, भेद।
चार वेद : सामवेद, ॠग्वेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद।
चार स्त्री : माता, पत्नी, बहन, पुत्री।
चार युग : सतयुग, त्रेतायुग, द्वापर युग, कलयुग।
चार समय : सुबह, शाम, दिन, रात।
चार अप्सरा : उर्वशी, रंभा, मेनका, तिलोत्तमा।
चार गुरु : माता, पिता, शिक्षक, आध्यात्मिक गुरु।
चार प्राणी : जलचर, थलचर, नभचर, उभयचर।
चार जीव : अण्डज, पिंडज, स्वेदज, उद्भिज।
चार वाणी : ओम्कार्, अकार्, उकार, मकार्।
चार आश्रम : ब्रह्मचर्य, ग्राहस्थ, वानप्रस्थ, सन्यास।
चार भोज्य : खाद्य, पेय, लेह्य, चोष्य।
चार पुरुषार्थ : धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष।
चार वाद्य : तत्, सुषिर, अवनद्व, घन।

पाँच तत्व : पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल, वायु।
पाँच देवता : गणेश, दुर्गा, विष्णु, शंकर, सुर्य।
पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा।
पाँच कर्म : रस, रुप, गंध, स्पर्श, ध्वनि।
पाँच  उंगलियां : अँगूठा, तर्जनी, मध्यमा, अनामिका, कनिष्ठा।
पाँच पूजा उपचार : गंध, पुष्प, धुप, दीप, नैवेद्य।
पाँच अमृत : दूध, दही, घी, शहद, शक्कर।
पाँच प्रेत : भूत, पिशाच, वैताल, कुष्मांड, ब्रह्मराक्षस।
पाँच स्वाद : मीठा, चर्खा, खट्टा, खारा, कड़वा।
पाँच वायु : प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान।
पाँच इन्द्रियाँ : आँख, नाक, कान, जीभ, त्वचा, मन।
पाँच वटवृक्ष : सिद्धवट (उज्जैन), अक्षयवट (Prayagraj), बोधिवट (बोधगया), वंशीवट (वृंदावन), साक्षीवट (गया)।
पाँच पत्ते : आम, पीपल, बरगद, गुलर, अशोक।
पाँच कन्या : अहिल्या, तारा, मंदोदरी, कुंती, द्रौपदी।

छ: ॠतु : शीत, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, बसंत, शिशिर।
छ: ज्ञान के अंग : शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निरुक्त, छन्द, ज्योतिष।
छ: कर्म : देवपूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, दान।
छ: दोष : काम, क्रोध, मद (घमंड), लोभ (लालच),  मोह, आलस्य।

सात छंद : गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, वृहती, पंक्ति, त्रिष्टुप, जगती।
सात स्वर : सा, रे, ग, म, प, ध, नि।
सात सुर : षडज्, ॠषभ्, गांधार, मध्यम, पंचम, धैवत, निषाद।
सात चक्र : सहस्त्रार, आज्ञा, विशुद्ध, अनाहत, मणिपुर, स्वाधिष्ठान, मुलाधार।
सात वार : रवि, सोम, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि।
सात मिट्टी : गौशाला, घुड़साल, हाथीसाल, राजद्वार, बाम्बी की मिट्टी, नदी संगम, तालाब।
सात महाद्वीप : जम्बुद्वीप (एशिया), प्लक्षद्वीप, शाल्मलीद्वीप, कुशद्वीप, क्रौंचद्वीप, शाकद्वीप, पुष्करद्वीप।
सात ॠषि : वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भारद्वाज, अत्रि, वामदेव, शौनक।
सात ॠषि : वशिष्ठ, कश्यप, अत्रि, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र, भारद्वाज।
सात धातु (शारीरिक) : रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा, वीर्य।
सात रंग : बैंगनी, जामुनी, नीला, हरा, पीला, नारंगी, लाल।
सात पाताल : अतल, वितल, सुतल, तलातल, महातल, रसातल, पाताल।
सात पुरी : मथुरा, हरिद्वार, काशी, अयोध्या, उज्जैन, द्वारका, काञ्ची।
सात धान्य : उड़द, गेहूँ, चना, चांवल, जौ, मूँग, बाजरा।

आठ मातृका : ब्राह्मी, वैष्णवी, माहेश्वरी, कौमारी, ऐन्द्री, वाराही, नारसिंही, चामुंडा।
आठ लक्ष्मी : आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, संतानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी।
आठ वसु : अप (अह:/अयज), ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्युष, प्रभास।
आठ सिद्धि : अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व, वशित्व।
आठ धातु : सोना, चांदी, ताम्बा, सीसा जस्ता, टिन, लोहा, पारा।

नवदुर्गा : शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कुष्मांडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री।
नवग्रह : सुर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु, केतु।
नवरत्न : हीरा, पन्ना, मोती, माणिक, मूंगा, पुखराज, नीलम, गोमेद, लहसुनिया।
नवनिधि : पद्मनिधि, महापद्मनिधि, नीलनिधि, मुकुंदनिधि, नंदनिधि, मकरनिधि, कच्छपनिधि, शंखनिधि, खर्व/मिश्र निधि।

दस महाविद्या : काली, तारा, षोडशी, भुवनेश्वरी, भैरवी, छिन्नमस्तिका, धूमावती, बगलामुखी, मातंगी, कमला।
दस दिशाएँ : पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, आग्नेय, नैॠत्य, वायव्य, ईशान, ऊपर, नीचे।
दस दिक्पाल : इन्द्र, अग्नि, यमराज, नैॠिति, वरुण, वायुदेव, कुबेर, ईशान, ब्रह्मा, अनंत।
दस अवतार (विष्णुजी) : मत्स्य, कच्छप, वाराह, नृसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्कि।
दस सति : सावित्री, अनुसुइया, मंदोदरी, तुलसी, द्रौपदी, गांधारी, सीता, दमयन्ती, सुलक्षणा, अरुंधती।

उक्त जानकारी शास्त्रोक्त 📚 आधार पर... हैं ।

#श्री राम

Nice dance by different demi gods

मौत का दूसरा नाम है ये 4 दवाइयां

मौत का दूसरा नाम है ये 4 दवाइयां.. विदेशों में तो बैन है लेकिन अपने भारत में हर इंसान खाता है !
हर किसी को मालूम है कि भारत का कानून बहुत ही लचीला है। इसे कोई भी तोड़-मरोड़ कर अपने तरीके से यूज़ कर लेता है। इसलिए तो हर वो चीज जो विदेशों में बैन होती हैं वो भारत में लीगली चल रही हैं। फिर चाहे कोई साबुन हो या दवाई। आज हम आपको कुछ ऐसी दवाईयों के बारे में बताने जा रहे हैं जो विदेशों में तो बैन है लेकिन हम भारतीय खाने की तरही इनका सेवन कर अपनी जान को जोखिम में डाल रहे हैं।
1. डिस्प्रिन
डिस्प्रिन एक दर्द निवारक दवा जो विदेशों में नहीं ये दर्द निवारक गोली विदेशों में मानकों पर खरी नहीं उतरी, इसलिए वहां इसे बैन कर दिया गया।

2. डीकोल्ड
कोल्ड और फ्लू (सर्दी ज़ुकाम) ठीक करने वाली ये गोली आपको किडनी से रिलेटेड बीमारियां दे सकती है। इसलिए इसे विदेशों में बैन कर दिया गया है।
3. विक्स
विक्स को यूरोपियन देशों में इसलिए बैन किया गया है क्योंकि उनका मानना है कि विक्स स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक है। लेकिन भारत में यह हर मेडिकल स्टोर और जनरल स्टोर रूम पर उपलब्ध है। और भारतीय लोग इसे बड़े चाव से खाते हैं। और लगाते है,
4. निमुलिड
निमुलिड भी भारत में कॉमन पेन किलर है, बदन दर्द होने पर लोग डॉक्टर की बजाय पेन किलर लेने भागते हैं। यह दवा अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेने और ऑस्ट्रेलिया जैसे कईं देशों में इस दवा पर बैन लगाया गया है, क्यूंकि ये दवा लीवर के लिये बहुत घातक होती है।

Different Breeds of Cow

Breeds of Cow
गाय की नस्ले
https://twitter.com/BiswalAnil/status/1182941976536109056?s=19

Zero in Ved


A frustrated student asked his Maths teacher...😡😡😡
If Zero was invented by Aryabhatt and he was born in the Kalayuga... Then...
In the past in Satayuga, who counted 100 Kavravas and Ravana's 10 heads and How?😳😳🙄🙄🤔🤔🤔🤔
Teacher resigned and went back to Vedic education but is still not able to find the answer...
Joke apart but the point needs to noted...
P.s: Got the above msg as joke. But any reply for that?
An expert's answer:
Let me start with just 1 reference from Vedas and 1 from Puranas (to keep this answer short - we will not have enough space if we want to document all such references).
1. Vedic Reference (Yajur veda):
The Rishi Medhātithi, after preparing bricks for a Vedic ritual, prays to the Lord of fire, Agni.
Imā me Agna istakā dhenava Santvekā ća desa ća satam ća
Sahasram ćāyutam ća niyutam ća Prayutam ćārbudam ća nyarbudam ća
Samudrasća madhyam ćāntasća Parārdhasćaita me agna ishtakā
Dhenavasantvamutrāmushmimlloke .
(The mantra recited is in vogue for srivaikhanasa  Archakas in Agniprathishta till now.... Ima  me agna  ishtaka....)
Meaning:
Oh Agni! Let these bricks be milk giving cows to me. Please give me one and ten and hundred and thousand. Ten thousand and lakh and ten lakh and One crore and ten crore and hundred crore, A thousand crore and one lakh crore in this world and other worlds too.
For starters, here is the meaning of some of the key words in that sloka:
eka - 1 (10 to the power 0)
dasa - 10 (10 to the power 1)
satam - 100 (10 square)
sahasram - 1000 (10 cube)
ayutam - 10000 (10 to the power 4)
niyutam - 100000 (10 to the power 5)
prayutam - 1000000 (10 to the power 6)
arbudam - 10000000 (10 to the power 7)
nyarbudam -100000000 (10 to the power 8)
samudram - 1000000000 (10 to the power 9)
madhyam - 1000000000 (10 to the poewr 10)
antam - 100000000000 (10 to the power 11)
parardham -1000000000000 (Trillion - 10 to the power 12)
2. Reference from Bhagavata Purana:
Chapter 3.11 of Srimad Bhagavatam explains the concept of time. It starts from what is now called nano seconds and goes up to trillions of years.
I have just given couple of references (which is just the tip of iceberg). If we read with an open mind we can find many more such references. This clearly shows that ancient Indians knew a lot of mathematics, counting, decimal systems etc. Why are we getting such "Intelligent" questions, when the truth is actually the opposite?
1. This question arises due to our ignorance. One of the biggest atrocity done by Britishers to India was to eradicate the Guru-Sishya tradition of educating our ancient knowledge and values. We are repeatedly fed nonsense after nonsense about our past, to the extent that we all either feel ashamed to talk about it. Even those who talk, do so with a sense of guilt.
2. We also blindly vomit (reproduce) the Macaulay based education system that Britishers left us with. One of such nonsense is that Aryabhatta "invented" zero. This is an ambiguous statement, which doesn't give the right perspective to Aryabhatta's contribution. Another such nonsense is that there is Classical Sanskrit (whose grammar was codified by Panini) and then there is Vedic Sanskrit, which is somehow a different language. Absolute nonsense - Panini composed a treatise summarizing the Sanskrit grammar from days of yore - till his time. This doesn't mean that the language itself didn't exist or it existed as a different language.
3. We also have a screwed up version of "Secularism" and it has become a fad among our generation to post such questions and jokes, which makes us look "cool" (in reality it does make us look stupid).
Summary:
Rather than saying that Aryabhatta "Invented zero", I would say that he was the first person to formally define the place value system using Zero. He also elaborated on its mathematical usage. The alternative available was Roman numerals, which is not scalable (to the levels that our Vedas went).  Why we refer Aryabhatta and not our Vedic and Puranic texts:  Aryabhatta's work was intended to be a Mathematical treatise. His work summarizes the knowledge that was available with us until that time. Our Puranas and Itihasas on other hand, though had several references to larger and smaller numbers, were not Mathematical texts - Maths in them were incidental.

Beautiful information about Water

This is beautiful information.....about 💦 💧 water
When we receive the water sprinkled on our heads by pujari during the pujas or aarati it must have the blessing from Krsna directly.
water has memory, stores all information


https://youtu.be/ILSyt_Hhbjg


हरे कृष्ण
जय जय श्री राधे श्याम

Is Devdutt Pattanaik really a scholar

Is Devdutt Pattanaik really a scholar or an overrated Pop-Mythologist? https://t.co/dinPfa3yhe via @YouTube

Thread by @AbhinavAgarwal: "A thread on how shoddy and littered with howlers is Devdutt Pattanaik's work. I will take just one book as an example - […]"
---> Link of t

 https://t.co/a7kcr40tuw

गोतस्करों ने गुरुग्राम, हरियाणा में गोरक्षक भाई मोनू मानेसर पर गोली चलाई


गोतस्करों ने गुरुग्राम, हरियाणा में गोरक्षक भाई मोनू मानेसर पर गोली चलाई

आज रात (9-10Oct रात) को गौतस्करों ने भाई मोनू मानेसर ओर टीम जो गोरक्षा कर रही थी,उनपर गोली चलाई ।   भाई मोनू मानेसर को गोली लगी है और 1 घंटा गुरुग्राम में इन तस्करो ने रोड पर गाड़ी भगाई पर पुलिस सोती रही

Youtube channel of Gorakshak Monu Manesar-
https://www.youtube.com/channel/UCh06CjU_m7gPM0Ath9eKMcw

Video (2 min)
https://www.facebook.com/100003732414986/posts/1638213372979727/?sfnsn=scwspmo&d=n&vh=i




https://m.facebook.com/story.php?story_fbid=2016115541823860&id=100002763018661

News channel report -

https://www.facebook.com/100003732414986/posts/1638213372979727/?sfnsn=scwspmo&d=n&vh=i

Gurugram: Bajrang Dal member shot by alleged cow smugglers

https://scroll.in/latest/940059/gurugram-bajrang-dal-member-shot-by-alleged-cow-smugglers

A video of the incident showed the truck driven by the alleged smugglers skipping checkpoints and breaking through police barricades.

Scroll Staff

6 hours ago

The Manesar district convenor of the Bajrang Dal was on Wednesday shot in the chest while he was chasing alleged cow smugglers in Gurugram, The Indian Express reported.

The man, identified as Monu, was admitted to the Medanta Hospital in Gurugram. The police said the incident took place around 3 am after Monu received a tip about four cows allegedly being transported illegally. The men from Bajrang Dal tried to intercept the truck and then continued to chase the vehicle reportedly for the next hour.


“They kept releasing cows from the vehicle all along the way to try to obstruct the passage of the vigilantes, but the latter [Bajrang Dal members] managed to evade the animals and continued after them,” Gurugram District President of Bajrang Dal, Abhishek Gaur, told the newspaper.

“At sector 10, however, they [the alleged smugglers] stopped the [vehicle] and opened fire on Monu and his group,” Gaur added. “Monu, who is our Manesar district convenor, was shot in the chest, and the smugglers managed to flee in the confusion.”

A video of the incident on social media showed the dramatic chase. The truck can be seen skipping checkpoints and breaking through police barricades.


The police were informed about the incident after Mohit was shot at. “An FIR was registered regarding the matter,” Subhash Boken, PRO of Gurgaon Police, said. “The vehicle in which the purported smugglers were travelling was found abandoned near Tauru. Investigations are being conducted to identify and nab them.”



सेक्टर10, गुरुग्राम: पुलिस बैरकेडिंग तोड़कर भागे गोतस्कर, रोकने पर बजरंग दल कार्यकर्ता को गोली मारी 

एबीपी न्यूज़Last Updated: 10 Oct 2019 11:07 AM

https://abpnews.abplive.in/india-news/haryana-cattle-smuggling-group-shoot-bajrang-dal-worker-in-gurugram-1217296


कल दिन में भी गोरक्षकों ने कुछ तस्करों को पकड़ा था और रात में भी जाल बिछाया था, लेकिन गाड़ी लेकर तस्कर पुलिस की बैरिकैडिंग को उड़ाते हुए भाग निकले. घाटल बजरंग दल के कार्यकर्ता मोनू मानेसर की हालत गंभीर बताई जा रही है.


गुरुग्राम: हरियाणा के गुरुग्राम में गोतस्करों ने बजरंग दल के एक कार्यकर्ता को गोली मार दी. घटना रात करीब तीन बजे की है. गोतस्करी रोकने के लिए बजरंग दल और हरियाणा पुलिस की टास्क फोर्स के गौ रक्षक गुरुग्राम के सेक्टर 10 इलाके में मौजूद थे. इस दौरान जब दोनों पक्षों में मुठभेड हुई तो तस्करों ने गोली चला दी.


बजरंग दल के कार्यकर्ता की हालत गंभीर


जानकारी मिली है कि कल दिन में भी गोरक्षकों ने कुछ तस्करों को पकड़ा था और रात में भी जाल बिछाया था, लेकिन गाड़ी लेकर तस्कर पुलिस की बैरिकैडिंग को उड़ाते हुए भाग निकले. घाटल बजरंग दल के कार्यकर्ता मोनू मानेसर की हालत गंभीर बताई जा रही है. उसको मेदान्ता अस्पताल में भर्ती कराया गया है, जहां उसका ऑपरेशन हो रहा है.


फरार होने में कामयाब हो गए बदमाश


सूत्रों के मुताबिक, रात को पेट्रोलिंग कर रही इस टास्क फोर्स ने जब इन तस्करों को देखा तो इनका पीछा किया. करीब 10 किलोमीटर तक टास्क फ़ोर्स ने इनका पीछा किया. पकड़े जाने के डर से इन तस्करों ने चलते टेम्पों से गाय को फैंक दिया और फिर पुलिस के ऊपर फायरिंग कर दी. जिसमे टास्क फ़ोर्स के एक सदस्य गो गोली लग गई और बदमाश फरार होने में कामयाब हो गए. पुलिस की कई टीमें इन बदमाशों की धरपकड़ की कोशिश में लगी है.


पुलिस को मेवाती गैंग पर है शक


पुलिस सूत्रों के मुताबिक, गौ तस्करी का ये गैंग मेवात से हो सकता है. क्योंकि ये गैंग दिल्ली और एनसीआर में काफी एक्टिव है और लगातार दिल्ली और गुरुग्राम की सड़कों से रात को तस्करी कर गाय को मेवात ले जाता है. ये मेवाती इतने डेस्पेरेट होते हैं कि पुलिस पर गोली चलाने से भी गुरेज नहीं करते. ये मेवाती अपने टेम्पो में पत्थर और ईंटे भी रखते है और पीछा कर रही पुलिस के ऊपर इनसे हमला कर देते हैं.

शरद पूर्णिमा पर गोमूत्र से आंख की दवाई कैसे बनाये




वन्देमातरम मित्रो--- अभी शरद पूर्णिमा आने वाली है ,इस रात्रि को गोमूत्र से दवाई बनाई जाती है
जो आंख का मोतिया बिंद
आंखों में चश्मा चढ़ा होना
या आंखों की अन्य समस्या को ठीक करता है।
विधि: शरद पूर्णिमा को ब्रह्ममुहूर्त   यानी  6 बजे सुबह तक का बछिया का गौमूत्र
लें  ,
यदि सँभव हो तो दो तीन दिन इस दौरान 50 ग्राम  त्रिफला  व पुनर्नवा थोड़ी सी बछिया को गुड़ के साथ खिलाएं  ।
और गोमुत्र को  शरद पूर्णिमा की रात्रि को खुले आसमान में तांबे के खुले मुहं के बर्तन में गौबर के उपलों की मन्द अग्नि से तकरीबन  रात्रि10pm से सुबह 4am तक मन्द अग्नि पर  गर्म करें ।
गर्म करते समय संभव हो तो  तुलसी की डंडी या निम की डंडी  से इसको घुमाते रहें ।
इस दौरान प्रभु सिमरन  करते रहें ।
अब इस सिद्ध किये हुवे गौमूत्र को ठंडा करके कांच के जार में रख लें ।
मान लें आपका सिद्ध किया हुवा गोमूत्र 2 लीटर बचा है तो  आपको
इसमे छोटी मक्खी का शहद  आधा लीटर
ओर बढ़िया चैत्री  गुलाब फूलों का बनाया हुवा गुलाब जल 2 लीटर मिला दें ।
ये कांच के बर्तन में रखनी हैं ।
आपका दिव्य नेत्र बिंदु  ओषधि तैयार है ।
1-1बून्द आंख में रात्रि को डालकर सोएं
इससे आंखों का चश्मा धीरे धीरे उतर जाता है और मोतियाबिंद ठीक हो जाता है ।
राजपाल भारत :9729129129
मित्रो जिनके पास देशी गौमाता है
वो जरूर बनाएं ।
पोस्ट को दूसरे गोपालक तक पहुंचाएं -धन्यवाद !!

Saturday, November 23, 2019

Baba Ramdev on Gaumata

Baba Ramdev on Cow panchgavya, nandi video -
अद्भुत है गौ माता व नंदी के गुण चुस्ती,फुर्ती,स्फूर्ति,मेधा!
गाय का दूध,घी,दही से लेकर समस्त पंचगव्य अमृततुल्य है,
महा औषधि है!!

https://t.co/DcPrV6zr98

Muslims in all small jobs

Muslim in all small jobs-tweet chain
For all those making fun of an Abdul or a Salim for having a Puncture shop, this thread should be an eye opener.

While most Hindus stop at second child & worked on their education, Abdul's father had 6 kids & never had any remorse.

Because all 6 kids make money from childhood. https://t.co/o4N7GJBBpk

Thread -
https://t.co/sHmWFtsijI?amp=1

Quest For A Muslim Identity

Snare the fundamentalists but spare the fundamentals
by Anand RangNathan

@ARanganathan72: "Snare the fundamentalists but spare the fundamentals. Selective Submission And The Quest For A Muslim Identity. My essay […]" #KamleshTiwariMurder
https://t.co/CrXiZOaBYX

निशुल्क स्वर्णप्राशन शिविर

स्मरण रहे की कल पुष्यनक्षत्र है "स्वर्णप्राशन" अर्थात आयुर्वेदिक टीकाकरण अवसर

22 अक्टूबर 2019

*गोधूली परिवार द्वारा आयोजित
निशुल्क स्वर्णप्राशन शिविर*

आयुर्वेदिक टीकाकरण के रूप में स्वर्णप्राशन अपने बच्चो को दिलवाए
******************************

*यदि आपका बच्चा अक्सर बीमार रहता है
एकाग्रता की कमी है*
यदि हाँ तो उन्हें बलवान, बुद्धिमान और निरोगी बनाने के लिए आज ही
12 वर्ष की आयु तक के बच्चो को स्वर्णप्राशन संस्कार करवाएं

प्रथम शिशु चिकित्सक महर्षि कश्यप जी के 3000 वर्ष पुराने ज्ञान का लाभ उठाये
आयुर्वेदिक टीकाकरण के रूप में स्वर्णप्राशन अपने बच्चो को दिलवाए

आने वाली पीढीयों को समर्पित इस प्रयास में कार्यालय या स्कूल की छुट्टी भी करनी पड़े तो संकोच न करें

दिल्ली में निशुल्क स्वर्णप्राशन शिविर दो स्थानों पर आयोजित
22 अक्टूबर 2019
**************************************
*गोधूली परिवार केंद्र*
B-41, तीसरा तल,
गली न.9, सेवक पार्क,
उत्तम नगर, नई दिल्ली
निकट द्वारका मोड़ मेट्रो स्टेशन (गेट संख्या 2 की ऒर)
निकट ज्योति डायग्नोस्टिक सेन्टर
संपर्क 9810395758, 9810995758

गूगल मैप लिंक:

https://maps.app.goo.gl/XoufXWUWBNHMBpuy5
********************************
A-1/675, First Floor,
Sector 06, Rohini, New Delhi
Near Rohini West Metro
8076488848
***********************************
अधिक से अधिक लोगो तक प्रेषित करें

अपने बच्चो के लिए 10 मिनट का समय निकले क्योंकि इस पोस्ट में है वह सब कुछ जो स्वर्णप्राशन के विषय मे आप जानना चाहते है!

विस्तार से पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें

https://www.virendersingh.in/2019/02/swarn.html

Diwali Health Tips by उत्तम माहेश्वरी जी

Diwali Health Tips by उत्तम माहेश्वरी जी।
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1. धूल-धुँए के प्रदूषण से बचने के लिए रोज नाक में *देशी गाय* के बिलौने के घी की बूंदें डालें। जिन्हें एलर्जी है, उनके लिए यह *रामबाण इलाज* है।
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2. महानगरों के लोग पटाखे न फोड़ें, यह प्रदूषित महानगर में रहने की सजा है। पटाखों का आनंद लेना हो तो गाँव जाएँ। *चीनी (जहरीले) पटाखे न फोड़े*।
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3. पेट्रोकेमिकल से बनी मोमबत्ती, Refined oil के दीये न जलायें। *तिल के तेल के दीये जलाना सर्वश्रेष्ठ।* तिल का तेल प्रदूषण नष्ट कर वायु को शुद्ध करता है।
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4. पारंपरिक *मिट्टी के दीपक ही जलायें*, केमिकल से रंगे दीपक नहीं।
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5. गोवत्स द्वादशी के दिन देशी गाय-बछड़े की पूजा से दिवाली पूजा शुरू करें। गाय-बछड़े की 108 परिक्रमा से *–ve energy* (थकान, चिड़चिड़ापन, नकारात्मक विचार, डिप्रेशन.....) कम होती है, *+VE ENERGY* (स्फूर्ति, प्रसन्नता, आशा, उत्साह.....) बढ़ती है; गर्भस्राव miscarriage नहीं होता; गर्भस्थ शिशु को लाभ होता है .....
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6. धन तेरस वास्तव में *धन्वंतरि तेरस* है। इस दिन आयुर्वेद के भगवान धन्वंतरि धरती पर स्वर्ण कलश में अमृत लाये थे। स्वास्थ्य ही सबसे बड़ा धन है। यह *अमृत खरीदने का दिन* है। नासमझ लोग धन तेरस पर अमृत छोड़कर केवल सोना घर ले आते हैं। देशी गाय के घी-गोबर-गोमूत्र में सोना है। जब पूरा बाजार केमिकल के जहर से भरा हो, 99% घी घटिया हो तब देशी गाय के गोबर से उगा अन्न व घी साक्षात् अमृत है। धन तेरस पर *देशी गाय* का घी अवश्य खरीदें।
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7. रूप चतुर्दशी (छोटी दिवाली) के दिन शरीर पर अंगराग (गोबर की राख से बना यानी स्वर्ण भस्म युक्त) लगाकर स्नान करने से *चर्म रोगों से बचाव* होता ही है, बहुत से *रक्त दोष भी दूर* होते हैं।
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8. दिवाली के दिन *मुख्य दीपक देशी गाय के घी का जलायें*। इससे पूरा घर प्राणशक्ति (+ve energy) से भर जायेगा।
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9. दिवाली पर मिठाई अवश्य खायें। आयुर्वेद के अनुसार *मधुर रस रसों का राजा, तृप्तिदायक व अत्यंत पौष्टिक है*। लेकिन शुगर मिल की शक्कर मीठी होने पर भी रस की दृष्टि से मधुर नहीं, कड़वी है व रोगकारक है। मिल की शक्कर से बनी मिठाई न खायें। *Dry fruits व इसकी मिठाई न खायें।* इससे पित्त के रोग बढ़ेंगे। Dry fruits कार्तिक पूर्णिमा से खायें। *चांदी का वर्क लगी मिठाई न खायें* (90% वर्क एल्युमिनियम की होने से जहर हैं, शुद्ध चांदी का वर्क कत्लखाने से खरीदी गाय की आँत से बनता है)। इनकी जगह श्रेष्ठ मधुर रस अर्थात् *देशी गाय* के दूध-घी से बनी व केमिकल फ्री शक्कर से बनी मिठाइयाँ खायें। इनसे पित्त शांत रहेगा।

हuman-centric, and ecologically-sensitive, paradigm of development

Very right. 'India must adopt a human-centric, and ecologically-sensitive, paradigm of development before it’s too late. India cannot muddle along with a failing economic paradigm any longer'. https://t.co/lWURRuKYPu

देशी गाय के घी से होने वाले लाभ .

देशी गाय के घी से होने वाले लाभ ...

🥀1.गाय का घी नाक में डालने से पागलपन दूर होता है।
2🥀.गाय का घी नाक में डालने से एलर्जी खत्म हो जाती है।
🥀3.गाय का घी नाक में डालने से लकवा का रोग में भी उपचार होता है।
🌻4.(20-25 ग्राम) घी व मिश्री खिलाने से शराब, भांग व गांझे का नशा कम हो जाता है।
🌹5.गाय का घी नाक में डालने से कान का पर्दा बिना ओपरेशन के ही ठीक हो जाता है।
🌼6.नाक में घी डालने से नाक की खुश्की दूर होती है और दिमाग तरोताजा हो जाताहै
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🌻7.गाय का घी नाक में डालने से कोमा से बाहर निकल कर चेतना वापस लोट आती है।
🍂8.गाय का घी नाक में डालने से बाल झडना समाप्त होकर नए बाल भी आने लगते है।
🌼9.गाय के घी को नाक में डालने से मानसिक शांति मिलती है, याददाश्त तेज होती है।
🌷10.हाथ पाव मे जलन होने पर गाय के घी को तलवो में मालिश करें जलन ठीक होता है।
🍃11.हिचकी के न रुकने पर खाली गाय का आधा चम्मच घी खाए, हिचकी स्वयं रुक जाएग ।
1🌼2.गाय के घी का नियमित सेवन करने से एसिडिटी व कब्ज की शिकायत कम हो जाती है।
🌸13.गाय के घी से बल और वीर्य बढ़ता है और शारीरिक व मानसिक ताकत में भी इजाफा होता है
🌾14.गाय के पुराने घी से बच्चों को छाती और पीठ पर मालिश करने से कफ की शिकायत दूर हो जाती है।
🌼15.अगर अधिक कमजोरी लगे, तो एक गिलास दूध में एक चम्मच गाय का घी और मिश्री डालकर पी लें।
🍃16.हथेली और पांव के तलवो में जलन होने पर गाय के घी की मालिश करने से जलन में आराम आयेगा।
🍂17.गाय का घी न सिर्फ कैंसर को पैदा होने से रोकता है और इस बीमारी के फैलने को भी आश्चर्यजनक ढंग से रोकता है।
🍂18.जिस व्यक्ति को हार्ट अटैक की तकलीफ है और चिकनाइ खाने की मनाही है तो गाय का घी खाएं, हर्दय मज़बूत होता है।
🍃19.देसी गाय के घी में कैंसर से लड़ने की अचूक क्षमता होती है। इसके सेवन से स्तन तथा आंत के खतरनाक कैंसर से बचा जा सकता है।
🍂20.घी, छिलका सहित पिसा हुआ काला चना और पिसी शक्कर (बूरा) तीनों को समान मात्रा में मिलाकर लड्डू बाँध लें। प्रातः खाली पेट एक लड्डू खूब चबा-चबाकर खाते हुए एक गिलास मीठा गुनगुना दूध घूँट-घूँट करके पीने से स्त्रियों के प्रदर रोग में आराम होता है, पुरुषों का शरीर मोटा ताजा यानी सुडौल और बलवान बनता है.
🍂21.फफोलो पर गाय का देसी घी लगाने से आराम मिलता है।
🌼22.गाय के घी की झाती पर मालिस करने से बच्चो के बलगम को बहार निकालने मे सहायक होता है।
🍃23.सांप के काटने पर 100 -150 ग्राम घी पिलायें उपर से जितना गुनगुना पानी पिला सके पिलायें जिससे उलटी और दस्त तो लगेंगे ही लेकिन सांप का विष कम हो जायेगा।
🌾24.दो बूंद देसी गाय का घी नाक में सुबह शाम डालने
से माइग्रेन दर्द ठीक होता है।
🍃25.सिर दर्द होने पर शरीर में गर्मी लगती हो, तो गाय के घी की पैरों के तलवे पर मालिश करे, सर दर्द ठीक हो जायेगा।
🌾26.यह स्मरण रहे कि गाय के घी के सेवन से कॉलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता है। वजन भी नही बढ़ता, बल्कि वजन को संतुलित करता है ।यानी के कमजोर व्यक्ति का वजन बढ़ता है, मोटे व्यक्ति का मोटापा (वजन) कम होता है।
🌻27.एक चम्मच गाय का शुद्ध घी में एक चम्मच बूरा और 1/4 चम्मच पिसी काली मिर्च इन तीनों को मिलाकर सुबह खाली पेट और रात को सोते समय चाट कर ऊपर से गर्म मीठा दूध पीने से आँखों की ज्योति बढ़ती है।
🌻28.गाय के घी को ठन्डे जल में फेंट ले और फिर घी को पानी से अलग कर ले यह प्रक्रिया लगभग सौ बार करे और इसमें थोड़ा सा कपूर डालकर मिला दें। इस विधि द्वारा प्राप्त घी एक असर कारक औषधि में परिवर्तित हो जाता है जिसे त्वचा सम्बन्धी हर चर्म रोगों में चमत्कारिक कि तरह से इस्तेमाल कर सकते है। यह सौराइशिस के लिए भी कारगर है।
🌻29.गाय का घी एक अच्छा (LDL) कोलेस्ट्रॉल है। उच्च कोलेस्ट्रॉल के रोगियों को गाय का घी ही खाना चाहिए। यह एक बहुत अच्छा टॉनिक भी है।
🌻30.अगर आप गाय के घी की कुछ बूँदें दिन में तीन बार, नाक में प्रयोग करेंगे तो यह त्रिदोष (वात पित्त और कफ) को संतुलित करता है।

Real killers of Holy Cow in India, Part-1.

Real killers of Holy Cow in India, Part-1. भारत में गौ-माता के असली हत्यारे कौन हैं, भाग 1?

https://azad-azadindia.blogspot.com/2017/02/killers-of-holy-cow-in-india.html

Sunday, February 19, 2017

Real killers of Holy Cow in India, Part-1. भारत में गौ-माता के असली हत्यारे कौन हैं, भाग 1?


Real killers of Holy Cow in India, Part-1.
 भारत में गौ-माता के असली हत्यारे कौन हैं, भाग 1
Who is responsible for vanishing Holy Cow in India: Killers of the Holy Cow in India 


Causes of Extinction and Decline in Indian Holy CowsCauses of Extinction and Decline in Indian Holy Cows
Though cow is a sacred animal in India, is dying an unnatural death (killed) in India. The quest is who is killing the cow progeny in India, dairymen, veterinarians, vaccine producers, veterinarians, administrators involved in vaccine and drug quality monitoring or anyone else. Diseases including foot and mouth disease (FMD), hemorrhagic septicemia (HS), black leg/ black quarter (BQ), anthrax and Johne’s disease (JD) are the common killers prevailing since ages in India despite the availability of vaccines and other measures to control and stamp out these.




Introduction
The cow is holy or unholy, it is not the matter of concern here, but the quest is about the killers, human, subhuman or superhuman. The cow has been worshiped from centuries in India for its motherly virtues to nourish the humanity through its milk. Cow’s male progeny has provided draught power for agriculture and transport since time immemorial till the age of mechanization and still today in less developed regions of India and abroad. According to the recent census (PIBGI, 2014), India hosts for about 190.9 million (122.98 million female) cattle (>45% of whole Asia and about 1/6th of World’s cattle) population to claim its positions as the highest milk producing country, contributing >132 million tons of milk1,2  every year. However, the role of she-buffaloes (92.5 million) in granting this number one position is much more important (contributing to ~55% of the total milk yield) than cows. To acknowledge the contribution of buffalo is incarnated as “Mahishi” means queen similar to Gau-Mata for a cow, since ancient time. The cow has never been considered merely a beast in India; it remained the most beloved family pet all over India, irrespective of religion, cast, creed or time.
The killing of a cow or its progeny is prohibited in most parts of India through state laws but the killing has never come to an end even in prohibited areas. The question is who are the killers of the holy cow? Diseases fulminating since the dawn of animal husbandry, poor quality of vaccines and medications available for prevention and control of disease, ill-planned vaccination policies (vaccinating the cattle but neither the multiplier nor the maintenance host of diseases, planning for the herds not for the pets), implementers of the policies who are often under stress of enforcement of different programmes and varying priorities from time to time almost every year, farmers who raise the cow for milk and not for worshipping, farmers who are not willing to get their animals vaccinated, veterinarians wishing the spread of diseases or not vaccinating the animals so that diseases may fulminate and their earnings could flourish, the vaccine producers wishing to maintain the disease forever so that their shops can run forever, non-coordination among different agencies working for planning, funding, executing, implementing, and monitoring towards disease control, the politician who made the sacred cow a taboo, rewards to those responsible for mass occurrence and spread of diseases, punishment to veterinarians those who try to report diseases, harassment to inspectors who dare to reveal truth of substandard vaccines and medicine or any other factor.
Animal versus human population
The size of animal holding in India may be appreciated by the fact that almost 100 million people earn their livelihood from animal husbandryi.e., on an average hardly two cattle are reared by one farmer. If this small is the holding of a farmer then what development and innovation we can expect from the poor farmers unless the Government comes in a really big way to help them to rear good quality animals in herds. Most of the disease control programmes are based on the development of herd immunity, but where are the herds? Therefore, the planners must think in a different way, instead of planning for herds, planning should be to protect the pets, kept in small numbers, which occasionally congregate to form a herd.
Though there was long a leap in human population in India, no significant change in total cattle population occurred over last six decades (Fig. 1). However, a slight cut in total cattle population has been witnessed in last two census surveys.  However, dynamics of cattle population has changed a lot over the years4. Several reasons may be assigned for the shift in cattle population dynamics and only the cow slaughter ban policy may not be the only reason. The other more marked factors might be 1. Mechanization of agriculture and transport leading to a reduced requirement of animal draught power, 2. Replacement of less productive population with high milk producing breeds and crossbred animals, 3. Non-availability of high quality and disease-free bulls or semen straws for breeding of the indigenous animals, 4. Shrinking grazing grounds and shrinking forests, and prohibition of entry of domestic stocks into forests making it difficult to maintain big herds, 5. The introduction of artificial insemination associated with reduced need for male animals, 6. More and more repeat breeding making animal husbandry less profitable, 7. Reduction in selling prices of non-productive animals (probably due to the ban on cow slaughter), 8. The burden of maintaining non-productive animals on the farmers already facing disease burden in animals born of cross-breeding, 9.  Ever increasing rural poverty and much more.
Pulsing the shrinkage of farming land in the recent decade, Government schemes to promote dairying and increasing the cost of milk again led to a fast gain in female population, mainly exotic/ crossbred (34.78%) and slight gain (0.17%) in a population of indigenous cows (holy cows).  However, a shifting loss of >19% in male cow progenydespite cow-slaughter ban was worrisome. The question for a policy maker is, either lifting the ban from cow slaughter may or may not boost the economic dairy industry. The burning question for anyone may be when there is cow (and its progeny) slaughter banned in 24 of the 29 states of India6 then why the male cattle has declined so fast? Who are the killers of male progeny of the Holy Mother Cow?
Reasons for cattle population shift in India
If we consider the cow a commodity of a market, as it is in reality, then only we can understand the truth. The reduced demand of males and non-productive females in the market (as bull power or as beef source) and thus the reduced value of male cattle seem to be the main reason behind the decrease in populations of males. Mechanization and modernization of agriculture have drastically reduced the need for cattle power required in transport and agriculture. It may be a natural phenomenon for any society where a cow is a commodity but not for Indian society where the cow is worshiped as a mother and the cow slaughter ban was enacted long back. Further, nature has not skewed yet in favor of females. Then what may be reasons for reduced male progeny of cow?
In advanced animal husbandry use of sexed semen to produce only female calves might be an appropriate reason for the birth of more females than males but is certainly not the reason in India. Though much needed for profitable dairy husbandry might also be socially accepted to ethically enact the law prohibiting cow slaughter. However, it is still a farfetched dream for the majority of Indian farmers. It may be one of the much-required developments to ward off cruelty against males of cow progeny. Although very late, efforts has been initiated about a year ago for sexed semen in India, and a project is now in developmental stage7,8.
Export of male cattle may be another option. India export sizable amount of livestock products including meat9. However, luckily or unluckily there is hardly any buyer of Indian livestock in the world market due to the endemicity of several contagious and communicable infectious diseases; and as per USDA, foot and mouth disease (FMD) is a significant hurdle for the export of India’s animal products10. FMD has not only marred the production leading to direct loss of more than 4.45 Billion US$ annually11,12 but also prohibits export of livestock products from India13. Moreover, one cannot export/ transport beef or cow progeny for beef even among Indian states6.
Illegal slaughter of males for beef may also be a cause of reduced male population. However, it is certainly not possible in many parts of India, not only due to ban on cow (and its progeny) slaughter in most parts of India6 but also due to social activists.  Scholars expressed their views saying that “though the ban on beef is expected to harm Indian economy farmers have to learn to live with it”14.
Then? As advised by the theorists, academicians, and wise animal husbandry advisors the farmers of India have evolved the means to solve the problem of un-useful male calves.  Having hardly any option and already poverty-stricken farmers of India opted to be cruel to male cattle. Now many of them are the cruel cow worshiping people of India, do not allow males to live for long by depriving them of the love of their mothers, forcing them to die fasting in their infanthood. It would not have been so cruel if they could have been scientifically slaughtered for meat or they have not been allowed to born through the use of sexed semen. Many of the cruelly killed calves would have turned to be the beautiful bulls, like the one painted on the National symbol of the country.
Role of Diseases in killing the cow in India
It is not only FMD, one of the most contagious diseases leading to a huge loss in livestock but other diseases including haemorrhagic septicaemia (HS), black quarter (BQ), Johne’s diseases (JD) and anthrax affecting mostly production stocks leads to unaccountable direct losses and indirect losses. According to more than a decade old estimates, FMD and HS lead to loss of more than 20 billion and 1 billion IR, respectively11,15. Losses due to FMD per animals have been estimated around 12,532 IR per animal, for HS losses may reach to even as high as >37,000 IR per animal due to high mortality16. The figures may not be alarming for developed word but for India where three in four rural households (real dairy farmers) earn less than Rs.5, 000 in a month17 it is not less than a death warrant. The pain of animal disease can be felt only putting one in place of poor farmers.
According to official data from the department of Animal Husbandry, Dairying and Fisheries, India, and Project Directorate18 on FMD, Mukteshwar19, India, we still see these diseases haunting cattle and other bovines in India at a regular interval (Fig. 2). Besides FMD, HS, BQ and JD, there are several infectious and non-infectious diseases in India in bovines including anthrax, brucellosis, mastitis, surra (trypanosomiasis), theileriosis, babesiosis, gastrointestinal parasites, infertility, and repeat breeding adding to drudgery to dairy farmers of the country. Among the infectious diseases, major killers of cattle in India include FMD, HS, BQ, anthrax, fascioliasis and amphistomiasis, babesiosis and trypanosomiasis (Table 1). More to add in problems of dairy farmers are; the ever increasing pollution making drinkable water and breathable air scarce and eloping of grazing lands. After all, ever swelling human population in India is competing for concentrate ration available earlier to animals and need for grains, vegetables, fruits, and pulses created non-availability of land to grow fodder for animals.
For the control of infectious disease in cattle in India, many millions are invested every year without a reasonable gain, reasons may be many but it is only the policy lapse for the poor. Policy makers are not ready to accept the mistakes, review their mistakes, or involve those who can honestly input. The system is so that day by day it is getting thicker darkness for innovators, thinkers, and workers.
Real and non-real hurdles in cattle disease control in India
It is always a plea of authorities engaged in animal disease control that our socioeconomic conditions and regulations are the major hindrances for effective disease control. Due to the high endemicity of many of the infections, large population and marginal resources, India cannot opt for the disease stamping out (eradication) policy and is left with only one option to control the diseases through vaccination in phased manner20. Several insufficiencies have been enlisted by agencies engaged in animal diseases control21,22 including lack of a sufficient number of trained personnel in epidemiology, lack of trained technical support, lack of physical infrastructure, lack of coordination among state and central agencies, gross under-reporting of diseases and lack of economical diagnostics etc. To meet out several of the deficiencies Government of India allocated22 13.17 billion IR for National Project on Cattle and Buffalo Breeding to strengthen semen centres and artificial insemination (AI) services and 17.6 billion IR for National Dairy Plan for balanced feeding practices and to strengthen veterinary and animal health services (>55000 facilities). Besides, the huge investment with 100% Central Govt funding on National control program on Brucellosis was initiated in the year 2010 and FMD control program (FMD-CP) started in 10th Plan (investing about 40 billion IR/per year) to attain the freedom from the disease with vaccination status by 202022.
Though the ban on cow slaughter is often cited by the authorities as a hindrance in control of contagious diseases of cows including FMD, brucellosis, and JD etc, it has never been proved. However, as per FAO20 to eradicate you need a stamping out policy but for control of such disease only effective vaccination policy is sufficient. Moreover, the cow slaughter ban legislations hardly prevent judicious stamping out of animals having contagious diseases and its provisions are not to apply to diseased, or under experimentation cows6.
In the vision plan of India’s animal disease monitoring agency21, deficiency of trained people in epidemiology has been cited as the major hurdle. To address the problem the ICAR-National Institute of Veterinary Epidemiology and Disease Informatics has been created and is functional since October 2013 at Bengaluru, however its role in training can be perceived by the fact that even up to date none of the specialists posted in the Institute has opted to be the faculty of the Epidemiology in the same organization and the faculty of Epidemiology (stationed at ICAR-Indian Veterinary Research Institute, Izatnagar) is still struggling to increase their numbers above three since last several years. Though we need trained personnel in epidemiology there are only two seats for post-graduation and none for Ph.D.  in the leading institute of veterinary sciences in India (http://www.ivri.nic.in/). The apathy of the officials reveals that either the weakness pointed out was not real or will power to control the diseases is lacking or diseases are needed to be maintained to fetch the government funding year after year.
Gross under-reporting of diseases and lack of economical diagnostics21 was proposed to be another hurdle in animal disease control. It might be true for the diseases difficult to be clinically diagnosed as brucellosis but not for the HS and FMD (could be diagnosed even by the animal owners). The question is now who is responsible for under-reporting of the diseases? Farmers or veterinarians infield or the authorities. In Karnataka in 2012-13 target of more than 80% vaccination for FMD was achieved but the number of outbreaks of FMD was almost 5 times more than reordered in 2008-09 when about 50% animals were vaccinated23. The whole responsibility of the occurrence of FMD outbreaks in 2013 all over the FMD control program (FMDCP) regions was bowed on the shoulders of veterinarians and many of them were harshly punished by the animal husbandry departments of different states for not vaccinating the animals. However, the undulating trends of FMD occurrence year after year even on the implementation of FMDCP (Fig. 2) tells an altogether different story of the ineffectiveness of the vaccination or the vaccine. Similar trends have been reported from non-vaccinated populations or populations under non-compulsory vaccination in several countries24. Protection observed against FMD in animals in FMDCP areas in different years might be just the result of natural infection only, leading to immunity for about 18 months24 and may not be the outcome of the vaccination done. At one hand vaccinators and veterinarians reporting the disease were and still being punished in many parts of India forgetting the success story of eradication of FMD from Japan where the veterinarian who reported the first case was nationally awarded25.
It is the fact that all the vaccines used in FMDCP are produced in the private sector and vaccine batches are released even without testing for the primary qualities of the vaccine25,26. Many of the batches of FMD vaccine tested and used in FMDCP were reported substandard27. The report establishing substandard of the vaccine batches was condemned by all the authorities (black sheep) in India even without testing a single batch to protect the Indian vaccine industry24,26-30. Punishing the vaccinators for the wrong cause and protecting the vaccine producers for supplying the substandard vaccine29 may not be the policy of India Government but of a few black sheep in the system operating to keep India to toil. However, those black sheep are not black in scientific circles; they are the most shining one getting all the benefits, perks and facilities, before time promotions, an extension of services even after retirement and top governing posts in the Country.
Sometimes it is said that there is a change in virus but it has never been proved so great to make the vaccines ineffective. It might have been earlier when the FMD vaccines were less pure. Using those earlier vaccines most of the European and many Asian countries controlled FMD and then eradicated FMD. Nowadays FMD vaccines are purer and more potent than their forerunners and give at least partial protection even if the virus match is not perfect. In   cattle, a single dose begins to protect from the disease by the 4th day of vaccination, although in pigs it takes longer, about 21 days31.
In-coordination among different agencies implementing and monitoring disease control programmes
Lack of coordination is a long-standing problem leading to failure of many policies in India. The fact can be appreciated by the reporting of different numbers of the outbreak of FMD for the same year by the two agencies of the Central Government18, 19(Fig. 3). The major setback may be anticipated on trying to correlate the data from different states and the central agencies.

Volumes of praise have been written for veterinarians and veterinary scientists and at least something has been done too. However, general conception is a bit different. Dalal and co-workers32 while narrating about the implementation of the livestock insurance schemes in India write “--veterinarians also pose a threat to the viability of the scheme -----”. The picture is very gloomy, if vaccination fails it is the only veterinarian who suffers at the hand of not only animal owners but also through departmental punishment for not keeping the vaccine properly or not vaccinating the animals on time and in proper manner despite of the fact that most of the vaccine batches are substandard26-28 but enquiry committees always favour the vaccine producers for one or other reasons29. Then what is the real role of an educated veterinarian in the development of animal husbandry?
Vaccine quality control and quality monitoring
Though there are all the concerned agencies to monitor the quality of vaccine and drugs in India for human as well as animals, more than 25% available in India are fake and India has been found as the producer of >75% of word’s counterfeit drugs33. Therefore, it is not surprising to witness no cure after treatment and no protection after vaccination in India. At almost every instance of seizing of counterfeit and substandard medicine and vaccines the safe way is granted to culprits after testing and retesting and lengthy tortuous legal procedures. The monopoly in vaccine testing for animals granted to one man in India may also be interesting to observe. Despite of the suggestions and requests from several corners26-30, 34 the monopoly has been maintained. The drug controller general of India (DCGI) has hardly any foolproof system to monitor the quality of medicine and vaccine flooded in the Indian market. It might be either lack of will to ensure quality medicines and vaccines to Indians, or it may be its inability to maintain its integrity and ability for monitoring the quality or may be something else as pointed in earlier discussions26-30. Further, the undercover policy of India for rewarding the traitors, who advocate and ensure protection for the firms producing substandard vaccines, with extension in services, appointing them at the helm of academic and administrative affairs, Vice-chancellors, and punishing to truthful vaccine quality inspectors30 is certain to ruin poor farmers of India. It is a known fact that power corrupts, what will happen when power is showered on corrupt people, only an alien can save Indian farmers. In wait of an alien Indians believe in the incarnation of God in every era to curb the corruption or to redefine the corruption and truth.
Conclusion
Still the answer to the question “who is the killer of holy the cow in India” is obscure. It might be due to our failure at many fronts to protect the cow and its health, to make the dairy farming a profitable venture, and after all failure to love the cow and our nation. The love flourishes in the hearts residing in bodies with a full stomach, where masses are deprived of education, food, health and other basic amenities due to skewed policies we cannot pulse the love, the justice, and even the conscience. Deprivation of humanity from basic amenities convert populations into masses of criminals, the poor Indian farmer has no other way then to cruelly kill the male calves of a cow to get rid of them. The Indian farmer is waiting for an opportunity (O), people say it is one in ‘Today’ and three in ‘Tomorrow’.
References
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