(Courtsey Radhe
Shyam Ravoria)
कलियुग में गोहत्या रूपी कलंक के पीडित आधुनिक भोगीवादी मानव ने अत्याचार की
शिकार वेदवर्णित कामधेनु स्वरूपा गाय सम्पूर्ण मानव जाति को बचाने के लिये गो
भक्तों से कारुणिक आह्वान करती है।
आदरणीय धर्मप्रेमी गोभक्त सज्जनों! सदियों से परम पवित्र गोवंश को सम्पूर्ण
संरक्षण देने के लिये कई ऋषियों,महात्माओं तथा गोभक्तों ने आन्दोलन
किये,गोहत्या बन्दी के लिये विशाल प्रदर्शन किये, फिर भी आज तक गाय को
सम्पूर्ण संरक्षण नहीं मिला। आज प्रतिदिन अनुमानतः पचास हजार से ऊपर गोवंश कट
रहा है। इन सब आन्दोलनों की पृष्ठभूमि से झांका जाये तो एक चित्र उभरेगा।
जिसमें तत्कालीन शासकों प्रतिनिधियों के माध्यम से गोवंश के संरक्षण के लक्ष्य
हासिल करने का प्रयास हुआ। इन सब आन्दोलनों की सफलता कई अनुत्तरित प्रश्न छोड़
देती है। जैसेः 1. गोवंश भूखा क्यों रहता हैं। 2. गोपालक की ऐसी कौनसी विवशता
है,जिससे बाध्य हो वे गोवंश को छोड़ देते है। 3. सरकार या शासक इस महत्वपूर्ण
प्रजाति की बचाने से क्यों कतराते है। 4 लाखों की संख्या में आन्दोलनकारी होने
के बावजूद आखिर वे लक्ष्य प्राप्ति में असफल क्यों हो जाते हैं?
कोई भी शासक प्रशासक सरकार या राजा सम्पूर्ण गोवंश को नहीं पाल सकता हैं।
गोहत्या बन्द करनी हैं तो घर-घर गाय ग्राम-ग्राम गोशाला आश्रम की स्थापना करनी
होगी। गोवंश के आघ्यात्मिक तथा आर्थिक महत्व को सिद्ध करने के लिये प्रमाणिक
शोध तथा अनुसंधान करने होगें। पूरे देश में निष्ठावान गोभक्तों कर सशक्त टीम
तैयार होगी जो नारेबाजी नाटक बाजी से सर्वथा परे यर्थाथ रूप में गोवंश के
संरक्षण का कार्य करे। कृषि प्रधान भारत में प्रदूषण रहित सात्विक अन्न की
पैदावर का पूर्ण प्रतिफल देकर आर्थिक रूप में समन्न बनाना होगा। पंचगव्य
विनियोग पर युद्ध स्तर पर प्रयास करने होगा, नस्ल सुधार एवं संरक्षण करना
होगा, आदि। ये सारे प्रयास ही यर्थाथ रूप से गाय की महत्ता को प्रतिपादित
करेगें। यदि इस कार्य को कर लिया जाये तो कोई भी गोपालक गोवंश को नहीं
छोड़ेगा। कत्लखाने के लिये जब गोवंश उपलब्ध नहीं होगा तब गोहत्या स्वयं ही
समाप्त हो जायेगी तथा सारे राष्ट्र की प्रमुख बाधाओं- बेरोजगारी,गरीबी तथा
कुपोषण का उन्मूलन हो जायेगा।
इस संस्था का एक मात्र परम उद्देश्य यही हैं कि आर्थिक, शारीरिक एवं बौद्धिक
समृद्धि को आधार मानकर गोवंश का अधिकाधिक संख्या में संरक्षण, संवर्धन करना
तथा गोपालक किसानों को गाय की उपादेयता एवं महता से सप्रमाण अवगत कराना
है,जिससे कृषि एवं कृषक दोनों के स्वावलम्बी बने। ग्रामीण जनता को रोजगार
प्राप्त हो,गोचरों औरणों तथा अन्य जंगलों में वृक्षारोपण के साथ जल संग्रहित
कर घास चारा का उत्पादन भी बढाया जाय जा सके। गोवंश से प्राप्त पंचगव्य को
परिष्कृत कर उनकी गुणवता को बढाया जाय, जिससे अधिकाधिक ग्राम स्वरोजगार का
सृजन हो। गो गव्यों का विनियोग वैज्ञानिक प्रणाली से विवेकपूर्णता से किया
जाय। गायों के प्रयोगों से कृषि को उन्नत बनाया जाय। औषधियों की उत्पादन
मात्रा के साथ उनमें गुणवता को बढाया जाय। भूमि की उर्वरा शक्ति को सशक्त
बनाके विविध वानस्पतिक धरोहर एवं जैविक सम्पदा को भी संवधिक किया जा जाए। इससे
कृषि उत्पादन में मात्रात्मक गुणात्मक वृद्धि तो होगी ही साथ ही पर्यावरण
शुद्धता एवं मानवीय स्वास्थ्य को भी अत्यधिक लाभ पहुंचेगा।
वर्तमान समय में समाज राष्ट्र तथा विश्व में विनाशकारी अवधारणाओं ने अपना
अधिकार जमा रखा है। घृणा,द्वेश,अहंकार,ईश्या आदि से ग्रसित बलवान व्यक्ति समाज
और राष्ट्र के निर्वलों को खा रहे है। नस्लवाद,क्षेत्रवाद, मजहबवाद तथा
पन्थवाद का जहर घोलकर विश्व को सर्वनाश के लिए पिलाया जा रहा है। सभ्यताओं में
परस्पर घोर संघर्ष हो रहे है, व्यक्ति में अत्यन्त स्वार्थपरता एवं भोग
लोलुपता आ गयी है। व्यक्ति ही अपनी कभी भी पूरी न होने वाली महत्वकांक्षाओं से
ग्रसित होकर निर्बल तथा असहाय प्राणियों से जीने के अधिकारों का बड़ी
क्रूरतापूर्वक हनन कर रहा है। मानवाकार दानवों ने गोमाता जैसे पवित्र प्राणी
पर भी निर्ममता के साथ नष्ट करने का धावा बोल दिया। प्रतिदिन हजारों गायों की
हत्या की जा रही है,यह प्रवृति विनाशकारी है,जघन्य अपराध है। प्राकृतिक न्याय
के विपरीत है और सम्पूर्ण विश्व ब्रह्माण्ड के लिए महान पीड़ादायक है। इस
पीड़ा से पीड़ित संत हृदय से ही राष्ट्रीय कामधेनु कल्याण परिषद गोधाम
महातीर्थ पथमेड़ा का प्राकट्य हुआ है। इस संस्था के गठन का उद्देश्य
सर्वहितकारी भावनाओं से पवित्र है। यह संस्था किसी प्रकार की संकीर्णता,
भेदभाव एवं स्वार्थिक संघर्शों की घोर विरोधी है। इसमें व्यक्तिवाद,पंथवाद,
महजबवाद,पार्टीवाद को भी स्थान नहीं है। यह संस्था सहअस्तित्व पर विश्वास करती
है। दूसरों के हित में अपना हित होगा इस मौलिक सिद्धान्तों पर चलती है। इसकी
कोई भी प्रवृति अथवा परामर्श व्यक्ति समाज और देश को परस्पर जोड़ने का ही
कार्य करती है। इस संस्था को वर्तमान की दूषित राजनैतिक दृष्टि से देखना भयंकर
भूल के साथ ही महान अपराध भी है।
उपरोक्त सर्वकल्याणकारी कार्य में लगी इस संस्था के प्रारुप को समझे बिना
व्यर्थ धारणाओं को कल्पना कर समाज में निराधर भ्रम फैलाकर लोक कल्याणकारी
कार्यों से व्यक्ति अथवा समाज को दिग्भ्रमित करना महामूर्खता है और स्वंय के
द्वारा पतन के रास्ते पर जाना है,जिसे बुद्धिमानी नहीं माना जा सकता। अतः
मिथ्या धारणाओं का त्याग करके समाज एवं सरकार को यथा समाथ्र्य सहयोग करना
चाहिए इसीसे सबका हित है।
उपरोक्त विवेचन से समाज के तथा राज्य के के उन जिम्मेदार लोगो के नेत्र खुल
जाने चाहिए जो मात्र आज तक नेत्र मंूदकर इस संस्था के पवित्र कार्य में विघ्न
डालने का असफल प्रयास करते थे अगर इतने पर भी नेत्र नहीं खुलते है तो निश्चित
रूप से ऐसे लोगो को रचयिता ने नेत्र दिये ही नहीं हैं।
संवत् 2056 में 52 वर्षों के बाद प्रथम बार मार्गशीर्ष शुक्ल मोक्षदा एकादशी
पर गीती जयन्ती जैसे आध्यात्मिक पर्व पर श्रीकामधेनु शक्ति पीठ, गोधाम
महातीर्थ आनन्दवन पथमेड़ा क्षेत्र के कामधेनु परिसर में राष्ट्रीय कामधेनु
कल्याण महोत्सव का अनुपम आयोजन सम्पन्न हुआ था।
गोवंश के परम संरक्षक एवं पालक श्रीगोपाल कृष्णचंदजी भगवान के आर्विभाव एवं
तिरोभाव के पश्चात् यह पहला मौका था जब सम्पूर्ण गोवंश रक्षण, पालन एवं
संवर्धन हेतु लगभग पच्चीस हजार गोवंश के विराट कुंभ में महान ऐतिहासिक आयोजन
का संयोग गत चार वर्षों से बनता आ रहा है। इस त्रिदिवसीय आयोजन में सनातन धर्म
तथा हिन्दू संस्कृति से सम्बन्ध रखने वाली समस्त शक्तियाँ एक स्थान पर एकत्रित
हुई तथा एक स्वर में लाखों मन और मस्तिष्कों ने सम्पूर्ण गोवंश को संरक्षण
प्रदान करने की प्रतिज्ञाएं की। उन दैवी शक्तियों ने वसुन्धरा पर आधिपत्य
जमाकर बैठे लोगों को चुनौतिपूर्वक चेतावनी भी दी थी कि समष्टि प्रकृति एवं
सम्पूर्ण पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करने वाली कामधेनु,कपिला तथा नन्दिनी की
सन्तानों के साथ अन्याय करना अब विश्व तथा विश्व के राष्ट्रों को महाविनाश से
बचाना असंभव हो जाएगा और मानवता कहर उठेगी।
विशेष रूप से भारत एक महाद्वीप जो ब्रह्माण्ड की नाभी है,जहां से सम्पूर्ण
विश्व ब्रह्माण्ड को पोषक ऊर्जा की प्राप्ति होती हैं, जो विश्व जीवनधार है।
ऐसी भारत माता की गोद में उनकी अधिष्ठात्री एवं चिन्मय रूपा गोमाता का रक्त
बहाना उसको निर्ममतापूर्वक यातना देकर हत्या करना,अविलम्ब समाप्त किया जाय। अब
भी इस जघन्य अपराध को भारत की भूमि से समूल नष्ट नहीं किया गया तो याद रखो जिन
ऋषियों का खून पृथ्वी में से सीता के रूप में प्रकट होकर उस समय की भोग संग्रह
एवं पद प्रतिष्ठा लोलुप विश्व सभ्यता के विनाश का कारण बना था, ठीक उसी तरह
भारत की धर्म धरा पर गिरने वाला गोवंश का रक्त आज भी भोगवादी,अधिनायक दानवीर
सभ्यता को जड़ मूल से नाश करके ही रहेगा। इसमें सन्देह नहीं है।
अतः भारत माता के कोख से जन्म लेने वाले प्रत्येक भारतीय चाहे
श्रमजीवी,बुद्धिजीवी हो अथवा सम्प्रदाय समाज के पन्थ या राष्ट्र के अगुवाहों,
भारत माता सहित सभी को जन्म देने वाली गोमाता तथा उनके वंश की रक्षा में ही
आपकी अपनी रक्षा समाहित है। ऐसा अच्छी तरह से विचार पूर्वक समझ लेना चाहिए तथा
उनके संरक्षण,पालन एवं संवर्धन में प्राथमिकता पूर्वक सम्पूर्ण शक्ति लगाने
में अब विलम्ब नहीं करना चाहिए। क्योंकि रचयिता की सृष्टि से मूक, असहाय एवं
निर्बल प्राणियों का निर्ममतापूर्वक विनाश का ताण्डव करने वाले मानवाकार
दानवों को निगलने के लिए महाकाल ने अपना मुख फैला दिया हैं। इस महाकाल के
विकराल जबड़ों में मानवकार दानव जो विश्व वसुन्धरा पर आधिपत्य जमा कर उसे आज
तक विकृत करता रहा है, अब नहीं बच सकता। उसका समूल नाश होकर ही रहेगा।
इसलिये सज्जनों सावधान हो जाओ और मूक,असहाय एवं निर्बलों का प्रतिनिधित्व करते
हुए ब्रह्माण्ड पालक-पोषक जीवनी शक्ति का दान करने वाली गोमाता तथा उनकी
सन्तान की शरण होकर आज तक किए अपराध के लिए आर्तभाव से क्षमा मांगो। यह जगत
अधिष्ठात्री, विश्व जननी-भगवती पराम्बा-गोमाता करूणा, दया, अहिंसा, क्षमा एवं
वात्सल्य की प्रतिमूर्ति है और अभयदान देने में समर्थ है। अस्तु राष्ट्रीय
कामधेनु कल्याण महोत्सव में एकत्रित भगवद् ऊर्जा, ऋषि ऊर्जा, दैवी ऊर्जा एवं
मानवता की ऊर्जा मिश्रित प्रतिज्ञा के अनुरूप ही परम पवित्र गोधाम महातीर्थ
पथमेड़ा से ही राष्ट्रीय रचनात्मक गोरक्षा अभियान का सूत्रपात हुआ था। परिणाम
स्वरूप क्रूर कसाईयों के खंजर तथा दुष्ट दुष्काल के जबड़ो से लाखों गोवंश की
प्राण रक्षा सम्भव हो सकी ।
कामधेनु कल्याण परिवार के माध्यम से ऐसे अनुशासित,कर्मशील, गोभक्त तैयार
होंगे। जो गोधाम महातीर्थ पथमेड़ा के राष्ट्रव्यापी रचनात्मक गोसेर्वा अभियान
को शांतिपूर्वक तरीके से सफल बनायेंगे।
साधना षिविर में सम्पूर्ण गोवंष के संरक्षण, संवर्धन तथा पालन पर गहन चिंतन
सहित परिवार के सदस्यों के तन-मन की धर्म संगत वृद्धि तथा आध्यात्मिक उन्नति
के सतत् प्रयास किये जायेगे। अतः आप भी तन मन से इस महत्वपूर्ण अभियान के सजग
सहयोगी बनें।
शिकार वेदवर्णित कामधेनु स्वरूपा गाय सम्पूर्ण मानव जाति को बचाने के लिये गो
भक्तों से कारुणिक आह्वान करती है।
आदरणीय धर्मप्रेमी गोभक्त सज्जनों! सदियों से परम पवित्र गोवंश को सम्पूर्ण
संरक्षण देने के लिये कई ऋषियों,महात्माओं तथा गोभक्तों ने आन्दोलन
किये,गोहत्या बन्दी के लिये विशाल प्रदर्शन किये, फिर भी आज तक गाय को
सम्पूर्ण संरक्षण नहीं मिला। आज प्रतिदिन अनुमानतः पचास हजार से ऊपर गोवंश कट
रहा है। इन सब आन्दोलनों की पृष्ठभूमि से झांका जाये तो एक चित्र उभरेगा।
जिसमें तत्कालीन शासकों प्रतिनिधियों के माध्यम से गोवंश के संरक्षण के लक्ष्य
हासिल करने का प्रयास हुआ। इन सब आन्दोलनों की सफलता कई अनुत्तरित प्रश्न छोड़
देती है। जैसेः 1. गोवंश भूखा क्यों रहता हैं। 2. गोपालक की ऐसी कौनसी विवशता
है,जिससे बाध्य हो वे गोवंश को छोड़ देते है। 3. सरकार या शासक इस महत्वपूर्ण
प्रजाति की बचाने से क्यों कतराते है। 4 लाखों की संख्या में आन्दोलनकारी होने
के बावजूद आखिर वे लक्ष्य प्राप्ति में असफल क्यों हो जाते हैं?
कोई भी शासक प्रशासक सरकार या राजा सम्पूर्ण गोवंश को नहीं पाल सकता हैं।
गोहत्या बन्द करनी हैं तो घर-घर गाय ग्राम-ग्राम गोशाला आश्रम की स्थापना करनी
होगी। गोवंश के आघ्यात्मिक तथा आर्थिक महत्व को सिद्ध करने के लिये प्रमाणिक
शोध तथा अनुसंधान करने होगें। पूरे देश में निष्ठावान गोभक्तों कर सशक्त टीम
तैयार होगी जो नारेबाजी नाटक बाजी से सर्वथा परे यर्थाथ रूप में गोवंश के
संरक्षण का कार्य करे। कृषि प्रधान भारत में प्रदूषण रहित सात्विक अन्न की
पैदावर का पूर्ण प्रतिफल देकर आर्थिक रूप में समन्न बनाना होगा। पंचगव्य
विनियोग पर युद्ध स्तर पर प्रयास करने होगा, नस्ल सुधार एवं संरक्षण करना
होगा, आदि। ये सारे प्रयास ही यर्थाथ रूप से गाय की महत्ता को प्रतिपादित
करेगें। यदि इस कार्य को कर लिया जाये तो कोई भी गोपालक गोवंश को नहीं
छोड़ेगा। कत्लखाने के लिये जब गोवंश उपलब्ध नहीं होगा तब गोहत्या स्वयं ही
समाप्त हो जायेगी तथा सारे राष्ट्र की प्रमुख बाधाओं- बेरोजगारी,गरीबी तथा
कुपोषण का उन्मूलन हो जायेगा।
इस संस्था का एक मात्र परम उद्देश्य यही हैं कि आर्थिक, शारीरिक एवं बौद्धिक
समृद्धि को आधार मानकर गोवंश का अधिकाधिक संख्या में संरक्षण, संवर्धन करना
तथा गोपालक किसानों को गाय की उपादेयता एवं महता से सप्रमाण अवगत कराना
है,जिससे कृषि एवं कृषक दोनों के स्वावलम्बी बने। ग्रामीण जनता को रोजगार
प्राप्त हो,गोचरों औरणों तथा अन्य जंगलों में वृक्षारोपण के साथ जल संग्रहित
कर घास चारा का उत्पादन भी बढाया जाय जा सके। गोवंश से प्राप्त पंचगव्य को
परिष्कृत कर उनकी गुणवता को बढाया जाय, जिससे अधिकाधिक ग्राम स्वरोजगार का
सृजन हो। गो गव्यों का विनियोग वैज्ञानिक प्रणाली से विवेकपूर्णता से किया
जाय। गायों के प्रयोगों से कृषि को उन्नत बनाया जाय। औषधियों की उत्पादन
मात्रा के साथ उनमें गुणवता को बढाया जाय। भूमि की उर्वरा शक्ति को सशक्त
बनाके विविध वानस्पतिक धरोहर एवं जैविक सम्पदा को भी संवधिक किया जा जाए। इससे
कृषि उत्पादन में मात्रात्मक गुणात्मक वृद्धि तो होगी ही साथ ही पर्यावरण
शुद्धता एवं मानवीय स्वास्थ्य को भी अत्यधिक लाभ पहुंचेगा।
वर्तमान समय में समाज राष्ट्र तथा विश्व में विनाशकारी अवधारणाओं ने अपना
अधिकार जमा रखा है। घृणा,द्वेश,अहंकार,ईश्या आदि से ग्रसित बलवान व्यक्ति समाज
और राष्ट्र के निर्वलों को खा रहे है। नस्लवाद,क्षेत्रवाद, मजहबवाद तथा
पन्थवाद का जहर घोलकर विश्व को सर्वनाश के लिए पिलाया जा रहा है। सभ्यताओं में
परस्पर घोर संघर्ष हो रहे है, व्यक्ति में अत्यन्त स्वार्थपरता एवं भोग
लोलुपता आ गयी है। व्यक्ति ही अपनी कभी भी पूरी न होने वाली महत्वकांक्षाओं से
ग्रसित होकर निर्बल तथा असहाय प्राणियों से जीने के अधिकारों का बड़ी
क्रूरतापूर्वक हनन कर रहा है। मानवाकार दानवों ने गोमाता जैसे पवित्र प्राणी
पर भी निर्ममता के साथ नष्ट करने का धावा बोल दिया। प्रतिदिन हजारों गायों की
हत्या की जा रही है,यह प्रवृति विनाशकारी है,जघन्य अपराध है। प्राकृतिक न्याय
के विपरीत है और सम्पूर्ण विश्व ब्रह्माण्ड के लिए महान पीड़ादायक है। इस
पीड़ा से पीड़ित संत हृदय से ही राष्ट्रीय कामधेनु कल्याण परिषद गोधाम
महातीर्थ पथमेड़ा का प्राकट्य हुआ है। इस संस्था के गठन का उद्देश्य
सर्वहितकारी भावनाओं से पवित्र है। यह संस्था किसी प्रकार की संकीर्णता,
भेदभाव एवं स्वार्थिक संघर्शों की घोर विरोधी है। इसमें व्यक्तिवाद,पंथवाद,
महजबवाद,पार्टीवाद को भी स्थान नहीं है। यह संस्था सहअस्तित्व पर विश्वास करती
है। दूसरों के हित में अपना हित होगा इस मौलिक सिद्धान्तों पर चलती है। इसकी
कोई भी प्रवृति अथवा परामर्श व्यक्ति समाज और देश को परस्पर जोड़ने का ही
कार्य करती है। इस संस्था को वर्तमान की दूषित राजनैतिक दृष्टि से देखना भयंकर
भूल के साथ ही महान अपराध भी है।
उपरोक्त सर्वकल्याणकारी कार्य में लगी इस संस्था के प्रारुप को समझे बिना
व्यर्थ धारणाओं को कल्पना कर समाज में निराधर भ्रम फैलाकर लोक कल्याणकारी
कार्यों से व्यक्ति अथवा समाज को दिग्भ्रमित करना महामूर्खता है और स्वंय के
द्वारा पतन के रास्ते पर जाना है,जिसे बुद्धिमानी नहीं माना जा सकता। अतः
मिथ्या धारणाओं का त्याग करके समाज एवं सरकार को यथा समाथ्र्य सहयोग करना
चाहिए इसीसे सबका हित है।
उपरोक्त विवेचन से समाज के तथा राज्य के के उन जिम्मेदार लोगो के नेत्र खुल
जाने चाहिए जो मात्र आज तक नेत्र मंूदकर इस संस्था के पवित्र कार्य में विघ्न
डालने का असफल प्रयास करते थे अगर इतने पर भी नेत्र नहीं खुलते है तो निश्चित
रूप से ऐसे लोगो को रचयिता ने नेत्र दिये ही नहीं हैं।
संवत् 2056 में 52 वर्षों के बाद प्रथम बार मार्गशीर्ष शुक्ल मोक्षदा एकादशी
पर गीती जयन्ती जैसे आध्यात्मिक पर्व पर श्रीकामधेनु शक्ति पीठ, गोधाम
महातीर्थ आनन्दवन पथमेड़ा क्षेत्र के कामधेनु परिसर में राष्ट्रीय कामधेनु
कल्याण महोत्सव का अनुपम आयोजन सम्पन्न हुआ था।
गोवंश के परम संरक्षक एवं पालक श्रीगोपाल कृष्णचंदजी भगवान के आर्विभाव एवं
तिरोभाव के पश्चात् यह पहला मौका था जब सम्पूर्ण गोवंश रक्षण, पालन एवं
संवर्धन हेतु लगभग पच्चीस हजार गोवंश के विराट कुंभ में महान ऐतिहासिक आयोजन
का संयोग गत चार वर्षों से बनता आ रहा है। इस त्रिदिवसीय आयोजन में सनातन धर्म
तथा हिन्दू संस्कृति से सम्बन्ध रखने वाली समस्त शक्तियाँ एक स्थान पर एकत्रित
हुई तथा एक स्वर में लाखों मन और मस्तिष्कों ने सम्पूर्ण गोवंश को संरक्षण
प्रदान करने की प्रतिज्ञाएं की। उन दैवी शक्तियों ने वसुन्धरा पर आधिपत्य
जमाकर बैठे लोगों को चुनौतिपूर्वक चेतावनी भी दी थी कि समष्टि प्रकृति एवं
सम्पूर्ण पृथ्वी का प्रतिनिधित्व करने वाली कामधेनु,कपिला तथा नन्दिनी की
सन्तानों के साथ अन्याय करना अब विश्व तथा विश्व के राष्ट्रों को महाविनाश से
बचाना असंभव हो जाएगा और मानवता कहर उठेगी।
विशेष रूप से भारत एक महाद्वीप जो ब्रह्माण्ड की नाभी है,जहां से सम्पूर्ण
विश्व ब्रह्माण्ड को पोषक ऊर्जा की प्राप्ति होती हैं, जो विश्व जीवनधार है।
ऐसी भारत माता की गोद में उनकी अधिष्ठात्री एवं चिन्मय रूपा गोमाता का रक्त
बहाना उसको निर्ममतापूर्वक यातना देकर हत्या करना,अविलम्ब समाप्त किया जाय। अब
भी इस जघन्य अपराध को भारत की भूमि से समूल नष्ट नहीं किया गया तो याद रखो जिन
ऋषियों का खून पृथ्वी में से सीता के रूप में प्रकट होकर उस समय की भोग संग्रह
एवं पद प्रतिष्ठा लोलुप विश्व सभ्यता के विनाश का कारण बना था, ठीक उसी तरह
भारत की धर्म धरा पर गिरने वाला गोवंश का रक्त आज भी भोगवादी,अधिनायक दानवीर
सभ्यता को जड़ मूल से नाश करके ही रहेगा। इसमें सन्देह नहीं है।
अतः भारत माता के कोख से जन्म लेने वाले प्रत्येक भारतीय चाहे
श्रमजीवी,बुद्धिजीवी हो अथवा सम्प्रदाय समाज के पन्थ या राष्ट्र के अगुवाहों,
भारत माता सहित सभी को जन्म देने वाली गोमाता तथा उनके वंश की रक्षा में ही
आपकी अपनी रक्षा समाहित है। ऐसा अच्छी तरह से विचार पूर्वक समझ लेना चाहिए तथा
उनके संरक्षण,पालन एवं संवर्धन में प्राथमिकता पूर्वक सम्पूर्ण शक्ति लगाने
में अब विलम्ब नहीं करना चाहिए। क्योंकि रचयिता की सृष्टि से मूक, असहाय एवं
निर्बल प्राणियों का निर्ममतापूर्वक विनाश का ताण्डव करने वाले मानवाकार
दानवों को निगलने के लिए महाकाल ने अपना मुख फैला दिया हैं। इस महाकाल के
विकराल जबड़ों में मानवकार दानव जो विश्व वसुन्धरा पर आधिपत्य जमा कर उसे आज
तक विकृत करता रहा है, अब नहीं बच सकता। उसका समूल नाश होकर ही रहेगा।
इसलिये सज्जनों सावधान हो जाओ और मूक,असहाय एवं निर्बलों का प्रतिनिधित्व करते
हुए ब्रह्माण्ड पालक-पोषक जीवनी शक्ति का दान करने वाली गोमाता तथा उनकी
सन्तान की शरण होकर आज तक किए अपराध के लिए आर्तभाव से क्षमा मांगो। यह जगत
अधिष्ठात्री, विश्व जननी-भगवती पराम्बा-गोमाता करूणा, दया, अहिंसा, क्षमा एवं
वात्सल्य की प्रतिमूर्ति है और अभयदान देने में समर्थ है। अस्तु राष्ट्रीय
कामधेनु कल्याण महोत्सव में एकत्रित भगवद् ऊर्जा, ऋषि ऊर्जा, दैवी ऊर्जा एवं
मानवता की ऊर्जा मिश्रित प्रतिज्ञा के अनुरूप ही परम पवित्र गोधाम महातीर्थ
पथमेड़ा से ही राष्ट्रीय रचनात्मक गोरक्षा अभियान का सूत्रपात हुआ था। परिणाम
स्वरूप क्रूर कसाईयों के खंजर तथा दुष्ट दुष्काल के जबड़ो से लाखों गोवंश की
प्राण रक्षा सम्भव हो सकी ।
कामधेनु कल्याण परिवार के माध्यम से ऐसे अनुशासित,कर्मशील, गोभक्त तैयार
होंगे। जो गोधाम महातीर्थ पथमेड़ा के राष्ट्रव्यापी रचनात्मक गोसेर्वा अभियान
को शांतिपूर्वक तरीके से सफल बनायेंगे।
साधना षिविर में सम्पूर्ण गोवंष के संरक्षण, संवर्धन तथा पालन पर गहन चिंतन
सहित परिवार के सदस्यों के तन-मन की धर्म संगत वृद्धि तथा आध्यात्मिक उन्नति
के सतत् प्रयास किये जायेगे। अतः आप भी तन मन से इस महत्वपूर्ण अभियान के सजग
सहयोगी बनें।
No comments:
Post a Comment