अब प्रश्न है कि हिंदू कौन है? हिन्दू का क्या अर्थ है? तो इसका उत्तर है- "हीनम नाशयति इति हिन्दू।" जो आपको सीमित करता है, बाँधता है, हीनता का बोध देता है, उससे मुक्त होना है। हिंदू होने का अर्थ ही है कि आपने अपनी हीनताओं को विनष्ट कर दिया है, आप अमृत के पुत्र हो गए हैं- अमृतस्य पुत्र: !
हाँ, इसके अलावा आर्य (श्रेष्ठ) का प्रयोग होता था जो हिन्दू के अर्थ का ही पर्यायवाची है। एक अन्य शब्द 'सनातनी' का भी प्रयोग होता रहा जिसका अर्थ भी वही है- जो सदा रहे, हीन न हो, नष्ट न हो।
बृहस्पति आगम में तो हिंदुस्तान की परिभाषा तक दी गई है जिसे उन मार्क्सवादी इतिहासकारों को अवश्य पढ़ना चाहिए जो इसे अरबों की देन बताते रहे- "हिमालयात् समारंभ्य भावत् इन्दु सरोवरम् । तद्देव निर्मितम् देशम् हिंदुस्तानम् प्रचक्षते।।"- इसका अर्थ है- हिमालय से प्रारंभ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव-निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है। यह एक बड़ा प्रमाण है।
बृहस्पति आगम के एक श्लोक में वर्णित है:-
ॐकार मूलमंत्राढ्य: पुनर्जन्म दृढ़ाशय:
गोभक्तो भारतगुरु: हिन्दुर्हिंसनदूषक:।
हिंसया दूयते चित्तं तेन हिन्दुरितीरित:।
इसका अर्थ भी हर हिन्दू को समझना चाहिए- 'ॐकार' जिसका मूल मंत्र है, पुनर्जन्म में जिसकी दृढ़ आस्था है, जो गौभक्त है, भारत ने जिसका प्रवर्तन किया है तथा हिंसा की जो निंदा करता है, वह हिन्दू है। यह है हिन्दू धर्म जो हिंसा में विश्वास नहीं रखता। यह अलग बात है जिन अरबी-फ़ारसी लुटेरों ने हमें लूटा उन्होंने ही हिन्दू का विकृत अर्थ अपने शब्दकोशों में दिया।
हाँ, इसके अलावा आर्य (श्रेष्ठ) का प्रयोग होता था जो हिन्दू के अर्थ का ही पर्यायवाची है। एक अन्य शब्द 'सनातनी' का भी प्रयोग होता रहा जिसका अर्थ भी वही है- जो सदा रहे, हीन न हो, नष्ट न हो।
बृहस्पति आगम में तो हिंदुस्तान की परिभाषा तक दी गई है जिसे उन मार्क्सवादी इतिहासकारों को अवश्य पढ़ना चाहिए जो इसे अरबों की देन बताते रहे- "हिमालयात् समारंभ्य भावत् इन्दु सरोवरम् । तद्देव निर्मितम् देशम् हिंदुस्तानम् प्रचक्षते।।"- इसका अर्थ है- हिमालय से प्रारंभ होकर इन्दु सरोवर (हिन्द महासागर) तक यह देव-निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है। यह एक बड़ा प्रमाण है।
बृहस्पति आगम के एक श्लोक में वर्णित है:-
ॐकार मूलमंत्राढ्य: पुनर्जन्म दृढ़ाशय:
गोभक्तो भारतगुरु: हिन्दुर्हिंसनदूषक:।
हिंसया दूयते चित्तं तेन हिन्दुरितीरित:।
इसका अर्थ भी हर हिन्दू को समझना चाहिए- 'ॐकार' जिसका मूल मंत्र है, पुनर्जन्म में जिसकी दृढ़ आस्था है, जो गौभक्त है, भारत ने जिसका प्रवर्तन किया है तथा हिंसा की जो निंदा करता है, वह हिन्दू है। यह है हिन्दू धर्म जो हिंसा में विश्वास नहीं रखता। यह अलग बात है जिन अरबी-फ़ारसी लुटेरों ने हमें लूटा उन्होंने ही हिन्दू का विकृत अर्थ अपने शब्दकोशों में दिया।
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