।। श्री ।।
*सूक्ष्म गव्य चिकित्सा*
(भाग 3)
हमारे तरिके से सूक्ष्म चिकित्सा के दो प्रकार होते है।
1. एम. पार्टीकल थिअरी
2. व्हायब्रेशन थिअरी
*1. एम. पार्टीकल थिअरी*
इसमे द्राव का श्लक्ष्ण स्वरूप बनाते बनाते वो इतना छोटा बन जाता है की उसके सिर्फ पार्टिकल्स बाकी रहते है। फिजिक्स में पार्टिकल्स अनेकविध प्रकार के है। जैसे फोटॉन, ग्रॅव्हिटॉन आदि. वे दिखते नही, लेकिन उसके परिणाम दिख सकते है। आधुनिक वैज्ञानिक मानते है की *ग्रॅव्हिटॉन भी एक पार्टिकल है।* पिछले कई बर्षो से *गॉड पार्टिकल* का शोध जारी है। मानवी शरीर में बहुत कुछ करनेवाला फ्री रॅडिकल्स भी पार्टिकल्स ही होते है। ऑक्सिजन का सिंगल इलेक्ट्रॉन रह जाता है, और उसे पेअर नही मिलता तो उसका आयनभारित फ्री रॅडिकल्स बनता है। शरीर के कोशिकाओ, डी. एन. ए., आर. एन. ए., कोशिकाओं की त्वचा और रक्तवाहिन्यां को बहुत भारी नुकसान पहुंचाता है। जब उसे उसका पेअर मिलता है, तब वह उदासिन होकर शांत होता है। इसलिए लोग अँटिऑक्सिडंट पदार्थ खाते है। यह पार्टिकल्स का जगत बहुत सूक्ष्म और व्यापक है। बहुत सारे पार्टिकल्स पुरे विश्व में घुमते है, और बहुत कुछ कर सकते है। पार्टिकल फिजिक्स बन जाएगा इतने सारे पार्टिकल्स विद्यमान है।
सूक्ष्म चिकित्सा में पदार्थ या द्रव्य को इतना सूक्ष्म बनाया जाता है, की अंततः उसका शेष भाग पार्टिकल ही रह जाता है। एक मिलिग्राम पदार्थ से 1000 मिलिग्राम औषधी बन सकती है। इतना ही नही उसका सूक्ष्मीकरण बढा दिया तो 1 मिलि से 10 हजार किलो भी औषधी द्राव बन सकता है। जब 1 मिलिग्रॅम का 1000 ग्रॅम औषधी बनती है, तब मूलपदार्थ का उसमे 0.001 इतना अनुपात रहता है। सूक्ष्मीकरण प्रक्रिया से मूलद्राव का इतना सूक्ष्मीकरण हो जाता है। सूक्ष्मीकरण आगे बढा दिया तो उसकी मात्रा 0.00000000001 इतनी ही रह जाती है। यह पदार्थ कौनसे भी मायक्रोस्कोप में दिखता नही। जैसे अणू एक संकल्पना है। हायपोथेटिकल सत्य है। अभितक अणूको किसिने देखा नही। वह एक हायपोथेटिकल सत्य है। उस के उपर अणूविज्ञान खडे है। क्यों की उसका परिणाम दिख जाता है। वैसे ही इस औषधी द्रव में मूल पदार्थ दिखते नही, लेकिन उसका परिणाम दिख जाता है। अतिसूक्ष्म मात्रा में वह शरीर में जाकर अपना काम कर लेता है।
यह सूक्ष्म औषधी लेने का प्रमाण भी अत्यंत अल्प ही है। जैसे हम पूजा करने के बाद प्रसाद ग्रहन करते है। तो वह प्रसाद चणे के दानेबराबर होना चाहिए, ऐसा नियम है। क्यों कि ईश्वरी प्रसाद पेट में जाकर उसका मल में रूपांतर नही होना चाहिए, ऐसा दंडक है। जब हम प्रचूर मात्रा में सेवन करते है, तो उसका पाचन तंत्र से पाचन होकर शेष भाग का मल बनता है। प्रसाद का मल नही होना चाहिए। वैसी ही सूक्ष्म औषधी लेने की मात्रा भी अल्प है। वह पेट में जाती ही नही। हमारे जीभ के उपर कई बुंद औषधी छोडने से उसका काम हो जाता है। जीभ में ही उसका शोषण हो जाता है। और वह सूक्ष्म पार्टिकल्स शरीर में जहा गडबडी चल रही है, उसे ठिक कर देते है।
एम. पार्टिकल का मतलब है, मास पार्टिकल्स। यह मास पार्टिकल्स जीभ में शोष होकर शरीर के जिस अवयव में बिघाड उत्पन्न हुआ है, उसे ठिक कर देते है। हम हमारे श्वास से भी करोडो पार्टिकल्स अंदर लेते है। हमारा भरण केवल अन्न से नही होता, हवा में से करोडे पार्टिकल्स अंदर जाकर वह काम कर देते है। श्वास से हम केवल हवा ही नही, बल्कि पार्टिकल्स भी लेते है। शरीर में अत्यंत सूक्ष्म और अत्यंत जटिल व्यवस्था है। उससे यह पुरा कार्य किया जाता है।
हमारी जिभ पुरे आंतरिक व्यवस्था का आयना है। इसलिए रोग का निदान करते समय जिभ भी देखी जाती है। उसका एक अलग शास्त्र विकसित हुआ है। भारत में और चायना में भी टंग डायग्नॉसिस किए जाते है। उसके उपर कई सारे ग्रंथ लिखे गये है। कई लोग उसे टंग रिफ्लेक्सॉलॉजी कहते है। शरीर के अंदर जितने भी सारे अवयव है, उस अवयवों के बिंदू (पॉईंट्स) हमारे हात और पैर पर मौजूद है। उसे दबाने से उस अयवय में जो बिघाड हुवा था वो ठिक हो जाता है। ऐसे कई सारे बिंदू पुरे शरीर में फैले हुए है, उसे अँक्यूपंक्चर शास्त्र में सिखाया जाता है।
वैसे ही हमारे जीभ के उपर शरीर के अभ्यंतर अवयवों के बिंदू है। जब हम सूक्ष्म औषधी जीभ पर लेते है, तो वह पुरे जीभ पर फैल जाते है। और जिस अवयव में बिघाड निर्माण हुआ है, उस स्थान पर भी जाते है। उस स्थान में उत्तेजना जागृत कर के उस अवयव को ठिक करने का कार्य शुरु हो जाता है। हमारे शरीर का एक विशेष यह है की, शरीर उसे ज्यो आवश्यक है, वही लेते है। और ज्यो चिजे आवश्यक नही है, उसे छोड देते है। इस तरह सूक्ष्म औषधी के पार्टिकल्स उस अवयव तक पहुंचकर उसे ठिक कर देते है। When M Particles entered in the body, it becomes Medicine Particles! मास पार्टिकल्स ही शरीर के अंदर जाकर मेडिसिन पार्टिकल्स बन जाते है। अत्यंत सूक्ष्म मात्रा में प्रसाद की तरह औषधी ग्रहन करने से अत्यंत सूक्ष्म कार्यप्रणाली से यह कार्य हो जाता है। अभि तक शरीरक्रियाशास्त्र का पुरा ज्ञान किसि को भी नही हुआ है। आंखों से और मायक्रोस्कोप से दिखनेवाले जग और उसकी क्रिया जितनी है, उससे कई गुना जादा न दिखनेवाला जग और उसकी क्रिया विद्यमान है।
*2. व्हायब्रेशन थिअरी*
अथर्ववेद में चिकित्सा के तीन प्रकार बताये गये है।
*1. मानुषी चिकित्सा -* जिस में चूर्ण, काढा, कल्क आदि आते है।
*2. अंगिरस चिकित्सा –* इस में शरीर रस के द्वारा चिकित्सा कि जाती है।
*3. अथर्वन चिकित्सा –* यह चिकित्सा व्हायब्रेशन्स के द्वारा कि जाती है।
यह चिकित्सा सबसे श्रेष्ठ है, ऐसा अथर्ववेद का कहना है।
यह व्हायब्रेशन चिकित्सा हमारे *ऋषीब्रह्मयोग* मे सिखाई जाती है। वह एक अलग विषय है। व्हायब्रेशन्स की बनायी हुई औषधी भी बना सकते है। उसका कार्य एम. पार्टिकल्स से भी अधिक सूक्ष्म है।
हमारी गाय के गव्य से हम सूक्ष्म चिकित्सा कर सकते है। गव्य में जो पावित्र्य और शक्ती विद्यमान है, उसे सूक्ष्मीकरण से कई जादा गुणा बढा सकते है। उससे विभिन्न औषधी भी बना सकते है। औषधी की मात्रा भी अल्प होती है, और लेने में कोई दिक्कत नही आती। बच्चो से लेकर बुढे तक कोई भी उसे बिना संकोच ले सकते है। उसका परिणाम भी स्थूल गव्य से अधिक मिल सकता है। इसलिए सूक्ष्म गव्य चिकित्सा अधिक महत्त्वपूर्ण है।
(आगे का भाग - आगे भाग 4 में)
यह *सूक्ष्म गव्यचिकित्सा* का हमने एक अभ्यासक्रम तैयार किया है। बाद में पुरा अभ्यासक्रम भेज देंगे। जिन्हे वह शिककर गोमाता की और समाज की सेवा करनी है, वह हमे संपर्क करे।
*ब्रह्मर्षि अधिक देशमुख*
(विद्यावाचस्पती)
*ऋषीगुरूपीठम् ट्रस्ट, पुणे*
*सद्गुरू नॅचरल हेल्थ सेंटर, पुणे* (महाराष्ट्र)
9850666581
*सूक्ष्म गव्य चिकित्सा*
(भाग 3)
हमारे तरिके से सूक्ष्म चिकित्सा के दो प्रकार होते है।
1. एम. पार्टीकल थिअरी
2. व्हायब्रेशन थिअरी
*1. एम. पार्टीकल थिअरी*
इसमे द्राव का श्लक्ष्ण स्वरूप बनाते बनाते वो इतना छोटा बन जाता है की उसके सिर्फ पार्टिकल्स बाकी रहते है। फिजिक्स में पार्टिकल्स अनेकविध प्रकार के है। जैसे फोटॉन, ग्रॅव्हिटॉन आदि. वे दिखते नही, लेकिन उसके परिणाम दिख सकते है। आधुनिक वैज्ञानिक मानते है की *ग्रॅव्हिटॉन भी एक पार्टिकल है।* पिछले कई बर्षो से *गॉड पार्टिकल* का शोध जारी है। मानवी शरीर में बहुत कुछ करनेवाला फ्री रॅडिकल्स भी पार्टिकल्स ही होते है। ऑक्सिजन का सिंगल इलेक्ट्रॉन रह जाता है, और उसे पेअर नही मिलता तो उसका आयनभारित फ्री रॅडिकल्स बनता है। शरीर के कोशिकाओ, डी. एन. ए., आर. एन. ए., कोशिकाओं की त्वचा और रक्तवाहिन्यां को बहुत भारी नुकसान पहुंचाता है। जब उसे उसका पेअर मिलता है, तब वह उदासिन होकर शांत होता है। इसलिए लोग अँटिऑक्सिडंट पदार्थ खाते है। यह पार्टिकल्स का जगत बहुत सूक्ष्म और व्यापक है। बहुत सारे पार्टिकल्स पुरे विश्व में घुमते है, और बहुत कुछ कर सकते है। पार्टिकल फिजिक्स बन जाएगा इतने सारे पार्टिकल्स विद्यमान है।
सूक्ष्म चिकित्सा में पदार्थ या द्रव्य को इतना सूक्ष्म बनाया जाता है, की अंततः उसका शेष भाग पार्टिकल ही रह जाता है। एक मिलिग्राम पदार्थ से 1000 मिलिग्राम औषधी बन सकती है। इतना ही नही उसका सूक्ष्मीकरण बढा दिया तो 1 मिलि से 10 हजार किलो भी औषधी द्राव बन सकता है। जब 1 मिलिग्रॅम का 1000 ग्रॅम औषधी बनती है, तब मूलपदार्थ का उसमे 0.001 इतना अनुपात रहता है। सूक्ष्मीकरण प्रक्रिया से मूलद्राव का इतना सूक्ष्मीकरण हो जाता है। सूक्ष्मीकरण आगे बढा दिया तो उसकी मात्रा 0.00000000001 इतनी ही रह जाती है। यह पदार्थ कौनसे भी मायक्रोस्कोप में दिखता नही। जैसे अणू एक संकल्पना है। हायपोथेटिकल सत्य है। अभितक अणूको किसिने देखा नही। वह एक हायपोथेटिकल सत्य है। उस के उपर अणूविज्ञान खडे है। क्यों की उसका परिणाम दिख जाता है। वैसे ही इस औषधी द्रव में मूल पदार्थ दिखते नही, लेकिन उसका परिणाम दिख जाता है। अतिसूक्ष्म मात्रा में वह शरीर में जाकर अपना काम कर लेता है।
यह सूक्ष्म औषधी लेने का प्रमाण भी अत्यंत अल्प ही है। जैसे हम पूजा करने के बाद प्रसाद ग्रहन करते है। तो वह प्रसाद चणे के दानेबराबर होना चाहिए, ऐसा नियम है। क्यों कि ईश्वरी प्रसाद पेट में जाकर उसका मल में रूपांतर नही होना चाहिए, ऐसा दंडक है। जब हम प्रचूर मात्रा में सेवन करते है, तो उसका पाचन तंत्र से पाचन होकर शेष भाग का मल बनता है। प्रसाद का मल नही होना चाहिए। वैसी ही सूक्ष्म औषधी लेने की मात्रा भी अल्प है। वह पेट में जाती ही नही। हमारे जीभ के उपर कई बुंद औषधी छोडने से उसका काम हो जाता है। जीभ में ही उसका शोषण हो जाता है। और वह सूक्ष्म पार्टिकल्स शरीर में जहा गडबडी चल रही है, उसे ठिक कर देते है।
एम. पार्टिकल का मतलब है, मास पार्टिकल्स। यह मास पार्टिकल्स जीभ में शोष होकर शरीर के जिस अवयव में बिघाड उत्पन्न हुआ है, उसे ठिक कर देते है। हम हमारे श्वास से भी करोडो पार्टिकल्स अंदर लेते है। हमारा भरण केवल अन्न से नही होता, हवा में से करोडे पार्टिकल्स अंदर जाकर वह काम कर देते है। श्वास से हम केवल हवा ही नही, बल्कि पार्टिकल्स भी लेते है। शरीर में अत्यंत सूक्ष्म और अत्यंत जटिल व्यवस्था है। उससे यह पुरा कार्य किया जाता है।
हमारी जिभ पुरे आंतरिक व्यवस्था का आयना है। इसलिए रोग का निदान करते समय जिभ भी देखी जाती है। उसका एक अलग शास्त्र विकसित हुआ है। भारत में और चायना में भी टंग डायग्नॉसिस किए जाते है। उसके उपर कई सारे ग्रंथ लिखे गये है। कई लोग उसे टंग रिफ्लेक्सॉलॉजी कहते है। शरीर के अंदर जितने भी सारे अवयव है, उस अवयवों के बिंदू (पॉईंट्स) हमारे हात और पैर पर मौजूद है। उसे दबाने से उस अयवय में जो बिघाड हुवा था वो ठिक हो जाता है। ऐसे कई सारे बिंदू पुरे शरीर में फैले हुए है, उसे अँक्यूपंक्चर शास्त्र में सिखाया जाता है।
वैसे ही हमारे जीभ के उपर शरीर के अभ्यंतर अवयवों के बिंदू है। जब हम सूक्ष्म औषधी जीभ पर लेते है, तो वह पुरे जीभ पर फैल जाते है। और जिस अवयव में बिघाड निर्माण हुआ है, उस स्थान पर भी जाते है। उस स्थान में उत्तेजना जागृत कर के उस अवयव को ठिक करने का कार्य शुरु हो जाता है। हमारे शरीर का एक विशेष यह है की, शरीर उसे ज्यो आवश्यक है, वही लेते है। और ज्यो चिजे आवश्यक नही है, उसे छोड देते है। इस तरह सूक्ष्म औषधी के पार्टिकल्स उस अवयव तक पहुंचकर उसे ठिक कर देते है। When M Particles entered in the body, it becomes Medicine Particles! मास पार्टिकल्स ही शरीर के अंदर जाकर मेडिसिन पार्टिकल्स बन जाते है। अत्यंत सूक्ष्म मात्रा में प्रसाद की तरह औषधी ग्रहन करने से अत्यंत सूक्ष्म कार्यप्रणाली से यह कार्य हो जाता है। अभि तक शरीरक्रियाशास्त्र का पुरा ज्ञान किसि को भी नही हुआ है। आंखों से और मायक्रोस्कोप से दिखनेवाले जग और उसकी क्रिया जितनी है, उससे कई गुना जादा न दिखनेवाला जग और उसकी क्रिया विद्यमान है।
*2. व्हायब्रेशन थिअरी*
अथर्ववेद में चिकित्सा के तीन प्रकार बताये गये है।
*1. मानुषी चिकित्सा -* जिस में चूर्ण, काढा, कल्क आदि आते है।
*2. अंगिरस चिकित्सा –* इस में शरीर रस के द्वारा चिकित्सा कि जाती है।
*3. अथर्वन चिकित्सा –* यह चिकित्सा व्हायब्रेशन्स के द्वारा कि जाती है।
यह चिकित्सा सबसे श्रेष्ठ है, ऐसा अथर्ववेद का कहना है।
यह व्हायब्रेशन चिकित्सा हमारे *ऋषीब्रह्मयोग* मे सिखाई जाती है। वह एक अलग विषय है। व्हायब्रेशन्स की बनायी हुई औषधी भी बना सकते है। उसका कार्य एम. पार्टिकल्स से भी अधिक सूक्ष्म है।
हमारी गाय के गव्य से हम सूक्ष्म चिकित्सा कर सकते है। गव्य में जो पावित्र्य और शक्ती विद्यमान है, उसे सूक्ष्मीकरण से कई जादा गुणा बढा सकते है। उससे विभिन्न औषधी भी बना सकते है। औषधी की मात्रा भी अल्प होती है, और लेने में कोई दिक्कत नही आती। बच्चो से लेकर बुढे तक कोई भी उसे बिना संकोच ले सकते है। उसका परिणाम भी स्थूल गव्य से अधिक मिल सकता है। इसलिए सूक्ष्म गव्य चिकित्सा अधिक महत्त्वपूर्ण है।
(आगे का भाग - आगे भाग 4 में)
यह *सूक्ष्म गव्यचिकित्सा* का हमने एक अभ्यासक्रम तैयार किया है। बाद में पुरा अभ्यासक्रम भेज देंगे। जिन्हे वह शिककर गोमाता की और समाज की सेवा करनी है, वह हमे संपर्क करे।
*ब्रह्मर्षि अधिक देशमुख*
(विद्यावाचस्पती)
*ऋषीगुरूपीठम् ट्रस्ट, पुणे*
*सद्गुरू नॅचरल हेल्थ सेंटर, पुणे* (महाराष्ट्र)
9850666581
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