Tuesday, December 25, 2018

एक किसान का सरकार को सुझाव

एक किसान का सरकार को सुझाव

गौभक्त कान सिंह जी राजास्थान के सबसे बड़े किसानों में से एक है । कानसिंह जी सीकर में जोर की ढाणी में गौ आधारित  खेती , ऋषि कृषि का सफल अभ्यास करते है  ,जहा विदेशी पर्यटक भी आते है । कान सिंह जी के अनुसार किसान को बचाने के लिए 3 काम करे सरकार-

1. यूरिया dap बंद करके उसकी सब्सिडी का पैसा किसानों के एकाउंट में डलवा दे ( 10 से 20 हजार प्रति किसान हर साल) ,

2. गोचर भूमि की मालिक गौमाता को बना दे

3. दूध की किम्मत फैट से नही बल्कि उसकी गुणवत्ता से करदे सरकार ।

इन 3 नियमो का पालन करने से सरकार किसानों का लाभ कर सकती है । जिस दिन किसान गौ माता को अपने घर ले आएगा , जो 33 कोटि देवताओ को निवास है  ,उस दिन किसान का उद्धार हो जाएगा । गौमाता का गोवर सूक्ष्म जीवाणुओ को कई गुना बढ़ता है, जो पोधो को खुराक देते है । एक गाय से किसान 30 एकड़ में बिना लागत ( जीरो बजट फार्मिंग, ऋषि कृषि) सेे बम्पर खेती कर सकता । इससे किसानों का पैसा ( यूरिया आदि का) विदेश में नही जाएगा  ।


Saturday, December 22, 2018

बीमारी इतनी तेजी से क्यों बढ़ रही है? और गौमूत्र से क्यों ठीक होती है?

बीमारी इतनी तेजी से क्यों बढ़ रही है? और गौमूत्र से क्यों ठीक होती है? संक्षिप्त विवरण देखें |

Ebook -Cow Dung -A Down-to-Earth solution to Global Warming and Climate Change - Book by Dr Sahadeva Dasa (CA,AICWA,Phd.)


Cow Dung -A Down-to-Earth solution to Global Warming and Climate Change - Book by Dr Sahadeva Dasa (CA,AICWA,Phd.)

Dr Sahadeva Dasa graduated in commerce from St.Xaviers College, Kolkata and then went on to complete his CA (Chartered Accountancy) and ICWA (Cost and works Accountancy) with national ranks.

His earlier book, Oil – A Global Crisis and Its Solutions (oilCrisisSolutions.com) has been aclaimed internationally.

Find the ebook in below link:

http://www.drdasa.com/uploads/5/3/6/3/5363764/cow_dung_a_down_to_earth_solution_to_global_warming_.pdf



Thursday, December 13, 2018

Royal ploughing ceremony


आज भी थाईलैंड आदि देशों में रॉयल पलोहींग उत्सव मनाया जाता है , जब फसल काटने का समय आता है । जैसे रामायण में भी सीता के जन्म की कथा में आता है कि माता सीता का जन्म जमीन से हुआ जब राजा दशरथ हल जोत रहे थे ।
https://en.m.wikipedia.org/wiki/Royal_Ploughing_Ceremony

7नवंबर1966 को गौभक्तो पर हमले का विवरण पत्रकार द्वारा

7नवंबर1966 को गौभक्तो पर हमला
https://twitter.com/oldhandhyd/status/1058626070612664320?s=09

ब्रह्मऋषि देवरहा बाबा और राम मंदिर

#AyodhyaRamMandir #Ordinance4RamMandir #DevrahaBaba

 *ब्रह्मऋषि देवराहा बाबा* ने ही राम मंदिर आंदोलन की शुरुआत करी । बाबा ने राम मंदिर बनने की भविष्यवाणी पहले ही कर रखी है ( वीडियो ). *देवराहा बाबा का कहना था कि गोरकक्षा से ही भारत का कल्याण होगा* । सुभाष चंद्र बोस को बाबा ने ही सेना बनाने के लिए कहा । क्रांतिकारी मंगल पांडे भी बाबा के शिष्य थे । प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद कहते थे कि उनकी 7 पुश्ते बाबा के पास आ चुकी है । *इंग्लैंड के राजा जॉर्ज पंचम* बाबा से मिलने 1908 में आया ( जब गेट वे ऑफ इंडिया बनाया गया था ..जॉर्ज पंचम के बड़े भाई ने बाबा से मिलकर सारा राज छोड़ दिया था )। रूस का तानाशाह गोर्बाचोव भी बाबा से मिलने आया था । बड़े मुस्लिम धर्म गुरु भी बाबा से मिले । बाबा की उम्र का किसीको नही पता था । कुम्भ में सबसे पहले ( नागाओ से पहले भी ) बाबा स्नान करते थे । बाबा शिवजी का अवतार थे , उनकी जटाओ मे शिवरात्रि वाले दिन गंगा प्रकट होजाती थी । 21नवंबर1990 (योगिनी एकादशी 19 नवंबर 1990 को बाबा ने शरीर छोड़ा ) को बाबा को यमुना जी ( वृन्दावन ) में समाधि दी गयी , समाधि के समय आकाश से फूलो की वर्षा हुई । 21 नवंबर को आज योग दिवस के रूप में मनाया भी जाता है ।

 *ॐ देवरहाय दिगम्बराय मंचासीनाय नमो नमः ।।*

https://youtu.be/ZROm5Jra85o

गौवर्धन पूजा की बधाई

*गौवर्धन पूजा की बधाई*

( पोस्ट में गाय का मतलब *वेद लक्षणा, देसी गाय* से है , जिसके खुम्ब और गल कंबल होता है , जिसे अंग्रेजी में *ZEBU , Bos Indicus Cow*  , *cow with hump* भी कहते है )

भगवान कृष्ण ने जब गोचारण शुरू किया तो उनकी माता ने उन्हें 3 चीजे दी- लकड़ी, कंबल और जूते , *भगवान ने लकड़ी कंबल तो ले लिए , पर जूते नही लिए* । मंदिर में तो जूते बाहर निकाले जाते है फिर जूते किस लिए . *भगवान के पास 1 लाख पद्मा गाय थी* ( जब 1 लाख गायो का दूध 10 हजार गायो को पिलाया जाता है  , फिर उन 10 हजार गायो का दूध 1 हजार गायो को, उन 1 हजार गायो का दूध 100 गायो को, उन 100 गायो का दूध 10 गायो को , और उन 10 गायो का दूध 1 गाय को पिलाते है तो 1 पद्मा गाय होती है  ,जिसके शरीर से पद्म ( कमल )की खुश्बू आती है )। जब इंद्र ने ब्रज में वर्षा करी और जब वो भगवान से माफी मांगने आया , तो वो भगवान के गुस्से से बचने के लिए कामधेनु गाय साथ लाया , और भगवान का नाम पड़ा गोविंद । भगवान का एक नाम गोपाल ( जो गोपालन करे ) भी है ।  भगवान कृष्ण रोज 1 लाख गायो का दान करते थे ।

 *भगवान कृष्ण के पिताजी नन्द राज थे, जो 1 करोड़ गाय रखता है उसे नंद राज कहा जाता है । *राधाजी के पिताजी वृषभानुवर थे* , जो 50 लाख गाय रखते है उन्हें वृषभानुवर कहा जाता है । ऐसे ही नन्द , वृषभानु , गोप आदि उपाधियां थी , गो संरक्षण हेतू ।

 *माला , गोमुखी* - माला थैली को गोमुखी कहा जाता है ( गाय की तारे मुख कर जाप करे )। माला - मा +ला - माला , माला भी फेरे और गौ माता ( मा) का संरक्षण ( ला ) भी करे ।

 *गायत्री - गाय + त्री* - गौमाता का तीन बार दर्शन ही गायत्री है ।

 *ऐसा क्या कारण था कि भगवान ब्रज वासियो की रक्षा करने तुरंत प्रकट हो जाते थे ??* गौसंवर्धन ही मुख्य कारण था । गोप  ,गोपी वो होते है जो गाय का दूध पंचगव्य पीते है ।

 *जब भगवान कृष्ण को पूतना ने दुनिया का सबसे बड़ा जहर पिलाया* , तो भगवान का इलाज कैसे किया - भगवान को गोमूत्र गोबर से निलाहया , गोबर का तिलक लगाया और गाय की पूछ का झाड़ा लगाया ।

 *गौ -वर्धन , मतलब गाय , गौवंश का संवर्धन* । भगवान ने गोवर्धन पर्वत को उठाया , मतलब भगवान ये बताना चाहते है कि जो गौ रक्षा , गौ संरक्षण , गौ वर्धन करता है उसे भगवान ऊपर उठाते है ।

 *गौवर /गोबर- गौ+वर , गाय का वरदान* (याद रखे- भैस का गौवर नही , चौथ होता है )। तो गौवर गाय का वरदान कैसे , आज की सभी बड़ी समस्याओ का समाधान गौवर के पास है । आज रासायनिक खेती से खाने में जहर आ गया है । लेकिन वही अगर गाय के गौवर से खेती हो तो अमृत आये । पहले कुए से पानी निकालने का काम बैल से लेते थे ( ऊट भैस आदि से नही ), क्योकि बैल के पैरों में सर्प का वास होता है जो जमीन के शत्रु कीटाणुओं को मारकर मित्र कीटाणुओं को बचा देता है , वाइस।

 *गौवर गैस* - आज गौवर गैस से गाड़िया चल रही है । अगर सभी गौवर गैस गाड़ियों में इस्तेमाल करने लगे तो देश को अरबो का लाभ होगा । गौवर गैस का इस्तेमाल खाना बनाने में भी हो रहा है ।

 *गौवर लकड़ी* - जयपुर में शमशान घाट में लकड़ी की जगह गाय के गौवर से बनी लकड़ियों के इस्तेमाल शुरू हो गया है ।

 *गौवर के गमले* में पौधों अच्छे उगते है और पानी डालने की जरूरत काम पड़ती है ।

 *गौवर पेपर* - गौवर से पेपर , एन्वेलोप आदि बनाया जा चुका है ।

 *गौवर की एन्टी रेडिएशन मोबाइल चिप्स* - जिसे मोबाइल के पीछे लगाने से रेडिएशन कम होजाती है ।

 *गौवर टाइल* - मकान बनाने के काम आती है , जिसमे हानिकारक विकरणों / रेडिएशन का प्रभाव नही होता ( नुक्लेअर प्लांट एक्सीडेंट, भोपाल गैस कांड जैसे स्थितयों में )

 *होम थेरेपी ( Homa Therapy/ यज्ञ चिकित्सा , यज्ञ /हवन थेरेपी)* और गाय के गौवर की राख - देसी गाय के गोबर पर एक चमच्च देसी गाय के घी से हवन करने से 1 टन से भी ज्यादा ऑक्सिजन और लाभदायी गैस का निर्माण होता है और इससे pollution प्रदूषण भी समाप्त होता है । गाय के गौवर की राख की कैप्सूल बन रही है जिससे अनेको रोग खत्म हो रहे है । गाय के गौवर की राख को शहद से लोग देश विदेशो में ले रहे है ।

 *गाय के गौवर का प्लास्टर* - हड़िया जोड़ देता है ।

गाय के गौवर से स्नान करने से *चर्म रोग* खत्म होजाते है ।

 *गाय के गौवर से साबुन , दर्द नाशक तेल ,* चर्म रोग खत्म करने का तेल आज देश विदेश की मार्किट, ऑनलाइन उपलब्ध है , और लोग लाभान्वित हो रहे है ।

 *गोमय वस्ते लक्ष्मी, गोमूत्रे धन्वंतरि* - गाय के गौवर में लक्ष्मी ( गणेश भी - गौवर गणेश , *गौवर के लक्ष्मी गणेश की पूजा भी होती* है ) का वास , और गोमूत्रे में धन्वंतरि ( आयुर्वेद के जनक )।

 *गाय के गौवर में सोना* - भारत सोने की चिड़िया इसी लिए कहलाता था क्योंकि यह गाय थी , गाय के *सभी पंचगव्यों ( दूध , दही , घी , गोमूत्रे , गोबर ) में सोना होता है* ( तभी पीलापन होता है । गुजरात के वैज्ञानिक ने गोमूत्रे में सोना सिद्ध भी कर दिया है (  https://www.scoopwhoop.com/Scientists-In-A-Gujarat-University-Are-Claiming-Theres-Gold-In-Cow-Urine/   ) । गाय के 1 किलो दूध में 55 रु का सोना होता है ।

 *महाभारत* में जब यक्ष युधिष्टर से पूछता है की *धरती पर अमृत* क्या है , तो उन्होंने कहा गाय का दूध ।

 *गोवर्धन, गौहाटी, गोरखपुर, गोवन ( गोवा )* आदि जगह के नाम गो से ही है , क्योकि वह गोपालन होता था । *गवर्नमेंट ( go-vernment)* शब्द भी गौ से ही बना है , जो सरकार गाय की रक्षा करे वही गवर्नमेन्ट है ।

 *गौत्र* - जब शादी करते है तो गौत्र ( गौ +त्र - गौ रक्षा ) पूछते है ,मतलब पूर्वजो ने कितनी गाय की रक्षा करी , आप लड़की की रक्षा करने के लायक हो या नही ।

 *गाय बचेगी देश बचेगा*

#SaveCows #Govardhan

भारतीय देशी गाय के घी को " अमृत " किस लिये कहा जाता हैं... !!

*भारतीय देशी गाय के घी को " अमृत " किस लिये कहा जाता हैं... !!*

👉 हमारे वेदों , शास्रों , ओर हमारे पूर्वजों ने भारतीय देशी गाय के घी को अमृत कहां हैं .. !! इतना ही विज्ञान , देश विदेश के युनिवर्सिटी ने भी भारतीय देशी गाय के घी के हजारों रोगों में लाभ बताया हैं !!

👉 } अमृत उसी घी को कहां जाता हैं , जो शुद्ध भारतीय नस्ल की ओर उसे वैदिक विधी से बनाया जाता हैं !!

*वैदिक विधी क्या होती हैं .*

👉 वैदिक विधी में गायों को सुबह 5 से 6 बजे देवलोक समय में गायों को दुध दोहन किया जाता हैं , उसके बाद उसी दुध सुर्य का प्रस्थान होने के पहले उसे गरम किया जाता हैं !!

2 - फिर गौ दुध अपने आप कुछ समय में नोर्मल ठंडा होता हैं ,जिस पर भरवादाव मलाई आती हैं उसके बाद उसमें छाछ या दही से जामण दिया जाता हैं ,

3 - शाम कों गौ का दोहन सूर्य का उदय के बाद गौ का दुहन किया जाये ओर उसी दुध 2 से 3 घंटे में गरम किया जाये ओर उसे मंद थंडा करके उसमें जामण दिया जाता हैं !!

4 - इसी विधी से तैयार गौ दुग्ध के दही को दूसरे दिन सुबह प्रांत काल में 5 से 7 बजें वैदिक विधी से मिट्टी के बर्तन में Clock Antoclok विधी गौ दुग्ध दही को बिलोया जाता हैं , ओर उसमें स्वर्ण रंग का मनमोहक मखन निकलता हैं !!

6 - कृष्ण प्रिय मखन को सिर्फ ही मिट्टी के बर्तनों में गोबर गेस के मंद अग्नि पर गरम किया जाता हैं !! ओर फिर " गौ अमृत " तैयार होता हैं !!

👉 } शुद्ध भारतीय देशी गाय का घी सोने जेसा , बिलोना घी मिले तो सोने में सुगन्ध जेसा .. !!

*बिलोना घी के लिये सबसे सुंदर एवं परिचित गौशाला " श्री नंदनवन गौधाम #Gavyamart " से निर्मित भारतीय देशी गाय का शुद्ध Gavyamart बिलोना घी अब आप ओनलाइन खरीद सकते हैं .*

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चारों वेदों में गोमाता का सन्दर्भ

चारों वेदों में गोमाता का सन्दर्भ 1331 बार आया है. ऋग्वेद में 723 बार, यजुर्वेद में 87 बार, सामवेद में 170 बार और अथर्ववेद में 331 बार, गाय का विषय आया है. इन वेद मत्रों में गोमाता की महत्ता, उपयोगिता, वात्सल्य, करूणा और गोरक्षा के उपाय तथा गो से प्राप्त पंचगव्य पदार्थो के उपयोग और लाभ का वर्णन है.वेदों में गाय के लिए गो, धेनु और अघ्न्या ये तीन शब्द आये हैं. वेदों को समझने के लिये छः वेदांग शास्त्रों में से एक निरुक्त शास्त्र है. इसमें वैदिक शब्दों के अर्थो को खोलकर बताया गया है जिसे निर्वचन कहते हैं. ‘हन हिंसायाम् ’ धातु से हनति, हान आदि शब्द बनते हैं जिसका अर्थ हिंसा करना मारना है. गाय को अघ्न्या कहा है अर्थात् जिसकी कभी भी हिंसा न की जाये. शतपथ ब्राह्मण में (7/5/2/34) में कहा गया है-सहस्रो वा एष शतधार उत्स यदगौ: अर्थात भूमि पर टिकी हुई जितनी जीवन संबंधी कल्पनाएं हैं उनमें सबसे अधिक सुंदर, सत्य, सरस, और उपयोगी यह गौ है. इसमें गाय को अघ्न्या बताया गया है. तो अगर छोटे रूप में देखें तो यह वेदों में गाय का महत्व है. सभी ऋषियों ने बोला है कि गाय की हत्या नहीं करनी चाहिए किन्तु आज फिर भी देश में गाय अगर मर रही है तो उसके कुछ कारण हैं. आइये पढ़ते हैं उन्हीं 5 कारणों को जिनके कारण देश में गोहत्या कभी बंद नहीं हो पायेगी- 1.जब तक राजनीति और वोट का मुद्दा गाय रहेगी.. जब तक गाय को लेकर देश में राजनीति होती रहेगी तब तक गाय हत्या पर रोक लगनी देश में असंभव कार्य है. तो ना गोहत्या पर राजनीति कह्तं होगी और ना ही फिर गोहत्या कभी बंद होगी. 2.देश के सभी लोगों में जब तक क्रांति नहीं आएगी.. वैसे गोहत्या बंदी तो मात्र एक ही दिन में बंद हो सकती है जब अगर सभी हिन्दू गाय को माता सिर्फ बोले नहीं बल्कि मानें भी और सड़क पर आ जाए. लेकिन ऐसा होगा नहीं और गौ हत्या खत्म होगी नहीं. 3.लोकसभा में कानून कौन पेश करे.. बड़े शर्म की बात है कि अगर गो-हत्या का कानून बन जाएगा तो इससे किसी को क्या तकलीफ होने वाली है. अगर एक धर्म गाय को माता मानता भी है तो उसमें कौन सा वह पाप कर रहा है. लेकिन लोकसभा में कानून बनाने का जिम्मा कोई भी पार्टी नहीं लेगी. 4.हर हिन्दू का कर्तव्य एक गाय का पालन.. हर हिन्दू को यह जिम्मा उठाना पड़ेगा कि वह एक गाय को गोद लेगा और उसका बेड़ा वह उठायेगा. साथ ही साथ वह व्यक्ति दूध भी इसी गाय का पियेगा तो ऐसा करने से गाय सड़क पर नहीं रहेंगी और वहां से कटने नहीं जाएँगी. लेकिन ऐसा होगा नहीं और गाय हत्या खत्म नहीं होगी. 5.एक गाय करोड़पति बना सकती है.. यह जानकारी सबको देनी होगी कि एक गाय मरने तक अपने सेवक को हर महीने हजारों रुपैय दे सकती है. गाय का मूत्र और मॉल तक लोग खरीद रहे हैं. तो सबको पता होना चाहिए कि गाय करोड़पति बना सकती है. लेकिन इस बात को कौन लोगों तक पहुँचायेगा? तो यह 5 कारण हैं कि हम बोल सकते हैं कि भारत देश में कभी भी गो हत्या खत्म नहीं होगी लेकिन एक दिन हमारे देश से देशी गाय की नस्ल जरूर खत्म हो जायेगी.

विविधावेदों ने गौ माता को अवध्या कहकर पूजनीया माना है

विविधावेदों ने गौ माता को अवध्या कहकर पूजनीया माना है


वेदों ने गौ माता को अवध्या कहकर पूजनीया माना है
लेखक -राकेश कुमार आर्य

वैदिक संस्कृति संसार की सर्वोत्तम संस्कृति है। इस संस्कृति ने अहिंसा को धर्म के दस लक्षणों में जीवन को उन्नतिशील बनाने वाले दस यम नियमों में प्रमुख स्थान दिया है। इसने दुष्ट की दुष्टता के दमन के लिए मन्यु की अर्थात सात्विक क्रोध की तो कामना की है, परंतु अक्रोध को धर्म के ही दस लक्षणों में से एक माना है। विधाता के विधान से रची गयी इस सृष्टि के प्रत्येक प्राणी को वैदिक संस्कृति ने अपने लिए मित्र समझा है। वेद ने मनुष्य से अन्य प्राणियों के प्रति मित्रस्य चक्षुषा समीक्षामहे-अर्थात प्रत्येक प्राणी को अपना मित्र समझो, ऐसा व्यवहार करने का निर्देश दिया है। इसलिए अपने मित्रों के बीच रहकर कोई अनपेक्षित और अवांछित प्रतियोगिता वेद ने आयोजित नही की, अपितु सबको अपने अपने मर्यादा पथ में जीवन जीने के लिए स्वतंत्र छोड़ा। एक मनुष्य की योनि ऐसी है कि जो कर्मयोनि भी है और भोगयोनि भी है इसलिए अपने मर्यादा पथ में रहकर अन्य जीवों के साथ मित्रवत व्यवहार करना मनुष्य का सबसे प्रमुख कार्य है। अत: वेद ने मनुष्य से अपेक्षा की कि सबसे अधिक तुझे ही मर्यादाओं का पालन करना है। इसीलिए वेद  ने मनुष्य से कहा है-न स्रेधन्तं रमिर्नशत (सा. 4/43/2) कि यदि तू हिंसक बनेगा तो तू मोक्षधन कभी  प्राप्त नही कर सकेगा।

मा हिंसी तन्वा-अर्थात अपने शरीर से कभी भी हिंसा मत करो। यजुर्वेद का यह भी निर्देश है कि पशून पाहि अर्थात हे मनुष्य तू क्योंकि सबसे श्रेष्ठ है, अत: सभी प्राणियों की, पशुओं की रक्षा कर। ऐसे में गाय की हिंसा की तो बात ही छोड़िए, अन्य पशुओं की भी रक्षा करने की बात वेद करता है।

वैदिक व्यवस्था को कलंकित करने और वेदों को ग्वालों के गीत कहकर, अपयश का पात्र बनाकर चलने वाले भारत के तथाकथित विद्वानों ने गाय का मांस खाने की आज्ञा वेदों में होनी बतायी है। ऐसी धारणा वास्तव में इन शत्रु विद्वानों की शत्रु भावना तथा इन्हें भारतीय संस्कृति और संस्कृत के व्याकरण का ज्ञान न होने के कारण बतायी गयी है। वास्तव में वेदों ने ही गाय का इतना महिमामंडन किया है कि गाय को गोमाता कहने या मानने का विचार ही लोगों को वेद के गाय के प्रति श्रद्घाभाव से मिला है। अथर्ववेद (सा. 4/21/5) में कहा गया है कि-गावो भगो गाव इन्द्रो मे-अर्थात गायें ही भाग्य और गायें ही मेरा ऐश्वर्य हंै। इससे अगले मंत्र में अथर्ववेद में आया है भद्रम गृहं कृणुभ भद्रवाचो ब्रहद्वो वय उच्यते सभासु अर्थात मधुर बोली वाली गायें घर को कल्याणमय बना देती हैं। सभाओं में गायों की बहुत कीर्ति कही जाती है। इसीलिए (ऋग्वेद 2/35/7) में कहा गया है कि स्व आ दमे सुदुधा पस्य धेनु: अर्थात अपने घर में ही उत्तम दूध देने वाली गौ हो।

ऐसी गाय घर में होनी इसलिए आवश्यक है कि उसके होने से दुर्बल भी हष्ट पुष्ट और श्रीहीन भी सुश्रीक, सुंदर, शोभायमान हो जाते हैं इसीलिए घरों में गोयालन को अच्छा माना जाता था। गाय को मनुष्य अपना धन मानता था और प्राचीन काल में गायें विनिमय का माध्यम भी थीं। इसलिए गाय को धन मानने की परंपरा भारत के देहात में आज तक भी है। ऐसा धन, जो मोक्ष प्राप्ति में सहायक हो, क्योंकि इस धन से ही हमें सात्विकता मिलती है, कांति मिलती है, और आत्मिक आनंद मिलता है, इसलिए  भारत का प्रत्येक नागरिक प्राचीन काल में गोपति या गोपालक बनने में अपना बड़प्पन मानता था। आज तक भी गोपाल नाम हमारे यहां रखा जाता है। गाय का घी, मूत्र, गोबर दूध, दही सभी बड़ा उपयोगी  होता है। आज के विज्ञान ने भी यह सिद्घ कर दिया है कि गोमूत्र का नित्य सेवन करने से कई कैंसर जैसी घातक बीमारियां हमें लग ही नही सकतीं। इस तथ्य को हमारे ऋषियों ने प्राचीन काल में समझ लिया था। इसीलिए वेद ने हमें गाय के प्रति असीम श्रद्घाभाव रखने का उपदेश दिया है।

ऋग्वेद (01/101/15) में कहा गया है कि गाय का नाम दिति वधिष्ट-अर्थात अघ्न्या गाय को कभी मत मार। इसी मंत्र में गाय को अवध्या इसलिए कहा गया है कि यह रूद्रदेवों की माता, वसुदेवों की कन्या आदित्य देवों की बहन और अमृतस्य नाभि-अमृत्व का केन्द्र है। 25 वर्ष तक ब्रह्मचर्य पूर्वक तप करने वाला वसु, 36 वर्ष तक इसी प्रकार साधना करने वाला रूद्र तथा 48 वर्ष तक तप करने वाला आदित्य कहा जाता है। सुसंस्कृत समाज के ये ही तीन वर्ग हैं।

निघण्टु में गौ शब्द के विभिन्न अर्थ किये गये हैं। इनमें से प्रथम वाणी-अंतरात्मा की पुकार, दूसरा मातृभूमि और तीसरा गौ नाम का पशु है। अंतरात्मा की आवाज के अनुसार कार्य करने पर मनुष्य की दिनानुदिन उन्नति होती  रहती है। तब गौ-हमारी अंतर्रात्मा हमारे लिए माता के समान हितकारिणी बन जाती है। आत्मा की शासक अग्नियों (वृत्तियों) से प्रकट होने के कारण यह पुत्री के समान पवित्र है। मर्यादा पालने के लिए बहन के  समान साहस बढ़ाती है, अत: इस गौ की आत्मा की पुकार की तू कभी हिंसा मत कर।

हमारा यह शरीर मु_ी भर मिट्टी से बना है, और अंत में मातृभूमि की इसी मिट्टी में मिल जाएगा। इसलिए हम पर मातृभूमि का यह ऋण है। इसी संबंध के कारण हमें वेद (अथर्व. 12/1/12) ने निर्देश दिया है :-

माता भूमि: पुत्रोअहम् पृथिव्या:।

अर्थात भूमि मेरी माता है और मैं इसका पुत्र हूं। यह मातृभूमि भी हमें बहुत कुछ देती है, इसलिए इसके प्रति भी सदा निष्ठावान रहना हमारा कर्त्तव्य है।

गौ के भीतर भी माता और मातृभूमि के समान ही असाधारण गुण होते हैं, जिनसे हमारी बुद्घि तीव्र होती है और शरीर हष्ट पुष्ट स्वस्थ रहता है। उसी के दिये हुए बछड़ों से हम खेती करते हैं और उसी की गोबर से हमें खाद मिलती है।

इस प्रकार गाय हमारी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का आधार है। इसलिए उसके प्रति भी हमें अहन्तव्य रहने का आदेश दिया गया है। अथर्ववेद (1/4/16) में तो गाय का वध करने वालों को त्वा सीसेन विध्याओ-अर्थात शीशे की गोली से बींधने की बात कही गयी है। जबकि ऋग्वेद में आरे मोहनमुत पुरूषघ्नम्। अर्थात पुरूष को हानि पहुंचाने वालों से भी पहले गौ के मारने वाले को नष्ट करने की बात कही गयी है।

अथर्व (9/4/20) गाव सन्तु प्रजा: सन्तु अथाअस्तु तनूबलम्। अर्थात घर में गायें हों, बच्चे हों और शरीर में बल हो, ऐसी प्रार्थना की गयी है।

जबकि शतपथ ब्राह्मण में (7/5/2/34) में कहा गया है-सहस्रो वा एष शतधार उत्स यदगौ:। अर्थात भूमि पर टिकी हुई जितनी जीवन संबंधी कल्पनाएं हैं उनमें सबसे अधिक सुंदर सत्य, सरस, और उपयोगी यह गौ है। इसमें गाय को अघ्न्या बताया गया है। सहस्र-अनंत और असीम है। जो शतधार-सैकड़ों धाराओं वाला है। कोलंबस ने सन 1492 में जब अमेरिका की खोज की तो वहां कोई  गाय  नही थी, केवल जंगली भैंसें थीं। जिनका दूध निकालना लोग नही जानते थे, मांस और चमड़े के लिए उन्हें मारते थे। कोलंबस जब दूसरी बार वहां गया तो वह अपने साथ चालीस गायें और दो सांड लेता गया ताकि वहां गाय का अमृतमयी दूध मिलता रहे।

सन 1525 में गाय वहां से मैक्सिको पहुंची। 1609 में जेम्स टाउन गयी, 1640 में गायें 40 से बढ़कर तीस हजार हो गयीं। 1840 में डेढ़ करोड़ हो गयीं। 1900 में चार करोड़, 1930 में छह करोड़ साढ़े छियासठ  लाख और 1935 में सात करोड़ 18 हजार 458 हो गयीं। अमेरिका में सन 1935 में 94 प्रतिशत किसानों के पास गायें थीं, प्रत्येक के पास 10 से 50 तक उन गायों की संख्या थी।

गर्ग संहिता के गोलोक खण्ड में भगवद-ब्रह्म-संवाद में उद्योग प्रश्न वर्णन नाम के चौथे अध्याय में बताया गया है कि जो लोग सदा घेरों में गौओं का पालन करते हैं, रात दिन गायों से ही अपनी आजीविका चलाते हैं, उनको गोपाल कहा जाता है। जो सहायक ग्वालों के साथ नौ लाख गायों का पालन करे वह नंद और जो 5 लाख गायों को पाले वह उपनंद कहलाता है। जो दस लाख गौओं का पालन करे उसे वृषभानु कहा जाता है और जिसके घर में एक करोड़ गायों का संरक्षण हो उसे नंदराज कहते हैं। जिसके घर में 50 लाख गायें पाली जाएं उसे वृषभानुवर कहा जाता है। इस प्रकार ये सारी  उपाधियां जहां व्यक्ति की आर्थिक संपन्नता की प्रतीक है, वहीं इस बात को भी स्पष्ट करती हैं कि प्राचीन काल में गायें हमारी अर्थव्यवस्था का आधार किस प्रकार थीं। साथ ही यह भी कि आर्थिक रूप से संपन्न व्यक्तियों के भीतर गो भक्ति कितनी मिलती थी? इस प्रकार की गोभक्ति के मिलने का एक कारण यह भी था कि गोभक्ति को राष्ट्रभक्ति से जोड़कर देखा जाता था। गायें ही मातृभूमि की रक्षार्थ अरिदल विनाशकारी क्षत्रियों का, मेधाबल संपन्न ब्राह्मण वर्ग का, कर्त्तव्यनिष्ठ वैश्य वर्ग का तथा सेवाबल से युक्त शूद्र वर्ग का निर्माण करती थीं।

मेगास्थनीज ने अपने भारत भ्रमण को अपनी पुस्तक ‘इण्डिका’ में लिखा है। वह लिखते हैं कि चंद्रगुप्त के समय में भारत की जनसंख्या 19 करोड़ थी और गायों की संख्या 36 करोड़ थी। (आज सवा अरब की आबादी के लिए दो करोड़ हंै) अकबर के समय भारत की जनसंख्या बीस करोड़ थी और गायों की संख्या 28 करोड़ थी। 1940 में जनसंख्या 40 करोड़ थी और गायों की  संख्या पौने पांच करोड़ जिनमें से डेढ़ करोड़ युद्घ के समय में ही मारी गयीं।

सरकारी रिपोर्ट के अनुसार 1920 में चार करोड़ 36 लाख 60 हजार गायें थीं। वे 1940 में 3 करोड़ 94 लाख 60 हजार रह गयीं। अपनी संस्कृति के प्रति हेयभावना रखने के कारण तथा गाय को संप्रदाय (मजहब) से जोड़कर देखने के कारण गोभक्ति को भारत में कुछ लोगों की रूढ़िवादिता माना गया है। जबकि ऐसा नही है।

गाय के प्रति मुहम्मद साहब की पत्नी आयशा ने कहा कि फरमाया रसूल अल्लाह ने गाय का दूध शिफा है और घी दवा तथा उसका मांस रोग  है। अर्थात मांस खाना रोगों को बुलाना है, इसलिए बात साफ है कि गोवध वहां भी निषिद्घ है। इसी बात को मुल्ला मोहम्मद बाकर हुसैनी का कहना है कि गाय को मारने वाला, फलदार दरख्त को काटने वाला और शराब पीने वाला कभी नही बख्शा जाएगा।

जनाब मुजफ्फर हुसैन जी ने एक किताब लिखी है ‘इसलाम और शाकाहार’ उसमें उन्होंने प्रमाणों से सिद्घ किया कि इस्लाम में भी गोवध की मनाही है। भारत की प्राचीन काल से ही जीवन जीने की नीति रही है कि आत्मवत सर्वभूतेषु य: पश्यति स पश्यति-अर्थात जो सब प्राणियों को अपने समान जानता है, वही ज्ञानी है, बात साफ है कि जब आप सबको अपने समान ही जानोगे या मानोगे तो फिर किसी की हिंसा करने का प्रश्न ही कहां रह गया? नीतिकार ने स्पष्ट किया है कि आत्मन: प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् अर्थात जो व्यवहार या कार्य या बात आपको अपने लिए अच्छी नही लगे उसे दूसरों के साथ भी मत करो। अब जब हम अपनी मृत्यु हिंसा से नही चाहते हैं तो हमें दूसरों के साथ भी हिंसात्मक व्यवहार नही करना चाहिए। इसी बात को यजुर्वेद (12/32) ने मा हिंसी तन्वा प्रजा: कहकर हमें निर्देशित किया है कि प्रजाओं को अर्थात किसी भी प्राणी को अपने शरीर से मत मार। यह निर्देश वेद का हिंसा निषेध है।

ऋग्वेद (1/161/7) के निश्चर्मणो गामरिणीत धीतिभि: मंत्र का अर्थ सायणाच्चार्य ने गौ का चमड़ा उचेड़ो किया है। जिससे गोहत्या का आदेश देने का कलंक वेद के माथे लगाने का कुछ लोगों को अवसर मिल गया है। अब जिस गौ को  वेद अघ्न्या कह रहा है, उसे ही यहां मारने की बात कहे तो तार्किक सा नही लगता। वास्तव में जैसा कि हमारे द्वारा पूर्व में ही कहा गया है कि गौ का एक अर्थ वाणी भी है, तो यहां इस मंत्र में हमें यही अर्थ निकलना होगा। जिससे निश्चर्मणो गामरिणीत धीतिभि: का अर्थ होगा वाणी को चर्म्म रहित करके बोलो। गौ का एक अर्थ बाल भी है, तो बात साफ हुई कि वेद यहां बाल की खाल उतारने की बात कह रहा है।

बाल की खाल उतारने का अर्थ है कि विषय की गहराई तक जाओ, तर्क जब तक शांत न हो जाए, तब तक अनुसंधान चलता रहना चाहिए। वेद विज्ञान पर आधारित गंथ है, इसलिए तर्कपूर्ण अनुसंधान की ओर संकेत करते हुए, मननशील होकर तर्कपूर्ण अनुसंधान के माध्यम से विभिन्न शिल्पों में कुशलता प्राप्त करने का उपदेश इस मंत्र में दिया गया है।

इस प्रकार वेद पर गोहत्या का आरोप लगाना या वेदों में गोहत्या का आदेश खोजना अपनी भारतीय संस्कृति केा अपमानित करने के समान है। आज जब सारा विश्व भारत की ओर देख रहा है तब हमें वेदों के सही अर्थ करके विश्व की ज्ञान विपासा को शांत करना ही अभीष्ट मानना चाहिए।

लेखक के विषय में



राकेश कुमार आर्य

http://www.pravakta.com/author/rakesharyaprawakta-com

‘उगता भारत’ साप्ताहिक अखबार के संपादक; बी.ए.एल.एल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता राकेश जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक बीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ‘मानवाधिकार दर्पण’ पत्रिका के कार्यकारी संपादक व ‘अखिल हिन्दू सभा वार्ता’ के सह संपादक हैं। सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के राष्ट्रीय प्रवक्ता व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं। दादरी, ऊ.प्र. के निवासी हैं।



====>उसी की गोबर से हमें खाद मिलती है। इस प्रकार गाय हमारी राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था का आधार है।”——लेखक
—————————————–
उपरोक्त विधान का ही विस्तार कर, सशक्त समर्थन करना चाहता हूँ, निम्न आर्थिक तथ्यों द्वारा।
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एक अति महत्त्व का बिन्दू, भविष्य की, दूर – दृष्टि से देखने का अभिगम टाला नहीं जा सकता। आगे की पीढियों का भला भी हमें सोचना होगा।
(१) आज ही प्रतीत हो रहा है, कि पेट्रोल, डिजल इत्यादि के भाव निरन्तर बढते ही जाएंगे। क्यों कि लाखों वर्षोंसे प्रस्तरों में गडे हुए– पेट्रोल डिजल इत्यादि की, उपलब्ध ऊर्जा-तेलों का जथ्था समाप्त होता जा रहा है।प्रबुद्ध पाठक जानते ही होंगे।
(२) और कुछ न्यूनाधिक दशकों में अवश्य (हाँ, अवश्य) और निश्चित ही, यह जथ्था समाप्त ही हो जाएगा। और इसी लिए, उनका मूल्य बढता ही जाएगा। चाहे किसी का भी शासन चल रहा हो; यह ऊर्जा का अंत एक दिन तो अवश्य होना ही है।
********(३) ऐसी अवस्था में,—- भारत का कृषक —–खेती के लिए,—–प्रायः, बैलोंपर ही निर्भर होगा। ट्रैक्टर से खेती करना —-महँगा ही नहीं—– अति महँगा होगा।
(४) —तो फिर बैल कहाँसे लाओगे? ट्रैक्टर से खेती अति मह्ँगी होगी। खाद्यान्न सस्ता उपजाने में आपको बैल ही काम आएंगे। और कोई पर्याय शायद ही मिले।
(५) जी हाँ तब, हमें हमारी करूणामयी,(कभी उसकी आँखे देखना) गौमाता के दिए हुए बैल ही काम आएंगे। बेचारे गीली-सुखी घास खाकर ऊर्जा का निर्माण करते हैं।कहो, बुल पॉवर (जैसे होर्स पॉवर)
गुजराती में बैल को “बलद” -या “बळद” (बल देनेवाला) नाम ही है।
——–
(६) ट्रैक्टर से खेती बहुत बहुत ही महँगी होगी। मुद्रा भी (प्रायः) परदेश ही जाएगी। तब हमें बैल, गौमाता से ही प्राप्त होंगे।
(७)और सचमुच आज विग्यान प्रमाणित कर रहा है, कि भारतीय गौ के, पंचगव्य के गुण विशेष होते हैं। डॉ. राजेश कपूर सही सही चेतावनी भरी टिप्पणी दे रहे हैं। उनका भी समर्थन करता हूँ।

मेरी गम्भीर चेतावनी ====>इसी लिए गौंओं को और गोवंश की हत्त्या अपने ही पैर पर कुल्हाडी मारने जैसा ही है।
आप सभी पढे लिखे प्रबुद्ध पाठक ही हैं। सोच लीजिए।हो सकता है, मुझसे कुछ छुट गया हो? कृपया,
स्मरण कराएं। मैं गौभक्त शुद्ध शाकाहारी हूँ, पर तर्क ही सामने रखा है।

गाय, बैल आदि सब अवध्य हैं

गाय, बैल आदि सब अवध्य हैं

गाय, बैल आदि सब अवध्य हैं
ऋगवेद ८.१०१.१५ – मैं समझदार मनुष्य को कहे देता हूँ की तू बेचारी बेकसूर गाय की हत्या मत कर, वह अदिति हैं अर्थात काटने- चीरने योग्य नहीं हैं.
ऋगवेद ८.१०१.१६ – मनुष्य अल्पबुद्धि होकर गाय को मारे कांटे नहीं.
अथर्ववेद १०.१.२९ – तू हमारे गाय, घोरे और पुरुष को मत मार.
अथर्ववेद १२.४.३८ -जो (वृद्ध) गाय को घर में पकाता हैं उसके पुत्र मर जाते हैं.
अथर्ववेद ४.११.३- जो बैलो को नहीं खाता वह कस्त में नहीं पड़ता हैं
ऋगवेद ६.२८.४ – गोए वधालय में न जाये
अथर्ववेद ८.३.२४ – जो गोहत्या करके गाय के दूध से लोगो को वंचित करे , तलवार से उसका सर काट दो
यजुर्वेद १३.४३ – गाय का वध मत कर , जो अखंडनिय हैं
अथर्ववेद ७.५.५ – वे लोग मूढ़ हैं जो कुत्ते से या गाय के अंगों से यज्ञ करते हैं
यजुर्वेद ३०.१८- गोहत्यारे को प्राण दंड दो
वेदों से गो रक्षा के प्रमाण दर्शा कर स्वामी दयानन्द जी ने महीधर के यजुर्वेद भाष्य में दर्शाए गए अश्लील, मांसाहार के समर्थक, भोझिल कर्म कांड का खंडन कर उसका सही अर्थ दर्शा कर न केवल वेदों को अपमान से बचा लिया अपितु उनकी रक्षा कर मानव जाती पर भारी उपकार भी किया

वेदों में गाय का महत्व

वेदों में गाय का महत्व

(श्री वेणीराम शर्मा गौड़)

http://literature.awgp.org/akhandjyoti/1952/April/v2.13
मातरः सर्वभूतानां गावः सर्वसुख:

'गौएँ सभी प्राणियों की माता कहलाती हैं।
वे सभी को सुख देने वाली हैं।'

 (महा.अनु.पर्व69.7)

भुक्त्वा तृणानि शुष्कानि पीत्वा तोयं जलाशयात् ।

दुग्धं ददति लोकेभ्यो गावो विश्वस्य मातरः॥
मातरः सर्वभूतानां गावः सर्वसुख:

'गौएँ सभी प्राणियों की माता कहलाती हैं।
वे सभी को सुख देने वाली हैं।'

 (महाभारत अनुशाषण पर्व 69.7)


मानव-जाति के लिए गौ से बढ़कर उपकार करने वाली और कोई वस्तु नहीं है। गौ मानव जाति की माता के समान उपकार करने वाली, दीर्घायु और निरोगता देने वाली है। यह अनेक प्रकार से प्राणिमात्र की सेवा कर उन्हें सुख पहुँचाती है। इसके उपकार से मनुष्य कभी उऋण नहीं हो सकता। यही कारण है कि हिन्दू जाति ने गाय को देवता और माता के सदृश्य समझ कर उसकी सेवा-शुश्रूषा करना अपना प्रधान धर्म समझा है। गाय का महत्व प्रतिपादन करने वाले कुछ वेद मन्त्र और शास्त्र वचन नीचे उपस्थित करते हैं।

“देवो वः सविता प्रार्पयतु श्रेष्ठतमाय कर्मण

आप्यायध्वमध्न्या इन्द्राय भागं प्रजावतीरनमीवाँ अयक्ष्मा मावस्तेन ईशत माघशँ सो ध्रुवा अस्मिन्गोपतौ स्यात्॥”

(शु. यजु. 1।1)

‘हे गौओं! प्राणियों को सत्कार्यों में प्रवृत्त कराने वाले सवितादेव, आपको हरित शस्य संपन्न विस्तृत क्षेत्र कर्मों का अनुष्ठान होता है। हे गौओं! आप इन्द्र के क्षीर मूलक भाग को बढ़ावें अर्थात् अधिक दूध देने वाली हों। आपकी कोई चोरी न कर सके, व्याघ्रादि हिंसक जीव भी आपको न मार सकें, क्योंकि आप तमोगुणी दुष्टों द्वारा मारे जाने योग्य नहीं हो। आप बहुत सन्तान उत्पन्न करने वाली हैं जिनसे संसार का बहुत कल्याण होता है। आप जहाँ रहती हैं वहाँ किसी भी प्रकार की व्याधि नहीं आ सकती! यहाँ तक कि यक्ष्मा (तपेदिक) आदि राजरोग भी आपके पास नहीं आ सकते, अतएव आप सर्वदा यजमान के घर में सुख पूर्वक निवास करें।

अन्धस्थान्धो वो भक्षीय महस्थ महो वो भक्षीयोर्जस्थोर्ज। वो भक्षीय रायस्पोषस्थ रायस्पोषं वो भक्षीय ॥ शु. यजु. 3। 20

‘हे गौओं! आप अन्न को देने वाली हैं अतः आपकी कृपा से हम अन्न को प्राप्त करें। आप पूजनीय हैं, आपके सेवन से हममें सात्विक उच्च भाव पैदा होते हैं। आप बल देने वाली हैं, हमें भी आप बल दें। आप धन को बढ़ाने वाली हैं अतः हमारे यहाँ भी धन की वृद्धि और शक्ति संचार करो।’

(शु. यजु. 3।22)

हे गौओं! तुम विश्वरूप वाली दुग्ध-घृत रूप ह्यिदान के निमित्त यज्ञ कर्मों में संगति वाली हो। क्षीरादि रस द्वारा गो स्वामित्व में मुझमें सब प्रकार से प्रवेश करो। अर्थात् हमारा गो स्वामित्व अविचलित रक्खो। रात्रि में भी निरन्तर निवास करने वाले हे, अग्नि देवता! हम प्रतिदिन श्रद्धा-युक्त बुद्धि से तुमको नमस्कार करते हुए तुम्हारे प्रति प्राप्त होते हैं।’

इड एह्म दित एहि काम्या एत।

मयि वःकामधरणं भूयात्॥

(शु. यजु. 3। 27)

‘हे पृथ्वी रूप गौ! इस स्थान पर आओ। घृत द्वारा देवताओं को अदिति के सदृश पालन करने वाली अदिति रूप गौ! इस स्थान पर आगमन करो।

गौओं! तुम सब साधनाओं को देने वाली होने के कारण सब की आदरणीय हो। हे गौओं! तुम इस स्थान पर आओ तुम्हारा जो अपेक्षित फल धारकत्व है सो मुझ अनुष्ठान करने वाले में तुम्हारी कृपा से हो, तुम्हारे प्रसाद से मैं अभीष्ट फल का धारण करने वाला हूँ।’

अपस्त्रमिन्दुमहष्भुंरण्युमाग्निमीडे षूर्वचितिं नमोभिः।

स पर्वभिऋतुशः कल्पमानी गाँ मा हँम् सीरदितिं विराजताम्॥ (शु. य. 13। 43)

‘क्षय रहित ऐश्वर्य से युक्त रोष रहित अथवा आराधना के योग्य पूर्व महर्षियों से चयन के योग्य अन्नों से सबके पोषण करने वाले अग्नि द्वारा स्तुति करता हूँ। वह अग्नि पर्व द्वारा प्रत्येक ऋतु में कर्मों का सम्पादन करता हुआ अखण्डित अदीन दुग्धदानादि से विराजमान दस ऐश्वर्य होने से गौ विराट हैं अतएव गौ को मत मारो।’

गो में माता ऋषभः पिता में दिवम् शर्म्म जगती में प्रतिष्ठा॥ (ऋग्वेद)

‘गाय मेरी माता, बैल मेरा पिता, यह दोनों मुझे स्वर्ग और ऐहिक सुख प्रदान करें। गौओं में मेरी प्रतिष्ठा हो।’

यूयं गावो भेद कृशं चिदक्षीरं चि कृणुथा सुप्रतीकम्।

भद्रं गृहं कृणुथ भद्रवाचो बृहदो वय उच्यते सभासु॥

(अथर्ववेद)

गौओं दूध से निर्बल मनुष्य बलवान और हृष्ट पुष्ट होता है तथा फीका और निस्तेज मनुष्य तेजस्वी बनता है। गौओं से घर की शोभा बढ़ती है। गौओं का शब्द बहुत प्यारा लगता है।’

शास्त्रों में भी :-

गोम्यो यज्ञाः प्रवर्त्तन्ते गोभ्यो देवाः समुत्थिताः।

गोभ्यो वेदाः समुद्गीर्णाः सषडंगपदक्रमाः॥

‘गौओं के द्वारा यज्ञ चलते हैं, गौओं से ही देवता हुए हैं। छओं अंगों सहित वेदों की उत्पत्ति गौओं से ही हुई है।’

शृंगमूलं गवा नित्यं ब्रह्मबिष्णु समाश्रितौ।

शृंगाग्रे सर्वतीर्थानि स्थावराणि चराणि च॥

‘गौओं के सींग के मूल में ब्रह्मा और विष्णु निवास करते हैं, सींग के अग्रभाग में सब तीर्थ और स्थावर जंगम रहते हैं।

शिरोमध्ये महादेवः सर्वभूतमयः स्थितिः।

गवामंगेषु निष्ठान्ति भुवनानि चतुर्दश॥

‘गौओं के शिर के बीच में सारे संसार के साथ शिवजी निवास करते है। गौओं के अंगों में चौदहों मुवन रहते हैं।

गावः र्स्वगस्य सोपानं गावः स्वर्गेऽपि पूजिताः।

गावः कामदुहो देव्यो नान्यत्किञ्चित्षरं स्मृतम्॥

‘गौएं स्वर्ग की सीढ़ी हैं, स्वर्ग में भी गौओं की पूजा होती है। गौएं अभिलषित फल देने वाली हैं, गौ से बढ़कर उत्तम और कोई वस्तु नहीं है

वेदों में गौदुग्ध





वेद के अनेक मंत्रों में गोदुग्ध से शरीर को शुद्ध, बलिष्ठ और कान्तिमान् बनाने का वर्णन मिलता है। इससे सिद्ध होता है कि वैदिक गृहस्थ को गौ और उसके द्वारा दिए गए दूध आदि पदार्थ कितने अधिक प्रिय हैं। हम वेदादि शास्त्रों में यह पाते हैं कि न केवल प्रत्येक गृहस्थ अपने लिए परमेश्वर से गोधन की याचना करता है अपितु यजुर्वेद (२२.२२) के एक मंत्र में सम्पूर्ण राष्ट्र के निवासिओं के लिए गोधन की प्रार्थना की गई है-
​‘‘आ ब्रह्मन ब्राह्मणो ब्रह्मवर्चसी जायातामा राष्ट्रे राजन्यः…’’
इस मंत्र का विनियोग शतपथ ब्राह्मण में किया गया है।

अध्वर्यु इस मंत्र के द्वारा अश्वमेध करने वाले सम्राट के राष्ट्र में अभ्युदय की प्रार्थना परमेश्वर कर रहा है। वह कहता है- ‘‘हे परमेश्वर! इस राष्ट्र में ब्रह्मतेज वाले ब्राह्मण उत्पन्न हों, शस्त्र चलाने में निपुण, दूर का निशाना बींधने वाले, महारथी, शूर क्षत्रिय हों, दूध देने वाली गौएँ उत्पन्न हों, भार उठाने में समर्थ बैल हों, शीघ्रगामी घोड़े हों, नगरो की रक्षा करने वाली स्त्रियां हों, इस यजमान के पुत्र विजयी, रथारोही, सभाओं में जाने योग्य और युवा हों, जब-जब हम चाहें तब-तब बादल बरसा करें, अनाज फल वाले होकर पका करें, हमें अलब्ध ऐश्वर्य की प्राप्ति करें और हमें प्राप्त की रक्षा का सामथ्र्य मिले।’’ उपरोक्त मंत्र में राष्ट्र के अभ्युदय के लिए दूध देने वाली गौओं की प्राप्ति अत्यंत महत्त्वपूर्ण मानी गई है।

ऋग्वेद के षष्ठं मण्डल के अट्ठाइसवें सूक्त में आठ मंत्र हैं। पहले मंत्र में कहा गया है-
आ गावो अग्नमन्नुत भद्रमक्रन्त्सीदन्तु गोष्ठे रण्यन्त्वस्मे।
​प्रजावतीः पुरुरूपा इह स्युरिन्द्राय पूर्वीरुषसो दुहानाः।। (१)
अर्थात् गौएँ आवें और हमारे गोष्ठ अर्थात् गौओं के रहने के स्थान में बैठें अर्थात् रहें और हमारे लिए मंगल करें। हम में रहती हुई रमण करें अर्थात् आनन्दपूर्वक रहें। यहां हमारे घर में ये गौएँ सन्तानों वाली हो कर बहुत रूपों वाली अर्थात् अनेक प्रकार की होती रहें और इस प्रकार सम्राट के लिए बहुत उषः कालों अर्थात् दिनों तक दूध देने वाली बनी रहें।

दूसरे मंत्र में कहा गया है-
​इन्द्रो यज्वने पृणते च शिक्षत्युपेद् ददाति न स्वं मुषायति।
​भूयोभूयो रयिमिदस्य वर्धयन्नभिनने खिल्ये नि दधाति देवयुम्।। (२)
​अर्थात् सम्राट राज्य संगठन के लिए अपना भाग दान करने वाले ओर इस प्रकार राज्य की आवश्यकताओं की तृप्ति करने वाले के लिए समीप पहुंच कर अपनी रक्षा देता है। उसके गोधन को अपहरण नहीं करता या नहीं होने देता है। इसके गोधन को बार-बार बढ़ाता हुआ सम्राट रूप देव को अर्थात् राज्य के भले को चाहने वाले को अभेद्य स्थान में रखता है। क्योंकि यहां पर गौओं का प्रसंग चल रहा है, इसलिए रयि शब्द का अर्थ गोधन समझना चाहिए।

तीसरे मंत्र में कहा गया है-
न ता नशन्ति न दभाति तस्करो नासामाममित्रो व्यथिरा दधर्षति।
देवांश्च याभिर्यजते ददाति च ज्योगित् ताभिः सचते गोपतिः सह।। (३)
​अर्थात् वे गौएँ नष्ट नहीं होतीं, चोर उन पर प्रहार नहीं करता, शत्रु का पीड़ा देने वाला शस्त्रादि इनका घर्षण नहीं करता और यह गौओं का रक्षक पुरुष जिनके द्वारा, जिनसे दुग्ध घृत आदि से देवयज्ञ करता है और दान कर पाता है, उन गौओं के साथ चिरकाल तक ही समवेत होता है। इन गौओं के द्वारा उसके सब यज्ञ ठीक प्रकार चलते हैं।

उक्त तीन मंत्रों से हमें निम्न शिक्षाएं मिलती हैं-
१. प्रत्येक गृहस्थ को अपने घर में गोष्ठ अथवा गौओं के रहने का स्थान अवश्य बनाना चाहिए।
२. गौ पालने वालों को गौओं की उत्तमोत्तम सन्तान अर्थात् बछड़े और बछड़ियां तैयार करने चाहिएं, जिनसे पहले की अपेक्षा अधिक दूध और मक्खन उत्पन्न हो।
३. जिस प्रकार घर के मनुष्य मिल कर आनन्द से रहते हैं, उसी प्रकार गौएँ भी हम में मिल कर आनन्द से रहें। हम अपने लिए जो आराम चाहते हैं, उसी प्रकार के आराम का प्रबन्ध गौओं के लिए भी करें।
४. गौओं को सम्राट द्वारा रक्षा प्राप्त होने से वे नष्ट नहीं होने पातीं हैं।
५. किसी की गौ को चोर नहीं चुरा सकते हैं और शत्रु लोग उनको किसी प्रकार की पीड़ा नहीं दे सकते हैं।
६. गोपति को अपनी गौओं से सदा देवों का यजन और अतिथि सत्कार करते रहना चाहिए।

षष्ठं मण्डल के उक्त सूक्त के सातवें मंत्र में कहा गया है-
प्रजावतीः सूयवसं रिशन्तीः शुद्धा अपः सुप्रपाणे पिबन्तीः।
मा वः स्तेन ईशत माघशंसः परि वो हेती रुद्रस्य वृज्याः।। (७)
अर्थात् उत्तम घास को खाती हुई, उत्तम पानी पीने के स्थानों में निर्मल जल पीती हुई, हे गौओं! तुम पुत्र-पौत्रों से युक्त हो कर रहो। चोर और पाप करने वाला पुरुष तुम पर प्रभुता न कर सके। परमात्मा का प्रहरण तुम्हें छोड़े रखे अर्थात् तुम शीघ्र न मरो, प्रत्युत दीर्घ आयु वाले होओ।

उक्त मंत्र से हमें निम्न शिक्षाएं मिलती हैं-
१. गौओं को खाने के लिए दिया जाने वाला घास उत्तम होना चाहिए।
२. उनके पीने का पानी भी स्वच्छ होना चाहिए।
३. हमें अपनी गौवों की चोर-डाकुओं से रक्षा करनी चाहिए।
४. गौवों की दूध देना बन्द करने के बाद भी सेवा और रक्षा करते रहना
चाहिए।

गौ की महिमा का विस्तृत वर्णन ऋग्वेद के दशं मण्डल के सूक्त १६९ में भी मिलता है। इस सूक्त के मंत्रों में विशेष रूप से कहा गया है कि हमारे पास ‘सरूपाः, विरूपाः और एकरूपाः’ श्रेणियों की गौएँ होनी चाहिएं। किन्हीं के दूध में मक्खन अधिक हो, किन्हीं के दूध में मलाई अधिक हो और किन्हीं के बछड़े अधिक शक्तिशाली बैल बन सकें। यह भी कहा गया है कि ‘पर्जन्य गौओं के लिए बहुत बड़ा सुख देवे’, इस वाक्य का भावार्थ यह है कि जहां तक हो सके वर्षा से उत्पन्न जंगल के घास को गौओं को अधिक खिलाना चाहिए। गौओं कोे जंगल में चरने के लिए भेजना चाहिए। जहां तक सम्भव हो सके उन्हें वर्षा का शुद्ध जल पिलाना चाहिए। ऋग्वेद (१॰.१६९.३) में कहा गया है कि राष्ट्र के सभी लागों को गौ का दूध पीना चाहिए। गौएँ अपने शरीर से उत्पन्न दूध को देवों को भेजती हैं।

वेद में गौहत्या का विरोध-
वेद में अनेक स्थानों पर गौ को ‘अघ्न्या’ कहा गया है। यजुर्वेद (१३.४३) में कहा गया है-‘‘गां मा हिंसी’’ अर्थात् गौ की हिंसा मत करो। ऋग्वेद के एक मंत्र में कहा गया है-
माता रुद्रणां दुहिता वसूनां स्वसादित्यानामृतस्य नाभिः।
प्र नु वोचं चिकितुषे जनाय मा गामनागामदितिं वधिष्ट।। (८.१॰१.१५)
अर्थात् गौ राष्ट्र के रुद्र और आदित्य ब्रह्मचारी रह कर विद्या प्राप्त करने वाले प्रजाजनों की माता, पुत्री और बहिन है। इस मंत्र का भावार्थ यह है कि प्रजाजनों को गौ के साथ माता, पुत्री और बहिन के समान प्रेम भाव रखना चाहिए। गौ अमृत की नाभि अर्थात् केन्द्र है क्योंकि उससे अमृत जैसे गुणों वाला दूध प्राप्त होता है। मैं परमात्मा, ज्ञानवान् पुरुषों को आज्ञा देता हूँ कि वे निष्पाप और कभी न काटी जाने योग्य गौ को न मारें।

गोदुग्ध से सब शक्तियों का विकास-
अथर्ववेद के तृतीय काण्ड के चैदहवें सूक्त में छः मंत्र हैं जिनमें गृहस्थियांे द्वारा किस प्रकार गायों का पालन किया जाए इस पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। कहा गया है कि गौओं का निवास स्थान साफ-सुथरा हो, पानी और घास भी शुद्ध हो। गोदुग्ध का प्रयोग हमें ‘अर्यमा, पूषा, बृहस्पति व इन्द्र’ बनाता है। यह हमारे जीवन में वसुओं का पोषण करता है। यह भी कहा गया है कि गौओं को किसी प्रकार का भय प्राप्त न हो। वे सब प्रकार के रोगों से रहित हों। ऐसी गौएँ शान्ति देने वाला मधुर दुग्ध प्राप्त कराती हैं। गौओं के लिए गोष्ठ सुखद हों। इन गोष्ठों में रहने वाली गौवें शालिधान्य की शक्ति की भांति हमें शक्ति प्राप्त कराने वाली हों।

गोमूत्र और गोबर का उपयोग-
गौ का केवल दूध ही नहीं अपितु गोमूत्र और गोबर भी अत्यंत लाभदायक है। गोमूत्र से अनेक रोगों का उपचार किया जा सकता है। गोमूत्र से यकृत के रोग, बवासीर, जलोदर, उदावर्त, चर्मरोग, शोथ, उदर-कृमि, हृदय रोग आदि का उपचार किया जाता है। गोबर शोधक, दुर्गन्धनाशक, सारक, शोषक, बलवर्धक और कान्तिदायक है। आयुर्वेदीय ग्रन्थों में पंचगव्य-घृत का चिकित्सा की दृष्टि से बहुत महत्त्व माना गया है। पंचगव्य-घृत के सेवन से उन्माद, अपस्मार, शोथ, उदररोग, बवासीर, भगंदर, कामला, विषमज्वर, और गुल्म आदि का उपचार किया जाता है। सर्पदंश के विष को नष्ट करने हेतु भी यह उत्तम औषधि मानी गई है। भूमि की उर्वरता और उत्पादन शक्ति बनाय रखने के लिए उत्तम खाद की आवश्यकता होती है। वृद्ध हो जाने अथवा रोग के कारण गाय यदि दूध और बछड़े देने योग्य न रहे, ऐसी स्थिति में भी जब तक वह जीवित रहती है गोबर के रूप में खाद देती रहती है।

एक वैज्ञानिक डा0 बाॅयलर जो अंग्रजी शासन काल में भारतीय कृषि की जांच करने आए थे, ने गाय के गोबर का विश्लेषण करके बताया है कि भारत में गोवंश से प्राप्त होने वाले गोबर से ही एक करोड़ रुपये के मूल्य के की खाद प्रतिदिन प्राप्त हो सकती है। आज के मूल्यों को देखते हुए यह धनराषि कम से कम 100 करोड़ रुपये प्रतिदिन से अधिक की होगी। कृत्रिम रासायनिक खाद से भूमि की उर्वरा शक्ति का ह्रास होता है और अन्ततोगत्वा वह बंजर भूमि में परिवर्तित हो जाती है। इसलिए गोबर की खाद कृषि के लिए अत्यंत लाभदायक है।

वेदों के अनुसार वास्तविक गोवर्धन पूजा
वैदिक ऋषियों ने कहा है-‘‘गावो विश्वस्य मातरः’’ अर्थात् गौएँ विश्व की माता के तुल्य हैं। ये विश्व का पोषण करने वाली हैं। हम प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी, आज के पावन दिन को गोवर्धन पूजा दिवस के रूप में मना रहे हैं। हमारी वास्तविक गोवर्धन पूजा तभी सम्भव होगी जब हम गाय को बूढ़ी हो जाने पर भी माता के समान आजीवन उसकी सेवा करते हुए किसी कसाई के हाथों नहीं बेचेंगे और न बिकने देंगे और हम वेदादि शास्त्रों में बताए गए नियमों के अनुकूल गोसेवा और गोरक्षा करते हुए उनका संवर्धन

परिचय - कृष्ण कान्त वैदिक


सम्पादक : विजय कुमार

गौजल का प्रयोग

गौजल (गौ-मूत्र )का कहाँ-कहाँ प्रयोग किया जा सकता है| | Uses of Gomutra (Desi Zebu Cow Urine)

1. संसाधित किया हुआ गौ मूत्र अधिक प्रभावकारी प्रतिजैविक, रोगाणु रोधक (antiseptic), ज्वरनाशी (antipyretic), कवकरोधी (antifungal) और प्रतिजीवाणु (antibacterial) बन जाता है|

2. ये एक जैविक टोनिक के सामान है| यह शरीर-प्रणाली में औषधि के सामान काम करता है और अन्य औषधि की क्षमताओं को भी बढ़ाता है|

3. ये अन्य औषधियों के साथ, उनके प्रभाव को बढ़ाने के लिए भी ग्रहण किया जा सकता है|

4. गौ-मूत्र कैंसर के उपचार के लिए भी एक बहुत अच्छी औषधि है | यह शरीर में सेल डिवीज़न इन्हिबिटोरी एक्टिविटी को बढ़ाता है और कैंसर के मरीज़ों के लिए बहुत लाभदायक है|

5. आयुर्वेद ग्रंथों के अनुसार गौ-मूत्र विभिन्न जड़ी-बूटियों से परिपूर्ण है| यह आयुर्वेदिक औषधि गुर्दे, श्वसन और ह्रदय सम्बन्धी रोग, संक्रामक रोग (infections) और संधिशोथ (Arthritis), इत्यादि कई व्याधियों से मुक्ति दिलाता है|

बढ़ती गोतस्करी और शहीद हो रहे गौभक्त

ऋषियों के देश भारत मे गोतस्करी दिनों दिन बढ़ रही है । हजारो लाखो गौभक्तो को सरे आम मार जा रहा है । मीडिया गोतस्करों और मीट व्यापारियों का खुले आम समर्थन कर रहे है । मीडिया गौभक्तो को दोषी और गोतस्करों की महिमा गया रहे है । जब देेश में गोमांस प्रतिबंधित है तो मीडिया खाने की आजादी , गैर कानूनी काम को क्यो बढ़ावा देती है, क्या इन्होंने पैसे कहा रखे है मीट व्यापारियों के ??? क्या सरकार गूंगी बहरी है जो मीडिया की लगाम नही कसती ??? जो मीडिया समाज मे असंतुलन , आतंकवाद , धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुचा रहा है , गोमास को बढ़ावा देकर क्या वो अपनी जिम्मेवारी समझता है ???

क्या कारण है कि एक गोतस्कर ( अख़लाक़ ) सबकी जुबान पर है लेकिन हजारो लाखो गौभक्त जो गोमाता की सेवा में अपने प्राण निछावर कर चुके है उनको हैम जानते नही । ये मीडिया की महेबानी है ।क्या कारण है कि गोतस्करों को नेता लाखो करोड़ो तुरंत दान में दे आते है और शहीद गौभक्तो के परिवार की कोई सुध नही लेते । क्या नेता वोट की खातिर इतना नीचे गिर सकता है ???

गोतस्करी और शहीद गौभक्तो की कुछ घटनाएं नीचे दी हुई है ( स्पष्ट देखने के लिए ज़ूम करे )


इतिहासकार राम गुहा ??



ये है इतिहासकार राम गुहा , जो अपने आपको एक ट्वीट में शाकाहारी बताते है और अभी पिछले दिनों धार्मिक भावनाओं को भड़काने के लिए गौमांस खाते हुए की फोटो ट्वीट करते है । आप समझ जाइये इन्होंने कैसे इतिहास लिखकर लोगो को भ्रमित किया और खुद भी भ्रमित है । क्या सोचकर इनके मा बाप ने इनका नाम राम रखा होगा ???

Does Body building require Eating Non Veg food??


See the body of Mr Universe Arnold at age 67, and Body of Jim Morris ( Vegan ) at age 75. ( Source- Peta )

गौ भक्त संजय पहलवान ने बनाये 4 विश्व रिकॉर्ड

गौभक्त संजय पहलवान ने 4 विश्व रिकॉर्ड 2018 में बनाये ।

गौभक्त संजय खाने में केवल गाय के दूध से बनी खीर का प्रयोग करते है, अन्य दूसरी कोई खाद्य पदार्थ नही लेते । सुबह श्याम गौजल का भी सेवन करते है ।

Gobhakt Sanjay wrestler has created 4 world records in 2018. He takes only Desi








Cow milk kheer in his food. 

MAD COW DISEASE















In European countries when they tried to increase meat of cow, they started feeding Cow with meat. Result was Cow got Mad and person who ate meat of that Cow also got Mad - MAD COW DISEASE.

जब यूरोप देशो में गाय का मास बढ़ाने के लिए गाय को मास खिलाना शुरू किया तो गाय पागल हो गयी और उस गाय का मास जिसने खाया वो भी पागल हो गया , यही है मैड काऊ बीमारी ।

गौ विज्ञान डाक्यूमेंट्री फ़िल्म

गौ विज्ञान डाक्यूमेंट्री फ़िल्म

यह *गौ ज्ञान विज्ञान* ( SCIENCE OF COW ) का पूरा documentary फिल्म है ।

इसे PC पर full HD मे डाउनलोड करके projector के माध्यम से गाँव मे दिखा सकते हैं

 https://youtu.be/L7MfkhtRyxU

Vedas

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गौ कथा

गौ कथा

ये कथा भीष्म पितामह ने युधिषिठर को सुनाई थी .
असल में भीष्म पितामह का कहना था कि गाय का मूत्र और गोबर इतना गुणवान है कि इससे हर रोग का निवारण हो सकता है
इतना ही नहीं इसमें माँ लक्ष्मी का भी वास होता है इसलिए इसे बहुत शुभ माना जाता है
 गाय की पवित्रता भी दर्शा रहे है
हमारे हिन्दू धर्म में गाय को माँ का दर्ज़ा दिया जाता है . कुछ लोग इससे गाय माँ और कुछ गाय माता कहते है . यहाँ तक कि अगर हम शास्त्रो का इतिहास देखे तो गाय भगवान् कृष्ण को बहुत प्रिय लगती थी इसलिए तो वो ज्यादातर समय अपनी गायों के साथ व्यतीत करते थे . ये अलग बात है कि आज कल गाय को खाने की वस्तु के रूप में भी प्रयोग किया जाने लगा है जिसके लिए बहुत खेद है .

हम जानते है कि केवल हमारे खेद करने से ये पाप रुकने नहीं वाला इसलिए समझाने से कोई फायदा नहीं बस उम्मीद कर सकते है जो लोग गाय को एक वस्तु समझ कर उसका सेवन करते है वो भी जल्द ही ये सब बन्द कर दे

भीष्म पितामह ने सुनाई युधिषिठर को ये कथा..
—एक बार लक्ष्मी जी ने मनोहर रूप यानि बहुत ही अध्भुत रूप धारण करके गायों के एक झुंड में प्रवेश कर लिया और उनके इस सुंदर रूप को देखकर गायों ने पूछा कि, देवी . आप कौन हैं और कहां से आई हैं?

गायों ने ये भी कहा कि आप पृथ्वी की अनुपम सुंदरी लग रही हो . तब गायों ने एकदम से कहा कि सच सच बताओ, आखिर तुम कौन हो और तुम्हे कहाँ जाना है ?
तब लक्ष्मी जी ने विन्रमता से गायों से कहा कि तुम्हारा कल्याण हो असल में मैं इस जगत में अर्थात संसार में लक्ष्मी के नाम से प्रसिद्ध हूं और सारा जगत मेरी कामना करता है मुझे ही पाना चाहता है . मैंने दैत्यों को छोड़ दिया था और इसलिए वे सदा के लिए नष्ट हो गए
इतना ही नहीं मेरे आश्रय में रहने के कारण इंद्र, सूर्य, चंद्रमा, विष्णु, वरूण तथा अग्नि आदि सभी देवता सदा के लिए आनंद भोग रहे हैं। इसके बाद माँ लक्ष्मी ने कहा कि जिनके शरीर में मैं प्रवेश नहीं करती, वे सदैव नष्ट हो जाते हैं और अब मैं तुम्हारे शरीर में ही निवास करना चाहती हूं
लेकिन इसके बाद भी कथा अभी खत्म नहीं हुई क्योंकि गायों ने अब तक माँ लक्ष्मी को अपनाया नहीं था .

गायों ने क्यूँ किया माँ लक्ष्मी जी का त्याग..
देवी लक्ष्मी की इन बातों को सुनने के बाद गायों ने कहा कि तुम बड़ी चंचल हो, इसलिए कभी कहीं भी नहीं ठहरती . इसके इलावा तुम्हारा बहुतों के साथ भी एक सा ही संबंध है, इसलिए हमें तुम्हारी इच्छा नहीं है तुम्हारी जहां भी इच्छा हो तुम चली जाओ तुमने हमसे बात की, इतने में ही हम अपने आप को तुम्हारी कृतार्थ यानि तुम्हारी आभारी मानती हैं

गायों के ऐसा कहने पर लक्ष्मी ने कहा , कि ये तुम क्या कह रही हो ? मैं दुर्लभ और सती हूं अर्थात मुझे पाना आसान नहीं ,पर फिर भी तुम मुझे स्वीकार नहीं कर रही, आखिर इसका क्या कारण है ? यहाँ तक कि देवता, दानव, मनुष्य आदि सब कठोर तपस्या करके मेरी सेवा का सौभाग्य प्राप्त करते हैं अत:तुम भी मुझे स्वीकार करो . वैसे भी इस संसार में ऐसा कोई नहीं जो मेरा अपमान करता हो .

ये सब सुन कर गायों ने कहा , कि हम तुम्हारा अपमान या अनादर नहीं कर रही, केवल तुम्हारा त्याग कर रही हैं और वह भी सिर्फ इसलिए क्योंकि तुम्हारा मन बहुत चंचल है . तुम कहीं भी जमकर नहीं रहती अर्थात एक स्थान पर नहीं रुक सकती . इसलिए अब बातचीत करने से कोई लाभ नहीं तो तुम जहां जाना चाहती हो, जा सकती हो इस तरह से गायों ने माँ लक्ष्मी का त्याग कर दिया क्योंकि गायों को मालूम था कि लक्ष्मी कभी किसी एक के पास नहीं रहती बल्कि पूरे संसार में घूमती है पर फिर भी माँ लक्ष्मी ने हार नहीं मानी और इतना सब होने के बाद भी वार्तालाप ज़ारी रखी
अब आखिर में माँ लक्ष्मी ने कहा , गायों. तुम दूसरों को आदर देने वाली हो और यदि तुमने ही मुझे त्याग दिया तो सारे जगत में मेरा अनादर होने लगेगा . इसलिए तुम मुझ भी पर अपनी कृपा करो मैं तुमसे केवल सम्मान चाहती हूँ

तुम लोग सदा सब का कल्याण करने वाली, पवित्र और सौभाग्यवती हो तो मुझे भी बस आज्ञा दो, कि मैं तुम्हारे शरीर के किस भाग में निवास करूं?
इसके बाद गायों ने भी अपना मन बदल लिया और गायों ने कहा, हे यशस्विनी . हमें तुम्हारा सम्मान आवश्य ही करना चाहिए  इसलिए तुम हमारे गोबर और मूत्र में निवास करो, क्योंकि हमारी ये दोनों वस्तुएं ही परम पवित्र हैं।

तब माँ लक्ष्मी ने कहा, धन्यवाद् और धन्यभाग मेरे, जो तुम लोगों ने मुझ पर अनुग्रह किया यानि मेरे प्रति इतनी कृपा दिखाई मैं आवश्य ऐसा ही करूंगी . मैं सदैव तुम्हारे गोबर और मूत्र में ही निवास करूंगी सुखदायिनी गायों अर्थात सुख देने वाली गायों तुमने मेरा मान रख लिया , अत: तुम्हारा भी कल्याण हो बस यही वजह है कि गाय की इन दो वस्तुओ को लक्ष्मी का ही रूप समझा जाता है .

             इस कथा को पढ़ने के बाद ये तो समझ आ ही गया होगा कि गाय का धार्मिक ग्रंथो के अनुसार कितना महत्व है।

Vaccination or Assassination


VACCINATION OR ASSASSINATION





















Suvarn prashan ( search suvarnaprashan in Youtube ) . Some useful links -

https://youtu.be/lDuTFnEmNMo

https://youtu.be/LR8Nli57aAI

https://youtu.be/OznwK_i5weY

https://youtu.be/4yUtR7u0EkM

https://youtu.be/UWtKocLkD5w

https://youtu.be/bNWfGnp3fXA

https://youtu.be/P1sFhvcwq5E


Vaccination - The Hidden truth Documentary on I'll effects of Vaccination (Youtube)-

https://youtu.be/cqsT5EoIk8U

Gomata's milk ( Milk from Desi Cow, Zebu Cow , Cow with hump ) is Nectar on earth. Mahabharat also says the same.It improves immunity power of child.

Some of the renowned people who are taking Desi Cow milk are - Kautilya the Google Boy, Wrestler Sakshi Malik, Wrestler Sushil Kumar, Wrestler Sanjay from Palwal (he made 4 world records in 2018).

Vitamin D is only present in Cow Milk (there is no other natural source apart from Sunlight).

Research has shown that 1 litre of Cow milk has got around 55 Rs of Gold.

Panchgavya ( mixture of 5 products of Cows- doodh, dahi, ghi ,gomutra , govar) is also given to new born children.,  which increase there immunity power throughout life (usually given for first 7-8 days of newborn child ). Some ayurvedic companies , ashrams and Gaushala do make panchgavya. In shashtras it is said PANCHGAVYA could remove all the diseases from bone to skin , toe to head.

गौमाता का दूध , पंचगव्य एक प्राकृतिक टीका है । टीका करण के विभिन्न दुष्परिणाम है जो वैज्ञानिको ने सामने लाये है । हर दिन एक नया टीका बढ़ रहा है । बच्चा इतने इंजेक्शनों से वैसे ही दुसप्रभावित होगा ।

पीछे नोएडा की कंपनी ने पोलियो के टीके में पोलियो के वायरस डाल दिये , जिससे लाखो बच्चो को पोलियो का खतरा बढ़ गया है -
https://www.amarujala.com/delhi-ncr/banned-elements-found-in-polio-vaccine-action-on-company-in-ghaziabad




Cow Conference 2018 in California

Cow Conference 2018 was organised in California on 20May2018. Well known social activist and member of parliament Dr Subramanian Swamy was keynote speaker.
ISKCON's Bhakti Charu Swami was chief guest of the conference.

Click below Youtube link to see evwnt highlights-

https://youtu.be/um5Cj5B7LoQ

भाजपा के एकमात्र उम्मीदवार गौभक्त राजा सिंह तेलंगाना से विजयी हुए

तेलंगाना से भाजपा के एक मात्र उम्मीदवार विधानसभा इलेक्शन 2018 में विजयी हुए है , वो है गोभक्त राजा सिंह । भाजपा को गौसेवा ही विजयी बनायेगी । सभी भाजपा के लोग यदि गौभक्त राजा सिंह जैसे गौसेवा में लगे तो उनका जीतना निश्चित है । 

हिमाचल विधानसभा में गाय को राष्ट्रमाता घोषित करने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित

हिमाचल विधानसभा में गाय को राष्ट्रमाता घोषित करने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित


https://www.google.com/amp/s/www.amarujala.com/amp/shimla/proposal-to-declare-cow-as-nation-mother-passed-unanimously-in-himachal-assembly

( अमर उजाला, 13दिसंबर2018 )
After Uttarakhand ,Himachal Government has declared Divine Mother Cow as Mother of Nation .
उत्तराखंड के बाद हिमाचल भी गाय को ‘राष्ट्रमाता’ घोषित करने के पक्ष में खड़ा हो गया है। तपोवन में शीतकालीन सत्र के चौथे दिन कांग्रेस विधायक की ओर से लाए संकल्प प्रस्ताव को सत्तारूढ़ दल भाजपा और विपक्षी पार्टी कांग्रेस के सदस्यों ने हां मिलाते हुए सर्वसम्मति से पारित कर दिया।

कांग्रेस विधायक अनिरुद्ध की ओर से लाए गैर सरकारी सदस्य कार्य संकल्प को पारित करने के बाद अब स्वीकृति के लिए केंद्र को भेजा जाएगा। वीरवार को प्राइवेट मेंबर्स डे पर कसुम्पटी से कांग्रेस विधायक अनिरुद्ध सिंह गोमाता को राष्ट्रमाता घोषित करने के बारे में कोई नीति बनाने पर विचार करने का संकल्प सदन में लेकर आए। 

अनिरुद्ध ने कहा कि गाय का इस्तेमाल करने के बाद उसे लावारिस छोड़ा जा रहा है। इसकी दुर्दशा इतनी हुई कि मोब लिंचिंग का दौर भी चला। गाय को राष्ट्रमाता घोषित करने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा जाना चाहिए। इस पर पक्ष और विपक्ष के सभी सदस्यों ने गाय को राष्ट्रमाता घोषित करने के लिए हामी भरी।

इसके बाद संकल्प सदन में सर्वसम्मति से पारित हो गया। पशुपालन मंत्री ने कहा कि वर्ष 2011-12 की गणना के अनुसार हिमाचल में 21 लाख 49 हजार गायें पंजीकृत हुईं। इनमें से 40 हजार गायें सड़कों पर हैं। सिर्फ 10 हजार गायें गोशालाओं में हैं।

Saturday, November 17, 2018

गोपाष्टमी क्यों मनाई जाती है ?

*गोपाष्टमी क्यों मनाई जाती है ?*

*जानिए ऐसा क्या हुआ जो कन्हैया रोने लगे गोपाष्टमी के दिन*

*जानिए गोपाष्टमी का महत्व*

*आप भी सुने और इस लिंक को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें*

*31 वर्षीय गो पर्यावरण एवं अध्यात्म चेतना पदयात्रा*


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