Sunday, November 29, 2015

गाय हूँ, मैं गाय हूँ


गाय हूँ, मैं गाय हूँ


गाय हूँ, मैं गाय हूँ, इक लुप्त -सा अध्याय हूँ।

लोग कहते माँ मुझे पर मैं बड़ी असहाय हूँ।।
...
दूध मेरा पी रहे सब, और ताकत पा रहे।

पर हैं कुछ पापी यहाँ जो, माँस मेरा खा रहे।

देश कैसा है जहाँ, हर पल ही गैया कट रही।

रो रही धरती हमारी, उसकी छाती फट रही।

शर्म हमको अब नहीं है, गाय-वध के जश्न पर,

मुर्दनी छाई हुई है, गाय के इस प्रश्न पर।

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