Saturday, November 17, 2018

गोचर भूमि

गोचर भूमि

ऋग्वेद के  अनुसार गाय ऊसर भूमि को गोचर अथवा कृषि योग्य बनाती है और नए नगर स्थापित कराती है । 

अगव्यूति क्षेत्रमागन्म देवा उर्वी सती भूमिरंहूरणाभूत् । 
बृहस्पते प्र चिकित्सा गविष्टावित्था सते जरित्र इन्द्र पन्थाम् ।। RV6.47.20 ​​

हम गौ विहीन क्षेत्र में आ गए हैं, यहां विस्तृत फल फूल उत्पादक भूमि हो सकने पर भी यह  पृथ्वी शत्रुओं में युद्ध क्षेत्र सी ध्वस्त दिखाई देती है । हे बृहस्पति सब का पालन करने वाले बड़े राजाध्यक्षो  इस क्षति ग्रस्त भूमि की चिकित्सा  के लिए यहां  गौओंको लाकर वर्तमान में इस भूमि को ठीक करने की प्रार्थना करने वालों का  इन्द्र के समान मार्ग दर्शन करो।                                                                                                                                                                                                                                                       कौटिल्य के अर्थ शास्त्र के अनुसार 2 कोश लगभग 5 किलोमीटर का क्षेत्र होता है 

दिवेदिवे सदृशीरन्यमर्धं कृष्णा असेधदप सद्मनो जा: ।
अहन् दासा वृषभो वस्नयन्तोदव्रजे वर्चिना शम्बरं च ।। RV 6.47.21  

क्षति ग्रस्त भूमि के सुधार के लिए वहां थोड़े थोडे क्षेत्रों में (कृष्णा) खराब भूमि को अलग करो  और  गौओं को बसाना आरम्भ करो ।और वहां सूर्य और मेघ समस्त पृथिवी को प्रकाशमय  और वर्षासे जलयुक्त करके निवास के योग्य बनाते हैं (वर्चिनम् शम्बरम्) बलशाली प्रभावशली वर्चिन और शम्बर ( क्या वेद का संकेत स्यिडोमिनस स्यिरिंगे pseudomonas Syringae की ओर है जो भूमि पर हरियाली में पलते हैं । ये सूक्षाणु भूमि से आकाश की ऊंचाइयों पर स्वयं ही फैल जाते हैं  । ये जब  बादलों के सम्पर्क में आते हैं तब अत्यंत प्रभावशाली ढंग  से बादलों को शीघ्र वर्षा करने के लिए वेदों में बताए वर्चिन और शम्बर के समान वर्षा  करने के लिए प्रेरित करते हैं । जब भूमि पर हरियाली के समीप अग्निहोत्र किया जाता है  तब यज्ञाग्नि की ऊर्जा से प्रभावित हो कर यह सूक्ष्माणु शीघ्र गति से आकाश में ऊंचाइ पर बादलों तक पहुंच जाते हैं और बादल से वर्षा होने लगती है । वर्षा पा कर भूमि हरी भरी गोचर और कृषि योग्य बन जाती है ।  भूमि  निवास के योग्य बन जाती है । ॥21॥

(यदि केलीफोर्निया के वनों में अबंधनीय शाकाहारि पशु गौ इत्यादि होते तब वहां जैसी भीषण आग हर वर्ष लगती है, वह रोकी जा सकती थी) 
 प्रस्तोक इन्नु राधसस्त इन्द्र दश कोशयीर्दश वाजिनोऽदात् ।
दिवोदासादतिथिग्वस्य राध: शाम्बरं वसु प्रत्यग्रभीष्म ।।ऋ  6.47.22

 पराक्रमी इन्द्र जैसी भावना से प्रेरित (ते राधस: प्रस्तोक) क्षत भूमि को पुन: कृषि गोचर योग्य बनाने में यथोचित व्यय के प्रावधान budget के अनुसार  राज्य व्यवस्था  के अन्तर्गत  दश दश कोश (लगभग 25 किलोमीटर) के क्षत भूमिखंड wasteland में (वाजिनोSदात्‌) उपयुक्त मात्रा में (अतिथिग्वस्य) अतिथि के समान गौओं को लाओ । जिन के प्रभाव से शम्बर नामक मेघों को वर्षा के लिए प्रेरित करने वाले भूमि पर वर्षा  करके उस क्षत भूमि  को आवास के लिए ठीक करो । { गत 1950/60 के दशक में दक्षिणा अफरीका  के रोडेसिया आधुनिक ज़िम्बाब्वे देश में आधुनिक वैज्ञानिक पर्यावरण विशेषज्ञों  ने यह सत्यापित किया कि जहां गौएं विचरती है और एक किलो गोबर भूमि  में  गिर कर वहां मृदा से(गौओं के खुरों से ) घुल मिल जाता है , उस भूमि में 9 लीटर (वर्षा का ) जल को रोक कर मृदा  की आर्द्रता बनाए  रखता है । जिस से भूमि हरियाली होने से गोचर और कृषि योग्य बनने लगती है ।} 
दशाश्वान् दश कोशान् दश वस्त्राधिभोजना ।
दशो हिरण्यपिण्डान् दिवोदासादसानिषम् ।।ऋ 6.47.23

इस प्रकर इन दश दश (लगभग 25  किलोमीटर ) के भुखण्डों को नगर भी बनाया जिन में दसियों घोड़ों  से सुसज्जित दसियों  प्रकार के व्यंजन भोजन करने वाले , दसियों प्रकार के वस्त्रादि धारण करने वाल्र  दसियों स्वर्ण पिण्डों से समृद्ध लोग भी निवास करते थे ।
दश रथान् प्रष्टिमत: शतं गा अथर्वभ्य: ।अश्वथ: पायवे ऽदात् ।।ऋ 6.47.24    
   
इन नगरों में दसियों  घोड़ों के रथ , सेंकड़ों गौएं पालन करने वाले गृहस्थ स्थापित हो गए।

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