Saturday, November 23, 2019

गाय गोहरी पर्व

गाय गोहरी पर्व

https://www.bhaskar.com/mp/indore/news/gowardhan-pooja-tradition-related-with-cow-on-diwali-jhabua-mp-01674331.html


गोवर्धन पूजा / सजी गायों की पहले की पूजा, फिर पेट के बल लेटे मन्नतधारियों के ऊपर से गुजरीं गोमाता


झाबुआ से 12 किमी ग्राम खरडू बड़ी में गाय गौहरी का पर्व धूमधाम से मनाया गयाभगवान की पूजा के बाद गयों की पूजा की गई, बड़ी संख्या में लोग पहुंचे

Dainik Bhaskar

Oct 28, 2019, 05:16 PM IST

झाबुआ. (पंकज मालवीय) देशभर में प्रसिद्ध झाबुआ जिले का गाय गोहरी पर्व सोमवार को धूमधाम से मनाया गया। जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर दूर ग्राम खरडू बड़ी में ग्रामीण अपनी गयों को सजाया और हिडी गीत गाते हुए गोवर्धन पूजा की। इस दौरान मन्नतधारी जमीन पर लेट गए और सजी-धजी गौमाता उनके ऊपर से गुजरीं। वर्षों पुरानी परंपरा का इस दीवाली पर भी ग्रामीणों ने निर्वहन किया।

4 से 5 बार दोहराया जाता है सिलसिला
मन्नत पूरी होने पर दिवाली के दूसरे दिन लोग अपनी गायों को सजाकर मंदिर पहुंचते हैं। यहां भगवान की पूजा के बाद गायों को पूजा जाता है। इसके बाद मन्नत लेने वाले लोग मैदान में पेट के बल लेट जाते हैं। इसके बाद गायों का झुण्ड उनकी पीठ पर चलता हुआ निकल जाता है। ये सिलसिला 4-5 बार दोहराया जाता है।

गाजे -बाजे के साथ लाते है मंदिर
गाय जौहरी पर्व के लिए लोगों ने पहले अपनी गाय का श्रृंगार कर किया और फिर चारा खिलाया। इसके बाद गांव के लोग इकट्ठे होकर गाजे बाजे के साथ मंदिर पहुंचे। गाय जौहरी को देखने के लिए बड़ी संख्या में लोग इकट्ठा हुए। इसे आप आस्था कहें या अंधविश्वास लेकिन सच्चाई ये है कि इस पर्व के दौरान मैदान पर लेटे हुए लोगों के ऊपर से कई गायें दौड़ती हुई निकल जाती है, लेकिन उन्हें कोई चोट नहीं लगती। यहां के आदिवासी समाज में ये मान्यता है कि गाय के पैरों के नीचे बैकुंठ होता है।

ऐसे शुरू हुई परंपरा
झाबुआ के राजा गोपालसिंह ने श्री गोवर्धननाथजी की पदारावनी की स्थापना की थी। उस समय से गोवर्धन पूजा की परंपरा चली आ रही है। दीपावली के अगले दिन पड़वा पर वैष्णव संप्रदाय हवेली की परिक्रमा लगाते थे। उस समय परिक्रमा में करीब 300 गायें शामिल होती थी। धीरे-धीरे परिक्रमा में श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ती गई। ग्रामीण मन्नत पूरी होने पर परिक्रमा के दौरान लेटकर गाय के पैर को शरीर पर रखवाते हैं। कुछ वर्ष पहले तक गाय गोहरी के दिन एक-दूसरे पर पटाखे चलाते थे। परिक्रमा के दौरान ग्रामीण और युवा आमने-सामने से एक दूसरे पर पटाखे फेंकते थे। जिसमें लोगों को चोट तक आ जाती थी। सुरक्षा की दृष्टि से प्रशासन ने इस दिन पटाखों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध लगा दिया।

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