Saturday, March 23, 2019

गौहत्या के खिलाफ लडे 68 गौभक्त 1872 में

गौहत्या के खिलाफ लडे 68 गौभक्त 1872 में

http://azaadbharat.org/जनवरी-17-को-अंग्रेजों-ने-68-गौभ/

JANUARY 17, 2019

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🚩भारत में गौ हत्या को बढ़ावा देने में अंग्रेज़ों ने अहम भूमिका निभाई । जब 1700 ई. में अंग्रेज़ भारत आए थे उस वक़्त यहां गाय और सुअर का वध नहीं किया जाता था । हिंदू गाय को पूजनीय मानते थे और मुसलमान सुअर का नाम तक लेना पसंद नहीं करते थे । अंग्रेजों ने मुसलमानों को भड़काया कि क़ुरान में कहीं भी नहीं लिखा है कि गाय कि क़ुर्बानी हराम है । इसलिए उन्हें गाय कि क़ुर्बानी करनी चाहिए । उन्होंने मुसलमानों को लालच भी दिया और कुछ लोग उनके झांसे में आ गए । इसी तरह उन्होंने दलित हिंदुओं को सुअर के मांस की बिक्री कर मोटी रकम कमाने का झांसा दिया । नतीजन 18वीं सदी के आख़िर तक बड़े पैमाने पर गौ हत्या होने लगी । अंग्रेज़ों की बंगाल, मद्रास और बंबई प्रेसीडेंसी सेना के रसद विभागों ने देश भर में कसाईखाने बनवाए । जैसे-जैसे यहां अंग्रेज़ी सेना और अधिकारियों की तादाद बढ़ने लगी वैसे-वैसे गौ हत्या में भी बढ़ोत्तरी होती गई ।

गौ हत्या और सुअर हत्या की आड़ में अंग्रेज़ों को हिंदू और मुसलमानों में फूट डालने का भी मौक़ा मिल गया । इस दौरान हिंदू संगठनों ने गौ हत्या के ख़िला़फ मुहिम छेड़ दी । नामधारी सिखों का कूका आंदोलन कि नींव गौरक्षा के विचार से जुड़ी थी ।

🚩यह आंदोलन भी एक ऐसा इतिहास है जो समय के पन्नो के नीचे जानबूझ कर दबाया गया । एक गहरी व सोची समझी साजिश थी इसके पीछे क्योंकि यहां संबन्ध गाय से था और गाय शब्द आते ही स्वघोषित इतिहासकारों की भृकुटियां तन जाती है क्योंकि उसमें से तो कुछ गाय खाते हुए सेल्फी तक डालते हैं ।

गाय शब्द आते ही बुद्धिजीवियों के एक बड़े वर्ग में बेचैनी आ जाती है क्योंकि गाय की रक्षा को उन्होंने एक बेहद नए व आयातित शब्द से जोड़ रखा है जिसका नाम मॉब लिंचिंग है । गाय शब्द आते ही सत्ता में भी हलचल मचती है क्योंकि संसद में गौ रक्षको को सज़ा दिलाने के लिए कुछ लोग अपनी सीट तक छोड़ देते हैं और संसद तक नहीं चलने देते हैं । उसी गौ माता की रक्षा व उनके रक्षकों का आज बलिदान दिवस है जो परम् गौ भक्त रामसिंह कूका के नेतृत्व में थे…

🚩17 जनवरी, 1872 की प्रातः ग्राम जमालपुर (मालेरकोटला, पंजाब) के मैदान में भारी भीड़ एकत्र थी । एक-एक कर 50 गौभक्त सिख वीर वहाँ लाये गये । उनके हाथ पीछे बँधे थे । इन्हें मृत्युदण्ड दिया जाना था । ये सब सद्गुरु रामसिंह कूका के शिष्य थे । अंग्रेज जिलाधीश कोवन ने इनके मुह पर काला कपड़ा बाँधकर पीठ पर गोली मारने का आदेश दिया; पर इन वीरों ने साफ कह दिया कि वे न तो कपड़ा बँधवाएंगे और न ही पीठ पर गोली खायेंगे । तब मैदान में एक बड़ी तोप लायी गयी । अनेक समूहों में इन वीरों को तोप के सामने खड़ा कर गोला दाग दिया जाता । गोले के दगते ही गरम मानव खून के छींटे और मांस के लोथड़े हवा में उड़ते । जनता में अंग्रेज शासन की दहशत बैठ रही थी । कोवन का उद्देश्य पूरा हो रहा था । उसकी पत्नी भी इस दृश्य का आनन्द उठा रही थी ।

🚩इस प्रकार 49 वीरों ने मृत्यु का वरण किया; पर 50 वें को देखकर जनता चीख पड़ी । वह तो केवल 12 वर्ष का एक छोटा बालक बिशनसिंह था । अभी तो उसके चेहरे पर मूँछें भी नहीं आयी थीं । उसे देखकर कोवन की पत्नी का दिल भी पसीज गया । उसने अपने पति से उसे माफ कर देने को कहा । कोवन ने बिशनसिंह के सामने रामसिंह को गाली देते हुए कहा कि यदि तुम उस धूर्त का साथ छोड़ दो, तो तुम्हें माफ किया जा सकता है । यह सुनकर बिशनसिंह क्रोध से जल उठा । उसने उछलकर कोवन की दाढ़ी को दोनों हाथों से पकड़ लिया और उसे बुरी तरह खींचने लगा । कोवन ने बहुत प्रयत्न किया; पर वह उस तेजस्वी बालक की पकड़ से अपनी दाढ़ी नहीं छुड़ा सका । इसके बाद बालक ने उसे धरती पर गिरा दिया और उसका गला दबाने लगा । यह देखकर सैनिक दौड़े और उन्होंने तलवार से उसके दोनों हाथ काट दिये । इसके बाद उसे वहीं गोली मार दी गयी । इस प्रकार 50 कूका वीर उस दिन बलिपथ पर चल दिये ।

🚩गुरु रामसिंह कूका का जन्म 1816 ई0 की वसन्त पंचमी को लुधियाना के भैणी ग्राम में जस्सासिंह बढ़ई के घर में हुआ था । वे शुरू से ही धार्मिक प्रवृत्ति के थे । कुछ वर्ष वे महाराजा रणजीत सिंह की सेना में रहे । फिर अपने गाँव में खेती करने लगे । वे सबसे अंग्रेजों का विरोध करने तथा समाज की कुरीतियों को मिटाने को कहते थे । उन्होंने सामूहिक, अन्तरजातीय और विधवा विवाह की प्रथा चलाई । उनके शिष्य ही ‘कूका’ कहलाते थे ।  कूका आन्दोलन का प्रारम्भ 1857 में पंजाब के विख्यात बैसाखी पर्व (13 अप्रैल) पर भैणी साहब में हुआ । गुरु रामसिंह जी गोसंरक्षण तथा स्वदेशी के उपयोग पर बहुत बल देते थे । उन्होंने ही सर्वप्रथम अंग्रेजी शासन का बहिष्कार कर अपनी स्वतन्त्र डाक और प्रशासन व्यवस्था चलायी थी ।

🚩मकर संक्रान्ति मेले में मलेरकोटला से भैणी आ रहे गुरुमुख सिंह नामक एक कूका के सामने मुसलमानों ने जानबूझ कर गौहत्या की । यह जानकर कूका वीर बदला लेने को चल पड़े । उन्होंने उन गौहत्यारों पर हमला बोल दिया; पर उनकी शक्ति बहुत कम थी । दूसरी ओर से अंग्रेज पुलिस एवं फौज भी आ गयी । अनेक कूका मारे गये और 68 पकड़े गये । इनमें से 50 को 17 जनवरी को तथा शेष को अगले दिन मृत्युदण्ड दिया गया ।

अंग्रेज जानते थे कि इन सबके पीछे गुरु रामसिंह कूका की ही प्रेरणा है । अतः उन्हें भी गिरफ्तार कर बर्मा की जेल में भेज दिया । 14 साल तक वहाँ काल कोठरी में कठोर अत्याचार सहकर 1885 में सदगुरु रामसिंह कूका ने अपना शरीर त्याग दिया । आज उन सभी गौ भक्तों को उनके बलिदान दिवस पर नमन…

🚩भारतीय इतिहास में गौ हत्या को लेकर कई आंदोलन हुए हैं और कई आज भी जारी हैं । लेकिन अभी तक गौहत्या पर प्रतिबन्ध नहीं लग सका है । इसका सबसे बड़ा कारण राजनितिक इच्छा शक्ति कि कमी होना है । आप कल्पना कीजिये हर रोज जब आप सोकर उठते है तब तक हज़ारों गौओं के गलों पर छूरी चल चुकी होती है । गौ हत्या से सबसे बड़ा फ़ायदा तस्करों एवं गाय के चमड़े का कारोबार करने वालों को होता है । इनके दबाव के कारण ही सरकार गौ हत्या पर प्रतिबन्ध लगाने से पीछे हट रही है । वरना जिस देश में गाय को माता के रूप में पूजा जाता हो वहां सरकार गौ हत्या रोकने में नाकाम है । आज हमारे देश कि जनता ने नरेन्द्र मोदी जी को सरकार चुनी है । सेक्युलरवाद और अल्पसंख्यकवाद के नाम पर पिछले अनेक दशकों से बहुसंख्यक हिन्दुओं के अधिकारों का दमन होता आया है । उसी के प्रतिरोध में हिन्दू प्रजा ने संगठित होकर जात-पात से ऊपर उठकर एक सशक्त सरकार को चुना है । इसलिए यह इस सरकार का कर्त्तव्य बनता है कि वह बदले में हिन्दुओं की शताब्दियों से चली आ रही गौरक्षा कि मांग को पूरा करें और गौ हत्या पर पूर्णत प्रतिबन्ध लगाए ।

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गोवंश संरक्षण के लिए योगी सरकार की नयी पहल, 200 गाय पालिए 1.80 लाख महीना कमाइए


गोवंश संरक्षण के लिए योगी सरकार की नयी पहल, 200 गाय पालिए 1.80 लाख महीना कमाइए
Updated On: Jan, 11 2019 04:31 PM IST


लखनऊ. गौवंश संरक्षण के लिए उप्र सरकार ने नई पहल की है। प्रदेश के पशुपालन मंत्री एसपी सिंह बघेल गौवंश संरक्षण के साथ-साथ बेरोजगारों के लिए नया ऑफर लेकर आए हैं। इसके तहत आवारा पशुओं के लिए गौ संरक्षण केंद्र स्थापित करने के लिए प्रस्ताव दिया है। इन संरक्षण केंद्रों में घुमंतू जानवरों को रखा जाएगा ताकि वे किसानों की फसलों को नुकसान न पहुंचाएं। राज्य सरकार के प्रस्ताव में कहा गया है कि जिस भी किसान के पास पांच बीघा जमीन है वह उसमें 200 गायों या गौवंश को रखने के लिए संरक्षण केंद्र बना सकता है। सरकार प्रति गौवंश के लिए 30 रुपये खर्च देगी। इस हिसाब से हर रोज 6 हजार यानी 1.8 लाख महीना रुपये प्रति संरक्षण केंद्र को मिलेगा। इस राशि से गौवंश के लिए चारे-पानी आदि की व्यवस्था होगा। जबकि, संरक्षण केंद्र चलाने वाले व्यक्ति को गौवंश के गोबर, मूत्र और दूध आदि से अतिरिक्त कमाई हो सकेगी।
सरकार तलाश रही स्थायी समाधान
कैबिनेट मंत्री बघेल के मुताबिक सरकार किसानों के दर्द को महसूस कर रही है। किसान फसल के लिए रात-रात भर जागता है। गांव में लोग सडक़ बिजली, पानी और बिजली के बदले गौवंश की समस्या के समाधान के बारे में पूछते हैं। इसलिए सरकार इस समस्या का स्थायी समाधान तलाश रही है और इस पर काम शुरू हो गया है।
अब शर्तिया बछिया ही पैदा होंगी
गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश देश का पहला ऐसा राज्य है जिसने वर्गीकृत वीर्य पर अमरीका के एबीसी कंपनी से समझौता किया है। वर्गीकृत वीर्य के इस्तेमाल से 92 प्रतिशत बछिया पैदा होगी। पांच महीने में हर अस्पताल में वर्गीकृत वीर्य उपलब्ध करा दिया जाएगा। बघेल ने बताया कि अगर योगी सरकार की इस नीति पर 10 साल उत्तर प्रदेश चल जाए, तो यह सबसे अच्छा पशुधन वाला राज्य बन जाएगा। इससे आवारा पशुओं पर तो रोक लगेगी ही बैलों की समस्या से भी निपटा जा सकेगा।
सभी जिलों गौ संरक्षण सदन का निर्माण
सभी जनपदों में गौ संरक्षण सदन का निर्माण किया जाना है। इसकी कुल लागत 1 करोड़ 20 लाख रुपये आएगी। प्रदेश में 52 जगहों पर निर्माण कार्य प्रगति पर है। हाथरस और अलीगढ़ में भी जगह चिन्हित कर ली गयी है।

Villagers mourn death of crocodile in a village in Chhattisgarh, more than 500 people attend last rites


Villagers mourn death of crocodile in a village in Chhattisgarh, more than 500 people attend last rites

OpIndia Staff | ReportsOn January 10, 2019









The Crocodile named Gangaram
A rare but beautiful example of human-animal coexistence was witnessed in a village of Chhattisgarh where the villagers mournedthe death of a crocodile. In Bawa Mohtara village in Bemetara district, a 130 year-old crocodile died in the village pond on Tuesday.  After the reptile died, the villagers took out a funeral procession of the crocodile. The mournful people of the village did not even cook food on the of the crocodile’s death.
The 3.4 metre-long crocodile was found dead on 8th January in the village pond, after which the villagers had informed the forest department and the carcass was taken out of the water. The animal died of natural causes, which weighed around 250 kg. More than 500 villagers took part in the funeral procession.
The villagers had named the crocodile as ‘Gangaram’ and used to worship him as a deity. According to the village Sarpanch, the villagers are considering to build a temple in the memory of the crocodile. A memorial is also decided to be erected on the bank of the pond where the crocodile was buried. The villagers also performed the last rites of the crocodile whom they considered their protector.
“The villagers had so much affection for the reptile that many of them did not even cook food the day it died. Locals had long back named it ‘Gangaram’. They used to worship it as a deity and the protector of the village,” told village Sarpanch Mohan Sahu. He said that crocodile had been living in the village pond for more than 100 years and had never harmed the villagers including children who used to bathe in the pond. “In the past, the crocodile had crawled over to some nearby villages couple of times and we had to bring it back to the pond,” Sahu said.
R K Sinha, Sub-divisional officer of forest Bemetara appreciated the love of villagers for the crocodile. He said that the villagers have set a good example of human-animal coexistence. “After getting information about its death, the forest personnel went there and a post-mortem was conducted by veterinarians. After the autopsy, the carcass was handed over to the villagers as they wanted to perform it final rites,” he added.

छह घंटे में 15 हजार 949 पुशअप कर हरियाणा के गौ भक्त ने बनाया विश्व रिकार्ड


छह घंटे में 15 हजार 949 पुशअप कर हरियाणा के गौ भक्त ने बनाया विश्व रिकार्ड

देहरादून ब्यूरो Updated Thu, 26 Jul 2018

https://www.amarujala.com/uttarakhand/uttarkashi/1532624761215-949-utter-kashi-news








उत्तरकाशी। मात्र छह घंटे में 15 हजार 949 पुशअप करके हरियाणा निवासी संजय सिंह ने गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराया। उन्होंने उत्तरकाशी के रामलीला मैदान में चल रही अपने गुरु संत गोपालमणि की गो कथा के मंच पर यह रिकार्ड बनाया।

रामलीला मैदान में चल रही गो कथा में बृहस्पतिवार को एक अद्भुत कारनामा देखने को मिला। हरियाणा निवासी एवं गो भक्त संजय सिंह (22) ने बृहस्पतिवार सुबह साढ़े आठ बजे पुशअप करना शुरू किया और ढाई बजे तक 15 हजार 949 पुशअप करके गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अपना नाम दर्ज कराया। मौके पर मौजूद रहे गोल्डन बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड के भारतीय प्रभारी आलोक कुमार ने बताया कि इससे पूर्व कुलदीप सैनी ने बीते 21 जून को छह घंटे में 10 हजार 832 पुशअप का वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था, लेकिन संजय सिंह ने इतने ही वक्त में 15 हजार 949 पुशअप कर नया कीर्तिमान स्थापित कर दिया है। गो आंदोलन के प्रणेता संत गोपालमणि ने संजय पहलवान को रिकार्ड सर्टिफिकेट देकर सम्मानित किया।


गाय की सेवा की प्रेरणा से मिली कामयाबी
विश्व रिकॉर्ड बनाने वाले संजय सिंह के भाई भगत सिंह ने बताया कि इस कामयाबी के पीछे गो सेवा है। उन्होंने बताया कि संजय ने उनके पिता लाखा राम से प्रेरित होकर बचपन से ही पहलवानी शुरू कर दी थी, लेकिन वर्ष 2008 में संत गोपालमणि की गो कथा सुनने के बाद उसका जीवन ही बदल गया। संजय ने संत गोपालमणि को अपना गुरु मानकर उनकी प्रतिमा बनाई और रोज अभ्यास शुरू कर दिया। 21 मार्च 2018 को उन्होंने एक घंटे में चार हजार 295 पुशअप कर ऑस्ट्रेलिया के पहलवान कार्लटन विलियम का विश्व रिकॉर्ड तोड़ा।

मुजफ्फरनगर: 100 किलो गोमांस के साथ गिरफ्तार गोकश सलीम और गुलफाम, सिपाही को लगी गोली

मुजफ्फरनगर: 100 किलो गोमांस के साथ गिरफ्तार गोकश सलीम और गुलफाम, सिपाही को लगी गोली

अमेरिका से जॉब छोड़कर लौटा इंडिया; 2 गायों से शुरू किया था करियर-आज डेयरी में हैं 80 गायें, यह देखने पूरी टीम के साथ यहां पहुंचे डीएम Dainik BhaskarDec 29, 2018, 05:06 PM IST


अमेरिका से जॉब छोड़कर लौटा इंडिया; 2 गायों से शुरू किया था करियर-आज डेयरी में हैं 80 गायें, यह देखने पूरी टीम के साथ यहां पहुंचे डीएम

Dainik Bhaskar

Dec 29, 2018, 05:06 PM IST



शाहजहांपुर (यूपी). आज हम आपको एक ऐसे गो-सेवक से मिलवा रहे हैं, जिसने अमेरिका की जॉब छोड़कर गायों में अपना रोजगार तलाशा। आज यह शख्स उत्तर प्रदेश के शाहजहांपुर में सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादन करने वाला किसान बन गया है। इनका काम देखने के लिए खुद डीएम तमाम अफसरों के साथ यहां पहुंचे। बात हो रही है शरद गंगवार की। जिनका कहना है कि अपने हुनर का इस्तेमाल अपने वतन के लिए करना चाहिए।
2 गायों की सेवा से शुरु किया व्यापार, आज हैं 80 गायें...
- तिलहर तहसील के रामपुर गांव निवासी शरद गंगवार ने दिल्ली से एमबीए की पढ़ाई की है। 2009 में उन्हें यूएस के न्यूयॉर्क में 'अमेरिकन एक्सप्रेस' नाम की कंपनी में जॉब मिली थी। लेकिन 5 साल बाद ही उन्हें देश की मिट्टी अपने वतन और अपने गांव खींच लाई।
- 2014 में भारत लौटने के बाद उन्होंने गांव में ही रहकर दो गायों की सेवा से अपने करियर की शुरुआत की। आज उनके पास लगभग 80 गाये हैं, जो उनके लिए सबसे बड़ा रोजगार बन चुकी है। इनसे रोजाना 200 लीटर दूध का उत्पादन होता है। यही वजह है कि आज वह पूरे जिले के सबसे बड़े दूध उत्पादक हैं।
- उनका कहना है, डॉक्टर-इंजीनियर बनने के बाद लोग अपनी काबलियत विदेशों को बेच देते हैं। लेकिन अगर अपनी योग्यता और हुनर अपने देश के लिए इस्तेमाल करें, तो देश की दशा और दिशा दोनों बदल सकती हैं।
पत्नी भी देती हैं साथ
- शरद की जिंदगी अपनी गायों और इसी गौशाला में गुजरती है। इसमें उनकी पत्नी भी उनका साथ देती हैं। इतना ही नहीं, उनकी इस गौशाला से 8 और लोगों को भी रोजगार मिला है। शरद के इसी जज्बे को देखने डीएम व उनके अफसर गौशाला देखने पहुंचे। अफसर भी इस अमेरिका रिटर्न के जज्बे को सलाम करते हैं।
- डीएम अमृत त्रिपाठी ने बताया, हमें पता चला कि अमेरिका में जॉब छोड़कर शरद अपने घर लौटे और गायों की सेवा कर उसमें ही रोजगार तलाश लिया है। जब हमने उनकी डेयरी देखी, तो लगा इनके जज्बे को सलाम करना चाहिए।
- उनकी ही तरह जिले के 25 ऐसे किसानों को हमने चिह्नित किया है, जिन्होंने बिना सरकारी मदद के इतना बड़ा काम किया है। हम उन किसानों के घर-घर जाकर उनकी हौसला अफजाई करेंगे और उन्हें जो सरकारी मदद मिलनी चाहिए वो उन्हें दी जाएगी।

दूध दही वाले देश के किसानों को चौपट करेंगे अमेरिकी डेयरी प्रोडक्ट


दूध दही वाले देश के किसानों को चौपट करेंगे अमेरिकी डेयरी प्रोडक्ट



https://www.gaonconnection.com/desh/us-dairy-product-import-in-india-dairy-market-hit-indian-farmers--43054


Home > देश > दूध दही वाले देश के किसानों को चौपट करेंगे अमेरिकी डेयरी प्रोडक्ट दूध दही वाले देश के किसानों को चौपट करेंगे अमेरिकी डेयरी प्रोडक्ट by: Diti Bajpai Published: 29 Dec 2018 Updated:29 Dec 2018 लुधियाना/लखनऊ। मिल्क पाउडर के स्टॉक से डेयरी किसान और डेयरी इंडस्ट्री उभर नहीं पाई, उन्हीं पशुपालकों के लिए एक और मुसीबत आने वाली है। अमेरिका में बने डेयरी उत्पादों को भारत में आयात किया जाएगा। सरकार के इस फैसले से देश के सात करोड़ डेयरी व्यवसाय से जुड़े लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। अमेरिकी डेयरी प्रोडक्ट के आयात को देश के किसानों, और कारोबारियों के लिए घातक बताते हुए इस सेक्टर से जुड़े लोगों ने विरोध शुरु कर दिया। इकनोमिक्स टाइम में छपी खबर के मुताबिक अमेरिका से डेयरी प्रॉडक्ट्स के आयात को भारत अनुमति देने के लिए तैयार है। शुरू में यह करोबार 700 करोड़ डॉलर का होगा। ये ख़बर इसलिए भी परेशान करने वाली हैं क्योंकि पंजाब से लेकर महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश तक के किसान लगातार ये आरोप लगाते रहे हैं कि उन्हें लागत के मुताबिक दूध का रेट नहीं मिलता। दूध की कीमतों लेकर पिछले वर्षों में कई आंदोलन भी हुए हैं।


देश के प्रख्यात खाद्य एवं निर्यात नीति के जानकार देविंदर शर्मा ट्विटर लिखा, "मुझे समझ नहीं आ रहा है, भारत अमेरिका की मदद को क्यों तैयार है जबकि उसके खुद के किसान दूध के रेट को लेकर परेशान हैं।' 

दूध दही के प्रदेश कहे जाने वाले हरियाणा-पंजाब में किसानों की बेहतरी के लिए काम कर रहे खाद्य वैज्ञानिक कमलजीत सिंह फोन पर बताते हैं, ''देश के पशुपालक पहले से ही नकली दूध से परेशान हैं। ऐसे में बाहर से डेयरी प्रोडक्ट आएंगे तो उनकी परेशान बढ़ेगी। सरकारें इसे बिजनेस के तौर पर इसको देख रही हैं, लेकिन इस फैसले से भारत में दूध का करोबार चौपट हो जाएगा।'' आयात के फैसले के दूरगामी नुकसान गिनाते हुए कमलजीत कहते हैं, "एक अनुमान 60-65 करोड़ लीटर रोजाना की दूध की खपत है, अभी इसका आधा हिस्सा पाउडर से पूरा किया जाता हैं। जिससे किसानों को दाम नहीं मिलते हैं। बाहरी उत्पाद आने से बड़े स्तर के किसान भी इस व्यवसाय को छोड़ देंगे।' कमलजीत जिस मिल्क पाउडर की बात कर रहे हैं, ये वही पाउडर है जो कुछ साल पहले डेनमार्क और नीदरलैंड जैसे देशों से मंगवाया गया था, पाउडर से दूध बनाना सस्ता पड़ता है लेकिन इससे देसी दुग्ध उत्पादकों पर खासा असर पड़ा।



देसी गाय के गोबर से बनाते हैं वातानुकूलित घर, खर्चा सीमेंट से 7 गुना कम

देसी गाय के गोबर से बनाते हैं वातानुकूलित घर,  खर्चा सीमेंट से 7 गुना कम

https://www.gaonconnection.com/badalta-india/haryana-dr-shiv-darshan-malik-indigenous-cow-cow-dung-vedic-stucco-daya-kishan-shokin-new-delhi

अगर आपको कम लागत का एक ऐसा घर बनाना है जो वातानुकूलित हो तो आप हरियाणा के डॉ शिवदर्शन मलिक से मिलें। इन्होंने देसी गाय के गोबर से एक ऐसा 'वैदिक प्लास्टर' बनाया है जिसका प्रयोग करने से गांव के कच्चे घरों जैसा सुकून मिलेगा। दिल्ली के द्वारिका के पास छावला में रहने वाले डेयरी संचालक दया किशन शोकीन ने डेढ़ साल पहले इस गाय से बने प्लास्टर से अपना घर बनवाया था। ये गांव कनेक्शन संवादाता को फोन पर बताते हैं, "इस तरह के बने मकान से गर्मियों में हमें एसी लगाने की जरूरत नहीं पड़ती है। अगर बाहर का तापमान 40 डिग्री है तो इसके अन्दर 28-31 तक ही रहता है। दस रुपए स्क्वायर फिट इसका खर्चा आता है जो सीमेंट के खर्च से छह से सात गुना कम होता है।" वो आगे बताते हैं, "इस मकान के जितने फायदे बताए कम हैं, इस तरह के मकान के बाद बने फर्श से गर्मियों में नंगे पैर घर में ही टहलने से पैरों को ठंडक मिलती है। हमारे शरीर के अनुसार तापमान मिलता है। बिजली की बचत होती है, शहरों में गांव जैसी कच्ची मिट्टी के पुराने घर इस गाय के प्लास्टर से बनना सम्भव है।"

किशन शोकीन की तरह भारत में 300 सौ से ज्यादा लोग देसी गाय के वैदिक प्लास्टर से घर बना रहे हैं। जलवायु परिवर्तन का असर हमारे घरों में भी पड़ता है। पहले मिट्टी के बने कच्चे घरों में ऊष्मा को रोकने की क्षमता थी। ये कच्चे मकान सर्दी और गर्मी से बचाव करते थे लेकिन बदलते समय के साथ ये कच्चे मकान अब व्यवहारिक नहीं हैं। पक्के मकानों को कैसे कच्चा बनाया जाए जिसमें ऊष्मा को रोकने की क्षमता हो इसके लिए दिल्ली से 70 किलोमीटर दूर रोहतक में रहने वाले डॉ शिवदर्शन मलिक ने लम्बे शोध के बाद देसी गाय का एक ऐसा 'वैदिक प्लास्टर' बनाया जो सस्ता होने के साथ ही गर्मी में ठंडा और सर्दी में गर्म रखता है।डॉ शिवदर्शन मलिक ने रसायन विज्ञान से पीएचडी करने के बाद आईआईटी दिल्ली, वर्ल्ड बैंक जैसी कई बड़ी संस्थाओं में बतौर सलाहकार कई वर्षों तक काम किया है। इस दौरान कई जगह भ्रमण के दौरान कच्चे और पक्के मकानों का फर्क महसूस किया और तभी इसकी जरूरत महसूस की।

Sunday, March 10, 2019

WHY TO BAN MEAT EXPORT- ECONOMIC OUTLOOK



What is more precious –  Cattle  wealth  or  Forex?
WHY  MEAT  EXPORT   SHOULD   BE   BANNED?
Read …Understand …Awake…Act

Do you know …

}  That the high inflation is the result of  mass scale destruction of our cattle wealth?
}  That ever increasing prices of foodgrains, vegetables, milk, ghee etc. is the result of cattle slaughter?
}  That shift from Cattle based agriculture to Machine based agriculture has put enormous burden on farmers & economy?
}  That 16 kgs. of foodgrains are required to be fed to an animal for formation of 1 kg of meat in its body ... thus promotion of meat eating itself results in creating shortage of foodgrains?
That cattle slaughter has…
}  Increased cost of producing foodgrains manifold?
}  Reduced nutrition in food and increased chronic diseases?
}  Increased pollution & poison in food?

How much the nation can benefit from protection of cattle wealth?
  1. Annual subsidy of Rs.1,30,000 Cr. given for chemical fertilizers & Rs.45,000 Cr. for food can be substantially reduced
  2. Annual saving can be generated of Rs.1,81,440 Cr. spent on fuel (Kerosene / Gas) by 16.80 Cr. families staying in rural India by making them available dung cakes as fuel
                [Assuming rural population as 84 Cr. People (70% of total population) i.e. 16.80 Cr. Families (assuming 5 persons in family) spending at least Rs. 10,800/- p.a. on Kerosene / Gas]
  1. Huge saving of forex which is  spent on import of chemical fertilizers, diesel, petrol & other fuels
  2. Comparing the calorific value of firewood and dung fuel, one buffalo’s dung can save 6 trees in a year, which are fell for firewood in rural areas!
  3. Huge savings in petrol & diesel consumption in rural areas by using cattle based transportation
  4. Saving the fertile land of the country from becoming barren lands due to replacement of dung manure by chemical fertilizers
  5. Saving about six lacs decentralized wealth generating, self-sufficient centres viz. villages, revolving around agriculture and Animal Husbandry related village industries.

Can  cattle based  economy  control Inflation  &  Rising  prices? …Yes
  1. By keeping cost of producing food grains to very low level
  2. By using freely available dung for organic manure in place of costly chemical fertilizers
  3. By using bullocks for ploughing farms in place of diesel driven tractors
  4. By using cattle based mode of transportation in place of petrol / diesel driven vehicles
  5. By using freely available cattle urine in place of costly & poisonous pesticides
  6. By using freely available dung cakes for fuel in rural areas in place of costly fuels like kerosene, Gas etc.
  7. By using freely available dung ash for cleaning utensils in place of costly detergent powders
  8. By using freely available dung to be used as one of the input for housing in place of costly cement in rural areas
  9. By making available nutritious fresh milk & pure ghee at low cost
  10. By making available Panchgavya for cheaper & effective ayurvedic medicines in place of costly allopathic medicines  
MEAT EXPORT POLICY - HOW IT ORIGINATED?
  • There was a serious problem of Foreign Exchange Reserve in the year 1991-92…
  • Country’s gold reserves had to be mortgaged, endangering national pride….
  • Government was looking for all possible avenues to earn foreign exchange
  • And identified MEAT EXPORT as one of the thrust areas…

WHAT’S WRONG WITH MEAT EXPORT POLICY? …… Everything !
  1. It’s a policy framed under influence of western ideas having widely different culture where …
       Cattle is considered to be a commodity
       And objective of cattle rearing is to extract milk as long as possible & then meat by slaughtering it.
Whereas in India…
       Cattle is considered to be a family member
       And objective of cattle rearing is to get dung, urine, bullocks & Milk (in that order !)

  1. Meat export violates many Constitutional provisions.
  1. Meat exporters are only in Private Sector and they are swayed by personal profits in view of enormous earnings involved
  2. No co-ordination amongst the three Ministries involved with the subject of meat export viz.
       Ministry of Commerce, which decides the list of items of export
       Ministry of Food Processing industries, which facilitates setting up private sector slaughter houses and gives financial support for meat export. Export of meat is eligible for 13 types of subsidies running into hundreds of crores of rupees
       Animal Husbandry Department of Agriculture Ministry, which monitors animal population and frames policies resulting in more and more slaughter
5.       Absence of any monitoring mechanism to examine availability of slaughterable animals vis-à-vis slaughter capacity created in the country as a whole, both for local consumption and for exports.
  1. Higher & higher targets for meat exports are set in view of meat export being considered as thrust area. Even a Meat Board is set up at the Central level.
  2. No central law to protect useful animals.
  3. Different state laws have different provisions regarding age of slaughterable animals rendering these laws ineffective, when animals cross from one state to the other.
  4. Inherent contradiction prevailing in view of International standards for meat requiring slaughter of young & healthy animals, whereas local laws prohibit slaughter of young & healthy animals. Obviously, breach of law prevails.
  5. Having exhausted local animals, most of the export-oriented slaughter houses located in South India procure animals from as far flung  areas as HP, Haryana, Punjab, UP, MP etc. Thus, each exporter considers entire country as his hinterland for procuring animals.
  6. In short it is a situation like `free for all’. 
  7. There is no serious and independent or impartial study of the impact of this policy on various aspects of economy.
WHY MEAT EXPORT POLICY SHOULD BE SCRAPPED?
1.       Government’s own arms have recommended ban on meat export:
I.                    Animal Welfare Board of India in its 67th Executive Committee Meeting, in April 1994.
II.                  Law Commission of India in its 159th Report in July, 1998.
III.                National Commission on Cattle in its report in the year 2001.
  1. Should we stick to the policy framed in 1991 even if  the circumstances have changed? Note that ….
a)      Forex reserves position in 1991-92 was precarious!
        Whereas forex reserves position in June 2013 is US$ 288 bn. i.e. Rs.17,28,000 crores!
b)      Meat export earns hardly Rs.14,000 crores p.a. which is just 0.8% of total forex reserve and  1% of our total yearly exports.
c)       When several other sectors given below have emerged as major foreign exchange earners, why to continue meat export?
                        IT Sector          Rs.4,54,800 Crores
                        Gem & Jwellery                Rs.2,35,000 Crores
                        Textiles                                 Rs.1,00,000 Crores
                        Engineering        Rs.1,00,000 Crores
                         etc.
d)      There is growing awareness about organic food all over the world.  India can become a major exporter of organic food if it preserves its animals and uses their dung as organic manure.  Higher revenue from export of organic food can offset earnings from meat export manifold.
e)      Note the following data …
       India exported roughly 16.80 lakh M.T. of buffalo meat in 2011-12. (it would be more in subsequent years)
       Considering average meat yield from a buffalo to be 110 kg., 152 lakh buffaloes were slaughtered in 2011-12 for export only.
       A buffalo yields 5.4 M.T. dung in a year, which when composted gives 10.8 M.T. of organic manure.
       By slaughter of 152 lakh buffaloes, the country is losing 82.08 crore tons of organic manure available from slaughtered buffaloes during five years they would have lived if not slaughtered at average age of 10 years.
       Considering cost of organic manure @ Rs.1,000/-  per ton, the value of 82.08 crore tons of organic manure will be Rs.82,080  crores over a 5 year period.  
       In view of mass scale slaughter of animals, there is drastic fall in animal to human ratio as under:
                                                                                                 
Though beef has been on negative list of export, under the garb of meat, thousands of tons of beef is also exported. The dwindling ratio of cattle despite total ban on female cow slaughter and partial ban on bulls and bullocks almost throughout the country proves this doubt.

  1. There is  country wide resentment against this Policy.
  2. Meat export violates many Constitutional provisions.
  3. Meat export caters to the need of other  countries at the cost of our young and healthy animals.
  4. The acute shortage of useful animals has by and large affected the availability & prices of essential commodities such as foodgrains, vegetables, fruits, fresh milk, pure ghee  etc.
  5. If earning a few crumbs of foreign exchange is the only criteria, then any and every living creature which can yield profits is liable to be slaughtered and exported.  This is a very dangerous trend.
Let us Awake, Arise & Ask…
  1. Can western policies be made applicable to Indian conditions & culture where the basic objective of rearing cattle widely differs?
  2. Obvious questions that arise are …
    • How the government can frame policies which are not in the interest of Indian people, breaking backbone of Indian agriculture?
  • Whose interest is being taken care of? Ours or foreigners’?
3.       Can the Nation’s cattle wealth be frittered away to cater to the economic ambitions of a few or to earn small foreign exchange?
  1. Whose interest weighs higher – that of a handful of meat exporters? Or that of the entire country?
  2. Can the Government formulate a policy which violates  fundamental duties under the Constitution to have compassion for all living creatures?
  3. Can the freedom of occupation itself give rise to freedom to kill any animal? Any number of animals?
  4. Can the government, which has to  be a role model for observing fundamental duties, be seen as the violator of fundamental duties?
Food for thought
  • Can production of meat, fish, etc. & killing of animals be termed as ‘farming’ and included under ‘agriculture’?
  • Can meat production enjoy all the benefits provided by Government to agriculture sector?
APPEAL ….
. . .To the Government
Taking holistic view of the whole situation, we appeal to the government to scrap the meat export policy…  
        . . . And to the people of this country
        Oppose the Meat Export Policy tooth and nail and do not rest till Meat Export is banned.


SOURCE - 
Viniyog Parivar Trust

email : info@viniyogparivar.org

Save Cow to Save the Planet

Save Cow to Save the Planet


Save Cow for MILK
       It gives us milk which is next to mother’s milk.
             Milk,  A prime food and source of energy.
          Cow’s milk nourish the body and also has lot of medicinal and spiritual properties.

Save Cow for Curd 
  It gives us curd, curd is very useful ingredient of our food, makes us healthy and our digestion better.  It has lot of medicinal properties.

Save Cow for Ghee
  It gives us Pure Ghee, Which is required for making our food more nourishing, This also has lot of medicine value.  

Save Cow for Sweets
  Milk, Curd, Cheese, Butter and Ghee are used for making many tasty sweats and other dishes.
Save Cow to Save us from Cancer
  Cow’s urine is very useful in treating deadly disease like cancer. There are many more medicines made using cow urine.
 Save Cow: The Soul of Organic Farming
  Cow’s dung is the essence of organic farming.
  Compost made of  cow’s dung increase the immunity of plants. It gives healthier and balanced food.
  It protects and  increases fertility of soil.
Save Cow to Save us from Chemical Fertilizers
              Effects of chemical fertilizers  are  now becoming clear people are getting no. of diseases due to that.  Fields are becoming baron.
Chemical Fertilizers: An Industrial Conspiracy
  Agriculture is becoming expensive as raw materials of  chemical    fertilizer   are   minerals   and   energy    for  processing,    these are     becoming    expensive.    Lands  are becoming     baron   and   require   more   and   more fertilizer  every  year.
Reason of Suicide by Farmers
Low profitability in agriculture, due to increase in the cost of inputs and  burden of tractor loan.

Chemical Pesticides: Slow Poisoning
  Chemical pesticides are directly harmful to our health, it works as slow poison.
Effects of Water Pollution
  These chemicals with irrigation water moves inside the soil, pollute ground water and reaches to rivers along with rain water.
Explosion in Major Deceases
  Exponential increase in all type of deceases due to use of chemicals in the food contents.
Save Cow to Save  from Chemical Pesticides
  Cow’s urine is used as pesticide, processed cow’s urine with neem makes even better pesticide.
  It is cheap, can be home made and without side effects.

Save Cow: The Continuous Source of Power
  It gives us calves, they  are useful for transportation in bullock carts as well for plaguing the fields.
  It is non polluting, not depending on any external source, it is pure green power.
  Cow eats green fodder and husk, Cow converts this into dung cake.
  Calorific value of wood and dry dung cake is same.
Bio-Gas: A Useful Bi-Product
  Dung cake may be used in many forms to produce energy. Cow dung can be converted in to bio-gas and other source of energy even electricity.
What does it take?
  Cow converts  leafs and other biological green and leftovers in to very nourishing food products  and other products.
  Otherwise it may go waste. We reduce waste and pollution by feeding the cows.
Save Cow: A Best Human Friend
  Cow is a total solution for continuous nourishment, organic farming, energy requirements and healthy living.
Critical Areas
  In India where Children are dying due to mal nutrition, slaughtering of cow will further add in this problem.
Why Mother ?
  Mother gives us birth but cow supports life when we are in the womb of mother and after birth.
  Cow is the only source of Satvagun ( Mode of Goodness)
Is  it  ethical?
  Killing cow means killing of gratitude, killing of relations and moving towards a cruel world.
  Approx. 60,000 cows(min.) are butchered every day for meat in India.
Wake up? Who Kills our Cow?
  Meat lobby.
  Government Misdirected Policies.
  Meat for export.
Support  the  Cause
·        We are becoming dependent for food and energy on outside world, our independence is on the stake.
  Our health and life on the planet is on stake.
  Live and let live.