Saturday, November 17, 2018

गोपाष्टमी क्यों मनाई जाती है ?

*गोपाष्टमी क्यों मनाई जाती है ?*

*जानिए ऐसा क्या हुआ जो कन्हैया रोने लगे गोपाष्टमी के दिन*

*जानिए गोपाष्टमी का महत्व*

*आप भी सुने और इस लिंक को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें*

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गोपाष्टमी महापर्व

गोपाष्टमी महापर्व

आज (१५ नवम्बर २०१८ ) गोपाष्टमी हैं .
आइये जानते हैं इस महापर्व का महात्म्य
जब भगवान श्री कृष्ण पौगंड अवस्था में पहुँचे, तब गोपाष्टमी के दिन नंद महाराजा ने गायों और श्रीकृष्ण जी के लिए एक समारोह किया। यह श्री कृष्ण और भाई बलराम के लिए गायों को पहली बार चराने के लिए ले जाने का दिन था। गोपाष्टमी, दीपावली के दौरान आने वाला प्रसिद्ध त्यौहार गोवर्धन पूजा के 7 दिन बाद मनाया जाता है।
गौ अष्टमी, गोपाल अष्टमी
गाय का दूध, गाय का घी, दही, छांछ यहाँ तक की मूत्र भी मनुष्य जाति के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं। गोपाष्टमी त्यौहार हमें बताता हैं कि हम सभी अपने पालन के लिये गाय पर निर्भर करते हैं इसलिए वो हमारे लिए पूज्यनीय हैं। और हिन्दू संस्कृति, गाय को माँ का दर्जा देती हैं।

 जब कृष्ण भगवान ने अपने जीवन के छठे वर्ष में कदम रखा। तब वे अपनी मैया यशोदा से जिद्द करने लगे कि वे अब बड़े हो गये हैं और बछड़े को चराने के बजाय वे गैया चराना चाहते हैं। उनके हठ के आगे मैया को हार माननी पड़ी और मैया ने उन्हें अपने पिता नन्द बाबा के पास इसकी आज्ञा लेने भेज दिया। भगवान कृष्ण ने नन्द बाबा के सामने जिद्द रख दी कि अब वे गैया ही चरायेंगे। नन्द बाबा गैया चराने के मुहूर्त के लिए, शांडिल्य ऋषि के पास पहुँचे, बड़े अचरज में आकर ऋषि ने कहा कि, अभी इसी समय के आलावा कोई शेष मुहूर्त नहीं हैं अगले बरस तक। शायद भगवान की इच्छा के आगे कोई मुहूर्त क्या था। वह दिन गोपाष्टमी का था। जब श्री कृष्ण ने गैया पालन शुरू किया। उस दिन माता ने अपने कान्हा को बहुत सुन्दर तैयार किया। मौर मुकुट लगाया, पैरों में घुंघरू पहनाये और सुंदर सी पादुका पहनने दी लेकिन कान्हा ने वे पादुकायें नहीं पहनी। उन्होंने मैया से कहा अगर तुम इन सभी गैया को चरण पादुका पैरों में बांधोगी तब ही मैं यह पहनूंगा। मैया ये देख भावुक हो जाती हैं और कृष्ण बिना पैरों में कुछ पहने अपनी गैया को चारण के लिए ले जाते। गौ चरण करने के कारण ही, श्री कृष्णा को गोपाल या गोविन्द के नाम से भी जाना जाता है।

ब्रज में इंद्र का प्रकोप इस तरह बरसा की लगातार बारिश होती रही, जिससे बचाने के लिए कृष्ण ने जी 7 दिन तक गोबर्धन पर्वत को को अपनी सबसे छोटी ऊँगली से उठाये रखा, उस दिन गोबर्धन पूजा की जाती है। गोपाष्टमी के दिन ही भगवान् इंद्र ने अपनी हार स्वीकार की थी, जिसके बाद श्रीकृष्ण ने गोबर्धन पर्वत नीचे रखा था। भगवान कृष्ण स्वयं गौ माता की सेवा करते हुए, गाय के महत्व को सभी के सामने रखा। गौ सेवा के कारण ही इंद्र ने उनका नाम गोविंद रखा था।

 गोपाष्टमी से जुड़ी एक बात और ये है कि राधा भी गाय को चराने के लिए वन में जाना चाहती थी, लेकिन लड़की होने की वजह से उन्हें इस बात के लिए कोई हाँ नहीं करता था। जिसके बाद राधा को एक तरकीब सूझी, उन्होंने ग्वाला जैसे कपड़े पहने और वन में श्रीकृष्ण के साथ गाय चराने चली गई।
आप सबसे निवेदन हैं की गोपाष्टमी के पावन पर्व पर अपने परिजन एवम् इष्ट मित्रो सहित गौशाला पधारकर गौसेवा का लाभ प्राप्त करे🙏🏻🙏🏻🙏🏻 

*आप सभी गौभक्तों, राष्ट्रभक्तों को गोपाष्टमी के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामना ।*

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वेदोक्त, उपनिषदों और पुराणोक्त कथन में क्या अंतर है

वेदोक्त, उपनिषदों और पुराणोक्त कथन में क्या अंतर है

प्रश्न - *वेदोक्त, उपनिषदों और पुराणोक्त कथन में क्या अंतर है? कृपया अंतर बताने का कष्ट करें।*

उत्तर - आत्मीय भाई, वेद ईश्वरीय सन्देश है जो ब्रह्मा जी के मुख से निकला था। फिर इन संदेशों को तपशक्ति द्वारा ऋषियों ने अर्जित किया नैमिषारण्य और कुंभ जैसे आयोजनों में सुनाया गया। भोजपत्र में लिखा गया।

वेद केवल मृत्यु के बाद स्वर्ग का खोखला दावा नहीं करते, अपितु जीवित अवस्था में स्वर्गीय सुख शांति युक्त मनःस्थिति के प्राप्ति के भी समस्त आध्यात्मिक वैज्ञानिक सूत्रों को देते हैं।

उपनिषद इन्ही वेदों के ज्ञान को आसान व्याख्या और प्रश्नोत्तरी, छोटी कहानियों के माध्यम से समझाता है।

*वेद उपनिषद तो 100% प्रामाणिक हैं।*

लेकिन...क्या पुराण अक्षरशः सत्य है....??

पुराण समय समय पर बुद्धिजीवी ऋषियों के द्वारा लिखे गए, जो कल्पना पर आधारित थे। इन काल्पनिक कहानियों के माध्यम से वो गूढ़ बातों को आसानी से जन सामान्य को कंठस्थ करवा देते थे। कृष्ण भगवान की ढेरों मनगढ़ंत कहानियां, देवी देवताओं की काल्पनिक मनगढंत कहानियों से पुराण भरे पड़े हैं। किसी एक इष्ट पर श्रद्धा करके केवल उसका वाला कहानी का पुराण पढोगे तो कन्फ्यूज नहीं होंगे। लेकिन जैसे ही बुद्धि का प्रयोग किया और सभी देवताओं के पुराण पढ़े तो दिमाग चकरा जाएगा और कन्फ्यूज हो जाओगे। हद तो तब होगी जब गोरखपुर प्रेस अर्थात एक ही प्रेस से छपे पुराणों में विरोधाभास पढोगे।

अब जब तुम्हारी बुद्धि चकराई तो इसका फ़ायदा अधर्मी उठाएंगे, वो तरह तरह से तुम्हे बेवकूफ बनाके अपना उल्लू सीधा करेंगे।

*आओ समझते है तुम्हें सो कॉल्ड पढ़े लिखे लोगो को पुराणों के नाम से बुद्धू बनाने का आसान उपाय*:-

उदाहरण में - *पंचतंत्र की एक मनगढंत कहानी जो नैतिक शिक्षा समझाने के उद्देश्य से लिखी गयी थी उससे समझते हैं*, एक कौआ रोटी मुंह मे लेकर डाल पर बैठा, चतुर लोमड़ी ने उसकी झूठी सिंगिग कैपेसिटी और सुंदर आवाज की प्रशंसा की और कौवे ने मुंह खोला। रोटी गिरी लोमड़ी ख़ाकर भाग गई।

*मोरल ऑफ स्टोरी*- झूठी प्रशंशा में नहीं पड़ना चाहिए।

अब इसी सन्देश को पुराणों में कैसे लिखेंगे:- *भगवान शिव से माता पार्वती ने पूँछा, भगवन मनुष्य की विपत्ति का कारण क्या है। शिव मुस्कुराए और बोले हे देवी आपने जगत कल्याण के लिए अति उत्तम प्रश्न पूँछा है। ध्यान से सुनो*:-
 
एक बार एक ऋषि ने तप किया और अपनी तपस्या से अनेक सिद्धियां पाई। उसे अपने तप का अहंकार हो गया कि वह इंद्रियों को जीत चुका है, अप्सराएं भी उसकी तपस्या भंग न कर सकी। तब भगवान इंद्र ने लीला रची। एक अप्सरा को साधारण वस्त्रों में भोजन इत्यादि लेकर भेजा, झूठी प्रसंसा करने को बोला। वो अप्सरा आती रोज भोजन करवाती उस ऋषि की झूठी झूठी प्रसंशा करती। जिससे उस ऋषि का अहंकार पुष्ट होता। फिर वो स्त्री बोली अब आपको ज्यादा तप करने की क्या आवश्यकता आपके पास तो इतना तप का खजाना है जो कई जन्मों तक चलेगा, आप तो मुझे अपने चरणों मे जगह दें, आपके समान पुत्र प्राप्त करने की इच्छा है। उस लोमड़ी सी चतुर स्त्री की झूठी प्रसंशा के चक्कर मे पड़कर उसने उस स्त्री से विवाह किया, तप छोड़ दिया। धर्म भ्रष्ट ज्यो हुआ और तप का खजाना ख़ाली हुआ। अप्सरा उसे छोड़ के चली गयी। अब वो केवल पछतावे में सिर धुनता रहा।

*मोरल ऑफ स्टोरी* - झूठी प्रशंशा में नहीं पड़ना चाहिए। 

अब पुराणों में एक ही मोरल/नैतिक शिक्षा/जीवन मूल्य को समझाने के लिए कभी शिव-पार्वती संवाद गढा गया तो कभी नारद - विष्णु संवाद।

अति बुद्धि वादी बाल की खाल निकालने वाले, बोलेंगे भाई कौवा और लोमड़ी का तो संवाद ही सम्भव नहीं। पंचतंत्र झूठा है। अति बुद्धिवादी कभी भी पोस्ट या कहानी पढ़कर मोरल नहीं समझेंगे। बाल की खाल निकालेंगे।

वीडियो कैमरा और इंटरनेट तो था नहीं कि शंकर पार्वती या नारद-विष्णु का संवाद ऋषि ने देखकर लिखा हो। उन ऋषि ने  पुराण तो लोगो मे अध्यात्म और धर्म की स्थापना और मोरल समझाने के लिए लिखा था। जिस इष्ट को वो मानता था उसे उसने परब्रह्म घोषित किया और कहानी उसे केंद्रित करके लिख दिया। लक्ष्मी पुराण में ब्रह्माण्ड पॉवर शक्ति लक्ष्मी, विष्णु पुराण में भगवान विष्णु में ब्रह्माण्ड पॉवर शक्ति बताया गया, शिव पुराण में शिव ब्रह्माण्ड पॉवर  धारण करते है और शक्ति पुराण में भवानी ब्रह्माण्ड शक्ति धारण करती है।कहानियां एक जैसी ही है, राक्षसों के नाम भी और घटनाएं भी लगभग मिलते जुलते है।

*अतः पुराण को अक्षरशः सत्य और प्रमाणिक मानने वाले भी गलती करेंगे, और पुराणों के महात्म्य को नकारने वाले भी ग़लती करेंगे।*

उत्तम यह होगा कि केवल वेद और उपनिषद को प्रमाणिक माने, और पुराणों से केवल मोरल वैल्यू उठाये। अन्यथा उलझने में कुछ भी हाथ न लगेगा, बाल की खाल तो कभी किसी को नहीं मिलती। कोर्ट जाओगे बड़े वकील को फीस दो तो एक वकील कौए को संगीतज्ञ सिद्ध कर देगा, फिर यदि उसी वकील को लोमड़ी हायर करेगी, तो वो लोमड़ी को महान सिद्ध कर देगा, पैसे के बल पर लोमड़ी के पक्ष में हज़ार गवाह मिल जाएंगे। जिसके पास उत्तम वकील उसका जीतना तय होगा। सत्य कुतर्क में गुम जाएगा। लोग मोरल भूल जाएंगे।

🙏🏻श्वेता चक्रवर्ती
डिवाइन इंडिया यूथ असोसिएशन

पाप का बाप कौन है.

पाप का बाप कौन है.. ? : एक रोचक कथा

श्रद्धेय स्वामी श्रीरामसुखदासजी महाराज ने अपने प्रवचनों में ‘पाप कैसे जन्म लेता है’ इससे सम्बन्धित एक रोचक कथा बताई है–

एक पण्डितजी काशी से विद्याध्ययन करके अपने गांव वापिस आए। शादी की, पत्नी घर पर आई। एक दिन पत्नी ने पण्डितजी से पूछा– ’आपने काशी में विद्याध्ययन किया है, 

आप बड़े विद्वान है। यह बताइए कि पाप का बाप (मूल) कौन है?’
पण्डितजी अपनी पोथी-पत्रे पटलते रहे, पर पत्नी के प्रश्न का उत्तर नहीं दे सके।

 उन्हें बड़ी शर्मिन्दगी महसूस हुई कि हमने इतनी विद्या ग्रहण की पर आज पत्नी के सामने लज्जित होना पड़ा। वे पुन: काशी विद्याध्ययन के लिए चल दिए।

मार्ग में वे एक घर के बाहर विश्राम के लिए रुक गये। वह घर एक वेश्या का था। वेश्या ने पण्डितजी से पूछा–’कहां जा रहे हैं, महाराज ?’

 पण्डितजी ने वेश्या को बताया कि ‘मेरी स्त्री ने पूछा है कि पाप का बाप कौन है ? 

इसी प्रश्न का उत्तर खोजने काशी जा रहा हूँ।’
वेश्या ने कहा–’आप वहां क्यों जाते हैं, इस प्रश्न का उत्तर तो मैं आपको यहीं बता सकती हूँ।’

 पण्डितजी प्रसन्न हो गए कि यहीं काम बन गया, पत्नी के प्रश्न का उत्तर इस वेश्या के पास है। अब उन्हें दूर नहीं जाना पड़ेगा।

वेश्या ने पण्डितजी को सौ रुपये भेंट देते हुए कहा–’महाराज! कल अमावस्या के दिन आप मेरे घर भोजन के लिए आना, मैं आपके प्रश्न का उत्तर दे दूंगी।’ सौ रुपये का नोट उठाते हुए पण्डितजी ने कहा–’क्या हर्ज है, 

कर लेंगे भोजन।’ यह कहकर वेश्या को अमावस्या के दिन आने की कहकर पण्डितजी चले गए।

अमावस्या के दिन वेश्या ने रसोई बनाने का सब सामान इकट्ठा कर दिया। पण्डितजी आए और रसोई बनाने लगे तो वेश्या ने कहा–’पक्की रसोई तो आप सबके हाथ की पाते (खाते) ही हो,

 कच्ची रसोई हरेक के हाथ की बनी नहीं खाते। मैं पक्की रसोई बना देती हूँ, आप पा (खा) लेना।’ ऐसा कहकर वेश्या ने सौ रुपये का एक नोट पण्डितजी की तरफ बढ़ा दिया।

सौ का नोट देखकर पण्डितजी की आंखों में चमक आ गई। उन्होंने सोचा–पक्की रसोई हम दूसरों के हाथ की खा ही लेते हैं, तो यहां भी पक्की रसोई खाने में कोई हर्ज नहीं है।

वेश्या ने पक्की रसोई बनाकर पण्डितजी को खाना परोस दिया। तभी वेश्या ने एक और सौ का नोट पण्डित के आगे रख दिया और हाथ जोड़कर विनती करते हुए बोली–’महाराज! जब आप मेरे हाथ की बनी रसोई पा रहे हैं

, तो मैं अपने हाथ से आपको ग्रास दे दूँ तो आपको कोई ऐतराज तो नहीं है क्योंकि हाथ तो वहीं हैं जिन्होंने रसोई बनाई है।’

पण्डितजी की आंखों के सामने सौ का करारा नोट नाच रहा था। वे बोले–’सही कहा आपने, हाथ तो वे वही हैं।’ पण्डितजी वेश्या के हाथ से भोजन का ग्रास लेने को तैयार हो गये।

 पण्डितजी ने वेश्या के हाथ से ग्रास लेने के लिए जैसे ही मुंह खोला, वेश्या ने एक करारा थप्पड़ पण्डितजी के गाल पर जड़ दिया और बोली–
’खबरदार! जो मेरे घर का अन्न खाया।

 मैं आपका धर्मभ्रष्ट नहीं करना चाहती। अभी तक आपको ज्ञान नहीं हुआ। यह सब नाटक तो मैंने आपके प्रश्न का उत्तर देने के लिए किया था। जैसे-जैसे मैं आपको सौ रुपये का नोट देती गयी, आप लोभ में पड़ते गए और पाप करने के लिए तैयार हो गए।

इस कहानी से सिद्ध होता है कि पाप का बाप लोभ, तृष्णा ही है। मनुष्य अधिक धन-संग्रह के लोभ में पाप की कमाई करने से भी नहीं चूकता। इसीलिए शास्त्रों में अधिक धनसंग्रह को विष या मद कहा गया है–

पहले कनक का अर्थ धतूरा है जिसे खाने से बुद्धि भ्रमित होती है किन्तु दूसरे कनक का अर्थ सोना (धन) है जिसे देखने से ही बुद्धि भ्रमित हो जाती है।

कामना या तृष्णा का कोई अंत नहीं है। तृष्णा कभी जीर्ण (बूढ़ी) नहीं होती, हम ही जीर्ण हो जाते हैं।

सीख....👌👌
 इसलिए प्यारे भक्तों मेरे कृष्णा से प्रेम कीजिये और पाप से बचने का रास्ते पर चलिए.....
पाप से बचने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने इन चार बातों का त्याग बतलाया है– जो प्राप्त नहीं है उसकी कामना, जो प्राप्त है उसकी ममता, निर्वाह की चिन्ता और मैं ऐसा हूँ यानी अंहकार।
इन चार बातों का त्याग कर मनुष्य पाप से दूर रहकर सच्ची शान्ति प्राप्त कर सकता है।

​हिन्दू धर्म की दस अनमोल बातें

हिन्दू धर्म की दस अनमोल बातें जो हर हिन्दू को जानना आवश्यक है?
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हिंदुत्व केवल एक धर्म ही नहीं है बल्कि यह एक सफल जीवन जीने का तरीके के रूप में भी देखा जा सकता है. हिन्दू धर्म की अनेको विशेषताएं है तथा इसे सनातन धर्म की भी उपाधि दी गई है।

भागवत गीता में सनातन का अभिप्राय बताते हुए कहा गया है की सनातन वह है जो न तो अग्नि, न वायु, न पानी तथा न अस्त्र से नष्ट हो सकता है यह तो वह है जो दुनिया में स्थित हर सजीव एवं निर्जीव में व्याप्त है. धर्म का अर्थ होता है जीवन को जीने की कला. हिन्दू सनातन धर्म की जड़े आध्यात्मिक विज्ञान में है।

सम्पूर्ण हिन्दू शास्त्र में विज्ञान एवं अध्यात्म के संबंध में बाते बताई गई है. यजुर्वेद के चालीसवें अध्याय में ऐसा वर्णन आया है की जीवन की सभी समस्याओं का समाधान विज्ञान एवं आध्यात्मिक समस्याओं के लिए अविनाशी दर्शनशास्त्र का उपयोग करना चाहिए।

आज हम आपको हिन्दू धर्म से जुडी 10 ऐसे महत्वपूर्ण जानकारियों के बारे में बताएंगे जिनका महत्व हर हिन्दू धर्म से जुड़े व्यक्ति के लिए महत्वपूर्ण है. यह ऐसी जानकारी है जो किसी भी व्यक्ति को हिन्दू धर्म को समझने में मदद कर सकता है।

हिन्दू सनातन धर्म में बताये गए 10 कर्तव्य 
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1 . सन्ध्यावादन, 2 . व्रत, 3 . तीर्थ, 4 . संस्कार, 5 . उत्सव, 6 . दान, 7 .सेवा, 8 यज्ञ पाठ, 9 .वेद पाठ, 10 . धर्म प्रचार .

10 सिद्धांत 
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1 .एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति अर्थात एक ही ईश्वर है दुसरा नहीं।
2 . आत्मा अमर है।
3 .पुनर्जन्म होता है।
4 मोक्ष ही जीवन का लक्ष्य है।
5 . संस्कारबद्ध जीवन ही जीवन है।
6 . कर्म का प्रभाव होता है, जिसमें से ‍कुछ प्रारब्ध रूप में होते हैं इसीलिए कर्म ही भाग्य है।
7 . ब्रह्माण्ड अनित्य और परिवर्तनशील है।
8 . संध्यावंदन- ध्यान ही सत्य है।
9 . दान ही पूण्य है।
10 . वेदपाठ और यज्ञकर्म ही धर्म है।

10 महत्वपूर्ण कार्य
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1.प्रायश्चित करना,
2.उपनयन, दीक्षा देना-लेना,
3.श्राद्धकर्म,
4.बिना सिले सफेद वस्त्र पहनकर परिक्रमा करना,
5.शौच और शुद्धि,
6.जप-माला फेरना,
7.व्रत रखना,
8.दान-पुण्य करना,
9.धूप, दीप या गुग्गल जलाना,
10.कुलदेवता की पूजा.

ये हे 10 उत्सव
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नवसंवत्सर, मकर संक्रांति, वसंत पंचमी, पोंगल-ओणम, होली, दीपावली, रामनवमी, कृष्ण जन्माष्‍टमी, महाशिवरात्री और नवरात्रि. इनके बारे में विस्तार से जानकारी हासिल करें.

सनातन धर्म से जुडी 10 महत्वपूर्ण पूजाएं 
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गंगा दशहरा, आंवला नवमी पूजा, वट सावित्री, दशामाता पूजा, शीतलाष्टमी, गोवर्धन पूजा, हरतालिका तिज, दुर्गा पूजा, भैरव पूजा और छठ पूजा. ये कुछ महत्वपूर्ण पूजाएं है जो हिन्दू करता है. हालांकि इनके पिछे का इतिहास जानना भी जरूरी है.

सनातन धर्म के 10 पवित्र पेय 
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1.चरणामृत, 2.पंचामृत, 3.पंचगव्य, 4.सोमरस, 5.अमृत, 6.तुलसी रस, 7.खीर, 9.आंवला रस और 10.नीम रस . आप इनमे से कितने रस का समय समय पर सेवन करते है ? ये सभी रस अमृत के समान माने जाते है.

हिन्दू धर्म में प्रयोग किये जाने वाले 10 फूल 
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1.आंकड़ा, 2.गेंदा, 3.पारिजात, 4.चंपा, 5.कमल, 6.गुलाब, 7.चमेली, 8.गुड़हल, 9.कनेर, और 10.रजनीगंधा. हर देवी दवताओं को अलग अलग प्रकार के फूलों को अर्पित किया जाता है. परन्तु आज के युग में लोग देवी देवताओ पर गुलाब एवं गेंदे का पुष्प चढ़ाकर ही इतिश्री कर लेते जो की पुराणों में गलत बताया गया है.

ये है 10 धर्मिक स्थल 
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12 ज्योतिर्लिंग,
51 शक्तिपीठ,
7 पूरी,
7 नगरी,
4 धाम,
4 मठ,
10 पर्वत, 10 गुफाएं,
5 सरोवर,
10 समाधि स्थल,
4 आश्रम.

10 महाविद्याए 
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1.काली, 2.तारा, 3.त्रिपुरसुंदरी, 4. भुवनेश्‍वरी, 5.छिन्नमस्ता, 6.त्रिपुरभैरवी, 7.धूमावती, 8.बगलामुखी, 9.मातंगी और 10.कमला.
बहुत कम लोग जानते हैं कि ये 10 देवियां कौन है. नवदुर्गा की पूजा के पश्चात इन 10 देवियो के पूजा इनके बारे में विस्तृत ढंग से जानने के पश्चात ही करनी चाहिए. बहुत से व्यक्ति इन 10 विद्याओं की पूजा भगवान शिव की पत्नी के रूप में की जाती जो की अनुचित है.

10 यम नियम 
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1.अहिंसा, 2.सत्य, 3.अस्तेय 4.ब्रह्मचर्य और 5.अपरिग्रह. 6.शौच 7.संतोष, 8.तप, 9.स्वाध्याय और 10.ईश्वर-प्रणिधान. ये 10 ऐसे यम और नियम है जिनके बारे में प्रत्येक हिन्दू को जानना चाहिए यह सिर्फ योग के नियम ही नहीं है ये वेद और पुराणों के यम-नियम हैं. क्यों जरूरी है? क्योंकि इनके बारे में आप विस्तार से जानकर अच्छे से जीवन यापन कर सकेंगे. इनको जानने मात्र से ही आधे संताप मिट जाते हैं।
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