Sunday, July 26, 2020

Jadhav - The Forest Man of India

Jadhav - The Forest Man of India

इन 35 सालो में जाधव ने 1360 एकड़ का जंगल बिना किसी सरकारी मदद के लगा डाला ...... क्या आप भरोसा करेंगे के एक अकेले आदमी के लगाये जंगल में 5 बंगाल टाइगर,100 से ज्यादा हिरन,जंगली सुवर, 150 जंगली हाथियों का झुण्ड , गेंडे और अनेक जंगली पशु घूम रहे हैं,अरे हाँ सांप भी जिससे इस अद्भुत नायक को जन्म दिया।
“ब्रह्मपुत्र” नदी को पूर्वोत्तर का अभिशाप भी कहा जाता है। जब यह आसाम तक पहुँचती है तो अपने साथ लम्बी दूरी से बहा कर लायी हुई मिटटी, रेत औरपहाड़ी पथरीले अवशेष विशाल “द्रव मलबे” के रूप में लाती है, जिससे नदी की गहराई अपेक्षाकृत कम हो चौड़ाई में फैल किनारे के गांवो को प्रभावित करती है। मानसून में इसके चौड़े पाट हर साल पेड़ पौधो, हरियाली और गांवो को अपने संग बहा ले जाते है। ब्रह्मपुत्र नदी का विशालता से फैला हरियाली रहित, बंजर रेतीला तट लगभग रेगिस्तान लगता था।
अब आते हैं हमारे कहानी के नायक “जाधव पियेंग” पर।वर्ष 1979 में जाधव 10 वी परीक्षा देने के बाद अपने गाँव में ब्रह्मपुत्र नदी के बाढ़ का पानी उतरने पर इसके बरसाती भीगे रेतीले तट पर घूम रहे थे।

तब ही उनकी नजर लगभग 100 मृत सापो के विशाल गुच्छे पर पड़ी। आगे बढ़ते गए तो पूरा नदी का किनारा मरे हुए जीव जन्तुओं से अटा पड़ा एक मरघट सा था। मृत जानवरों के शव के कारण पैर रखने की जगह नही थी।इस दर्दनाक सामूहिक निर्दोष मौत के दृश्य ने जाधव के किशोर मन को झकझोर दिया।
हज़ारो की संख्या में निर्जीव जीव जन्तुओ की निस्तेज फटी मुर्दा आँखों ने जाधव को कई रात सोने न दिया।गाँव के ही एक आदमी ने चर्चा के दौरान विचलित जाधव से कहा जब पेड़ पौधे ही नही उग रहे है तो नदी के रेतीले तटो पर जानवरों को बाढ़ से बचने आश्रय कहाँ मिले? जंगलो के बिना इन्हें
भोजन कैसे मिले?
बात जाधव के मन में पत्थर की लकीर बन गयी कि जानवरों को बचाने पेड़ पौधे लगाने होंगे।

50 बीज और 25 बांस के पेड़ लिए 16 साल का जाधव पहुंच गया नदी के रेतीले किनारे पर रोपने।ये आज से 35 साल पुरानी बात है।उस दिन का दिन था और आज का दिन क्या आप कल्पना कर सकते है कि
इन 35 सालो में जाधव ने 1360 एकड़ का जंगल बिना किसी सरकारी मदद के लगा डाला।

क्या आप भरोसा करेंगे के एक अकेले आदमी के लगाये जंगल में 5 बंगाल टाइगर,100 से ज्यादा हिरन,जंगली सुवर, 150 जंगली हाथियों का झुण्ड , गेंडे और अनेक जंगली पशु घूम रहे हैं,अरे हाँ सांप भी जिससे इस
अद्भुत नायक को जन्म दिया।
जंगलो का क्षेत्रफल बढाने सुबह 9 बजे से पांच किलोमीटर साइकल से जाने के बाद,नदी पार करते और दूसरी तरफ वृक्षारोपण कर फिर सांझ ढले नदी पार कर साइकल 5 किलोमीटर तय कर घर पहुँचते। इनके लगाये पेड़ो में कटहल, गुलमोहर,अन्नानाश, बांस, साल, सागौन, सीताफल, आम,
बरगद, शहतूत, जामुन, आडू और कई औषधीय पौधे हैं।लेकिन सबसे आश्चर्यजनक और दुर्भाग्यपूर्ण तथ्य यह है कि इस असम्भव को सत्य कर दिखाने वाले साधक से महज़ पांच साल पहले तक देश अनजान था।ये लौहपुरुष अपने धुन में अकेला आसाम के जंगलो में साइकल में पौधो से भरा एक थैला लिए
अपने बनाए जंगल में गुमनाम सफर कर रहा था।सबसे पहले वर्ष 2010 में देश की नजर में आये जब वाइल्ड फोटोग्राफर “#जीतू_कलिता” ने इन पर डाक्यूमेंट्री फिल्म बनाई “The Molai Forest”
यह फिल्म देश के नामी विश्वविद्यालयों में दिखाई गयी। दूसरी फिल्म #आरती_श्रीवास्तव की “#Foresting_Life”
जिसमें जाधव की जिन्दगी के अनछुए पहलुओं और परेशानियों को दिखाया। तीसरी फिल्म “#Forest_Man” जो विदेशी फिल्म महोत्सव में भी काफी सराही गई।
एक अकेला व्यक्ति वन विभाग की मदद के बिना, किसी सरकारी आर्थिक सहायता के बगैर इतने पिछड़े इलाके से कि जिसके पास पहचान पत्र के रूप में
“राशन कार्ड” तक नहीं है ने हज़ारो एकड़ में फैला पूरा जंगल खड़ा कर दिया।जानने वाले सकते में आ गए उनके नाम पर आसाम के इन जंगलो को “मिशिंग जंगल” कहते हैं (जाधव आसाम की मिशिंग जनजाति से हैं)। जीवन यापन करने के लिए इन्होने गाय पाल रखी हैं। शेरों द्वारा आजीविका के साधन उनके
पालतू पशुओं को खा जाने के बाद भी जंगली जानवरों के प्रति इनकी करुणा कम न हुई। शेरों ने मेरा नुकसान किया क्योंकि वो अपनी भूख मिटाने के लिए खेती करना नहीं जानते।

आप जंगल नष्ट करोगे वो आपको नष्ट करेंगे।एक साल पहले महामहिम “राष्ट्रपति” द्वारा देश के चतुर्थ
सर्वोच्च नागरिक सम्मान “पद्मश्री” से अलंकृत होने वाले जाधव आज भी आसाम में बांस के बने एक कमरे के छोटे से कच्चे झोपड़े में अपनी पुरानी में दिनचर्या लीन हैं। तमाम सरकारी प्रयासों, वृक्षारोपण के नाम पर लाखो रुपये के पौधों की खरीदी करके भी ये पर्यावरण, वन-विभाग वो मुकाम हासिल
न कर पाये जो एक अकेले की इच्छाशक्ति ने कर दिखाया। साइकल पर जंगली पगडंडियों में पौधों से भरे झोले और कुदाल के साथ हरी-भरी प्रकृति की अनवरत साधना में ये निस्वार्थ पुजारी।
ढेर सारी शुभकामनायें जाधव जी आपने अकेला चना भाड़ नही फोड़ सकता कहावत गलत साबित कर दी
अब तो हम कहेंगे
“अकेला चना भाड़ फोड़ सकता है“

निवेदन करते हैं पर्यावरण के लिए असीम स्नेह से भीगी इस भारत माँ के लाल के बारे में जानकारी को दूसरों तक भी पहुंचा कर सजग बनाएं।
साभार

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