।। श्रीराधे ।।
गाय की महत्ता और आवश्यकता-3- प्रश्नोत्तर
प्रश्न‒गाय के घी से आहुति देनेपर वर्षा होती है‒ऐसा शास्त्रों में आता है । आजकल प्रायः लोग गाय के घी से यज्ञ, होम आदि नहीं करते तो भी वर्षा होती ही है‒इसका कारण क्या है ?
उत्तर‒प्राचीन काल से जो यज्ञ, होम होते आये हैं, उनका संग्रह अभी बाकी है । उसी संग्रह से अभी वर्षा हो रही है । परंतु अभी यज्ञ आदि न होने से वैसी व्यवस्था नहीं रही है, इसलिये कहीं अतिवृष्टि और कहीं अनावृष्टि हो रही है । वर्षा भी बहुत कम हो रही है ।
प्रश्न‒वर्षा अग्नि में आहुति देने से ही होती है या कर्तव्य का पालन करने से होती है ?
उत्तर‒कर्तव्य-पालन के अन्तर्गत यज्ञ, होम, दान, तप आदि सब कर्म आ जाते हैं । गीता ने भी यज्ञ आदि को कर्तव्य-कर्म के अन्तर्गत ही माना है । अगर मनुष्य अपने कर्तव्य का पालन करेंगे तो सूर्य, वरुण, वायु आदि देवता भी अपने कर्तव्य का पालन करेंगे और समयपर वर्षा करेंगे ।
प्रश्न‒विदेशों में यज्ञ आदि नहीं होते, फिर वहाँ देवतालोग वर्षा क्यों करते हैं ?
उत्तर‒जिन देशों में गायें नहीं हैं अथवा जिन देशों के लोग यज्ञ आदि नहीं करते, वहाँ भी अपने कर्तव्य-कर्म का पालन तो होता ही है । वहाँ के लोग अपने कर्तव्य का पालन करते हैं तो देवता भी अपने कर्तव्य का पालन करते हैं अर्थात् वहाँ वर्षा आदि करते हैं ।
प्रश्न‒ट्रैक्टर आदि यन्त्रों से खेती हो जाती है, फिर गाय-बैल की क्या जरूरत है ?
उत्तर‒वैज्ञानिकों ने कहा है कि अभी जिस रीति से तेल खर्च हो रहा है, ऐसे खर्च होता रहा तो लगभग बीस वर्षों में ये तेल आदि सब समाप्त हो जायँगे, जमीन में तेल नहीं रहेगा । जब तेल ही नहीं रहेगा, तब यन्त्र कैसे चलेंगे ? उस समय गाय-बैल ही काम आयेंगे ।
प्रश्न‒तेल नहीं रहेगा तो उसकी जगह कोई नया आविष्कार हो जायगा, फिर गायों की क्या आवश्यकता ?
उत्तर‒नया आविष्कार हो अथवा न हो, पर जो चीज अभी अपने हाथ में है, उसको क्यों नष्ट करें ? जो चीज अभी हाथ में नहीं है, भविष्यपर निर्भर है, उसको लेकर अभी की चीज को नष्ट करना बुद्धिमानी नहीं है । जैसे, गर्भ के बालक की आशा से गोद के बालक को समाप्त करना बुद्धिमानी नहीं है, प्रत्युत बड़ी भारी भूल है, महान् मूर्खता है, घोर पाप, अन्याय है । गायों की परम्परा तो युगोंतक चलती रहेगी, पर आविष्कारों की परम्परा भी चलती रहेगी‒इसका क्या भरोसा ? अगर विश्वयुद्ध छिड़ जाय तो क्या आविष्कार सुरक्षित रह सकेंगे ? पीछे को कदम तो उठा लिया और आगे जगह मिली नहीं तो क्या दशा होगी ? इसलिये आगे आविष्कार होगा‒इस विचार को लेकर गायों का नाश नहीं करना चाहिये, प्रत्युत प्रयत्नपूर्वक उनकी रक्षा करनी चाहिये । उत्पादन के जितने उपाय हों, उतना ही बढ़िया है । उनको नष्ट करने से क्या लाभ ? अगर आगे आविष्कार हो भी जाय तो भी गायें निरर्थक नहीं हैं । गायों के गोबर-गोमूत्र से अनेक रोग दूर होते हैं । उनसे बनी खाद के समान कोई खाद नहीं है । गाय के दूध के समान कोई दूध नहीं है । गाय से होनेवाले लाभों की गणना नहीं की जा सकती ।
'साधन-सुधा-सिन्धु' पुस्तक से, पुस्तक कोड- 465, विषय- गाय की महत्ता और आवश्यकता, पृष्ठ-संख्या- ९४०, गीताप्रेस गोरखपुर
ब्रह्मलीन श्रद्धेय स्वामी श्री रामसुखदास जी महाराज
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