Sunday, May 26, 2019

दूध का मसला है क्या?

दूध का मसला है क्या?

भारतीय दिनचर्या ने दूध का बहुत अधिक महत्व है यहां दूध का उपयोग जी भर कर किया जाता है। दूधका उत्पादन गाय और भैंस से होता है जो  मुख्यतः गांव देहात में रहती है।

शहरों के बड़ा होने से गांव छिटक कर शहरों से दूर चले गए हैं। इसमे व्यापारी के लिए एक बड़ी संभावना उभर कर आ गयी है।व्यपारी को तो दरार दिखनी चाहिए वो उसका इंडिया गेट तो अपने आप बना ही लेता है।

यह बड़ी स्थापित बात है कि दूध निकाले जाने के साथ ही बैक्टीरियल एक्टिविटी होने के कारण अपने आप विघटित होने लगता है और साधारण तापमान पर दूध को घंटे डेढ़ घंटे के अंदर अंदर रसोईघर में पहुंच जाना चाहिए गर्म होने के लिए।

लेकिन हमने अपनी टाउन प्लानिंग इतने बेकार तरीके से की है कि सेक्टर मोहल्ले वालों के घूमने और कुत्ते हंडाने के लिए बड़े बड़े पार्क तो बना दिये हैं लेकिन आबादी के साथ पांच दस्य एकड़ जमीन बचा कर नही रखी जिसे गौपालकों के लिए रिजर्व किया जाता और सभी लोग लोकल रहते हुए अपने सामने दूध का आनंद ले सकते।

खैर कोई बात नही अब हमारे पास और बहुत जुगाड़ विकसित हो चुके हैं जैसे हाइड्रोजन पर ऑक्साइड, फोर्मलिन,कास्टिक जिनके द्वारा विषम मौसम में दूध को लगा कर उसे ट्रेवल कराया जा सकता है।

मैने 1998 में एक डेयरी प्रॉसेसिंग प्लान्ट में ट्रेनिंग की और मैं यह सोच कर हैरान था के रोहतक शहर के दूध की पूर्ति बीकानेर और दिल्ली मदर डेयरी सेआए हुए टैंकर्स पूर्ति करते थे।

फिर ये रोहतक वाले अपनी गाय भैंस का क्या करते हैं। दो तीन गाड़ियां सिम्बोलिक रूप से इधर उधर घूम कर दूध एकत्र करके लाती थी।मेरी ड्यूटी वहीं लगी हुई थी जहां से दूध आता था सो दूध ढोने वाले टैंकर्स और उनके ड्राइवर्स से मेरी पहचान हो गयी।

दिल्ली में दूध थोड़ी न उत्पादन हो रहा है लेकिन मदर डेयरी का टैंकर रोहतक को दूध पिला रहा है। इस दूध को उठा कर घूमने फिरने में ही सब गड़बड़झाला है।

आबादी के साथ गौपालक और गाय को इंटेग्रेट करने से सारा समाधान हो सकता है लेकिन नही इसमे कॉरपोरेट का इंटरेस्ट हर्ट होता है। आम जन मजबूत नही होना चाहिए।

मिल्क प्लांटों में दूध के साथ केवल बदतमीजी और बदमाशी होती है। इसमें इतना गड़बड़ सौदा है कि पंजाब से चले दूध के टैंकर जिनके सैंपल दिल्ली में फेल जो जाते हैं वो दूध फेंकते थोड़ी न है वो रोहतक हिसार या कहीं और जा कर पास हो जाते हैं।

आज दूध केवल बीमारी बांटने का सबब बना दिया गया है। गाय सड़क पर फिर रही है, आप जितना मर्जी दूध आर्डर कर दीजिये पनीर आर्डर कर दीजिए आपको मिलेगा।

कहाँ से ला रहे हैं, बताते हैं पाउडर से बनाते हैं, पाउडर की पूछो तो कहते हैं कि वेंडर से खरीदा है, वेंडर की पूछ लो तो कहते हैं कि तुम गद्दार हो, देश मे डिस्टर्बेंस फैलाना चाहते हो।

अबे हरामियों पशुपालक मर रहा है, पशु मर रहे हैं तुम्हारा मार्किट साइज बढ़ता जा रहा है, उत्पादन और खपत में इतना बड़ा गैप है। सुप्रीम कोर्ट में एफिडेविट दिया है कृषि मंत्रालय और फ़ूड प्रोसेसिंग मंत्रालय ने जिसमे कृषि मंत्रालय से बताया है कि देश मे।दूध का उत्पादन इतना होता है , दूसरे मंत्रालय ने बताया हुआ है के हम डेली इतना प्रोसेस करके दूध सप्लाय करते हैं। दोनों में फर्क घातक और सर फोड़ू स्तर का है।

देश के सारे साइंसदान मुहं में दही जमा कर मोटी तनख्वाह और  फैसिलिटीज का एंजॉय करने में जीवन बिता रहे हैं,मोटे मोटे रिसर्च पेपर छाप कर ईगो बड़ी कर रखी है एवेरेस्ट से ऊंची। एक लीटर दूध की कीमत पशुपालक को क्या मिलनी चाहिए यहां तक अभी कोई स्पष्ठ तौर पर नही पहुंच पाया है।

देसी गाय जीरो डिग्री तापमान से लेकर 48 डिग्री तापमान तक खुले में रह कर भूसा खा कर 2 लीटर दूध देती है उसको ये घाटे का सौदा बताते हैं। दूसरी तरफ जो ये गाय बताते हैं उसको पालने में किसान घुस जाता है उसके दूध को पी कर उपभोक्ता घुस जाता है।

गाय सड़क पर है,किसान बेहाल, पशुपालक खत्म सिंह और ये कागजी शेर कहते हैं हम दूध उत्पादन में नम्बर वन।

अब नई स्कीम लाये हैं फोर्टीफिकेशन मतलब केवल बड़ा कॉरपोरेट ही दूध बेच पायेगा क्योंकि और किसी के बस का ही नही है तकनीक को मैनेज करना। विटामिन आएंगे बाहर से।

सभी वेंडर्स का FSSAI पंजीकरण मतलब बन्दर रोटी खायेगा बिल्लियां केवल मुहं ताकेंगी। व्यवस्था को इतना कॉम्प्लेक्स ही क्यों बनाया के इन सब रफडों की जरूरत पड़ रही है।

टाउन प्लानिंग वालों को पहले पकड़ो, सालों ऐसे शहर ही क्यों बसाते हो जो प्राइमरी उत्पादक से दूर हो जाएं।

सब समस्याओं का सरल इलाज है लोकल उत्पादन लोकल खपत, पंचकूला का दूध पंचकूला के आस पास से आना ही सुनिश्चित किया जाए। ताकि लोग खुद अपना क्वालिटी कंट्रोल विकसित कर सकें।

इससे प्राइमरी उत्पादक को रेस्पेक्ट रिवॉर्ड और रिकॉग्निशन तीनों सुनिश्चित किये जा सकेंगे। गांव और शहर एक दूसरे के पूरक बन जाएंगे और ये देश बसा रहेगा।

No comments:

Post a Comment