Sunday, November 29, 2015

गोमाता क्या है


॥श्रीसुरभ्यै नमः॥गावो विश्वस्य मातरः॥

गोमाता एवं गोमाता के विज्ञान से जुड़े प्रश्नोत्तर एवं आयुर्वेदिक दृष्टी से गोमाता का महत्व प्रश्नोन्तर।

प्रश्न 1.) गोमाता क्या है?
उत्तर 1.) गोमाता ब्रह्मांड के संचालक सूर्य नारायण की सीधी प्रतिनिधि है। इसका अवतरण पृथ्वी पर इसलिए हुआ है ताकि पृथ्वी की प्रकृति का संतुलन बना रहे। पृथ्वी पर जितनी भी योनियाँ है सबका पालन-पोषण होता रहे। इसे विस्तृत में समझने के लिए ऋगवेद के 28वें अध्याय को पढ़ा जा सकता है।

प्रश्न 2.) गौमाता और विदेशी काऊ में अंतर कैसे पहचाने?
उत्तर 2.) गौमाता एवं विदेशी काऊ में अंतर पहचानना बहुत ही सरल है। सबसे पहला अंतर होता है गौमाता का कंधा (अर्थात गौमाता की पीठ पर ऊपर की और उठा हुआ कुबड़ जिसमें सूर्यकेतु नाड़ी होती है) विदेशी काऊ में यह नहीं होता है एवं उसकी पीठ सपाट होती है।

दूसरा अंतर होता है गौमाता के गले के नीचे की त्वचा जो बहुत ही झूलती हुई होती है जबकि विदेशी काऊ के गले के नीचे की त्वचा झूलती हुई ना होकर सामान्य एवं कसीली होती है।

तीसरा अंतर होता है गौमाता के सिंग जो कि सामान्य से लेकर काफी बड़े आकार के होते है जबकि विदेशी काऊ के सिंग होते ही नहीं है या फिर बहुत छोटे होते है।

चौथा अंतर होता है गौमाता कि त्वचा का अर्थात गौमाता कि त्वचा फैली हुई, ढीली एवं अतिसंवेदनशील होती है जबकि विदेशी काऊ की त्वचा काफी संकुचित एवं कम संवेदनशील होती है।

प्रश्न 3.) अगर थोड़ा सा भी दही नहीं हो तब दूध से दही कैसे बनाएँ?
उत्तर 3.) हल्के गुन-गुने दूध में नींबू निचोड़ कर दही जमाया जा सकता है। इमली डाल कर भी दही जमाया जाता है। गुड़ की सहायता से भी दही जमाया जाता है। शुद्ध चाँदी के सिक्के को गुन-गुने दूध में डालकर भी दही जमाया जा सकता है।

प्रश्न 4.) किस समय पर दूध से दही बनाने की प्रक्रिया शुरू करें?
उत्तर 4.) रात्री में दूध को दही बनने के लिए रखना सर्वश्रेष्ठ होता है ताकि दही एवं उससे
बना मट्ठा, तक्र एवं छाछ सुबह सही समय पर मिल सके।

प्रश्न 5.)मनुष्य को गौमूत्र किस समय पर लेंना चाहिये?
उत्तर 5.) गौमूत्र लेने का श्रेष्ठ समय प्रातः काल का होता है और इसे पेट साफ करने के बाद खाली पेट लेना चाहिए। गौमूत्र सेवन के 1घंटे पश्चात ही भोजन करना चाहिए।

प्रश्न 6.)मनुष्य को गौमूत्र किस समय नहीं लेंना चाहिये?
उत्तर 6.) मांसाहारी व्यक्ति को गौमूत्र नहीं लेना चाहिए। गौमूत्र लेने के 15 दिन पहले मांसाहार का त्याग कर देना चाहिए। पित्त प्रकृति वाले व्यक्ति को सीधे गौमूत्र नहीं लेना चाहिए, गौमूत्र को पानी में मिलाकर लेना चाहिए। पीलिया के रोगी को गौमूत्र नहीं लेना चाहिए। देर रात्रि में गौमूत्र नहीं लेना चाहिए। ग्रीष्म ऋतु में गौमूत्र कम मात्र में लेना चाहिए।

प्रश्न 7.) क्या गौमूत्र पानी के साथ लें?
उत्तर 7.) अगर शरीर में पित्त बढ़ा हुआ है तो गौमूत्र पानी के साथ लें अथवा बिना पानी के लें।

प्रश्न 8.)अन्य पदार्थों के साथ मिलकर गौमूत्र की क्या विशेषता है? (जैसे की गुड़ और
गौमूत्र आदि संयोग)
उत्तर 8.) गौमूत्र किसी भी प्रकृतिक औषधी के साथ मिलकर उसके गुण-धर्म को बीस गुणा बढ़ा देता है। गौमूत्र का कई खाद्य पदार्थों के साथ अच्छा संबंध है जैसे गौमूत्र के साथ गुड़, गौमूत्र शहद के साथ आदि।

प्रश्न 9.) गोमाता का गौमूत्र किस-किस तिथि एवं स्थिति में वर्जित है? (जैसे अमावस्या आदि)
उत्तर 9.) अमावस्या एवं एकादशी तिथि तथा सूर्य एवं चन्द्र ग्रहण वाले दिन गौमूत्र का सेवन एवं एकत्रीकरण दोनों वर्जित है

प्रश्न 10.) वैज्ञानिक दृष्टि से गोमाता की परिक्रमा करने पर मानव शरीर एवं मस्तिष्क पर क्या प्रभाव एवं लाभ है?
उत्तर 10.) सृष्टि के निर्माण में जो 32 मूल तत्व घटक के रूप में है वे सारे के सारे गोमाता के शरीर में विध्यमान है। अतः गोमाता की परिक्रमा करना अर्थात पूरी पृथ्वी की परिक्रमा करना है। गोमाता जो श्वास छोड़ती है वह वायु एंटी-वाइरस है। गोमाता द्वारा छोड़ी गयी श्वास से सभी अदृश्य एवं हानिकारक बैक्टेरिया मर जाते है। गोमाता के शरीर से सतत एक दैवीय ऊर्जा निकलती रहती है। जो मनुष्य शरीर के लिए बहुत लाभकारी है। यही कारण है कि गोमाता की परिक्रमा करने को अति शुभ लाभकारी माना गया है।

प्रश्न 11.) गोमाता के कूबड़ की क्या विशेषता है?
उत्तर 11.) गोमाता के कूबड़ में ब्रह्मा का निवास है। ब्रह्मा अर्थात सृष्टि के निर्माता। कूबड़ हमारी आकाश गंगा से उन सभी ऊर्जाओं को ग्रहण करती है जिनसे इस सृष्टि का निर्माण हुआ है। और इस ऊर्जा को अपने पेट में संग्रहीत भोजन के साथ मिलाकर भोजन को उर्जावान कर देती है। उसी भोजन का पचा हुआ अंश जिससे गोबर, गौमूत्र और दूध गव्य के रूप में बाहर निकलता है वह अमृत होता है।

प्रश्न 12.) गौमाता के खाने के लिए क्या- क्या सही भोजन है? (सूची)
उत्तर 12.) हरी घास, अनाज के पौधे के सूखे तने, सप्ताह में कम से कम एक बार 100 ग्राम देसी गुड़ ,सप्ताह में कम से कम एक बार 50 ग्राम सेंधा या काला नमक, दाल के छिलके, कुछ पेड़ के पत्ते जो गोमाता स्वयं जानती है की उसके खाने के लिए सही है, गोमाता को गुड़ एवं रोटी अत्यंत प्रिय है।

प्रश्न 13.) गौमाता को खाने में क्या-क्या नहीं देना है जिससे गौमाता को बीमारी ना हो? (सूची)
उत्तर 13.) देसी गोमाता जहरीले पौधे स्वयं ही नहीं खाती है। गोमाता को बासी एवं जूठा भोजन, सड़े हुए फल नहीं देना चाहिए। गोमाता को रात्रि में चारा या अन्य भोजन नहीं देना चाहिए। अगर भूखी हो तो दे सकते हो। गोमाता को साबुत अनाज नहीं देना चाहिए। हमेशा अनाज का दलिया करके ही देना चाहिए।

प्रश्न 14.) गौमाता की पूजा करने की विधि? (कुछ लोग बोलते है कि गोमाता के मुख कि नहीं अपितु गोमाता की पूंछ की पूजा करनी चाहिए और अनेक भ्रांतियाँ है।)
उत्तर 14.) गौमाता की पूजा करने की विधि सभी जगह भिन्न-भिन्न है और इसके बारे में कहीं भी आसानी से जाना जा सकता है। लक्ष्मी, धन, वैभव आदि कि प्राप्ति के लिए
गोमाता के शरीर के उस भाग कि पूजा की जाती है जहां से गोबर एवं गौमूत्र प्राप्त होता है। क्योंकि वेदों में कहा गया है कीगोमय वसते लक्ष्मीअर्थात गोबर में लक्ष्मी का वास है औरगौमूत्र गंगाअर्थात गौमूत्र में भगवती गंगा का निवास है।

प्रश्न 15.) क्या गोमाता पालने वालों को रात में गोमाता को कुछ खाने देना चाहिए या नहीं?
उत्तर 15.) नहीं, गोमाता दिन में ही अपनी आवश्यकता के अनुरूप भोजन कर लेती है। रात्रि में उसे भोजन देना स्वास्थ्य के अनुसार ठीक नहीं है।

प्रश्न 16.) दूध से दही, घी, छाछ एवं अन्य पदार्थ बनाने के आयुर्वेद अनुसार प्रक्रियाएं विस्तार से बताईए।
उत्तर 16.) सर्व प्रथम दूध को छान लेना चाहिए, इसके बाद दूध को मिट्टी की हांडी, लोहे के बर्तन या स्टील के बर्तन (ध्यान रखे की दूध को कभी भी तांबे या बिना कलाई वाले पीतल के बर्तन में गरम नहीं करें) में धीमी आंच पर गरम करना चाहिए। धीमी आंच गोबर के कंडे का हो तो बहुत ही अच्छा है। पाँच-छः घंटे तक दूध गरम होने के बाद गुन-गुना रहने पर 1 से 2 प्रतिशत छाछ या दही मिला देना चाहिए। दूध से दही जम जाने के बाद सूर्योदय के पहले दही को मथ देना चाहिए। दही मथने के बाद उसमें स्वतः मक्खन ऊपर जाता है। इस मक्खन को निकाल कर धीमी आंच पर पकाने से शुद्ध घी बनता है। बचे हुए मक्खन रहित दही में बिना पानी मिलाये मथने पर मट्ठा बनता है। चार गुना पानी मिलने पर तक्र बनता है और दो गुना पानी मिलने पर छाछ बनता है।

प्रश्न 17.) दूध के गुणधर्म औषधीय उपयोग, किन- किन चीजों में दूध वर्जित है?
उत्तर 17.) गोमाता का दूध प्राणप्रद, रक्त पित्तनाशक, पौष्टिक और रसायन है। उनमें भी काली गोमाता का दूध त्रिदोषनाशक, परमशक्तिवर्धक और सर्वोत्तम होता है। गोमाता अन्य पशुओं की अपेक्षा सत्व गुण युक्त है और दैवी- शक्ति का केंद्रस्थान है। दैवी- शक्ति के योग से गोदुग्ध में सात्विक बल होता है। शरीर आदि की पुष्टि के साथ भोजन का पाचन भी विधिवत अर्थात सही तरीके से हो जाता है। यह कभी रोग नहीं उत्पन्न होने देता है। आयुर्वेद में विभिन्न रंग वाली गोमाता के दूध आदि का पृथक-पृथक गुण बताया गया है। गोमाता के दूध को सर्वथा छान कर ही पीना चाहिए, क्योंकि गोमाता के स्तन से दूध निकालते समय स्तनों पर रोम होने के कारण दुहने में घर्षण से प्रायः रोम टूट कर दूध में गिर जाते हैं। गोमाता के रोम के पेट में जाने पर बड़ा पाप होता है।

आयुर्वेद के अनुसार किसी भी जीव का बाल पेट में चले जाने से हानि ही होती है। गोमाता के रोम से तो राजयक्ष्मा आदि रोग भी संभव हो सकते हैं इसलिए गोमाता का दूध छानकर ही पीना चाहिए। वास्तव में भारतीय देशी गोमाता का दूध इस मृत्युलोक का अमृत ही है।अमृतं क्षीरभोजनम्

प्रश्न 18.) श्रीखंड के गुणधर्म, औषधीय उपयोग, किन-किन चीजों में श्रीखंड वर्जित है?
उत्तर 18.)श्रीखंड में मुख्यरूप से जलरहित दही, जायफल एवं देसी मिश्री होते है। जायफल कुपित हुए कफ को संतुलित करता है एवं मस्तिष्क को शीत एवं ताप दोनों से बचाता है। चूंकि श्रीखंड में जायफल के साथ जलरहित दही की घुटाई होती है इसलिए इस प्रक्रिया में जायफल का गुण 20 गुना बढ़ जाता है। इस कारण श्रीखंड मेघाशक्ति को बढ़ाता है, कफ को संतुलित रखता है एवं मस्तिष्क को शीत एवं ताप दोनों से बचाता है। अत्यधिक शीत ऋतु, अत्यधित वर्षा ऋतु में श्रीखंड का सेवन वर्जित माना गया है।

ग्रीष्म ऋतु में श्रीखंड का सेवन मस्तिष्क के लिए अमृततुल्य है। श्रीखंड निर्माण के बाद 6 घंटे के अंदर सेवन कर लिया जाना चाहिए। फ्रीज़ में रखे श्रीखंड का सेवन करने से उसके गुण-धर्म बदल कर हानी उत्पन्न कर सकते है अर्थात इसे सामान्य तापमान पर रख कर ताज़ा ही सेवन करें।

प्रश्न 19.)गौमूत्र अर्क बनाने का बर्तन किस धातु का होना चाहिए?
उत्तर 19.) मिट्टी, शीशा, लोहा या मजबूरी में स्टील।

प्रश्न 20.) गोमाता और नंदी (बैल) के सिंग को ऑइलपेंट और किसी भी तरह कि सजावट क्यों नहीं करनी चाहिए?
उत्तर 20.) गोमाता और नंदी (बैल) के सिंग को ऑइलपेंट और किसी भी तरह कि सजावट इसलिए नहीं करनी चाहिए क्योंकि सिंग चंद्रमा से आने वाली ऊर्जा को अवशोषित करते शरीर को देते है। अगर इसे पेंक कर दिया जाए तो वह प्रक्रिया बाधित होती है।

प्रश्न 21.) अगर गोमाता का गौमूत्र नीचे जमीन पर गिर जाये तो क्या उसे हम अर्क बनाने में उपयोग कर सकते है?
उत्तर 21.) नहीं, फिर उसे केवल कृषि कार्य के उपयोग में ले सकते है।

प्रश्न 22.) भिन्न प्रांत की नस्ल वाली गोमाता को किसी दूसरे वातावरण में पाला जाये तो उसकी क्या हानियाँ है?
उत्तर 22.) भिन्न-भिन्न नस्लें अपनी- अपनी जगह के वातावरण के अनुरूप
बनी है अगर हम उन्हे दूसरे वातावरण में ले जा कर रखेंगे तो उन्हें भिन्न वातावरण में
रहने पर परेशानी होती है जिसका असर गोमाता के शरीर एवं गव्यों दोनों पर पड़ता है। और आठ से दस पीड़ियों के बाद वह नस्ल बदल कर स्थानीय भी हो जाती है। अतः यह प्रयोग नहीं करना चाहिए।

प्रश्न 23.) क्या ताजा गौमूत्र से ही चंद्रमा अर्क बना सकते है, पुराने से नहीं?
उत्तर 23.) हाँ, चंद्रमा अर्क, चंद्रमा की शीतलता में बनाया जाता है।

प्रश्न 24.)गोमाता का घी और उसके उत्पाद महंगे क्यों होते है?
उत्तर 24.) एक लीटर घी बनाने में तीस लीटर दूध की खपत होती है जिसका मूल्य कम से कम 30 रु. लीटर के हिसाब से 900 रुपये केवल दूध का होता है। और इसे बनाने में मेहनत आदि को जोड़ दिया जाये तब घी का न्यूनतम मूल्य 1200 रुपये प्रति लीटर होता है।

प्रश्न 25,)गौमूत्र किस गोमाता का लेना चाहिए?
उत्तर 25,)जो वन में विचरण करके, व्यायाम करके इच्छानुसार घास का सेवन करे, स्वच्छ पानी पीवे, स्वस्थ हो; उस गोमाता का गौमूत्र औषधि गुणवाला होता है। शास्त्रीय निर्देश है कि-
‘‘
अग्रमग्रं चरन्तीनामोषधीनां वने वने’’

प्रश्न 26,): गौमूत्र किस आयु की गोमाता का लेना चाहिए?
उत्तर26,) किसी भी आयु की बच्ची, जवान, बूढ़ी-गोमाता का गौमूूत्र औषधि प्रयोग में काम में लाना चाहिए।

प्रश्न 27,): क्या बैल, छोटा बच्चा या वृद्ध बैल का भी गौमूत्र औषधि उपयोग में आता है?
उत्तर: 27,)नर जाति का मूत्र अधिक तीक्ष्ण होता है, पर औषधि उपयोगिता में कम नहीं है, क्योंकि प्रजाति तो एक ही है। बैलों का मूत्र सूँघने से ही बंध्या (बाँझ) को सन्तान प्राप्त होती है। कहा है:
‘‘
ऋषभांष्चापि, जानामि राजनपूजितलक्षणान्।
येषां मूत्रामुपाघ्राय, अपि बन्ध्या प्रसूयते॥’’
(
संदर्भ-महाभारत विराटपर्व)
अर्थ: उत्तम लक्षण वाले उन बैलों की भी मुझे पहचान है, जिनके मूत्र को सूँघ लेने मात्र से बंध्या स्त्री गर्भ धारण करने योग्य हो जाती है।

प्रश्न 28,): गौमूत्र को किस पात्र में रखना चाहिए?
उत्तर:28,)गौमूत्र को ताँबे या पीतल के पात्रा में रखे। मिट्टी, काँच, चीनी मिट्टी का पात्र हो एवं स्टील का पात्र भी उपयोगी है।

प्रश्न 29,):गौमूत्र को कब तक संग्रह किया जा सकता है?
उत्तर:29,) गौमूत्र आजीवन चिर गुणकारी होता है। धूल गिरे, ठीक तरह से ढँका हुआ हो, गुणों में कभी खराब नहीं होता है। रंग कुछ लाल, काला ताँबा लोहा के कारण हो जाता है। गौमूत्र में गंगा ने वास है।
गंगाजल भी कभी खराब नहीं होता है। पवित्र ही रहता है। किसी प्रकार के हानिकारक
कीटाणु नहीं होते हैं।

प्रश्न :30,) जर्सी गाय के वंश का गौमूत्र लिया जाना चाहिए या नहीं?
उत्तर:30,) नहीं लेना चाहिए।
गव्यं पवित्रं रसायनं , पथ्यं हृदयं बलबुद्धिम।
आयुः प्रदं रक्तविकारहारि,त्रिदोषहृद्रोगविषापहं स्यात॥
अनुवाद: भारतीय गोमाता से प्राप्त होने वाले गव्य पवित्र हैं, रसायन हैं और हृदय के लिए औषधी हैं, वे बल एवं बुद्धि को बढ़ाते हैं। वे लंबी आयु देते हैं, रक्त के विकारों को हर दूर करते हैं, तीनों दोषों (वात, पित्त, कफ) को संतुलित रखते हैं, वे सभी रोगों का उपचार एवं शरीर को विष (दोष) रहित करते हैं।

वेदों से संदर्भ: शांत स्वर में नंदिनी नामक एक गोमाता राजा दिलीप (राजा रघु के वंशज एवं श्रीराम के पूर्वज) से कहती हैं :
केवलं पयसा प्रसुतिम, वे ही मन कम दुग्हम प्रसन्नम।
अनुवाद: जब भी मैं प्रसन्न और खुश रहती हूँ तो मैं सभी इच्छाओं को पूरा कर सकती हूँ। मुझे सिर्फ दुग्ध आपूर्तिकर्ता मत समझो। गोमाता में देवताओं का निवास है। वह साक्षात कामधेनु (इच्छा पूरक) है। ईश्वर के सभी अवतार गोमाता के शरीर में वास करते हैं। वह सभी आकाशीय तारामंडल से शुभ किरणों को ग्रहण करती है। इस प्रकार उसमे सभी नक्षत्रों का प्रभाव शामिल हैं। जहाँ कहीं भी एक गोमाता है, वहाँ सभी आकाशीय तारामंडल के प्रभाव है, सब देवताओं का आशीर्वाद है।

गोमाता एकमात्र दिव्य जीव है जिसकी रीढ़ की हड्डी से सूर्यकेतु नाड़ी (सूरज से संपर्क में रहने वाली नाड़ी) गुज़रती है। इसीलिए गोमाता के दूध, मक्खन और घी का रंग सुनहरा होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि सूर्यकेतु नाड़ी, सौर किरणों के संपर्क में आकर उसके रक्त में सोने के लवण का उत्पादन करती है। यह लवण गोमाता के दूध और अन्य शारीरिक तरल पदार्थों में मौजूद हैं, जो चमत्कारिक ढंग से कई रोगों का इलाज करते हैं।

मातृह सर्व भूतानाम, गावः सर्व सुख प्रदा।
अनुवाद: सभी जीवों की माँ होने के नाते गोमाता हर किसी को सभी सुख प्रदान करती है। यदि संयोगवश कुछ ज़हरीली या हानिकारक सामग्री भारतीय गोमाता के भोजन में प्रवेश करती है, तो वह उसे अपने मांस में अवशोषित कर लेती है। वह उसे गोमूत्र, गोबर या दूध में जाने नहीं देती या बहुत छोटी मात्रा में स्त्रावित (छोड़ती) करती है।

इन परिणामों की तुलना दुनिया भर के अन्य शोधकर्ताओं ने अन्य जानवरों के साथ की है, उन्हें विभिन्न वस्तुएं खिला कर उनके दूध और मूत्र का परीक्षण किया गया लेकिन भारतीय वंश की गोमाता के अलावा किसी में यह विशेषता नहीं मिली।

इस बात का वैज्ञानिक आधार यह है की भारतीय गोवंश में अमीनो एसिडों की एक श्रंखला होती है, उस श्रंखला में 67वें स्थान पर एक प्रोटीन पाया जाता है जिसे प्रोलाइन कहा जाता है। गोमाता के शरीर में एकत्रित हुआ विष भी एक प्रोटीन के रूप में मिलता है जिसे BCM7 कहा जाता है और यह बहुत ही हानिकारक होता है लेकिन भारतीय गोमाता के शरीर में मौजूद प्रोलाइन इस BCM7 को अपने साथ इतनी मजबूती से पकड़ लेता है की वह विष गोमाता के किसी भी गव्य (गौमूत्र, गोबर अथवा दूध) में मिल ही नहीं पाता है या बहुत ही कम मिल पाता है।

जबकि विदेशी नस्ल की गाय जैसी दिखने वाली जीव अपने शरीर में प्रोलाइन नहीं बना पाती है और उसकी जगह हिस्टिडाइन नामक प्रोटीन का निर्माण करती है जो BCM7 विष को उसके गोबर, मूत्र या दूध में जाने से रोकने में सक्षम नहीं है।

इसलिए भारतीय गोमाता का गौमूत्र, गोबर और दूध शुद्ध हैं और विषाक्त पदार्थों को दूर करते हैं। गोमाता का दूध निश्चित रूप से विष विरोधक है। गौमूत्रपंचगव्यमें शामिल है।पंचगव्यको सभी जीवों की हड्डी से त्वचा तक रोगों का संसाधक कहा जाता है।

॥वन्दे गौ मातरम्॥9783232626
गोप्रेमीऔ के लिये बहुत ही अनमोल जानकारी है। अतः मेरा निवेदन है कि पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करे। ताकि सभी गोप्रेमी सज्जनो के पास पहुचे। 

जगत जननी गोमाता के शरणों में शत्- शत् वन्दन चर अचर सभी जीवों का पालन करने वाली महामहिमयम गोमाता को पुनः पुनः वन्दन॥

  ॥गोमाता बचैगी तो विश्व बचैगा॥
   
॥गोमाता सुखी तो विश्व सुखी॥
   
॥गोरक्षा हमारा परम कर्त्तव्य॥
           
॥वन्दे गौ मातरम्॥

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