देवरहा_बाबा
भारत के उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद को एक योगी, सिद्ध महापुरुष एवं सन्तपुरुष ने अपने नाम से ख्याति दिलाई। कहा जाता है कि इनके दर्शन मात्र से जीवन सफल हो जाता है। वह अपने चमत्कार से हजारों लोगों को तृप्त करते रहे।
लोगों का विश्वास है कि वे दो शताब्दी से भी अधिक जिए। बाबा के संपूर्ण जीवन के बारे में अलग-अलग मत है। कुछ लोग उनका जीवन 250 साल तो कुछ लोग 500 साल मानते हैं। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें अपने बचपन में देखा था। उनके अनुसार इस बात के पुख्ता सबूत थे कि बाबा की आयु बहुत अधिक थी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक बैरिस्टर के अनुसार उनका परिवार 7 पीढ़ियों से बाबा का आशीर्वाद लेता रहा था। 19 जून, 1990 को योगिनी एकादशी के दिन अपने प्राण त्यागने वाले बाबा के जन्म के बारे में आज तक संशय है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि वह करीब 900 साल तक जिन्दा रहे थे।
देवरहा बाबा को खेचरी मुद्रा पर सिद्धि थी, जिस कारण वे अपनी भूख और आयु पर नियंत्रण प्राप्त कर लेते थे। बाबा का आशीर्वाद देने का ढंग निराला था। मचान पर बैठे-बैठे ही अपना पैर जिसके सिर पर रख दिया, वह धन्य हो गया। श्रद्धालुओं के कथनानुसार बाबा अपने पास आने वाले प्रत्येक व्यक्ति से बड़े प्रेम से मिलते थे और सबको कुछ न कुछ प्रसाद अवश्य देते थे।
प्रसाद देने के लिए बाबा अपना हाथ ऐसे ही मचान के खाली भाग में रखते थे और उनके हाथ में फल, मेवे या कुछ अन्य खाद्य पदार्थ आ जाते थे, जबकि मचान पर ऐसी कोई भी वस्तु नहीं रहती थी।
श्रद्धालुओं को कौतुहल होता था कि आखिर यह प्रसाद बाबा के हाथ में कहां से और कैसे आता है। जनश्रूति के मुताबिक वह खेचरी मुद्रा की वजह से आवागमन से कहीं भी कभी भी चले जाते थे। उनको जानवरों की भाषा समझ में आती थी। खतरनाक जंगली जानवरों को वह पल भर में काबू कर लेते थे।
बाबा की सिद्धियों के बारे में हर तरफ खूब चर्चा होती थी। कहते हैं कि जॉर्ज पंचम जब भारत आए तो उनसे मिले। जॉर्ज को उनके भाई ने देवरहा बाबा के बारे में बताया था कि भारत में सिद्ध योगी पुरुष रहते हैं। उन्होंने जॉर्ज से कहा था कि अगर भारत जाओ तो किसी और से मिलो या न मिलो, देवरिया जिले में दियरा इलाके में, मइल गांव जाकर, देवरहा बाबा से जरूर मिलना।
भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को बचपन में जब उनकी मां बाबा के पास ले गईं, तो उन्होंने कह दिया था कि यह बच्चा बहुत ऊंची कुर्सी पर बैठेगा। राष्ट्रपति बनने पर डॉ राजेंद्र प्रसाद ने बाबा को एक पत्र लिखकर कृतज्ञता प्रकट की था।
कोई 1987 के जून महीने की बात है। देवरहा बाबा का वृंदावन में यमुना पार पर डेरा जमा हुआ था। प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बाबा के दर्शन करने के आतुर थे। अधिकारियों में उनकी सुरक्षा को लेकर हलचल मची हुई थी। प्रधानमंत्री के आगमन का ब्लू प्रिंट तैयार हो चुका था। आला अफसरों ने हैलीपैड बनाने के लिए वहां लगे एक बबूल के पेड़ की डाल काटने के निर्देश दिए। यह सुन कर बाबा आग-बबूला हो गये।
“तुम यहां अपने पीएम को लाओगे, उनकी प्रशंसा पाओगे। पीएम का नाम भी होगा कि वह साधु-संतों के पास जाता है, लेकिन इसका दंड तो बेचारे पेड़ को भुगतना पड़ेगा वह मुझसे इस बारे में पूछेगा तो मैं उसे क्या जवाब दूंगा? यह पेड़ होगा तुम्हारी निगाह में, मेरा तो यह सबसे पुराना साथी है। दिन-रात मुझसे बतियाता है। यह पेड़ नहीं काटा जाएगा।”
अफसरों ने अपनी दुविधा प्रकट की बाबा ने ही उन्हें सांत्वना दी और कहा कि फिक्र मत करो, अब तुम्हारे प्रधानमंत्री का कार्यक्रम टल जाएगा। तुम्हारे पीएम का कार्यक्रम मैं कैन्सिल करा देता हूं। दो घंटे बाद ही पीएम ऑफिस से रेडियोग्राम आ गया कि प्रोग्राम स्थगित हो गया है। कुछ हफ्तों बाद राजीव गांधी वहां स्वयं बाबा के दर्शन करने के लिए आए, लेकिन पेड़ नहीं कटा। इसे क्या कहेंगे चमत्कार या संयोग?
आपातकाल के बाद हुए चुनावों में जब इंदिरा गांधी को पराजय का सामना करना पड़ा, तो वह भी देवरहा बाबा के चरणों में आईं। ऐसा लोग कहते हैं कि देवरहा बाबा ने अपने हाथ के पंजे से उन्हें आशीर्वाद दिया। उसी के बाद से इंदिरा गांधी ने कांग्रेस का चुनाव चिह्न हाथ का पंजा निर्धारित कर दिया। इसके बाद 1980 में इंदिरा के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत प्राप्त किया और वह देश की प्रधानमंत्री बनीं।
देवरहा बाबा भगवान राम के परम भक्त थे। देवरहा बाबा के मुख में सदा राम नाम का वास था। वह भक्तों को राम मंत्र की दीक्षा दिया करते थे। वह सदा सरयू के किनारे रहा करते थे। उनका कहना थाः
एक लकड़ी ह्रदय को मानो दूसर राम नाम हिचानो,
राम नाम नित उर पे मारो ब्रह्म दिखे संशय न जानो !!
देवरहा बाबा जनसेवा तथा गोसेवा को सर्वोपरि-धर्म मानते थे। प्रत्येक दर्शनार्थी को लोगों की सेवा, गोमाता की रक्षा करने तथा भगवान की भक्ति में रत रहने की प्रेरणा देते थे। देवरहा बाबा श्री राम और श्री कृष्ण को एक मानते थे और भक्तों को कष्ट से मुक्ति के लिए कृष्ण मंत्र भी देते थे।
उनको जानवरों की भाषा समझ में आती थी। खतरनाक जंगली जानवरों को वह पल भर में काबू कर लेते थे। उनके भक्त उन्हें दया का महासमुंदर बताते हैं। जो भी आया, बाबा की भरपूर दया लेकर गया। वर्षाजल की भांति बाबा का आशीर्वाद सब पर बरसा और खूब बरसा।
मान्यता थी कि बाबा का आशीर्वाद हर मर्ज की दवाई है। कहा जाता है कि बाबा देखते ही समझ जाते थे कि सामने वाले का सवाल क्या है। दिव्यदृष्ठि के साथ तेज नजर, कड़क आवाज, दिल खोल कर हंसना, खूब बतियाना बाबा की आदत थी। याददाश्त इतनी कि दशकों बाद भी मिले व्यक्ति को पहचान लेते और उसके दादा-परदादा तक का नाम व इतिहास तक बता देते।
पंद्रह जून 1990 में योगिनी एकादशी का दिन और घनघोर बादल छाए थे। मौसम अचानक तेज आंधी- तूफान ले आई। यमुना नदी जैसे समुंदर को मात करने पर उतावली थी। लहरों का उछाल बाबा की मचान तक पहुंचने लगा और इन्हीं सबके बीच शाम चार बजे बाबा का शरीर स्पंदनरहित हो गया।
बाबा ब्रह्मलीन हो गए। उन्हें मचान के पास ही यमुना की पवित्र धारा में जल समाधि दी गई। जन स्वास्थ्य के लिए प्रेरित उनकी योगिक क्रियाएं, आध्यात्मिक उन्नति को समर्पित उनकी तपस्या और ध्यान अनंतकाल तक सबके लिए प्रेरणा बना रहेगा, ऐसे सिद्ध संतों का सभी को आर्शीवाद मिलता रहे।
उनके आशीर्वाद को आतुर सिर्फ़ आम लोग ही नहीं, बल्कि कई विशिष्ट लोग भी थे। उनके भक्तों में जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजेन्द्र प्रसाद, महामना मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन,अशोक सिंघल जैसी महान विभूतियां रही हैं।
अत्यंत सहज, सरल और सुलभ बाबा के सानिध्य में जैसे वृक्ष, वनस्पति भी अपने को आश्वस्त अनुभव करते रहे। कुछ ऐसे ही थे चमत्कारिक, अलौकिक रहस्यमई ‘देवरहा बाबा’।
भारत के उत्तर प्रदेश के देवरिया जनपद को एक योगी, सिद्ध महापुरुष एवं सन्तपुरुष ने अपने नाम से ख्याति दिलाई। कहा जाता है कि इनके दर्शन मात्र से जीवन सफल हो जाता है। वह अपने चमत्कार से हजारों लोगों को तृप्त करते रहे।
लोगों का विश्वास है कि वे दो शताब्दी से भी अधिक जिए। बाबा के संपूर्ण जीवन के बारे में अलग-अलग मत है। कुछ लोग उनका जीवन 250 साल तो कुछ लोग 500 साल मानते हैं। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने उन्हें अपने बचपन में देखा था। उनके अनुसार इस बात के पुख्ता सबूत थे कि बाबा की आयु बहुत अधिक थी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक बैरिस्टर के अनुसार उनका परिवार 7 पीढ़ियों से बाबा का आशीर्वाद लेता रहा था। 19 जून, 1990 को योगिनी एकादशी के दिन अपने प्राण त्यागने वाले बाबा के जन्म के बारे में आज तक संशय है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि वह करीब 900 साल तक जिन्दा रहे थे।
देवरहा बाबा को खेचरी मुद्रा पर सिद्धि थी, जिस कारण वे अपनी भूख और आयु पर नियंत्रण प्राप्त कर लेते थे। बाबा का आशीर्वाद देने का ढंग निराला था। मचान पर बैठे-बैठे ही अपना पैर जिसके सिर पर रख दिया, वह धन्य हो गया। श्रद्धालुओं के कथनानुसार बाबा अपने पास आने वाले प्रत्येक व्यक्ति से बड़े प्रेम से मिलते थे और सबको कुछ न कुछ प्रसाद अवश्य देते थे।
प्रसाद देने के लिए बाबा अपना हाथ ऐसे ही मचान के खाली भाग में रखते थे और उनके हाथ में फल, मेवे या कुछ अन्य खाद्य पदार्थ आ जाते थे, जबकि मचान पर ऐसी कोई भी वस्तु नहीं रहती थी।
श्रद्धालुओं को कौतुहल होता था कि आखिर यह प्रसाद बाबा के हाथ में कहां से और कैसे आता है। जनश्रूति के मुताबिक वह खेचरी मुद्रा की वजह से आवागमन से कहीं भी कभी भी चले जाते थे। उनको जानवरों की भाषा समझ में आती थी। खतरनाक जंगली जानवरों को वह पल भर में काबू कर लेते थे।
बाबा की सिद्धियों के बारे में हर तरफ खूब चर्चा होती थी। कहते हैं कि जॉर्ज पंचम जब भारत आए तो उनसे मिले। जॉर्ज को उनके भाई ने देवरहा बाबा के बारे में बताया था कि भारत में सिद्ध योगी पुरुष रहते हैं। उन्होंने जॉर्ज से कहा था कि अगर भारत जाओ तो किसी और से मिलो या न मिलो, देवरिया जिले में दियरा इलाके में, मइल गांव जाकर, देवरहा बाबा से जरूर मिलना।
भारत के प्रथम राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद को बचपन में जब उनकी मां बाबा के पास ले गईं, तो उन्होंने कह दिया था कि यह बच्चा बहुत ऊंची कुर्सी पर बैठेगा। राष्ट्रपति बनने पर डॉ राजेंद्र प्रसाद ने बाबा को एक पत्र लिखकर कृतज्ञता प्रकट की था।
कोई 1987 के जून महीने की बात है। देवरहा बाबा का वृंदावन में यमुना पार पर डेरा जमा हुआ था। प्रधानमंत्री राजीव गांधी को बाबा के दर्शन करने के आतुर थे। अधिकारियों में उनकी सुरक्षा को लेकर हलचल मची हुई थी। प्रधानमंत्री के आगमन का ब्लू प्रिंट तैयार हो चुका था। आला अफसरों ने हैलीपैड बनाने के लिए वहां लगे एक बबूल के पेड़ की डाल काटने के निर्देश दिए। यह सुन कर बाबा आग-बबूला हो गये।
“तुम यहां अपने पीएम को लाओगे, उनकी प्रशंसा पाओगे। पीएम का नाम भी होगा कि वह साधु-संतों के पास जाता है, लेकिन इसका दंड तो बेचारे पेड़ को भुगतना पड़ेगा वह मुझसे इस बारे में पूछेगा तो मैं उसे क्या जवाब दूंगा? यह पेड़ होगा तुम्हारी निगाह में, मेरा तो यह सबसे पुराना साथी है। दिन-रात मुझसे बतियाता है। यह पेड़ नहीं काटा जाएगा।”
अफसरों ने अपनी दुविधा प्रकट की बाबा ने ही उन्हें सांत्वना दी और कहा कि फिक्र मत करो, अब तुम्हारे प्रधानमंत्री का कार्यक्रम टल जाएगा। तुम्हारे पीएम का कार्यक्रम मैं कैन्सिल करा देता हूं। दो घंटे बाद ही पीएम ऑफिस से रेडियोग्राम आ गया कि प्रोग्राम स्थगित हो गया है। कुछ हफ्तों बाद राजीव गांधी वहां स्वयं बाबा के दर्शन करने के लिए आए, लेकिन पेड़ नहीं कटा। इसे क्या कहेंगे चमत्कार या संयोग?
आपातकाल के बाद हुए चुनावों में जब इंदिरा गांधी को पराजय का सामना करना पड़ा, तो वह भी देवरहा बाबा के चरणों में आईं। ऐसा लोग कहते हैं कि देवरहा बाबा ने अपने हाथ के पंजे से उन्हें आशीर्वाद दिया। उसी के बाद से इंदिरा गांधी ने कांग्रेस का चुनाव चिह्न हाथ का पंजा निर्धारित कर दिया। इसके बाद 1980 में इंदिरा के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने प्रचंड बहुमत प्राप्त किया और वह देश की प्रधानमंत्री बनीं।
देवरहा बाबा भगवान राम के परम भक्त थे। देवरहा बाबा के मुख में सदा राम नाम का वास था। वह भक्तों को राम मंत्र की दीक्षा दिया करते थे। वह सदा सरयू के किनारे रहा करते थे। उनका कहना थाः
एक लकड़ी ह्रदय को मानो दूसर राम नाम हिचानो,
राम नाम नित उर पे मारो ब्रह्म दिखे संशय न जानो !!
देवरहा बाबा जनसेवा तथा गोसेवा को सर्वोपरि-धर्म मानते थे। प्रत्येक दर्शनार्थी को लोगों की सेवा, गोमाता की रक्षा करने तथा भगवान की भक्ति में रत रहने की प्रेरणा देते थे। देवरहा बाबा श्री राम और श्री कृष्ण को एक मानते थे और भक्तों को कष्ट से मुक्ति के लिए कृष्ण मंत्र भी देते थे।
उनको जानवरों की भाषा समझ में आती थी। खतरनाक जंगली जानवरों को वह पल भर में काबू कर लेते थे। उनके भक्त उन्हें दया का महासमुंदर बताते हैं। जो भी आया, बाबा की भरपूर दया लेकर गया। वर्षाजल की भांति बाबा का आशीर्वाद सब पर बरसा और खूब बरसा।
मान्यता थी कि बाबा का आशीर्वाद हर मर्ज की दवाई है। कहा जाता है कि बाबा देखते ही समझ जाते थे कि सामने वाले का सवाल क्या है। दिव्यदृष्ठि के साथ तेज नजर, कड़क आवाज, दिल खोल कर हंसना, खूब बतियाना बाबा की आदत थी। याददाश्त इतनी कि दशकों बाद भी मिले व्यक्ति को पहचान लेते और उसके दादा-परदादा तक का नाम व इतिहास तक बता देते।
पंद्रह जून 1990 में योगिनी एकादशी का दिन और घनघोर बादल छाए थे। मौसम अचानक तेज आंधी- तूफान ले आई। यमुना नदी जैसे समुंदर को मात करने पर उतावली थी। लहरों का उछाल बाबा की मचान तक पहुंचने लगा और इन्हीं सबके बीच शाम चार बजे बाबा का शरीर स्पंदनरहित हो गया।
बाबा ब्रह्मलीन हो गए। उन्हें मचान के पास ही यमुना की पवित्र धारा में जल समाधि दी गई। जन स्वास्थ्य के लिए प्रेरित उनकी योगिक क्रियाएं, आध्यात्मिक उन्नति को समर्पित उनकी तपस्या और ध्यान अनंतकाल तक सबके लिए प्रेरणा बना रहेगा, ऐसे सिद्ध संतों का सभी को आर्शीवाद मिलता रहे।
उनके आशीर्वाद को आतुर सिर्फ़ आम लोग ही नहीं, बल्कि कई विशिष्ट लोग भी थे। उनके भक्तों में जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजेन्द्र प्रसाद, महामना मदन मोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन,अशोक सिंघल जैसी महान विभूतियां रही हैं।
अत्यंत सहज, सरल और सुलभ बाबा के सानिध्य में जैसे वृक्ष, वनस्पति भी अपने को आश्वस्त अनुभव करते रहे। कुछ ऐसे ही थे चमत्कारिक, अलौकिक रहस्यमई ‘देवरहा बाबा’।
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